मेरठ - लघु उद्योग 'क्रांति' का शहर












आइए देखें, धीमी गति में गोल्डन और चेंजेबल हॉक-ईगल की अद्भुत उड़ानों को
व्यवहारिक
By Behaviour
27-04-2025 09:08 AM
Meerut-Hindi

मेरठ के शांत बाहरी इलाकों में, अक्सर चीलों को खुले आसमान में उड़ते देखा जा सकता है - खासकर खुले मैदानों के पास। उनके चौड़े पंखों और स्थिर रहकर उड़ने (glide) को देखना, अब शहर की रोज़मर्रा की गतिविधियों में से एक हो गया है। कई अन्य पक्षियों की तुलना में चीलों की उड़ान अद्वितीय और विशिष्ट है। बड़े शरीर, शक्तिशाली संरचना और विशेष पंख, उन्हें अत्यधिक ऊंचाई पर उड़ने और तापमान का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की अनुमति देते हैं । उड़ाते समय वे अपने लंबे, चौड़े और सपाट पंखों को पूरा फैलाती हैं और उड़ान के दौरान उनके पंख केवल थोड़ा-सा ऊपर उठते हैं। भारत में, चील की कई प्रजातियां हैं, जिनमें से मुख्य प्रजाति गोल्डन ईगल (Golden Eagle) और चेंजेबल हॉक-ईगल (Changeable Hawk-Eagle) की है। ये प्रजातियां, भारत की सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय प्रजातियों में से एक हैं। गोल्डन ईगल, एक बड़ा, प्रतिष्ठित पक्षी है, जो मुख्य रूप से हिमालयी क्षेत्र में देखा जाता है। इसी प्रकार से चेंजेबल हॉक या क्रेस्टेड हॉक-ईगल (crested hawk-eagle) को अपने परिवर्तनशील पंखों और अनुकूलनीय स्वभाव के लिए जाना जाता है। ये विभिन्न भारतीय आवासों में व्यापक रूप से वितरित होते हैं। चीलों की उड़ान की एक मुख्य विशेषता यह है कि उड़ते समय वे अपने पंख नहीं फड़फड़ाते। ऐसा इसलिए है, क्यों कि उनके पंख, उनके शरीर के आकार के सापेक्ष बड़े होते हैं, जो उन्हें महत्वपूर्ण उडान देने में मदद करते हैं। साथ ही चीलें अपनी उड़ान को अनुकूलित करने के लिए विभिन्न उड़ान तकनीकों का उपयोग करतीं हैं, जिस कारण वे अपने पंख नहीं फड़फड़ाते। तो आइए, आज हम, गोल्डन ईगल को धीमी गति में हवा में उड़ते देखेंगे। इसके बाद, हम एक स्लो मोशन वीडियो के माध्यम से चेंजेबल हॉक-ईगल को देखेंगे, जो अचानक एक विशेष बल के साथ उड़ान भरती है। इसके पंखों की तेज़ क्रिया इसे घने जंगलों में पैंतरेबाज़ी करने में मदद करते हैं। इसके बाद, हम बाल्ड ईगल (Bald Eagle) के कुछ धीमी गति के वीडियो क्लिप देखेंगे, जिसमें वे हवा में बने रहने के लिए अपने मज़बूत, स्थिर पंखों की गति का उपयोग करते हुए बीच-बीच में अपनी दिशा को कुशलता से समायोजित करती है।
संदर्भ:
आइए जानें, मेरठ में कैसे बढ़ रहा है मानव-निर्मित टेक्सटाइल फ़ाइबरों का उत्पादन व निर्यात !
स्पर्शः रचना व कपड़े
Touch - Textures/Textiles
26-04-2025 09:19 AM
Meerut-Hindi

मेरठ के नागरिकों, क्या आप जानते हैं? हमारा देश मानव-निर्मित फ़ाइबर (MMF) कपड़ों का दुनिया में छठा सबसे बड़ा निर्यातक है। भारत से कपड़ा निर्यात में मानव-निर्मित फ़ाइबर का 16% योगदान है। भारतीय कपड़ा उद्योग को उम्मीद है कि 2030 तक मानव-निर्मित फ़ाइबर कपड़ों का निर्यात 75% बढ़कर 11.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है, जो 2021-22 में लगभग 6.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
भारत का कपड़ा और परिधान क्षेत्र सीधा 4.5 करोड़ लोगों को रोज़गार देता है, और 10 करोड़ लोग इससे जुड़े अन्य उद्योगों में काम करते हैं। यह हमारे देश का दूसरा सबसे बड़ा रोज़गार देने वाला क्षेत्र है।
आज हम समझेंगे कि भारत में मानव-निर्मित फ़ाइबर का उत्पादन फिलहाल किस स्थिति में है। फिर हम जानेंगे कि भारत के कपड़ा उद्योग पर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) का क्या प्रभाव पड़ रहा है। इसमें हम ऑटोमेशन और कार्यक्षमता, नवाचार और कस्टमाइज़ेशन जैसी ए आई की बड़ी खूबियों पर ध्यान देंगे।
इसके बाद, हम उन महत्वपूर्ण पहलों और योजनाओं पर नज़र डालेंगे, जो हाल के वर्षों में भारतीय कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई हैं। अंत में, हम भारत के कुछ प्रमुख कपड़ा शहरों के बारे में जानेंगे, जैसे करूर (कर्नाटक), सूरत (गुजरात), मुंबई (महाराष्ट्र) और अन्य।
भारत में मानव-निर्मित फ़ाइबर (MMF) का वर्तमान स्थिति
भारत दुनिया में कृत्रिम रेशों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यहां बड़ी फैक्टरियां हैं, जिनमें अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग होता है। इस समय भारत लगभग 1700 मिलियन किलो कृत्रिम रेशे और करीब 3400 मिलियन किलो कृत्रिम धागे (filaments) का उत्पादन करता है। भारत में 35000 मिलियन वर्ग मीटर से अधिक कपड़े बनाए जाते हैं, जो कृत्रिम रेशों और उनके मिश्रण से तैयार होते हैं। भारत में अधिकांश कृत्रिम रेशे बनाए जाते हैं। भारत दुनिया में पॉलिएस्टर (Polyester) और विस्कोस (Viscose) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। प्रमुख प्रकारों में पॉलिएस्टर, विस्कोस, ऐक्रेलिक (Acrylic) और पॉलीप्रोपाइलीन (Polypropylene) शामिल हैं।
भारत में मानव-निर्मित फ़ाइबरों का निर्यात
भारत में कृत्रिम टेक्सटाइल फ़ाइबरों या रेशों (Man Made Fabrics (MMF)) वस्त्र उद्योग तेजी से बढ़ रहा है और दुनिया में प्रमुख स्थान रखता है। वर्तमान में, भारत पॉलिएस्टर और विस्कोस का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारतीय टेक्सटाइल फ़ाइबरों का निर्यात लगभग 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो भारत के कुल वस्त्र निर्यात का लगभग 30% है (जिसमें परिधान शामिल नहीं हैं), जो 2023-24 में 20292 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। ये निर्यात 2014-15 तक लगातार बढ़ रहा था, लेकिन उसके बाद वैश्विक वित्तीय संकट और 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण निर्यात पर असर पड़ा। भारत का ये उद्योग, पूरी आपूर्ति श्रृंखला में आत्मनिर्भर है, जिसमें कच्चे माल से लेकर परिधान निर्माण तक शामिल है। हमारे वस्त्र अंतरराष्ट्रीय मानकों के होते हैं और उनकी उत्कृष्ट कारीगरी, रंग, आरामदायकता, मजबूती और अन्य तकनीकी गुणों के लिए प्रसिद्ध हैं। सरकार का लक्ष्य 2029-30 तक वस्त्र निर्यात को 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचाना है, जिसमें मानव-निर्मित टेक्सटाइल फ़ाइबरों का योगदान 12 बिलियन डॉलर होगा।
भारत के वस्त्र उद्योग पर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का असर
1.) स्वचालन और दक्षता: आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, वस्त्र बनाने की जटिल प्रक्रियाओं को स्वचालित (ऑटोमेट) कर रहा है, जिससे काम जल्दी और अच्छे तरीके से होता है। जैसे, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से चलने वाली जांच प्रणाली से वस्त्रों में खराबी कम होती है और फैब्रिक का रंग और गुणवत्ता बेहतर हो जाती है।
2.) नवाचार और कस्टमाइजेशन: आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल डिजाइन में भी हो रहा है। इससे नए और अलग तरह के वस्त्र पैटर्न बनाए जा रहे हैं और फैशन के ट्रेंड्स का अनुमान भी लगाया जा रहा है। डिज़ाइनर अब आसानी से नए और कस्टमाइज़्ड (विशेष) उत्पाद बना सकते हैं, जो लोगों की पसंद के अनुसार होते हैं।
3.) सततता और प्रतिस्पर्धा: वस्त्र उद्योग पर अब पर्यावरण की चिंता बढ़ रही है। आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस तकनीकें इसका समाधान देने में मदद कर रही हैं। ए आई से कंपनियों को अपनी ज़रूरत के हिसाब से चीज़ों का अनुमान लगाने और संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल करने में मदद मिल रही है, जिससे पर्यावरण पर कम असर पड़ता है।
भारत के वस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने वाली प्रमुख सरकारी पहलों
1.) पीएम मित्रा (PM MITRA): प्रधानमंत्री मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन और ऐपरेल योजना का मुख्य उद्देश्य वस्त्र और परिधान उद्योग में निवेश बढ़ाना, नवाचार को बढ़ावा देना और विकास को प्रेरित करना है। प्रत्येक पीएम मित्रा पार्क को एक विशेष उद्देश्य वाहन (SPV) द्वारा प्रबंधित किया जाता है, जिसे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से स्वामित्व प्राप्त होता है। वस्त्र मंत्रालय पार्क और उसकी इकाइयों को विकास पूंजी और प्रतिस्पर्धी प्रोत्साहन सहायता के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 4,445 करोड़ रुपये के कुल आवंटन के साथ, पीएम मित्रा पार्क 2026-27 तक स्थापित होने की उम्मीद है, जो भारत के वस्त्र उद्योग के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होगा।
2.) प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम (PLI): वस्त्रों के लिए पी एल आई योजना दो भागों में बांटी गई है। भाग 1 में कम से कम 3 अरब रुपये का निवेश और 6 अरब रुपये का न्यूनतम कारोबार होना चाहिए। भाग 2 में कम से कम 1 अरब रुपये का निवेश और 2 अरब रुपये का न्यूनतम कारोबार अपेक्षित है। इस ड्यूल-पार्ट संरचना से विभिन्न उद्योग खिलाड़ियों को लाभ होगा। 64 वस्त्र निवेशकों को पी एल आई योजना के तहत पात्र के रूप में पहचाना गया है, जिन्हें पांच सालों तक प्रोत्साहन मिलेगा। यह रणनीतिक चयन वस्त्र कंपनियों के उत्पादन क्षमता को अपग्रेड करने को बढ़ावा देने के लिए है।
3.) नेशनल टेक्निकल टेक्सटाइल्स मिशन (NTTM): इस मिशन का मुख्य उद्देश्य इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी स्तर पर तकनीकी शिक्षा को प्राथमिकता देना है, ताकि तकनीकी वस्त्रों और उनके अनुप्रयोगों में विशेषज्ञता विकसित की जा सके। यह मिशन फ़ाइबर और अनुप्रयोगों पर क्रांतिकारी शोध पर केंद्रित है, जिसमें जियो, एग्री, मेडिकल, स्पोर्ट्स और मोबाइल वस्त्र शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, यह बायोडिग्रेडेबल (Biodegradable) तकनीकी वस्त्रों और स्वदेशी मशीनरी के विकास को भी बढ़ावा देता है।
वस्त्र उत्पादन से संबंधित भारत के कुछ प्रमुख शहर
1.) करूर, तमिलनाडु: करूर भारत में लगभग 6000 करोड़ रुपये (300 मिलियन डॉलर) का योगदान करता है, जो सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से निर्यात के माध्यम से प्राप्त होता है। यहां लगभग 3 लाख लोग वस्त्र उद्योगों जैसे कि स्पिनिंग, गिनिंग मिल्स और डाईइंग यूनिट्स से जुड़े हुए हैं। उच्च गुणवत्ता के वस्त्रों के कारण, इसे जे सी पेनी (JC Penny), आइकिया (IKEA), टार्गेट (Target), वॉलमार्ट (Walmart), आहलेंस (Ahlens), कैरेफ़ोर (Carrefour) जैसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों का समर्थन प्राप्त है।
2.) सूरत, गुजरात: सूरत मुख्य रूप से कृत्रिम रेशों (मनमेड फैब्रिक) के लिए प्रसिद्ध है। इसे भारत की सिंथेटिक राजधानी भी कहा जाता है। यह शहर रोज़ाना लगभग 25 मिलियन मीटर प्रोसेस किए गए कपड़े और 30 मिलियन मीटर कच्चा माल उत्पादन करता है। भारत में उपयोग होने वाला 90% पॉलिएस्टर, सूरत से आता है। यहां कुछ पुरानी मिल्स भी हैं।
3.) पोचमपल्ली, तेलंगाना: पोचमपल्ली शहर अपनी समृद्ध और अद्वितीय विरासत वस्त्र उद्योग के लिए जाना जाता है। यह तेलंगाना के नलगोंडा जिले में स्थित है और इसे भारत का सिल्क सिटी भी कहा जाता है। यहां के इकट (Ikat) वस्त्रों ने पूरी दुनिया में विशेष ध्यान आकर्षित किया है।
4.) मुंबई, महाराष्ट्र: कच्चे माल की उपलब्धता, बंदरगाह और जलवायु मुंबई के वस्त्र उत्पादन को प्रसिद्ध बनाने वाले प्रमुख कारक हैं । महाराष्ट्र राज्य ने अगले पांच वर्षों में कपास प्रसंस्करण क्षमता को 30% से बढ़ाकर 80% करने का प्रस्ताव किया है। इस कदम से 25,000 करोड़ रुपये का निवेश आने की संभावना है और पांच लाख लोगों को रोज़गार मिलेगा।
संदर्भ
मुख्य चित्र में भारत में वस्त्र फैशन उद्योग से जुड़े श्रमिकों का स्रोत : Wikimedia
डेंगू से बचने के इन उपायों को जानकर, मेरठ के अस्पतालों को दबाव मुक्त किया जा सकता है !
