मिट्टी है सोना: देशभर के होनहार टेराकोटा कारीगर बन रहे हैं लाभदायक उद्यमी

म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण
19-01-2024 10:57 AM
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मिट्टी है सोना: देशभर के होनहार टेराकोटा कारीगर बन रहे हैं लाभदायक उद्यमी

‘टेराकोटा’ मिट्टी के शिल्प की एक पारंपरिक भारतीय कला है जो सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही भारत में फल फूल रही है। टेराकोटा एवं मिट्टी की मूर्तियाँ भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में विभिन्न उत्खननों से विभिन्न मानव और पशु आकृतियों के रूप में कई टेराकोटा उत्पाद प्राप्त हुए हैं। मूल रूप से टेराकोटा और मिट्टी से बनी वस्तुएं भूरे-नारंगी रंग की होती हैं। ये वस्तुएं बिल्कुल मिट्टी जैसी दिखती हैं। और कभी-कभी इन उत्पादों को गहरा रंग देने के लिए इसी रंग से रंगा भी जाता है। प्राचीन काल में मिट्टी की मूर्तियों को सूखने और पकाने के लिए धूप में रखा जाता था और बाद में उन्हें सख्त करने के लिए पकाने हेतु चूल्हे या अवा की अग्नि में डाल दिया जाता था। टेराकोटा कला से निर्मित वस्तुओं को शुद्ध एवं शुभ भी माना जाता है। यह इस तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि कई शुभ अवसरों पर देवताओं की टेराकोटा आकृतियों का उपयोग किया जाता है। यह भी मान्यता है कि टेरोकोटा कला में निर्मित वस्तुओं में वायु, अग्नि, पृथ्वी, जल और आकाश जैसे पांच तत्व समाहित हैं जिसके कारण प्रत्येक पवित्र अवसर पर इन उत्पादों का, चाहे वह मूर्ति हो या फिर कलश, उपयोग किया जाता है। हमारे देश में टेराकोटा को घरेलू कला और मिट्टी के बर्तनों का एक अभिन्न अंग माना जाता है। इसके साथ ही भारत की समृद्ध संस्कृति और विविध क्षेत्रीयता का टेराकोटा शैली और शिल्प कौशल पर भी प्रभाव परिलक्षित होता है। आइए कुछ ऐसे भारतीय राज्यों पर नज़र डालते हैं, जहाँ टेराकोटा कला आज भी अपने विशिष्ट कला रूपों में फल फूल रही है:
1. तमिलनाडु: तमिलनाडु में अय्यनार पंथ द्वारा निर्मित टेराकोटा मिट्टी के बर्तन, एवं उनके द्वारा बनाई गई हाथियों और घोड़ों आदि की यथार्थवादी दिखने वाली मूर्तियाँ सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं। टेराकोटा कला में निर्मित अब तक की सबसे बड़ी कृति तमिलनाडु का प्रभावशाली ‘अय्यनार घोड़ा’ है और इसका निर्माण मिट्टी को घुमाकर और पीट-पीटकर किया जाता है। बर्तन बनाने के लिए भी इन्हीं तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
2. राजस्थान: राजस्थान की टेराकोटा कला में निर्मित जनजातीय देवताओं की छवियों को दर्शाने वाली पट्टिकाएं बेहद प्रसिद्ध हैं। इन पूजार्पित पट्टिकाओं के निर्माण में हिंदू कुम्हार जाति के सदस्यों को महारत हासिल है।
3. गुज़रात: गुज़रात में टेराकोटा के उत्पाद पहिये का उपयोग करके बनाए जाते हैं, जिनमें सबसे आम मिट्टी के बर्तन हैं, जिन पर सुंदर एवं आकर्षक ज्यामितीय डिजाइन एवं मछली आदि की आकृतियां बनाई जाती है।
4. मध्य प्रदेश: भारत का हृदय कहे जाने वाले राज्य मध्य प्रदेश का बस्तर अपनी समृद्ध संस्कृति और टेराकोटा मिट्टी के बर्तन बनाने की परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के आदिवासी घोड़ों, हाथियों और पक्षियों जैसे जानवरों की सुंदर एवं जटिल मूर्तियाँ और साथ ही मिट्टी से बने सुंदर, पारंपरिक मंदिर बनाने में माहिर हैं।
