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हमारे क्षेत्र के निवासी इस बात से सहमत होंगे कि, मेरठ अपने कई तालाबों, नदियों और ऊपरी गंगा नहर के अपने नेटवर्क के साथ, मछली खेती का समर्थन करता है; इसमें रोज़गार का निर्माण करता है; तथा क्षेत्र में भोजन पोषण और स्थिरता को बढ़ावा देता है। यह अभ्यास, स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाता है; हमें प्रोटीन युक्त भोजन प्रदान करता है; और जैविक उर्वरकों के माध्यम से कृषि का समर्थन करता है। इससे मत्स्य पालन, हमारे क्षेत्र की वृद्धि और खाद्य सुरक्षा में एक आवश्यक योगदानकर्ता बन जाता है। तो आज, आइए मछली पालन खेती के लाभों का पता लगाएं, तथा इसके आर्थिक, पोषण और पर्यावरणीय लाभों को जानें। इसके बाद, हम भारत में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न मछली फ़ार्मिंग सिस्टम पर चर्चा करेंगे। फिर हम, भारत में खेती के लिए, सबसे अच्छी प्रकार की मछलियों को देखेंगे। यहां हम इनके लिए आवश्यक निवेश और परिचालन खर्चों को भी देखेंगे।
मछली पालन खेती के लाभ:
1.स्थिरता: मछली पालन खेती, मछली उत्पादन करने का एक स्थायी तरीका है, और इससे प्राकृतिक मछलियों की आबादी पर कम दबाव पड़ता है।
2.आर्थिक विकास: यह क्षेत्र रोज़गार का निर्माण करता है, और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था को बढ़ाता है।
3.पोषण सुरक्षा: मछलियां प्रोटीन, ओमेगा-3 फ़ैटी एसिड (Omega-3 fatty acids) और अन्य आवश्यक पोषक तत्वों की एक उत्कृष्ट स्रोत है, जो खाद्य सुरक्षा में योगदान देती है।
4.संसाधन दक्षता: मछलियां, अन्य पशुधन की तुलना में, अपने शरीर के द्रव्यमान में फ़ीड या दिए गए खाद्य को अधिक कुशलता से परिवर्तित करती है। इससे मछली पालन, प्रोटीन (Protein) के उत्पादन का एक संसाधन-कुशल तरीका बन जाता है।
भारत में उपयोग किए जाने वाले, विभिन्न मछली फ़ार्मिंग तंत्र:
1. पिंजरा प्रणाली (Cage System) – इस तकनीक में धातु के पिंजरों को पानी में डुबोया जाता है, जिसमें मछलियां होती है। खेती का यह तरीका, कृत्रिम रूप से मछलियों को खाद्य खिलाने की अनुमति देता है।
2. तालाब प्रणाली (Pond System) – इस प्रणाली में, एक छोटे तालाब या टैंक की आवश्यकता होती है, जहां मछलियां बढ़ती हैं। यह सबसे अधिक लाभकारी मछली पालन खेती तकनीकों में से एक है, क्योंकि इसमें मछलियों के कचरे वाले पानी का उपयोग, कृषि क्षेत्र में खाद के तौर पर किया जाता है।
3. एकीकृत पुनर्चक्रण प्रणाली (Integrated Recycling System) – इस विधि में ग्रीनहाउस (Greenhouse) में रखी गई मछलियों के बड़े प्लास्टिक टैंक का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, टैंकों के बगल में एक हाइड्रोपॉनिक बेड (Hydroponic bed) है। मछली टैंक के पानी का उपयोग करते हुए लोग तुलसी, अजमोद, आदि जड़ी-बूटियों की भी खेती करते हैं।
4. क्लासिक फ़्राई फ़ार्मिंग (Classic Fry Farming) - इस तकनीक का उपयोग करते हुए, मछलियों को अंडों से बच्चे बनने तक पाला जाता है। फिर उन्हें, पानी के किसी स्त्रोत में छोड़ा जाता है।
भारत में खेती के लिए सबसे अच्छी मछली किस्में:
1. कैटफ़िश फ़ार्मिंग (Catfish Farming):
कैटफ़िश, मछली किसानों के शीर्ष विकल्पों में से एक हैं, क्योंकि विशेष रूप से गर्म जलवायु में उनका पालन करना आसान है। उन्हें तालाबों के साथ-साथ टैंकों में भी पाला जा सकता है। बाज़ार में भी उनकी अच्छी मांग है। आप 18 महीनों तक उनका पालन करके, मुनाफ़ा कमा सकते हैं। सबसे प्रमुख कैटफ़िश प्रजातियां, जिन्हें आप पाल सकते हैं, वे चैनल कैटफ़िश (Channel catfish), ब्लू कैटफ़िश (Blue catfish) और फ्लैथेड कैटफ़िश (Flathead catfish.) हैं।
2. कॉड फ़ार्मिंग (Cod Farming):
कॉडफ़िश, यूरोप और अमेरिका में मछली की बहुत महत्वपूर्ण वाणिज्यिक प्रजातियां हैं। इसकी लोकप्रियता हमेशा से ही बढ़ती जा रही है। बाज़ार में बेचे जाने से पहले, इन मछलियों को 24-36 महीनों तक पाला जाना चाहिए।
3. तिलापिया फ़ार्मिंग (Tilapia Farming):
तिलापिया मछली, भारतीय मछली पालन खेती में तीसरी सबसे लोकप्रिय मछली है, जिसे किसान अक्सर चुनते हैं। इन मछलियों में प्रोटीन की उच्च मात्रा होती हैं, वे बड़े आकार की होती हैं, और काफ़ी अच्छी तरह से बढ़ती हैं। वे 28 से 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान सीमा में, अच्छी तरह से बढ़ सकती हैं।
4. ईल फ़ार्मिंग (Eel Farming):
ईल मछलियां, प्रकृति में मांसाहारी होती हैं। उनके शरीर की रचना, लंबी एवं सांप जैसी होती है। उनके शरीर पतले और फिसलाऊ होते हैं। चीन (China), जापान (Japan) और ताइवान (Taiwan) जैसे देश, ईल मछली के सबसे बड़े उत्पादक और विक्रेता हैं।
5. ग्रास कार्प (Grass Carp) फ़ार्मिंग:
ग्रास कार्प, एक मीठे पानी की मछली है, एवं वाइट अमूर (White amur) के रूप में लोकप्रिय है। ग्रास कार्प मछली पालन खेती में, आपको उन्हें बहते पानी में बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि यह उनके प्राकृतिक प्रजनन को बढ़ाता है।
हमारे मेरठ में, मछली पालन व्यवसाय शुरू करने में कितना खर्च हो सकता है?
व्यय के प्रकार | अनुमानित लागत |
तालाब निर्माण या भूमि विकास की लागत | 5,000 – 2,00,000 रुपए |
मत्स्य-बीज | 10,000 – 50,000 रुपए |
मछली खाद्य और पोषण | 20,000 – 1,00,000 रुपए |
श्रम की मासिक लागत | 10,000 – 50,000 रुपए प्रति माह |
उपकरण लागत | 15,000 – 1,00,000 रुपए |
मासिक रखरखाव शुल्क | 5,000 – 20,000 रूपए |
संदर्भ
चित्र स्रोत : wikimedia
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