कीटाणु,एक कोशीय जीव,क्रोमिस्टा, व शैवाल
Bacteria,Protozoa,Chromista, and Algae
25-04-2025 09:08 AM
Meerut-Hindi

अक्टूबर 2023 की एक शाम, मेरठ के एक अस्पताल में भारी अफ़रा-तफ़री मची हुई थी। मरीज़ों से भरी स्ट्रेचर इधर-उधर दौड़ रही थीं, डॉक्टर और नर्सें लगातार मरीज़ों के इलाज में जुटे थे! कहीं पर मरीज़ों को दवा दी जा रही थी, तो कहीं पर उनका ब्लड टेस्ट किया जा रहा था। इनमें से कई मरीज़ डेंगू (Dengue) के घातक दंश से जूझ रहे थे! उस समय, डेंगू मेरठ समेत कई शहरों में तेज़ी से फैल रहा था। बुख़ार से तपते बच्चे, चिंता में डूबे माता-पिता और मरीज़ों से भरे वार्ड... यह नज़ारा किसी का भी दिल दहला सकता था। आंकड़ों के अनुसार 2023 में, उत्तर प्रदेश में 13,000 से ज़्यादा डेंगू के मामले दर्ज हो चुके थे, और पूरे भारत में यह संख्या 2,89,000 से भी अधिक हो गई थी। इस दौरान, कई मासूमों की जान भी चली गई थी। हालांकि इस दृश्य की तुलना हम आज से करें तो स्थिति में काफ़ी हद तक सुधार आ चुका है! लेकिन आज भी डेंगू को हल्के में नहीं लिया जा सकता! यह एक गंभीर वायरल संक्रमण है, जो एडीज़ एजिप्टी (Aedes aegypti) नामक मच्छर के काटने से फैलता है। संक्रमण की शुरुआत में हल्का बुख़ार और बदन दर्द महसूस होता है, लेकिन कई मामलों में यह बीमारी जानलेवा बन सकती है। मरीज़ों को प्लेटलेट्स कम होने, रक्तस्राव और ऑर्गन फ़ेलियर जैसी खतरनाक स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। आज के इस लेख में हम डेंगू के लक्षणों को पहचानेंगे और जानेंगे कि यह हमारे शरीर को कैसे प्रभावित करता है! साथ ही हम यह भी जानेंगे कि इसका इलाज कैसे किया जाता है। इसके अलावा हम यह भी समझेंगे कि इससे बचने के लिए कौन-कौन से उपाय ज़रूरी हैं।
डेंगू एक वायरल बीमारी है, जो एडीज़ एजिप्टी नामक संक्रमित मादा मच्छर के काटने से फैलती है। कुछ मामलों में, एडीज़ एल्बोपिक्टस प्रजाति के मच्छर भी इसे फैला सकते हैं।
क्या डेंगू एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है ?
डेंगू आमतौर पर सीधे इंसान से इंसान में नहीं फैलता, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में इसका संक्रमण संभव हो सकता है! जैसे कि गर्भावस्था के दौरान या जन्म के समय, यदि माँ संक्रमित हो, तो डेंगू वायरस शिशु में पहुँच सकता है। इसके अलावा यह बीमारी ब्लड ट्रांसफ़्यूज़न (रक्त आधान), अंग प्रत्यारोपण या संक्रमित सुई के इस्तेमाल से भी फैल सकती है, लेकिन ऐसे मामले बहुत कम होते हैं।
आइए अब डेंगू के लक्षणों को समझते हैं?
डेंगू के लक्षण हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं। अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण महसूस हो, तो सतर्क रहें:
- तेज़ बुख़ार (लगभग 40°C या 104°F)
- सिर में तेज़ दर्द
- आँखों के पीछे दर्द
- मतली और उल्टी
- लसीका ग्रंथियों (लिम्फ़ नोड्स) में सूजन
- शरीर पर लाल चकत्ते
- मांसपेशियों, जोड़ों और हड्डियों में तेज़ दर्द, जिसे इतना गंभीर माना जाता है कि डेंगू को ‘ब्रेकबोन फ़ीवर’ भी कहा जाता है।
अगर आपको ये लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें और उचित इलाज करवाएँ। डेंगू का सही समय पर इलाज बहुत ज़रूरी है! डेंगू दो प्रकार (हल्का डेंगू और गंभीर डेंगू) का हो सकता है।
आइए जानते हैं कि इन दोनों स्थितियों में क्या करना चाहिए।
हल्का डेंगू: घर पर कैसे देखभाल करें?
- पर्याप्त तरल पदार्थ लें – डेंगू के दौरान शरीर को हाइड्रेट रखना सबसे ज़रूरी होता है। इस दौरान मरीज़ को ख़ूब पानी, नारियल पानी, ओ आर एस (ORS), और इलेक्ट्रोलाइट्स वाले पेय पीने चाहिए। इससे शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) नहीं होगी और रिकवरी तेज़ी से होगी।
- बुख़ार और दर्द से राहत – यदि मरीज़ को बुख़ार या शरीर में दर्द हो, तो पैरासिटामोल (एसिटामिनोफ़ेन) सबसे सुरक्षित दवा हो सकती है। लेकिन ध्यान रखें! एस्पिरिन, इबुप्रोफ़ेन या अन्य एन एस एआई डी (NSAIDs) का इस्तेमाल न करें, क्योंकि ये ख़ून बहने का ख़तरा बढ़ा सकते हैं।
- लक्षणों पर नज़र रखें – अगर मरीज़ को तेज़ पेट दर्द, लगातार उल्टी, तेज़ साँसें, मसूड़ों से ख़ून आना, थकान, बेचैनी या मल/उल्टी में ख़ून दिखे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। ये गंभीर डेंगू के संकेत हो सकते हैं!
गंभीर डेंगू: अस्पताल में इलाज की ज़रूरत क्यों?
- आई वी (IV) फ़्लूइड थेरेपी – शरीर में पानी और ज़रूरी खनिजों (इलेक्ट्रोलाइट्स) की कमी को पूरा करने के लिए, डॉक्टर मरीज़ को आई वी (IV) तरल पदार्थ (ड्रिप) देते हैं। कुछ मामलों में ब्लड ट्रांसफ्यूज़न की भी ज़रूरत पड़ सकती है।
- ऑक्सीजन थेरेपी – अगर मरीज़ को साँस लेने में परेशानी हो या शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो, तो उसे ऑक्सीजन दी जाती है ताकि शरीर सुचारू रूप से काम कर सके।
- प्लेटलेट ट्रांसफ़्यूज़न (Platelet Transfusions) – जब प्लेटलेट्स बहुत कम हो जाते हैं और ख़ून बहने लगता है, तो मरीज़ को प्लेटलेट चढ़ाने (ट्रांसफ्यूज़न) की ज़रूरत पड़ सकती है।
- ब्लड प्रेशर और अन्य महत्वपूर्ण संकेतों की निगरानी – मरीज़ का ब्लड प्रेशर, पल्स रेट और अन्य स्वास्थ्य संकेत लगातार मॉनिटर किए जाते हैं ताकि किसी भी जटिलता को समय रहते संभाला जा सके।
डेंगू जैसी गंभीर बीमारी को रोकने के लिए भारत सरकार भी लगातार प्रभावी क़दम उठा रही है। सरकार का मुख्य उद्देश्य न केवल डेंगू की समय पर पहचान और इलाज सुनिश्चित करना है, बल्कि इसकी रोकथाम के लिए जागरूकता बढ़ाना भी है।
आइए जानते हैं कि सरकार इसके लिए क्या-क्या कर रही है।
- मुफ़्त डायग्नोस्टिक किट की उपलब्धता: सरकार यह सुनिश्चित करती है कि सेंटिनल सर्विलांस हॉस्पिटल (SSH) और एडवांस्ड रिसर्च लैब (ARL) में डेंगू की जाँच के लिए आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध हों। इसके लिए राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP) के तहत राज्यों को सहायता दी जाती है।
- मानक जाँच प्रक्रिया: सभी राज्यों में IgM MAC ELISA टेस्ट किट उपलब्ध कराई जाती हैं, ताकि जाँच की एकरूपता बनी रहे। यह सुविधा राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान, पुणे के माध्यम से दी जाती है और इसकी पूरी लागत भारत सरकार वहन करती है।
- एडवांस प्लानिंग से पहले से तैयारी: सरकार 2007 से ही पहली तिमाही में डेंगू और चिकनगुनिया के संभावित मामलों का अनुमान लगाकर राज्यों को जाँच किट उपलब्ध कराती है। किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए बफ़र स्टॉक (buffer stock) भी तैयार रखा जाता है।
- प्रशिक्षण और जागरूकता अभियान: डेंगू और चिकनगुनिया की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों को लागू किया जाता है। किसी भी प्रकोप या अचानक बढ़ते मामलों को नियंत्रित करने के लिए कार्यक्रम प्रबंधकों को प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे प्रभावी ढंग से स्थिति को संभाल सकें।
- आर्थिक सहायता से मज़बूत रणनीति: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission (NHM)) के तहत, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को डेंगू और चिकनगुनिया नियंत्रण गतिविधियों के लिए बजट सहायता दी जाती है, जिससे रोकथाम और उपचार की प्रक्रिया सुचारू रूप से चल सके।
हालाँकि सरकार के प्रयास तभी सफल होंगे जब आम जनता भी अपनी भूमिका निभाए। इसलिए, साफ़-सफ़ाई रखें, मच्छरों से बचाव के उपाय अपनाएँ और डेंगू की रोकथाम में सहयोग दें। सावधानी बरतें और सुरक्षित रहें!
संदर्भ
मुख्य चित्र में त्वचा पर काटते मच्छर का स्रोत : wikimedia
मेरठ समझें, हरित विनिर्माण की कुछ महत्वपूर्ण तकनीकों एवं इनके अनुप्रयोगों के बारे में
नगरीकरण- शहर व शक्ति
Urbanization - Towns/Energy
24-04-2025 09:18 AM
Meerut-Hindi

मेरठ के नागरिक, क्या आप जानते हैं कि, ग्रीन मैन्युफ़ैक्चरिंग (Green Manufacturing) या हरित विनिर्माण, ऐसे उत्पाद बनाने की प्रक्रिया है, जो पर्यावरणीय प्रभाव को कम करती है। यह कच्चे माल के स्रोत से लेकर उत्पाद बिक्री तक, पूरे निर्माण प्रक्रिया में स्थिरता को भी बढ़ावा देता है। एलईडी लाइट बल्ब, सौर पैनल, कम्पोस्टेबल खाद्य पैकेजिंग और इलेक्ट्रिक वाहन कुछ ऐसे उत्पाद हैं, जो इस विनिर्माण प्रक्रिया का उपयोग करके बनाए गए हैं। कहा जा रहा है कि, भारत का हरित विनिर्माण उद्योग महत्वपूर्ण वृद्धि के लिए तैयार है, जो कि सकल मूल्य वर्धित (Gross Value Added (GVA)) में 2032 तक, 21% (1,557 बिलियन अमेरिकी डॉलर) योगदान दे सकता है। इसलिए आज हम, हरित विनिर्माण के बारे में विस्तार से बात करते हैं। फिर, हम कुछ सबसे महत्वपूर्ण हरित निर्माण प्रथाओं का पता लगाएंगे। इसके अलावा, हम उन उद्योगों का पता लगाएंगे, जो भारत में हरित विनिर्माण का लाभ उठा रहे हैं। आगे बढ़ते हुए, हम भारत के हरित विनिर्माण उद्योग के विकास की प्रगति में बाधा डालने वाली चुनौतियों पर कुछ प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम इन समस्याओं को दूर करने के लिए कुछ समाधानों को देखेंगे।
हरित विनिर्माण का परिचय:
हरित विनिर्माण, उत्पादन प्रक्रियाओं का नवीकरण और विनिर्माण क्षेत्र के भीतर पर्यावरण अनुकूल संचालन की स्थापना है। अनिवार्य रूप से, यह विनिर्माण का “हरित” रूप है, जिसमें श्रमिक कम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हैं; प्रदूषण और अपशिष्ट को कम करते हैं; सामग्री का पुन: उपयोग एवं पुनर्चक्रण करते हैं; और अपनी प्रक्रियाओं में कम से कम उत्सर्जन करते हैं। हरित निर्माता, पर्यावरण पर उनके प्रभाव को कम करने के लिए प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं का अनुसंधान, विकास या उपयोग करते हैं।
•अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy) का उपयोग करें:
बिजली उत्पादन के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों का चयन करना, उत्पादन प्रक्रियाओं में उत्सर्जन को कम करता है। पवन, सौर, भूतापीय या जल विद्युत जैसे नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा, हरित विनिर्माण संयंत्रों को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
•लीन मैन्युफ़ैक्चरिंग (Lean manufacturing) और हरित टेक्नोलॉजी का उपयोग करें:
लीन मैन्युफ़ैक्चरिंग, उत्पादन का एक तरीका है, जो दक्षता और अपशिष्ट में कमी पर ज़ोर देता है। उदाहरण के लिए, स्मार्ट फ़ैक्ट्रियां, डेटा-एकत्र करने वाले सेंसरों और एनालिटिक्स सॉफ़्टवेयर (Analytics software) से लैस होती हैं, जो उत्पादन को सुव्यवस्थित करने हेतु महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
• सतत सामग्री (Sustainable Materials) का उपयोग:
कार्बन पदचिह्न (Carbon footprint) को कम करने के लिए, कंपनियां पर्यावरण अनुकूल संसाधनों, जैसे कि – गैर-विषैले या संयंत्र-आधारित कच्चे माल का उपयोग करके, स्थायी उत्पादों का उत्पादन कर सकती हैं।
•पूर्ण उत्पाद जीवनचक्र (Full Product Lifecycle) के लिए डिज़ाइन:
निर्माता पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण या एंड-ऑफ़-लाइफ़साइकिल कम्पोस्टिंग (End-of-lifecycle composting) के लिए उत्पादों को डिज़ाइन करके भी कचरे को कम कर सकते हैं। यह दृष्टिकोण अपशिष्ट निपटान के दौरान, लागत और उत्सर्जन को कम करता है, और उपयोग करने योग्य संसाधनों को लैंडफ़िल (Landfill) से बाहर रखता है।
•प्राकृतिक क्षेत्रों की रक्षा करें (Protect natural areas):
चूंकि विनिर्माण एक भारी उद्योग है, यह अक्सर आसपास के प्राकृतिक क्षेत्रों को खतरे में डालता है। हरित विनिर्माण कंपनियां प्राकृतिक संसाधन, वन्यजीव और जैव विविधता संरक्षण के माध्यम से, प्राकृतिक वातावरण की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
कुछ उद्योग, जो भारत में हरित विनिर्माण का लाभ उठाते हैं:
स्टील, सीमेंट, तेल और गैस, बिजली और मोटर वाहन जैसे महत्वपूर्ण उद्योग, भारत के स्थायी विनिर्माण प्रयासों में सबसे आगे हैं। उदाहरण के लिए, स्टील उद्योग, देश के सकल घरेलू उत्पाद और रोज़गार में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है। हालांकि, यह उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत भी है। तेल और गैस उद्योग में, कार्बन कमी की पहल को अपनाना और स्टील उद्योग पर हरित हाइड्रोजन के प्रभाव, इस उद्योग के कार्बन पदचिह्न को कम करने के लिए आवश्यक है।
तेल और गैस उद्योग, कार्बन न्यूट्रैलिटी (Carbon neutrality) और हरित हाइड्रोजन में सी सी यू एस (Carbon Capture, Utilisation and Storage (CCUS)) की भूमिका जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों में निवेश करके, भारत के शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है। इस प्रगति का उद्देश्य डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाओं में उत्सर्जन को कम करना है, जबकि अपस्ट्रीम संचालन को डीकार्बनाइज़ (Decarbonize) करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।
बिजली क्षेत्र भी स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर कूच कर रहा है। भारत का लक्ष्य, 2030 तक 500 गीगा वॉट स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करना है, जो जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता को काफ़ी कम कर देता है।
भारत के हरित विनिर्माण उद्योग के विकास में बाधा उत्पन्न करने वाली चुनौतियां:
1.उच्च प्रारंभिक लागत:
हरित विनिर्माण के लिए आगे बढ़ने में नई प्रौद्योगिकियों, प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण अपफ़्रंट निवेश (Upfront investment) शामिल हैं। यह लघु और मध्यम उद्यमों (Micro, Small, and Medium Enterprises (MSME)) के लिए एक बाधा है, जो भारत के विनिर्माण क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा है।
2.नीतिगत अंतराल:
जबकि भारत सरकार ने ‘टिकाऊ रणनीतिक कार्य योजना’ (Sustainable Strategic Action Plan) जैसी एक पहल शुरू की है, इसका अमल असंगत है। छोटी कंपनियों के लिए स्पष्ट नियम और प्रोत्साहन, व्यापक रूप से हरित प्रथाएं अपनाने को प्रोत्साहित करने हेतु आवश्यक हैं।
3.कौशल की कमी:
देश में हरित प्रौद्योगिकियों के प्रबंधन और कार्यान्वयन में सक्षम, एक प्रशिक्षित कार्यबल की कमी एक बाधा बनी हुई है। कंपनियों को इस अंतर को पाटने के लिए, अपने कर्मचारियों को कुशल बनाने में निवेश करना चाहिए।
4.संसाधन की कमी:
यद्यपि भारत संसाधन सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, हमारा देश अभी भी पानी की कमी और आयातित कच्चे माल पर निर्भरता जैसी चुनौतियों का सामना करता है। कुशल संसाधन प्रबंधन चिंता का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है।
भारत में हरित विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु कुछ समाधान:
हरित विनिर्माण को बढ़ाने के लिए, सरकारी नीतियों, कॉर्पोरेट नेतृत्व और तकनीकी प्रगति को शामिल करने वाला एक सहयोगी दृष्टिकोण आवश्यक है। हरित प्रौद्योगिकियों के लिए करों में सहूलियत, सार्वजनिक-निजी भागीदारी तथा अनुसंधान और विकास में निवेश जैसे प्रोत्साहन, इन बाधाओं पर काबू पाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र में दो संधारणीय व्यवसाय मॉडल दिखाए गए हैं:
बाएं: पुनर्चक्रित कपास का पुनः उपयोग करने के लिए एक कंडेनसर स्पिनिंग म्यूल।
दाएं: साझा गतिशीलता को बढ़ावा देने वाला एक कार-शेयरिंग प्रोटोटाइप। चित्र स्रोत : Wikimedia
मेरठ में एआई तकनीक से बदल रही है पशुधन पालन की दुनिया – अब ज़्यादा स्मार्ट, कुशल और उन्नत!
संचार एवं संचार यन्त्र
Communication and IT Gadgets
23-04-2025 09:31 AM
Meerut-Hindi

मेरठ में एआई तकनीक से बदल रही है पशुधन पालन की दुनिया – अब ज़्यादा स्मार्ट, कुशल और उन्नत!
मेरठ के नागरिकों, पशुधन, कृषि का एक अनिवार्य हिस्सा हैं । यह खाद्य उत्पादन उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दुनिया के कई हिस्सों में, ये अर्थव्यवस्था और संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा हैं। भोजन, कपड़े और श्रम जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए जानवरों को पालने की प्रथा को पशुधन कृषि कहा जाता है। वहीं, आज के डिजिटल युग में, स्मार्ट कृषि के तहत पशुधन पालन और प्रबंधन को अनुकूलित करने के लिए प्रौद्योगिकी और डेटा-संचालित समाधानों का उपयोग किया जाता है। एआई तकनीक की मदद से पशुधन पालन अधिक कुशल और उन्नत होता जा रहा है। तो आइए आज, बेहतर पशु प्रबंधन के लिए सटीक पशुधन कृषि और इसकी स्मार्ट तकनीकों के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम उत्पादकता और पशुधन स्वास्थ्य में सुधार के लिए बिग डेटा और एआई अनुप्रयोगों के बारे में समझेंगे। अंत में, हम देखेंगे कि एआई (AI) और आईओटी (IoT) से वास्तविक समय की निगरानी और स्वचालन के माध्यम से पशुधन कृषि में कैसे बदलाव आ रहा है।
सटीक पशुधन कृषि:
सटीक पशुधन कृषि एक अभिनव दृष्टिकोण है, जिसके तहत पशुधन पालन और प्रबंधन को अनुकूलित करने के लिए प्रौद्योगिकी और डेटा-संचालित समाधानों का उपयोग किया जाता है। इसमें पशु स्वास्थ्य, व्यवहार और पर्यावरणीय स्थितियों पर वास्तविक समय की जानकारी इकट्ठा करने के लिए सेंसर, स्वचालन और निगरानी प्रणालियों का एकीकरण शामिल है। यह डेटा किसानों को चारा, स्वास्थ्य निगरानी, प्रजनन और समग्र पशु कल्याण के संबंध में सूचित निर्णय लेने में सहायता करता है। सटीक पशुधन कृषि का लक्ष्य उत्पादकता में सुधार करना, संसाधनों की बर्बादी को कम करना, पशु कल्याण को बढ़ाना और टिकाऊ एवं कुशल पशुधन कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
सटीक पशुधन कृषि में बिग डेटा और एआई जैसी प्रौद्योगिकियां और उनके अनुप्रयोग:
स्वचालित वज़न प्रणाली: चूंकि वज़न पशु स्वास्थ्य और पशुधन उत्पादकता के सबसे महत्वपूर्ण सूचकांकों में से एक है, गुणवत्ता नियंत्रण की दृष्टि से वज़न मापना महत्वपूर्ण है। वज़न करना अक्सर जानवरों के लिए तनाव का एक स्रोत होता है। इसलिए इस पूरी प्रक्रिया को यथासंभव सहज और संक्षिप्त बनाना महत्वपूर्ण है। स्वचालन इसमें मदद करता है। स्वचालित-वज़न प्रणाली में 'स्टेप-ऑन स्केल'और एआई आधारित एकीकृत कैमरों का प्रयोग किया जाता है, जो निम्नतम त्रुटि के साथ छवियों और वीडियो के मशीन-लर्निंग विश्लेषण के माध्यम से वज़न की जानकारी दे देते हैं। संवेदनशील सेंसर शीघ्रता से वज़न का सटीक पता लगा सकते हैं और परिणामों को स्वचालित रूप से डेटाबेस में पंजीकृत कर सकते हैं, जिससे उन्हें मैन्युअल रूप से स्कैन करने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
खाने-पीने के व्यवहार की निगरानी प्रणाली: जानवरों के खाने-पीने के व्यवहार के बारे में जानकारी रिकॉर्ड करने के लिए पानी के मीटर और विभिन्न प्रकार के चारा सेवन सेंसर का उपयोग किया जाता है। एआई द्वारा प्रसंस्कृत जानकारी के आधार पर, किसान असामान्य पोषण आदतों वाले जानवरों की पहचान करने में सक्षम हो पाते हैं, जो स्वास्थ्य या व्यवहार संबंधी समस्याओं का संकेत हो सकता है। साथ ही, वे प्राप्त डेटा का उपयोग पशुधन के भोजन और स्वास्थ्य व वज़न के बीच संबंध खोजने के लिए कर सकते हैं। इस तरह, यह एक महत्वपूर्ण गुणवत्ता नियंत्रण उपकरण बन जाता है।
पशु संवेदन प्रणाली: जानवरों या उनके पर्यावरण के लिए एक्सेलेरोमीटर(त्वरणमापी), प्रेशर सेंसर और तापमान सेंसर, एक नेटवर्क के माध्यम से इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) स्थापित करते हैं जो एकीकृत सटीक पशुधन कृषि का मूल आधार है। इन सेंसरों का उपयोग जानवरों के व्यवहार पैटर्न, पर्यावरणीय स्थितियों और स्वास्थ्य का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, मवेशियों और सूअरों के कान के साथ-साथ गर्दन के कॉलर पर लगाए गए सेंसर भोजन व्यवहार, जुगाली, और शरीर के तापमान का माप और निगरानी कर सकते हैं।
जीपीएस-ट्रैकिंग: जीपीएस-आधारित ट्रैकिंग प्रणाली जैसी रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग चराई प्रणालियों के लिए किया जाता है जहां जानवर भूमि के एक बड़े क्षेत्र में घूमते हैं। उनकी गतिविधियों से संबंधित पैटर्न का उपयोग उनकी चराई प्राथमिकता निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है जबकि उनके वास्तविक समय के जीपीएस स्थानों का उपयोग उनकी स्थिति को ट्रैक करने के लिए किया जा सकता है। इससे पशुपालन कुशल हो जाता है और चोरी या शिकारियों द्वारा हत्याएँ के माध्यम से मवेशियों की हानि कम हो जाती है।
इलेक्ट्रॉनिक पहचान समाधान से आसान पशुधन पहचानप्रणाली: कृषि में पशुधन की पहचान आवश्यक है, क्योंकि यह सुरक्षा के साथ-साथ किसानों को उनके जानवरों के कल्याण में सुधार करने में मदद करता है। इसके लिए एक पहचान प्रणाली की आवश्यकता होती है, जिसमें प्रत्येक जानवर के बारे में जानकारी होती है। लेकिन, पशुधन की पहचान के पारंपरिक तरीके जानवरों के लिए आक्रामक और हानिकारक होते हैं। रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (Radio Frequency Identification (RFID) और उन्नत ईयर टैग (Ear Tag) जैसे कुशल और स्वचालित इलेक्ट्रॉनिक विकल्प डेटा दर्ज करने की लंबी प्रक्रियाकी आवश्यकता को दूर करते हुए संचालन के सुचारू प्रवाह को सुनिश्चित करते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से इस डेटा को संसाधित करने और इससे अंतर्दृष्टि प्राप्त करने की सुविधा मिलती है। कंप्यूटर विझन (Computer Vision) का उपयोग करके, किसान पशुधन की पहचान को पूरी तरह से स्वचालित कर सकते हैं। एआई के साथ, पोल्ट्री (Poultry) जैसे छोटे जानवरों को भी पूरे झुंड की बजाय व्यक्तिगत रूप से पहचाना जा सकता है।
पशु कल्याण निगरानी और रोगग्रस्त व्यक्तिगत पशुओं की पहचान प्रणाली: कंप्यूटर विझन से संचालित IoT उपकरण पशुओं के खाने-पीनेकी आदतों के पैटर्न को दर्ज़ कर सकते हैं, यह जानकारी किसानों के लिए मूल्यवान होती है। सेंसर की मदद से जानवरों के व्यवहार की निगरानी करने और विसंगतियों का पता लगाने में मदद मिलती है। एआई प्रणाली द्वारा संसाधित डेटा के साथ, किसान असामान्य पोषण आदतों वाले जानवरों की पहचान करने में सक्षम हो पाते हैं।
मल विश्लेषण प्रणाली: मल पशु कल्याण के संबंध में व्यावहारिक जानकारी का स्रोत हो सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विश्लेषण किए गए नमूने के आधार पर संदूषण के संभावित खतरे की तुरंत पहचान कर सकती है और किसान को जानकारी प्रदान कर सकती है।
तापमान विश्लेषण के साथ ताप तनाव की निगरानी प्रणाली: गर्मी के कारण पशुधन में संभावित तनाव की निगरानी करके एआई, पशु कल्याण में सुधार कर सकती है। एआई आधारित प्रणाली के साथ एकीकृत सेंसर, तापमान डेटा एकत्र कर सकते हैं, इसके बढ़ने और घटने के बारे में जानकारी दे सकते हैं और इसे विशेष घटनाओं या व्यवहारों से जोड़ सकते हैं। मशीन लर्निंग मॉडल उन पैटर्न की पहचान करता है जो पशु में गर्मी के तनाव के जोखिम को बढ़ाते हैं और जब तापमान जोखिम भरे स्तर तक पहुंच जाता है तो वास्तविक समय में अलर्ट जारी करता है।
पशुधन आवाज़ों की निगरानी प्रणाली: मल की तरह ही, पशुधन की आवाज़ें किसानों को पशु कल्याण का आकलन करने में मदद करने वाली जानकारी का एक मूल्यवान स्रोत हो सकती हैं। रिकॉर्डिंग से निकाले गए ऑडियो डेटा से प्रशिक्षित एक मशीन लर्निंग एल्गोरिदम जानवरों के स्वरों में विसंगतियों की पहचान कर सकता है और उन्हें पहले से पता लगाए गए पैटर्न के आधार पर वर्गीकृत कर सकता है।
पशुधन कृषि में आईओटी और एआई का महत्व:
एआई और आईओटी दो अभिनव प्रौद्योगिकियां हैं, जो हमारे आसपास की दुनिया के साथ, कृषि, पशु चिकित्सा और मत्स्य पालन सहित कई उद्योगों में क्रांति ला रही हैं।पशुधन उद्योग के लिए सीमित संसाधनों के कुशल उपयोग के साथ बेहतर पैदावार हेतु आधुनिक तकनीक और नवीन दृष्टिकोण पर निर्भर रहना आवश्यक है। इसलिए, वर्तमान में, पशुधन और मुर्गी पालन में वांछित वृद्धि के लिए नवीनतम तकनीकी प्रगति को लागू करना महत्वपूर्ण हो गया है। पशुधन खेती में आईओटी और एआई का एकीकरण अधिक कुशल, टिकाऊ और उत्पादक कृषि पद्धतियों की ओर एक परिवर्तनकारी बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। पशुधन पालन में आईओटी और एआई का उपयोग आधुनिक समय में कृषि पद्धतियों में दक्षता बढ़ाने का सबसे कुशल और प्रभावी तरीका है। आईओटी और एआई से पशुधन फार्म प्रबंधन, क्षेत्र संचालन से लेकर अनुसंधान परिदृश्य तक, विभिन्न क्षेत्रों में सहायता मिलती है। साथ में, इसे व्यक्तिगत आवश्यकताओं के आधार पर जानवरों की देखभाल और प्रबंधन को अनुकूलित करने में मदद मिलती है, जिससे बेहतर संसाधन उपयोग होता है और पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है।
चित्र स्रोत
मुख्य चित्र में पंप मशीन का उपयोग करके गाय का दूध निकालने का स्रोत : Wikimedia
कृत्रिम चंद्रमा से सूर्य के प्रकाश को पुनः प्रतिबिंबित करके, उठाए जा सकते हैं कई लाभ
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली
Architecture II - Office/Work-Tools
22-04-2025 09:22 AM
Meerut-Hindi

मेरठ के नागरिकों, हम सभी बचपन से ही चंद्रमा को देखकर आकर्षित होते हैं। लेकिन क्या हो, यदि अपने असली चंद्रमा के साथ-साथ आपको आसमान में एक कृत्रिम चंद्रमा (Artificial Moon) भी देखने को मिल जाए। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कृत्रिम चंद्रमा, जिसे कभी-कभी अंतरिक्ष दर्पण भी कहा जाता है, एक काल्पनिक निर्माण है जिसमें पृथ्वी की कक्षा (Earth’s Orbit) में एक बड़े दर्पण या परावर्तक सैटेलाइट (Reflective Staellite) को स्थापित किया जाता है। यह मानव निर्मित खगोलीय पिंड सूर्य के प्रकाश को वापस पृथ्वी पर करके, रात के दौरान, प्रकाश का एक अतिरिक्त स्रोत तैयार करेगा। वास्तव में, अब चंद्रमा पर किए जा रहे वैज्ञानिक अनुसंधान केवल अंतरिक्ष अन्वेषण नहीं हैं, बल्कि ये अनुसंधान पृथ्वी पर, विशेष रूप से पर्यावरणीय चुनौतियों को हल करने में, अनुप्रयोग ढूंढ रही हैं। हाल के वर्षों में, चीन ने ऐसी दो परियोजनाओं पर काम किया है, अर्थात् चेंगदू (Chengdu) में कृत्रिम चंद्रमा और जियांग्सू प्रांत (Jiangsu Province) के ज़ुझाउ (Xuzhou) में शून्य-गुरुत्वाकर्षण चंद्र अनुरूपण सुविधा (Zero-Gravity Lunar Simulation Facility)। तो आइए आज चंद्रमा की प्रतिकृति बनाने के लिए अतीत में किए गए कुछ प्रयासों के बारे में जानते हुए, कृत्रिम चंद्रमा के संभावित लाभों के बारे में समझते हैं। इसके साथ ही, हम जानेंगे कि कैसे चीन का कृत्रिम चंद्रमा चेंगदू शहर को रोशन करेगा। अंत में हम चीन के शून्य गुरुत्वाकर्षण कृत्रिम चंद्रमा सुविधा के बारे में जानेंगे।
अतीत में कृत्रिम चंद्रमा बनाने के लिए किए गए प्रयास:
1993 में, रूसी वैज्ञानिकों ने मीर अंतरिक्ष स्टेशन की ओर जाने वाले एक आपूर्ति जहाज़ से 200 किलोमीटर से 420 किलोमीटर की गति के बीच परिक्रमा करने वाला 20 मीटर चौड़ा ज़नाम्या 2 (Znamya 2) परावर्तक छोड़ा। ज़नाम्या 2 (Znamya 2) ने पृथ्वी पर लगभग 5 किलोमीटर व्यास का प्रकाश का एक धब्बा किरणित किया। पुन: प्रवेश पर उपग्रह के जलने से पहले, यह प्रकाश 8 किलोमीटर/घंटे की गति से पूरे यूरोप में फैल गया था। लेकिन 1990 के दशक के अंत में ज़नाम्या का एक बड़ा मॉडल बनाने के प्रयास विफल हो गए।
कृत्रिम चंद्रमा के संभावित लाभ:
- रात के समय प्रकाश व्यवस्था: कृत्रिम चंद्रमा के व्यापक रूप से सबसे चर्चित लाभों में से एक इसकी रात के समय प्रकाश प्रदान करने की क्षमता है। सूर्य के प्रकाश को वापस पृथ्वी पर परावर्तित करके, यह प्रभावी ढंग से दिन की लंबाई को बढ़ा सकता है।
- ऊर्जा बचत: रात के दौरान, कृत्रिम प्रकाश पर निर्भरता कम करने से महत्वपूर्ण ऊर्जा बचत हो सकती है। इससे बिजली की खपत कम होगी और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आएगी, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों में योगदान मिलेगा।
- बढ़ी हुई सुरक्षा: रात के दौरान, बेहतर दृश्यता के दूरगामी सुरक्षा प्रभाव हो सकते हैं। अंधेरा कम होने से दुर्घटनाओं को रोकने, अपराध दर को कम करने और समग्र सार्वजनिक सुरक्षा को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
- जलवायु नियंत्रण और तापमान विनियमन: एक और दिलचस्प संभावना यह है कि इसका उपयोग, स्थानीय जलवायु परिस्थितियों को प्रभावित करने के लिए किया जा सकता है। कृत्रिम चंद्रमा की स्थिति और अभिविन्यास को रणनीतिक रूप से समायोजित करके, अत्यधिक तापमान की स्थिति को कम करना संभव हो सकता है। इससे अत्यधिक गर्म क्षेत्रों को ठंडा करने में मदद मिल सकती है या ठंडे मौसम के दौरान ऊष्मा प्रदान की जा सकती है, जिससे जलवायु अनुकूलन प्रयासों में योगदान संभव है।
- फ़सल सुरक्षा: फ़सलों को अत्यधिक धूप से बचाकर या ठंडे मौसम के दौरान अतिरिक्त प्रकाश प्रदान करके कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे चुनौतीपूर्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में किसान संभावित रूप से साल भर फ़सलें उगा सकते हैं।
- आपदा प्रबंधन: यह चंद्रमा, आपदा प्रबंधन परिदृश्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।प्राकृतिक आपदा के दौरान बिजली कटौती के बाद, कृत्रिम चंद्रमा अस्थायी प्रकाश प्रदान कर सकता है। इससे बचाव और राहत प्रयासों में काफ़ी मदद मिल सकती है, जिससे संकट में फ़ंसे लोगों का अधिक तेज़ी और कुशलता से पता लगाया जा सकता है और आवश्यक सेवाएं प्रदान करना की जा सकती हैं।
- खगोलीय प्रेक्षण: शहरी क्षेत्रों से कृत्रिम प्रकाश स्रोतों को अवरुद्ध या पुनर्निर्देशित करके, एक कृत्रिम चंद्रमा प्रकाश प्रदूषण को कम कर सकता है। इससे खगोलविदों को अधिक स्पष्टता के साथ खगोलीय पिंडों का निरीक्षण करने की अनुमति मिलेगी। इसके अलावा, इससे वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक आवास और व्यवहार को संरक्षित करके लाभ होगा।
- वैज्ञानिक अनुसंधान: मानव निर्मित चंद्रमा विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों और अवलोकनों के लिए एक मंच के रूप में काम कर सकता है। वैज्ञानिक इसे अंतरिक्ष में प्रयोग और अवलोकन करने के लिए आधार के रूप में उपयोग कर सकते हैं। यह ऐसे उपकरणों और सेंसरों की मेज़बानी कर सकता है जो पृथ्वी की जलवायु, चुंबकीय क्षेत्र और अन्य आवश्यक मापदंडों की निगरानी करते हैं।
- पृथ्वी अवलोकन: इस चंद्रमा को उच्च-रिज़ॉल्यूशन पृथ्वी अवलोकन प्रदान करने के लिए उन्नत इमेजिंग तकनीक से युक्त बनाकर, वनों की कटाई, भूमि उपयोग और शहरी विकास जैसे पर्यावरणीय परिवर्तनों की निगरानी और प्रबंधन करने में मदद मिल सकती है।
- अंतरिक्ष अन्वेषण: अंतरिक्ष में मानव निर्मित चंद्रमा की उपस्थिति अन्वेषण के लिए नई संभावनाएं खोल सकती है। यह अंतरिक्ष यानों के लिए ईंधन भरने वाले स्टेशन के रूप में काम कर सकता है। यह चंद्रमा, मंगल और उससे आगे के मानव अन्वेषण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। यह स्टेशन अन्य खगोलीय पिंडों की ओर जाने वाले अंतरिक्ष यानों के लिए लॉन्च प्लेटफ़ॉर्म के रूप में भी काम कर सकता है। इससे पृथ्वी की सतह से प्रक्षेपण के लिए आवश्यक ऊर्जा में काफ़ी कमी आ सकती है।
- प्रेरणा और शिक्षा: अपने व्यावहारिक अनुप्रयोगों से परे, रात के आकाश में एक अनुकूलित चंद्रमा की उपस्थिति, दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत के रूप में काम कर सकती है। यह चंद्रमा, नवाचार और अन्वेषण के लिए मानवता की क्षमता का एक स्पष्ट अनुस्मारक के रूप में भविष्य की पीढ़ियों को प्रोत्साहित कर सकता है।
चीन का कृत्रिम चंद्रमा, चेंगदू शहर को कैसे रोशन करेगा ?
रूस की कृत्रिम चंद्रमा की योजना की विफ़लता के बाद, इस विचार से प्रेरित होकर चीन ने भी एक प्रकाश सैटेलाइट बनाने की योजना बनाई, जो चेंगदू शहर की सड़कों को रोशन कर सकता है। यह सैटेलाइट, जिसे कृत्रिम चंद्रमा के रूप में भी जाना जाता है, वास्तविक चंद्रमा की तुलना में आठ गुना अधिक चमकदार रोशनी के साथ दक्षिण-पश्चिमी चीनी शहर के लगभग 6 से 50 मील चौड़े हिस्से को रोशन करने में सक्षम होगा। 'द एशिया टाइम्स' के अनुसार, चेंगदू के कृत्रिम चंद्रमा में एक अत्यधिक परावर्तक कोटिंग (reflective coating) होगी जो सौर पैनल (solar panels) जैसे पंखों के माध्यम से सूर्य की किरणों को प्रतिबिंबित करेगी। कई दर्जन मीटर की सटीक रोशनी रेंज बनाने के लिए इन पंखों के कोणों को बदला जा सकता है। हालाँकि, चीन के सिचुआन प्रांत की राजधानी चेंगदू को मानव निर्मित चंद्रमा का केंद्र बनाया गया है, लेकिन दुनिया भर के खगोलविद कथित तौर पर रात के आकाश में खोज करते समय इस सैटेलाइट की चमक को देख पाएंगे।
चीन की शून्य गुरुत्वाकर्षण कृत्रिम चंद्रमा सुविधा:
चीन ने एक अनुसंधान सुविधा का निर्माण किया है, जिसमें चंद्रमा पर कम-गुरुत्वाकर्षण वातावरण का अनुरूपण किया गया है। इसके बीच में एक निर्वात कक्ष है जिसमें 60 सेंटीमीटर व्यास का एक छोटा "चंद्रमा" है। यह कृत्रिम चंद्र परिदृश्य चट्टानों और धूल से बना है जो चंद्रमा के समान हैं, जहां का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण की तुलना में लगभग छठा हिस्सा है, क्योंकि वे चुंबकीय क्षेत्र द्वारा समर्थित हैं। जब यह क्षेत्र पर्याप्त रूप से मजबूत होता है तो यह गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध जीवित मेंढक से लेकर चेस्टनट तक चीज़ों को चुंबकित कर ऊपर उठा सकता है। यह चुंबकीय उत्तोलन निश्चित रूप से गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत स्थिति के समान नहीं है, लेकिन ऐसी कई स्थितियां हैं जहां चुंबकीय क्षेत्रों द्वारा सूक्ष्मगुरुत्वाकर्षण की नकल करना अंतरिक्ष अनुसंधान में अप्रत्याशित की उम्मीद करने के लिए अमूल्य हो सकता है। यह वैज्ञानिकों को चरम चंद्र वातावरण के अनुरूपण में उपकरणों का परीक्षण करने और संभावित रूप से गलत अनुमानों को रोकने की अनुमति देगा, जहां चट्टानें और धूल पृथ्वी की तुलना में पूरी तरह से अलग तरीके से व्यवहार कर सकते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र में ज़्नाम्या-2, जिसे रूस द्वारा 1990 के दशक में कक्षीय अंतरिक्ष दर्पण प्रयोगों की श्रृंखला के भाग के रूप में तैनात किया गया था। का स्रोत : Wikimedia
मेरठ के युवाओं में कुत्तों के प्रति बढ़ता लगाव, आपके लिए हो सकता है, एक फ़ायदे का सौदा !
स्तनधारी
Mammals
21-04-2025 09:24 AM
Meerut-Hindi

मेरठ के लोगों ख़ासतौर पर युवाओं में पालतू जानवरों के प्रति लगाव बढ़ता हुआ नज़र आ रहा है! इसकी वजह से इन जानवरों की चिकित्सा और देखभाल का बाज़ार भी तेज़ी से बढ़ रहा है। वर्तमान में इसकी कीमत लगभग 3.5 अरब डॉलर (Dollar) है और साल 2028 तक इसके 7-7.5 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इस विकास के पीछे का प्रमुख कारण पालतू जानवरों के स्वामित्व में वृद्धि, बढ़ती डिस्पोज़ेबल आय और पालतू जानवरों को परिवार का हिस्सा मानने का बढ़ता चलन है। अगर मेरठ की गलियों में किसी से पालतू जानवरों की बात करें, तो सबसे पहले कुत्तों का ही ज़िक्र होता है। आख़िर क्यों न हो! वफ़ादारी, निस्वार्थ प्रेम, अटूट साथ और हमें ख़ुश रखने की उनकी अनोखी क्षमता ने उन्हें सबसे पसंदीदा पालतू जानवर बना दिया है। यह लगाव सिर्फ़ भावनात्मक ही नहीं, बल्कि एक बड़े उद्योग को भी जन्म दे चुका है, जो कि है—कुत्तों के प्रजनन का व्यवसाय। इसलिए आज के इस लेख में हम, भारत में कुत्तों के प्रजनन व्यवसाय के दायरे को विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे। हम जानेंगे कि इस क्षेत्र से जुड़े नियमों और विनियमों की क्या स्थिति है और प्रजनन लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया कैसी होती है। इसके साथ ही, इस व्यवसाय के आर्थिक पहलुओं पर भी चर्चा होगी—इसमें होने वाली संभावित कमाई और उद्योग की संभावनाओं को क़रीब से देखेंगे। अंत में, हम भारत में सबसे लोकप्रिय कुत्तों की नस्लों—लैब्राडोर, पग, जर्मन शेफ़र्ड, पैरियाह आदि पर भी नज़र डालेंगे।
आज की युवा पीढ़ी, ख़ासकर मिलेनियल्स (Millennials) और जेन ज़ी (Generation Z), पालतू जानवरों को पालने में अधिक रुचि दिखा रही है। पहले के मुक़ाबले, आज लोग सिर्फ़ पालतू जानवरों को केवल पाल ही नहीं रहे हैं, बल्कि उनकी देखभाल और आराम पर भी बड़ी रक़म ख़र्च कर रहे हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि जहां बेबी बूमर पीढ़ी के 32% लोग पालतू जानवर रखते थे, वहीं युवा परिवारों में यह संख्या बढ़कर 62% हो गई है। इसका सीधा अर्थ यह है कि, नए ज़माने के लोग जानवरों से अधिक जुड़ाव महसूस कर रहे हैं और उनकी ज़रूरतों पर पहले से ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं। भारत में पालतू जानवरों से जुड़ा बाज़ार तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। इस उद्योग में कई तरह की सेवाएं और उत्पाद शामिल हैं, जिनमें पौष्टिक और औषधीय भोजन, पशु चिकित्सा सेवाएं, ग्रूमिंग (Grooming), केनेल (Kennel) सुविधाएं और अन्य देखभाल सेवाएं शामिल हैं। ख़ासतौर पर, पालतू जानवरों के भोजन का बाज़ार हर साल 13.9% की दर से बढ़ रहा है। शहरी इलाकों और उच्च वर्गीय परिवारों में लोग अब अपने पालतू जानवरों की सेहत और आराम पर ज़्यादा ध्यान देने लगे हैं। वैश्विक स्तर पर भारत का पालतू उद्योग सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाले उद्योगों में शामिल है। जहां दुनिया भर में यह बाज़ार 5.2% की वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ रहा है, वहीं भारत में इसकी अनुमानित वृद्धि दर 17.0% (2018-2024) तक पहुंचने का अनुमान है। ये आंकड़े बताते हैं कि आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र में ज़बरदस्त संभावनाएं हैं। इस प्रकार, भारत में पालतू जानवरों से जुड़ा व्यवसाय, सिर्फ़ एक शौक़ नहीं रह गया है, बल्कि एक बड़ा और तेज़ी से उभरता हुआ उद्योग बन चुका है। भारत में कुत्तों के प्रजनन को नियंत्रित करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम बनाए गए हैं, ताक़ि उनकी सेहत और भलाई सुनिश्चित की जा सके। ये नियम, मादा और नर कुत्तों, साथ ही प्रजनकों (Breeders) पर लागू होते हैं।
मादा कुत्तों के लिए नियम निम्नवत दिए गए हैं:
✓ सिर्फ़ स्वस्थ और परिपक्व मादा कुत्तों का ही प्रजनन कराया जा सकता है। उसकी उम्र कम से कम 18 महीने होनी चाहिए।
✓ प्रजनन से कम से कम 10 दिन पहले, लाइसेंस प्राप्त पशु चिकित्सक (Veterinary Doctor) से उनकी स्वास्थ्य जांच कराना अनिवार्य है।
✓ किसी भी मादा कुत्ते को लगातार दो प्रजनन मौसम में गर्भधारण के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। साल में सिर्फ़ एक बार ही प्रजनन कराया जा सकता है।
✓ किसी भी मादा कुत्ते से उसके जीवनकाल में 5 बार से अधिक प्रजनन नहीं कराया जा सकता।
नर कुत्तों के लिए नियम निम्नवत दिए गए हैं:
✓ नर कुत्तों को प्रजनन के लिए स्वस्थ और परिपक्व होना चाहिए।
✓ उनकी उम्र कम से कम 18 महीने होनी चाहिए, तभी वे प्रजनन के योग्य माने जाएंगे।
✓ प्रजनन से कम से कम 10 दिन पहले, उनका स्वास्थ्य प्रमाणपत्र एक लाइसेंस प्राप्त पशु चिकित्सक से प्राप्त करना आवश्यक है।
कुत्तों के प्रजनकों (ब्रीडर्स) के लिए लाइसेंस के नियम निम्नवत दिए गए हैं:
✓ ब्रीडर की उम्र कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए।
✓ लाइसेंस जारी करने से पहले, एक मान्यता प्राप्त पशु चिकित्सक और अन्य विशेषज्ञों की टीम द्वारा साइट निरीक्षण किया जाएगा।
✓ निरीक्षण के बाद, पशु चिकित्सक को एक रिपोर्ट तैयार कर स्थानीय प्रशासन को सौंपनी होगी। इस रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन यह तय करेगा कि लाइसेंस दिया जाए या नहीं।
✓ ब्रीडर को आवेदन पत्र में सभी आवश्यक जानकारी देनी होगी। इसमें एक वैध डाक पता, परिसर या प्रतिष्ठान का पता शामिल होना चाहिए।
✓ आवेदन पत्र में उन सभी स्थानों का विवरण भी देना आवश्यक होगा, जहां से ब्रीडर अपने कार्य संचालन करता है या जहां जानवरों को रखा जाता है।
कुत्तों के प्रजनन से जुड़े इन नियमों का पालन करना बहुत ज़रूरी है। ये नियम न सिर्फ़ कुत्तों के स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं, बल्कि अवैध और अनैतिक प्रजनन पर भी रोक लगाते हैं। इसलिए, जो भी व्यक्ति कुत्तों का प्रजनन कराना चाहता है, उसे इन नियमों का पालन अनिवार्य रूप से करना होगा।
अगर आप मेरठ में कुत्ता प्रजनन (Dog Breeding) शुरू करना चाहते हैं, तो इससे पहले आपको नीचे दिए गए अर्थशास्त्र को समझना ज़रूरी है। मान लीजिए, हम 15 जर्मन शेफ़र्ड कुत्तों से शुरुआत कर रहे हैं।
शुरुआती निवेश:
एक जर्मन शेफ़र्ड कुत्ते की क़ीमत: 10,000 से 50,000 रुपये तक हो सकती है।
यहां हम न्यूनतम क़ीमत 10,000 रुपये प्रति कुत्ता मान रहे हैं।
कुल 15 कुत्ते ख़रीदने की लागत:
15 × 10,000 = 1,50,000 रुपये
इन 15 कुत्तों में से 13 मादा और 2 नर होंगे।
ख़र्च का अनुमान:
भोजन की लागत
प्रति कुत्ता भोजन ख़र्च: 2,200 रुपये प्रति माह
15 कुत्तों के लिए कुल मासिक ख़र्च:
2,200 × 15 = 33,000 रुपये
18 महीनों की कुल भोजन लागत:
33,000 × 18 = 5,94,000 रुपये
मज़दूरी और अन्य ख़र्चे
18 महीनों की मज़दूरी लागत: 1,00,000 रुपये
शेड (रहने की जगह) बनाने की लागत: 1,00,000 रुपये
अन्य ख़र्च (विविध ख़र्चे): 5,000 रुपये
कुल लागत की गणना
खर्च का विवरण | लागत (रुपये) |
15 कुत्तों की कीमत | 1,50,000 |
भोजन (18 महीने) | 5,94,000 |
मजदूरी | 1,00,000 |
शेड निर्माण | 1,00,000 |
अन्य खर्च | 5,000 |
कुल लागत | 8,32,000 |
आइए अब लाभ की गणना करते हैं:
एक मादा कुत्ता 5 से 9 को जन्म दे सकती है।
औसतन, हम 6 पिल्ले प्रति मादा मान रहे हैं।
कुल पिल्लों की संख्या:
13 × 6 = 78 पिल्ले
एक पिल्ले की औसत बिक्री कीमत: 14,000 रुपये
कुल बिक्री और शुद्ध लाभ
विवरण | गणना | राशि (रुपये) |
कुल पिल्लों की बिक्री | 78 × 14,000 | 10,92,000 |
कुल लागत | - | 8,32,000 |
शुद्ध लाभ | 10,92,000 - 8,32,000 | 2,60,000 |
भारत में कई तरह की कुत्तों की नस्लें पाई जाती हैं, लेकिन कुछ नस्लें ख़ासतौर पर लोगों के बीच अधिक लोकप्रिय हैं। कुत्तों की इन नस्लों को अपने मिलनसार स्वभाव, बुद्धिमानी और माहौल में आसानी से ढलने की क्षमता के कारण पसंद किया जाता है।
आइए भारत में सबसे ज़्यादा पाले जाने वाले कुत्तों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
1. लैब्राडॉर (Labrador): लैब्राडॉरकुत्ते बेहद मिलनसार और दोस्ताना स्वभाव के होते हैं, जिससे इन्हें परिवारों के लिए एक बेहतरीन विकल्प माना जाता है। ये बहुत बुद्धिमान होते हैं और इन्हें आसानी से प्रशिक्षित किया जा सकता है। ख़ास बात यह है कि इन्हें विशेष देखभाल या महंगे रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती। यही कारण है कि यह नस्ल पहली बार कुत्ता पालने वालों के लिए भी उपयुक्त मानी जाती है।
2. पग (Pug): पग, छोटे आकार के होते हैं और उनकी गोल-मटोल काया उन्हें और भी आकर्षक बना देती है। यह दुनिया की सबसे पुरानी कुत्तों की नस्लों में से एक है। पग अपने शांत और दोस्ताना स्वभाव के कारण अपार्टमेंट में रहने वालों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। साथ ही, इन्हें ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत नहीं होती, जिससे पहली बार कुत्ता पालने वालों के लिए यह एक अच्छा विकल्प बन जाता है।
3. जर्मन शेफ़र्ड (German Shepherd): जर्मन शेफ़र्ड, भारत में सबसे ज़्यादा पसंद की जाने वाली कुत्तों की नस्लों में से एक है। ये कुत्ते बेहद बुद्धिमान, साहसी और सतर्क होते हैं, जिससे वे बेहतरीन सुरक्षा कुत्ते साबित होते हैं। यही कारण है कि इन्हें सुरक्षा उद्देश्यों के लिए पाला जाता है। इसके अलावा, इनका उपयोग, पुलिस और सेना में भी बड़े पैमाने पर किया जाता है।
4. परायह (Pariah): अगर आप एक मज़बूत और वफ़ादार कुत्ता पालना चाहते हैं, तो भारतीय परायह नस्ल एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है। यह नस्ल, भारत में आसानी से उपलब्ध होती है और किसी भी वातावरण में आसानी से ढल जाती है। परायह कुत्ते, बेहद स्नेहमयी होते हैं और अपने मालिकों के प्रति गहरी वफ़ादारी दिखाते हैं। ये अपने प्राकृतिक प्रतिरक्षा तंत्र के कारण बीमारियों से भी कम प्रभावित होते हैं, जिससे उनकी देखभाल करना आसान हो जाता है।
5. भारतीय स्पिट्ज़ (Indian Spitz): भारतीय स्पिट्ज़, दो प्रकार के होते हैं – छोटे और बड़े स्पिट्ज़। छोटे स्पिट्ज़ का वज़न, 5 से 7 किलोग्राम होता है, जबकि बड़े स्पिट्ज़ का वज़न 12 से 50 किलोग्राम तक हो सकता है। छोटे स्पिट्ज़ की ऊंचाई, 22 से 25 सेंटीमीटर होती है, जबकि बड़े स्पिट्ज़ की ऊंचाई 35 से 40 सेंटीमीटर तक होती है। ये आमतौर पर सफ़ेद रंग के होते हैं, लेकिन कुछ भूरे, काले या मिश्रित रंगों में भी पाए जाते हैं। इनकी शक्ल, पोमेरेनियन (Pomeranian) कुत्तों से मिलती-जुलती होती है, लेकिन यह नस्ल अधिक समझदार और अनुकूलनीय मानी जाती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/23ypf9hm
https://tinyurl.com/27qznvjx
https://tinyurl.com/28wq5qfc
https://tinyurl.com/2d9mrdcs
https://tinyurl.com/28wq5qfc
मुख्य चित्र स्रोत : pexels
आइए, आज कुछ चलचित्रों के ज़रिए हम सीखें, क्रिकेट में कट शॉट खेलना
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
Locomotion and Exercise/Gyms
20-04-2025 09:07 AM
Meerut-Hindi

हमारे प्यारे मेरठ वासियों, आपमें से कई लोग इस तथ्य से अवगत होंगे कि क्रिकेट में, "कट शॉट" (cut shot) एक प्रकार का स्ट्रोक (stroke) है । इस शॉट में बल्लेबाज़ आम तौर पर शॉर्ट-पिच डिलीवरी (short-pitched delivery) को, पिछले पैर पर जाकर (Backfoot) गेंद की लाइन के पार, लेग साइड (leg side) की दिशा में खेलता है। इसे विशेष रूप से उन गेंदों पर खेला जाता है जो शरीर के आसपास या मिडिल और लेग स्टंप (middle and leg stump) की लाइन पर पड़ती हैं। अगर गेंद बहुत बाहर, ऑफ़-स्टंप (off-stump) के बाहर वाइड (wide) हो, तो यह शॉट प्रभावी नहीं माना जाता और उस स्थिति में कट (cut) या बैकफुट ड्राइव (backfoot drive) बेहतर विकल्प होते हैं। ऑफ़ऑफ़ कट शॉट के मुख्य रूप से दो प्रकार हैं: एक है, स्क्वैर कट (square cut) और दूसरा लेट कट (late cut)। स्क्वैर कट, क्रिकेट में एक चुनौतीपूर्ण शॉट है क्योंकि इसके लिए सटीक टाइमिंग और संतुलन की आवश्यकता होती है । साथ ही, बल्लेबाज़ को ऑफ-स्टंप से बाहर पिच की गई, अक्सर उछाल भरी छोटी लंबाई की गेंद के ख़िलाफ़ तेज़ी से प्रतिक्रिया देनी होती है। । स्क्वैर कट की कला में महारत हासिल करने वाले उल्लेखनीय खिलाड़ियों में राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर, रिकी पोंटिंग (Ricky Ponting), वीरेंद्र सहवाग और स्टीव वॉ (Steve Waugh) शामिल हैं। कट शॉट खेलते समय धैर्य रखना तथा गेंद को परखना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए फ़ुटवर्क का बहुत अच्छा अभ्यास होना चाहिए । गेंद के प्रक्षेप पथ के दौरान, अपनी आँखें उस पर मज़बूती से टिकाए रखना बहुत आवश्यक होता है। तो आइए, आज हम कुछ चलचित्रों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के कट शॉटों के बारे में विस्तार से जानें। सबसे पहले हम एक वीडियो देखेंगे, जिसमें बताया जाएगा कि स्क्वैर कट कैसे खेला जाता है। उसके बाद, हम थर्ड मैन (third man) की ओर लेट कट शॉट को खूबसूरती से खेलने का सही तरीका जानेंगे। इसके अलावा, हम इस बात पर भी नज़र डालेंगे कि अनुभवी बल्लेबाज़ी प्रशिक्षक, अपर कट (upper cut) को खेलने का सही तरीका कैसे सिखाते हैं। अंत में, हम उन कुछ महत्वपूर्ण टिप्स के बारे में जानेंगे, जो हमारे स्क्वैर कट शॉट को बेहतर बनाने में हमारी मदद कर सकते हैं।
संदर्भ:
गुड फ़्राइडे के अवसर पर, यीशु मसीह की इन महत्वपूर्ण शिक्षाओं पर अपना ध्यान केंद्रित करें
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
18-04-2025 09:24 AM
Meerut-Hindi

मेरठ के नागरिकों, यह हमारे लिए एक गर्व की बात है कि हमारे शहर का सेंट जॉन्स चर्च (St. John’s Church) उत्तर प्रदेश का सबसे पुराना चर्च है, जिसका निर्माण 1819 से 1821 के बीच हुआ था। गुड फ़्राइडे के अवसर पर, यहां ईसाई धर्म के अनुयायियों द्वारा सुसमाचार, भजन और प्रार्थना वाचन जैसे कई सेवा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस अवसर पर, मेरठ से 19 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में सरधना में रोमन कैथोलिक चर्च, 'बेसिलिका ऑफ आवर लेडी ऑफ ग्रेस' एक केंद्र बिंदु बन जाता है। किसी भी धर्म की तरह, ईसाई धर्म की कई मान्यताएँ हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं, और आज भी वैसी ही हैं। ईसाई धर्म की कुछ विशिष्ट मान्यताओं में बपतिस्मा (Baptism) का बहुत महत्व है, क्योंकि यह बाइबल की शिक्षाओं पर दृढ़ता से आधारित है। बपतिस्मा एक प्रतीकात्मक कार्य है, जो स्वयं को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने और नवीनीकृत करने का प्रतीक है। तो आइए, आज ईसाई धर्म की मूल मान्यताओं को विस्तार से समझते हुए, इस धर्म में बपतिस्मा के महत्व और उद्देश्य पर प्रकाश डालते हैं और हम जानते हैं कि यह अनुष्ठान किस प्रकार शुद्धि और आध्यात्मिक नवीनीकरण का प्रतीक है। इसके साथ ही, हम यीशु मसीह की कुछ सबसे महत्वपूर्ण शिक्षाओं पर प्रकाश डालेंगे, जो हमारे जीवन को बेहतर बना सकती हैं।
ईसाई धर्म की मूल मान्यताएं:
- बाइबल (Bible): बाइबल को पढ़ना और उसका विश्लेषण करना चाहिए क्योंकि यह ईश्वर द्वारा प्रेरित, सटीक और आधिकारिक लिखित शब्द है। यद्यपि, पवित्र बाइबल को ईश्वर ने व्यक्तिगत रूप से कागज और कलम का उपयोग करके नहीं लिखा था, लेकिन उन्होंने 40 से अधिक विभिन्न लोगों को पवित्र आत्मा का उपयोग करके शब्द लिखने के लिए प्रेरित किया था।
- यीशु मसीह (Jesus Christ): यीशु, ईश्वर के पुत्र हैं, और उनकी शिक्षाएं, जन्म, चमत्कार, शारीरिक पुनरुत्थान, स्वर्ग में शासन करना और मृत्यु का प्रायश्चित उन लोगों के लाभ के लिए पवित्र लेखों में लिखा गया है जो यीशु के आदर्श उदाहरण का अनुकरण करने का प्रयास करते हैं।
- जल बपतिस्मा (Water Baptism): ईसाई धर्म के सभी संप्रदाय, जल बपतिस्मा में विश्वास करते हैं। वे अपने बच्चों का चर्च में स्वागत करने के लिए और उन्हें उस मूल पाप से शुद्ध करने के लिए बपतिस्मा देते हैं जिसके साथ वे पैदा हुए थे।
- त्रिमूर्ति (Holy Trinity): कैथोलिक चर्च द्वारा सिखाया जाने वाला एक प्राथमिक सिद्धांत, त्रिमूर्ति का है, भले ही इसका समर्थन करने के लिए कोई धार्मिक प्रमाण नहीं है। त्रिमूर्ति एक विश्वास है कि एक ईश्वर में तीन अलग-अलग सह-अस्तित्व वाले व्यक्ति होते हैं: पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा।
ईसाई धर्म में बपतिस्मा का महत्व और उद्देश्य:
- शुद्धि और आध्यात्मिक नवीनीकरण का प्रतीक: बपतिस्मा में पानी, जो दुनिया भर में पवित्रता का प्रतीक है, का उपयोग पापों और अशुद्धियों की सफाई के प्रतीक के रूप में किया जाता है। बपतिस्मा का यह कार्य, पिछले पापों से शुद्धिकरण और मसीह में एक नए, शुद्ध जीवन की शुरुआत का प्रतीक है। बपतिस्मा में पानी का उपयोग बाइबल के कई प्रकरणों से होता है, जिसमें महान बाढ़ और लाल सागर को पार करना शामिल है, जहां पानी ने शुद्धिकरण और मोक्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति पानी से बाहर निकलता है, शुद्ध होता है और आध्यात्मिक रूप से पुनर्जीवित होता है, पवित्र आत्मा के नेतृत्व में विश्वास के एक नए मार्ग पर शुरू करने के लिए तैयार होता है। बपतिस्मा, ईसाई सिद्धांत के मुक्ति और नए जीवन के केंद्रीय विचारों का प्रतीक है। पानी से साफ़ किया जाना आत्मा की आंतरिक शुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है, जो ईश्वर की कृपा की परिवर्तनकारी शक्ति को प्रदर्शित करता है।
- धार्मिक समुदाय में दीक्षा का प्रतीक: दीक्षा, बपतिस्मा के औपचारिक कार्य का प्रतीक है, जो प्रार्थनाओं के साथ किया जाता है। यह नियम, व्यक्ति द्वारा ईसाई विचारों को अपनाने और इन मूल्यों के अनुसार जीने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। साथ ही नियम विश्वासियों के सहायक समुदाय में विश्वास और समावेश के प्रति व्यक्ति की प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व भी करता है। सामुदायिक पहलू व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है, जो अपनेपन, सलाह और प्रोत्साहन की भावना प्रदान करता है। यह आध्यात्मिक और नैतिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाता है। यह समुदाय के लिए मसीह की शिक्षाओं को बनाए रखने और जीने के सामूहिक संकल्प पर जोर देता है।
- आस्था और प्रतिबद्धता की सार्वजनिक घोषणा: आस्था और प्रतिबद्धता की सार्वजनिक घोषणा में एक व्यक्ति को स्पष्ट रूप से यीशु मसीह में अपने विश्वास और यीशु की शिक्षाओं के प्रति अटूट समर्पण की पुष्टि करनी होती है। बपतिस्मा के दौरान, एक मण्डली या सभा को साक्षी मानकर व्यक्ति द्वारा यह सार्वजनिक घोषणा की जाती है कि वह ईसाई धर्म के मूल सिद्धांतों में अपना धर्म विश्वास रखते हुए, इन सिद्धांतों के अनुसार आचरण करेगा। आस्था की सार्वजनिक घोषणा, बपतिस्मा समारोह का एक मूल तत्व है, जो ईसाइयों के समुदाय में किसी व्यक्ति के प्रवेश और ईसा मसीह के शिष्य होने से जुड़े दायित्वों के प्रति उनकी सहमति के प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व के रूप में कार्य करता है। यह सार्वजनिक घोषणा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह व्यक्ति की भक्ति और दृढ़ विश्वास को इंगित करती है।
यीशु की महत्वपूर्ण शिक्षाएं, जो हमारे जीवन को बेहतर बना सकती हैं:
- भगवान और अपने पड़ोसी से प्रेम करो: ईसाई धर्म के अनुसार, जब यीशु से पूछा गया कि कौन सी आज्ञा सबसे महत्वपूर्ण है, तो यीशु ने कहा, “तुम्हें अपने परमेश्वर से अपने पूरे मन, प्राण, और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम करना चाहिए। यह प्रथम एवं बेहतरीन नियम है। और दूसरा नियम भी इसी के समान है कि तुम्हें अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना चाहिए। जब आप नफ़रत को प्रेम से और क्रोध को दया से बदल देते हैं, तो आप स्वयं को भगवान के करीब महसूस करेंगे और अपने जीवन में अधिक शांति देखेंगे।"
- स्वर्णिम नियम के अनुसार जियो: यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश के दौरान, एक सुनहरा अर्थात अत्यंत महत्वपूर्ण नियम (Golden rule) सिखाया: "इसलिये जो कुछ तुम चाहते हो कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो"। दूसरे शब्दों में, दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें, जैसा आप अपने साथ चाहते हैं। ऐसा करने पर, आप अपने रिश्तों को बेहतर बनाकर अधिक खुश रह सकेंगे।
- यीशु मसीह पर विश्वास रखें: यीशु मसीह में विश्वास रखने का अर्थ है उन पर और उनकी शिक्षाओं पर विश्वास करना। ऐसा करने से आपको इस जीवन में और आने वाले जीवन में ईश्वर का आशीर्वाद मिलेगा।
- ईश्वर के साथ ईमानदार रहें: यीशु ने उदाहरण देकर सिखाया कि हमें अपने स्वर्गीय पिता परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए। ईश्वर आपसे प्रेम करता है। वह आपकी मदद के लिए तैयार है, अतः प्रार्थना के माध्यम से उसके साथ संवाद करें, आभार व्यक्त करें और अपनी ज़रूरत की चीज़ें मांगें।क्षमा करें: जब हम दूसरों को क्षमा प्रदान करते हैं, तो हम अपने जीवन में अधिक शांति महसूस करते हैं।
- अपना प्रकाश चमकने दें: इसका अर्थ है अपने अच्छे गुणों को दूसरों के सामने आने दें ताकि वे आपके अच्छे कार्यों को देख सकें और स्वर्ग में आपके पिता की महिमा कर सकें। यह शिक्षा, ऐसा जीवन जीने का महत्व सिखाती है जो भगवान की भलाई और प्रेम को दर्शाता है। ईसाइयों को दुनिया के लिए प्रकाश बनने के लिए कहा जाता है, जो अपने शब्दों और कार्यों के माध्यम से भगवान के प्रेम और अनुग्रह की अच्छी बातें साझा करते हैं।
- सुई की आंख: यह शिक्षा, भौतिकवाद के खतरे और भगवान को पहले रखने के महत्व पर प्रकाश डालती है। यह एक अनुस्मारक है कि धन और संपत्ति हमें हमारी आध्यात्मिक प्राथमिकताओं से विचलित कर सकती है और भगवान के साथ सही रिश्ते में प्रवेश करने की हमारी क्षमता में बाधा डाल सकती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में एक अपाहिज को छूते यीशु का स्रोत : wikimedia
चलिए समझें कैसे, मेरठ के लोग, रोज़ाना अनजाने में, विभिन्न ब्रांडों को सफल बनाते हैं ?
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
17-04-2025 09:20 AM
Meerut-Hindi

कोई भी कपड़ा या वस्त्र ब्रांड, अपने अद्वितीय मूल्य प्रस्ताव को संप्रेषित करते हुए, प्रतियोगियों से खुद को अलग करके, बाज़ार में अपनी वांछित स्थिति को स्थापित करने हेतु विज्ञापनों का लाभ उठाते हैं। यह संदेश, लक्षित अभियानों और रणनीतिक मीडिया विकल्पों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। यह जानना आश्चर्यजनक तथ्य नहीं होगा कि, मेरठ के कई नागरिकों ने टाटा चाय द्वारा ‘जागो रे’ और बिबा द्वारा ‘परिवर्तन (Change)’ जैसे विज्ञापन देखे होंगे। इसलिए आज हम, किसी ब्रांड की विपणन और पोज़िशनिंग के बीच, बुनियादी अंतर को समझकर लेख को शुरू करेंगे। फिर, हम इस बात पर कुछ प्रकाश डालेंगे कि, ब्रांड पोज़िशनिंग (Positioning), उपभोक्ताओं को किसी ब्रांड को चुनने में कैसे मदद करती है। अंत में, हम कुछ भारतीय ब्रांडों के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने उद्देश्य-संचालित ब्रांड कंटेंट (Brand Content) के साथ एक छाप छोड़ी है।
मार्केटिंग और ब्रांड पोज़िशनिंग के बीच मौजूद अंतर:
ब्रांडिंग (Branding) शब्द, एक मूल ब्रांड छवि बनाने के लिए अद्वितीय लोगो, टैगलाइन या नारा बनाने को संदर्भित करता है। आप किसी भी ब्रांड के लोगो एवं नारे के बारे में सोच सकते हैं। ये दो तत्व, किसी भी कंपनी के लिए अद्वितीय होते हैं, और तुरंत पहचानने योग्य होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य, ग्राहकों के दिमाग में ब्रांड की एक विशिष्ट छवि या विचार बनाना है। उदाहरण के लिए, इससे अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में, अपनी कंपनी के उत्पादों को अधिक व्यावहारिक रूप से स्थान देने का प्रयास किया जाता है।
ब्रांड पोज़िशनिंग, उपभोक्ताओं को एक ब्रांड को दूसरे ब्रांड पर चुनने में, कैसे मदद करती है?
1.प्रासंगिकता:
कोई उत्पाद या सेवा, जितनी अधिक विशिष्ट और प्रासंगिक होती है, उतना ही अधिक मौका है कि, उसे ग्राहक द्वारा चुना जाएगा। प्रासंगिक ब्रांड, अपने मस्तिष्क में डोपामीन या इनाम प्रणाली (Dopamine or Reward system) से बेहतर तरीके से जुड़ते है, जो हमारे व्यवहार को दृढ़ता से प्रभावित करती है।
2.सुसंगतता:
ब्रांडिंग प्रयास जितने अधिक समन्वित होते है, ब्रांड को उतना अधिक चुना जाएगा। सुसंगत ब्रांडिंग का मतलब – निरन्तर वर्षों में और सभी ग्राहकों तक एक ही संदेश को दोहराना, है। यह हमारे मस्तिष्क के लिए, ब्रांड को पुनः प्राप्त करना और प्रतिस्पर्धा में अंततः विजेता बनाता है।
3.भागीदारी:
ग्राहकों के लिए बनाया गया ब्रांडिंग वातावरण, जितना अधिक संवादात्मक है, उतनी ही अधिक संभावना है कि, ब्रांड को हमारे द्वारा चुना जाएगा। हमारा मस्तिष्क संवादात्मक वातावरण के जवाब में, नए कोशिका संयोजन बनाता है, जो किसी ब्रांड को चिरस्मरणीय बनाते हैं।
कुछ भारतीय ब्रांड, जिन्होंने उद्देश्य-चालित ब्रांड कंटेंट के साथ एक छाप छोड़ी:
1.) जागो रे (Jaago Re) – टाटा चाय (Tata Tea):
2007 में टाटा चाय ने, सुबह की चाय एवं सामाजिक परिवर्तन को ‘जागो रे’ नारे के साथ जोड़ा, और दिखाया कि वास्तव में जागने का क्या मतलब है। फिर इसके टेलीविज़न वाणिज्यिक विज्ञापन बनाए गए, जिसमें जागृत आम नागरिक बदलाव लाते हुए चित्रित किए गए। इस अभियान ने मतदान के महत्व और भ्रष्टाचार को जड़ से बाहर करने की आवश्यकता को भी छुआ।
2.) परिवर्तन (Change) – बीबा(Biba):
इस अभियान में रोज़मर्रा की जिंदगी से, विचार-उत्तेजक घटनाएं थी, जो विवाह, सौंदर्य और लिंग के संदर्भ में पारंपरिक मानदंडों में परिवर्तन को दर्शाती हैं। यह अभियान परिवर्तन के बारे में बात करता है, जो प्रगति के लिए सुंदर और पर्यायवाची है।
चित्र स्रोत : wikimedia
3.) अपने दोष को गर्व से दिखाओ (Flanunt Your Flaw) – टाइटन रागा (Titan Raga) :
टाइटन रागा का यह विज्ञापन पूर्णता के बारे में बात करता है। इस ब्रांड ने अपने विज्ञापन में “शारीरिक खामियों” के साथ वास्तविक महिलाओं को, ‘अपने दोष को फ्लॉन्ट करें’ के नारे के साथ प्रकट किया। यह विज्ञापन, ब्रांड की टैगलाइन – ‘खुद से नया रिश्ता’ का हिस्सा है। यह महिलाओं को उनके शरीर के हर हिस्से को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो पारंपरिक सौंदर्य मानकों को पूरा नहीं करती हैं।
कुछ लोकप्रिय भारतीय ब्रांड, जिन्होंने खुद को स्थिर करने हेतु, लिए विज्ञापन का लाभ उठाया:
1.) अमूल का होर्डिंग अभियान (Amul's Hoarding Campaign):
अमूल, आज भी नवीनतम रुझानों पर व्यंग चित्र का उपयोग करता है, और दर्शकों का ध्यान आकर्षित करते हुए, अपने उत्पादों के साथ उन्हें सहजता से संबंधित करता है। यह न केवल, इस कंपनी द्वारा पेश किए गए उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला को उजागर करता है, बल्कि दर्शकों के दिमाग में भी छाया रहता है।
2.) तनिष्क का ‘एक नई सुबह’ अभियान (Tanishq’s ‘Ek Nayi Subah’ Campaign):
तनिष्क का यह अभियान, कामकाजी महिलाओं पर केंद्रित था, तथा इसने आत्म-प्रेम और आत्म-देखभाल की आवश्यकता का स्पष्ट संदेश भेजा। इस अभियान ने उनके पेशे और निजी जीवन के संयोजन में, महिलाओं की वास्तविक कहानियों पर ध्यान केंद्रित किया।
3.) सर्फ़ एक्सेल के ‘दाग अच्छे हैं’ अभियान (Surf Excel’s ‘Daag Acche Hain’ Campaign):
इस अभियान ने यह दिखाने पर ध्यान केंद्रित किया कि कि कैसे, बच्चों ने दूसरों की मदद करते हुए, अपने कपड़े गंदे कर दिए । इस अभियान में दागों को एक नकारात्मक संकेत के बजाय, अच्छे कामों के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया।
4.) टाइड का ‘लोड करा डाला’ अभियान (Tide’s ‘Load Kara Dala’ Campaign):
यह अभियान, एक ऐसी रणनीति थी, जिसमें हास्य और सापेक्षता का उपयोग किया गया था। इस अभियान के विज्ञापनों ने, कपड़े धोने की कठिनाई को प्रदर्शित किया। फिर, टाइड को उस ब्रांड के रूप में प्रदर्शित किया गया, जो कपड़े धोने की दैनिक खिन्नता को दूर कर सकता है।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह
फ़र्नीचर के लिए उपयुक्त सागौन की खेती करके देश में इसकी कमी की पूर्ति कर सकते हैं मेरठवासी
घर- आन्तरिक साज सज्जा, कुर्सियाँ तथा दरियाँ
Homes-Interiors/Chairs/Carpets
16-04-2025 09:29 AM
Meerut-Hindi

हर किसी का सपना होता है कि वह अपने घर को अच्छे से सजाए, फिर चाहे वह घर किराए का हो या खुद का। घर की सजावट में मुख्य भूमिका होती है फ़र्नीचर की। फ़र्नीचर घर का एक अभिन्न हिस्सा है जिसके बिना काम नहीं चल सकता। चाहे फ़र्नीचर आधुनिक हो या पारंपरिक, अपने घर को कार्यात्मक बनाने और उसमें सौंदर्य का तत्व जोड़ने के लिए फ़र्नीचर की आवश्यकता होती है। जबकि फ़र्नीचर विभिन्न सामग्रियों से बनाया जा सकता है, प्राकृतिक लकड़ी से बने फ़र्नीचर की अपनी अलग ही गरिमा होती है। आप सभी इस बात से सहमत होंगे कि भारत में सागौन (Teak) की लकड़ी फ़र्नीचर के लिए सबसे लोकप्रिय लकड़ी के प्रकारों में से एक है, जो अपनी स्थायित्व और पानी, दीमक एवं क्षय प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है। इस लड़की को सागवान भी कहा जाता है। सागौन में मौजूद प्राकृतिक तेल के कारण यह इनडोर और आउटडोर दोनों तरह के फ़र्नीचर के लिए उपयुक्त है। इसके खूबसूरत पैटर्न और गर्म रंग किसी भी कमरे में एक पारंपरिक तत्व जोड़ते हैं। हालांकि, हमारे देश में घरेलू स्तर पर सागौन की लकड़ी का उत्पादन इसकी मांग से काफ़ी कम है, जिसके कारण यहां सागौन का बहुतायात में आयात किया जाता है। भारत में इसका औसत वार्षिक घरेलू उत्पादन लगभग 2.4 मिलियन क्यूबिक मीटर है, जो वर्तमान मांग का केवल 5% है। तो आइए, आज सागौन की लकड़ी की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं के बारे में जानते हुए यह समझते हैं कि भारत में सागौन लकड़ी का उपयोग, किन फ़र्नीचर उत्पादों को बनाने में किया जाता है। इसके साथ ही, हम भारत में सागौन का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले राज्यों पर प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम भारत में सागौन उत्पादन में सुधार के लिए कुछ कदमों और उपायों के बारे में जानेंगे।
सागौन की लकड़ी की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं:
- सौंदर्य संबंधी अपील: सागौन की लकड़ी पर विशेष पैटर्न होते हैं। यह लकड़ी, छूने में चिकनी होती है और प्लाईवुड (Plywood) या पार्टिकल बोर्ड से बने फ़र्नीचर की तुलना में पॉलिश करने के बाद इसका रंग गहरा भूरा होता है, जिसके कारण इससे बने फ़र्नीचर में एक विशेष सौंदर्य आता है।
- स्थायित्व: सागौन की लकड़ी का फ़र्नीचर कई वर्षों तक चल सकता है। इसके अलावा, पानी से भी सागौन की लकड़ी को नुकसान नहीं होता है।
- क्षयप्रतिरोधी: सागौन की लकड़ी से बना फ़र्नीचर, टिकाऊ होता है और अपने उच्च घनत्व के कारण सड़ता नहीं है।
- सिकुड़न के प्रति प्रतिरोधी: सागौन की उच्च तन्यता क्षमता और कड़ा दाना इसे मौसम प्रतिरोधी और टिकाऊ बनाता है। इसका उपयोग, आउटडोर फ़र्नीचर और नावों के निर्माण में किया जाता है।
भारत में सागौन के फ़र्नीचर के कुछ लोकप्रिय प्रकार:
- टेबल और डाइनिंग सेट: खुले स्थानों पर उपयोग किए जाने वाले टेबल और डाइनिंग सेट के लिए, सागौन की लकड़ी एक उत्कृष्ट सामग्री है, क्योंकि इस पर धूप और पानी का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है और यह अन्य लड़कियों की तरह आसानी से मुड़ती या टूटती नहीं है।
- बेंच: सागौन की बेंचें, अपनी मज़बूत बनावट और सड़न तथा दीमक के प्रति प्राकृतिक प्रतिरोध के कारण व्यावसायिक उपयोग के लिए आदर्श हैं, और अनगिनत प्रकार के डिजाइनों में उपलब्ध हैं।
- आर्मचेयर: आर्मचेयर, जिन्हें मस्कोका कुर्सियों के रूप में भी जाना जाता है, अपनी ऊँची पीठ, अपनी रूपरेखा वाली सीटों और अपने चौड़े आर्म-रेस्ट के साथ आरामदायक होती हैं। सागौन से बनी आर्मचेयर्स, आउटडोर कैफ़े जैसे स्थानों में अत्यंत लोकप्रिय हैं।
- छाते: सागौन बड़ी छायादार छतरियों के फ्रेम के लिए एक लोकप्रिय और पारंपरिक लकड़ी है। सागौन ऐसे अनुप्रयोग के लिए आवश्यक स्थायित्व, मौसम प्रतिरोध और हल्कापन प्रदान करता है।
भारत में सागौन उत्पादन के लिए अग्रणी राज्य:
देश में सागौन, प्राकृतिक रूप से नौ मिलियन हेक्टेयर में वितरित है जबकि 2-3 मिलियन हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है। वास्तव में, दुनिया में सागौन का पहला बागान 1842 में नीलांबुर, केरल, भारत में स्थापित किया गया था। बाद में, जंगलों की स्थिति को सुधारने के लिए वन विभाग द्वारा नकदी फ़सल के रूप में इसको व्यापक रूप से लगाया गया। 'वन संरक्षण अधिनियम, 1980' और 'राष्ट्रीय वन नीति, 1988' के तहत, सरकारी स्वामित्व वाले जंगलों में इस लकड़ी की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया और निज़ी भूमि से लकड़ी की मांग को पूरा करने की सिफ़ारिश की गई। इस प्रतिमान बदलाव ने सागौन की कीमतों को सामान्य से 500 प्रतिशत अधिक बढ़ा दिया। इस अवसर को भुनाने के लिए, कई नर्सरी और निज़ी बागान एजेंसियों ने सागौन रोपण योजनाएं शुरू कीं। भारत में ऐसी योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए हजारों कंपनियां बाजार में काम कर रही थीं। इन योजनाओं ने हज़ारों किसानों को सागौन के बागान की खेती करने के लिए आकर्षित किया। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों द्वारा बड़ी मात्रा में सागौन की खेती की जाती है। कुछ राज्य सरकारों द्वारा वृक्षारोपण सब्सिडी भी शुरू की गई, जिससे कई किसान उच्च घनत्व में सागौन लगाने लगे।
भारत में, स्थानीय जलवायु और मिट्टी की स्थितियों के प्रभाव के कारण अलग-अलग स्थान पर सागौन की लकड़ी की अलग-अलग विशेषताएं होती हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट में मालाबार तट पर, पर्याप्त वर्षा के कारण सागौन उगता है, जो जहाज़ और नाव निर्माण के लिए आदर्श है। मध्य प्रदेश के सिवनी की सागौन की लकड़ी हर्टवुड और सैपवुड के मिश्रण से सुनहरे पीले रंग की होती है। महाराष्ट्र के चंद्रपुर में उत्पादित असाधारण सागौन अपने विशिष्ट छल्लों के कारण अपने रंग और बनावट के लिए प्रसिद्ध है। आंध्र प्रदेश में गोदावरी घाटी में उगने वाला सागौन सजावटी फ़र्नीचर और कैबिनेट बनाने के लिए उपयुक्त होता है। इसी तरह, आंध्र प्रदेश में राजुलमडुगु का सागौन, अपने मूल्यवान गुलाबी रंग के हार्टवुड (Heartwood) के लिए मूल्यवान है।
भारत में सागौन उत्पादन में सुधार के उपाय:
- किसानों को शिक्षित करके: किसानों को यथार्थवादी अपेक्षाओं, उचित कृषि तकनीकों और सागौन वृक्षारोपण में शामिल दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के बारे में शिक्षित करके सागौन उत्पादन के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
- सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देकर: सागौन की खेती पर व्यापक दिशानिर्देश, जिसमें अंतराल, पतलापन, छंटाई और मिट्टी प्रबंधन शामिल हैं, विकसित और प्रसारित करके इसके उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है।
- गलत सूचनाओं को संबोधित करके: भ्रामक दावों का प्रतिकार करके और किसानों को सशक्त बनाने के लिए, विश्वसनीय सूचना स्रोतों को बढ़ावा देकर इसके उत्पादन के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण बनाया जा सकता है।
- गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री सुनिश्चित करके: प्रतिष्ठित स्रोतों से प्रमाणित रोपण सामग्री के उपयोग को प्रोत्साहित करके अच्छी गुणवत्ता वाले पेड़ों का उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकता है।
- विपणन और मूल्य निर्धारण में सुधार करके: किसानों को उनकी सागौन की लकड़ी का उचित मूल्य दिलाने के लिए, पारदर्शी और कुशल विपणन चैनलों की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
- सहायता और विस्तार सेवाएँ प्रदान करके: सागौन की खेती की पूरी प्रक्रिया के दौरान, किसानों को तकनीकी सहायता और विस्तार सेवाएँ प्रदान की जानी चाहिए।
इन उपायों से देश में सागौन का उत्पादन बढ़ाकर, निरंतर भारती मांग की पूर्ति की जा सकती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में सागौन की खेती का स्रोत : wikimedia
मेरठ, कैसे भारत के आधुनिक संग्रहालय, डिजिटल तकनीकों से दर्शकों को आकर्षित कर रहे हैं ?
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
Sight III - Art/ Beauty
15-04-2025 09:30 AM
Meerut-Hindi

निःसंदेह, मेरठ के कई लोगों ने अपने जीवन में कम से कम एक बार सरकारी स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय, जिसे शहीद स्मारक भी कहा जाता है, ज़रूर देखा होगा। आप भी मानेंगे कि यह हमारे शहर का सबसे प्रसिद्ध संग्रहालय है।
अब जब हम संग्रहालयों की बात कर रहे हैं, तो एक सच्चाई यह भी है कि बिना तकनीक के आज के समय में संग्रहालयों का चलना बहुत मुश्किल हो गया है। तो आज हम समझेंगे कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) कैसे भारत में आधुनिक दर्शकों के लिए संग्रहालयों को फिर से दिलचस्प बना रहा है। इसके बाद, हम जानेंगे कि प्रधानमंत्री संग्रहालय को कला, इतिहास और तकनीक का एक बेहतरीन संगम क्यों माना जाता है। फिर हम यह देखेंगे कि, भारत के नए ज़माने के संग्रहालय किस तरह तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि लोग कुछ नया और अनोखा अनुभव कर सकें।
अंत में, हम दुनिया के कुछ सबसे प्रसिद्ध संग्रहालयों के बारे में जानेंगे, जिन्होंने ए आई और सोशल मीडिया की मदद से अपनी लोकप्रियता बढ़ाई है। इनमें राइक्सम्यूज़ियम (नीदरलैंड्स), द नेशनल गैलरी (यू के), मोंटेरे बे एक्वेरियम (यू एस ए) जैसे नाम शामिल हैं।
कैसे ए आई आधुनिक दर्शकों के लिए संग्रहालयों को फिर से दिलचस्प बना रहा है?
ए आई की मदद से संग्रहालय अब अपनी दीवारों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि वे ऑनलाइन भी लोगों तक पहुंच बना रहे हैं। व्यक्तिगत सुझाव, इंटरएक्टिव प्रदर्शनियां और वर्चुअल टूर जैसी सुविधाओं के कारण दर्शकों के लिए संग्रहालयों का अनुभव पहले से ज्यादा रोचक हो गया है। ए आई न केवल संग्रहालयों को दर्शकों के डेटा को समझने और बेहतर सुविधाएं देने में मदद करता है, बल्कि यह ऐतिहासिक वस्तुओं के रखरखाव और अलग-अलग दर्शकों के लिए सुगम्यता बढ़ाने में भी काम आता है।
अगर संग्रहालयों ने तकनीक, खासकर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को नहीं अपनाया होता, तो वे समय के साथ पुराने और बोरिंग लगने लगते। लेकिन अयोध्या का राम कथा संग्रहालय और प्रधानमंत्री संग्रहालय ने ए आई, ए आर (ऑगमेंटेड रियलिटी (Augmented Reality)) और वि आर (वर्चुअल रियलिटी (Virual Reality)) जैसी तकनीकों का शानदार इस्तेमाल करके इसे और आकर्षक बना दिया है।
प्रधानमंत्री संग्रहालय: कला, इतिहास और तकनीक का एक अनोखा मेल
नई दिल्ली में स्थित प्रधानमंत्री संग्रहालय को खास बनाने में इमर्शन टेक्नोलॉजी का बहुत बड़ा योगदान है। इसकी झलक संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर मौजूद हवा में तैरता लोगो से ही मिल जाती है। यहाँ पर बहुभाषी ऑडियो गाइड सिस्टम दर्शकों को उनकी पसंदीदा भाषा में जानकारी देता है।
सबसे दिलचस्प हिस्सा ‘टाइम्स मशीन चेंबर’ है, जो लोगों को भारत के परमाणु इतिहास से रूबरू कराता है। इस संग्रहालय में वि आर, ए आर और रोबोटिक्स तकनीकों के ज़रिए, भारत के प्रधानमंत्रियों की ज़िंदगी और उनके विचारों को जीवंत रूप दिया गया है।
यहाँ के टच वॉल्स, टच स्क्रीन, ग्राफ़िक पैनल्स, प्रोजेक्शन मैपिंग, पुरालेख (आर्काइव्स) और इंटरएक्टिव गेम्स इसे न केवल एक देखने लायक संग्रहालय बनाते हैं, बल्कि इसे हर उम्र के दर्शकों के लिए एक अनोखा और यादगार अनुभव भी बना देते हैं।

कैसे भारत के आधुनिक संग्रहालय नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं?
आज के दौर में संग्रहालय सिर्फ देखने की जगह नहीं रह गए, बल्कि वे संस्कृति और इंटरएक्टिव अनुभवों का केंद्र बन गए हैं। खासकर युवाओं के लिए, ये तकनीक से जुड़कर उनके लिए सीखने और सांस्कृतिक विरासत को समझने का एक नया तरीका बन चुके हैं। 360-डिग्री पैनोरमिक तकनीक (360-Degree Panoramic Technology) और बेहतरीन एक्सपीरियंस (User Experience) के कारण अब संग्रहालयों का अनुभव पहले से कहीं अधिक रोमांचक और अनोखा हो गया है।
प्रधानमंत्री संग्रहालय, नई दिल्ली दर्शकों को कला, इतिहास और तकनीक का एक शानदार संगम देखने का मौका देता है। यह एक फ़्यूचरिस्टिक और हाई-टेक अनुभव प्रदान करता है, जिसमें भारत के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों को समर्पित अनोखी झलक देखने को मिलती है। 2023 में उद्घाटन किए गए इस संग्रहालय में आपको वास्तविक वस्तुओं ( कलाकृतियों), दृश्य-श्रव्य (विज़ुअल) प्रदर्शन, होलोग्राम्स, वर्चुअल रियलिटी, ऑगमेंटेड रियलिटी, मल्टी-टच स्क्रीन, मल्टीमीडिया, कीओस्क, कंप्यूटरीकृत काइनेटिक स्कल्पचर, स्मार्टफोन ऐप्स, इंटरएक्टिव स्क्रीन और अनुभवात्मक इंस्टॉलेशंस मिलते हैं, जो इसे और भी अनोखा बनाते हैं।
विरासत-ए-खालसा (Virasat-e-Khalsa), आनंदपुर साहिब, पंजाब एक ऐसा संग्रहालय है जहाँ कोई पारंपरिक कलाकृतियाँ (आर्ट ऑब्जेक्ट्स) नहीं रखे गए हैं। बल्कि, यह पूरी तरह से अनुभव-आधारित संग्रहालय है। यहाँ ध्वनि, दृश्य और संवेदनाओं का अनूठा मेल देखने को मिलता है, जिससे यह दिखाता है कि कैसे एक शानदार क्यूरेशन, बेहतरीन डिज़ाइन और अत्याधुनिक तकनीक के साथ मिलकर एक अविस्मरणीय अनुभव बना सकता है।
कैसे दुनिया के कुछ प्रसिद्ध संग्रहालयों ने ए आई और सोशल मीडिया से अपनी लोकप्रियता बढ़ाई?
आज के डिजिटल युग में, संग्रहालय सिर्फ इमारतों तक सीमित नहीं हैं। सोशल मीडिया और की ए आई मदद से वे दुनियाभर के दर्शकों तक पहुँच बना रहे हैं। आइए जानते हैं, कैसे कुछ मशहूर संग्रहालयों ने तकनीक और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर खुद को और भी प्रासंगिक बना लिया।
1.) राइक्सम्यूज़ियम (The Rijksmuseum (Netherlands)) – इस म्यूज़ियम ने टिकटॉक पर वायरल कैंपेन चलाए, जिनमें हास्य, कला शिक्षा और पर्दे के पीछे की झलक दिखाई गई। खासतौर पर डच कलाकृतियों को मज़ेदार तरीके से पेश करने वाले वीडियो ने लाखों दर्शकों को आकर्षित किया और युवा पीढ़ी को म्यूज़ियम से जोड़ा।
2.) ब्रिटिश म्यूज़ियम (British Museum (UK)) – यह म्यूज़ियम इंस्टाग्राम पर अपनी क्रिएटिव पोस्ट्स के लिए जाना जाता है। उन्होंने कैरोसेल पोस्ट्स के जरिए छोटी-छोटी मगर रोचक जानकारियां साझा कीं। इन पोस्ट्स में ऐतिहासिक वस्तुओं की झलक, दिलचस्प कहानियां और इंटरएक्टिव सवाल-जवाब शामिल होते हैं, जिससे दर्शकों की भागीदारी बढ़ती है।
3.) नेशनल गैलरी (National Gallery (UK)) – इस म्यूज़ियम ने यूट्यूब को अपनाया और लंबी अवधि वाले शैक्षिक वीडियो तैयार किए। इनमें कला विशेषज्ञों के टूर और प्रसिद्ध कलाकृतियों की गहन व्याख्या शामिल है। उनकी उच्च-गुणवत्ता वाली वीडियो सामग्री आम दर्शकों के साथ-साथ कला प्रेमियों को भी आकर्षित करती है।
4.) मोंटेरे बे एक्वेरियम (Monterey Bay Aquarium (USA) – यह एक्वेरियम सोशल मीडिया पर, खासकर ट्विटर पर, बेहद लोकप्रिय हुआ। उनके मज़ेदार और ज्ञानवर्धक ट्वीट्स कई बार वायरल हुए हैं। वे समुद्री जीवन से जुड़ी रोचक बातें हास्य के साथ पेश करते हैं, जिससे न केवल लोग मनोरंजन करते हैं बल्कि संरक्षण के महत्व को भी समझते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र में भारतीय सिनेमा के राष्ट्रीय संग्रहालय, मुंबई के आंतरिक दृश्य का स्रोत : Wikimedia
संस्कृति 2003
प्रकृति 708