5. पश्चिम बंगाल: देश का पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल टेराकोटा कला में अपनी समृद्ध परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। बंगाल के हुगली, मुर्शिदाबाद, दीघा और जेसोर आदि शहर अपनी टेराकोटा कला के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं। वास्तव में, यहाँ पर टेराकोटा कला में बनाए गए मंदिरों के पैनल सबसे उत्कृष्ट माने जाते हैं। पश्चिम बंगाल की टेराकोटा कला से जुड़ा एक और महत्वपूर्ण नाम बांकुरा घोड़ा है, जिसे लाल मिट्टी के साथ इतनी खूबसूरती से बनाया जाता है कि यह अपने रूप के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहाँ पर नाग देवी मनसा की पूजा एक टेराकोटा वृक्ष मंदिर के माध्यम से की जाती है।
6. उत्तर प्रदेश: हमारा राज्य उत्तर प्रदेश भी, जिसे कला और शिल्प का संरक्षक भी माना जाता है, टेराकोटा और मिट्टी की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। वास्तव में उत्तर प्रदेश में बनी टेराकोटा और मिट्टी की मूर्तियां इतनी प्रभावशाली होती हैं कि यदि आप उन्हें एक बार देख लें, तो यह आपके दिल और दिमाग पर अमिट छाप छोड़ेंगी। देश से आने वाले पर्यटक यहाँ मिट्टी और टेराकोटा से बनी मूर्तियों को बड़ी संख्या में खरीद कर अपने साथ ले जाते हैं। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में टेराकोटा कला में बनाए गए घोड़े इतने अधिक सुंदर एवं सजावटी हैं कि उन्होंने इस कला में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
7. असम: असम के कुछ हिस्सों में टेराकोटा शिल्प उन्नीसवीं (19th) सदी की शुरुआत से ही प्रचलित है। क्या आप जानते हैं कि असम के धुबरी जिले के देवीटोला विकास खंड के अंतर्गत अशरिकांडी (मदईखाली) शिल्प गांव है, जिसे भारत में टेराकोटा और मिट्टी के बर्तनों के सबसे बड़े निर्माता समूहों में से एक माना जाता है। टेराकोटा के निर्माण में उपयुक्त होने वाली विशिष्ट मिट्टी ‘हीरामती’ की गुणवत्ता, जलवायु की स्थिति और अशरिकांडी के कुंभकारों की कौशल दक्षता एवं सदियों पुरानी परंपरा के कारण ही अशरिकांडी ने टेराकोटा की एक अलग शैली विकसित करके अपनी एक अलग पहचान बनाई है। बताया जाता है कि लगभग 200 साल पहले, कुछ परिवार तत्कालीन बंगाल (अब बांग्लादेश) के पबना जिले से भारत-बांग्लादेश सीमा पर असम के धुबरी जिले के अशरिकांडी गांव में बस गए थे। इन परिवारों ने अपनी पारंपरिक कला टेराकोटा से बर्तन, फूलदान, घरों में इस्तेमाल होने वाली रोज़मर्रा की वस्तुएँ, मवेशियों को खिलाने के कटोरे और देवी-देवताओं की मूर्तियाँ आदि बनाने के कार्य से शुरुआत की।
हालांकि अब टेराकोटा और मिट्टी के बर्तन के काम को उन्होंने अपना मुख्य पेशा बना लिया है; जबकि कुछ साल पहले तक ये लोग इसे सिर्फ अंशकालिक जीविका के तौर पर ही करते थे। पहले इन लोगों को अपने उत्पाद जैसे घड़े और अन्य बर्तन तथा टेराकोटा उत्पाद जैसे हातिमा गुड़िया, ऐनार घोड़ा, हाथी, गैंडा और देवी देवताओं की मूर्तियाँ बेचने के लिए आसपास के कस्बों और गांवों में जाना पड़ता था। लेकिन अब ये लोग केवल व्यापार मेले और विभिन्न सरकारी विभागों एवं गैर सरकारी संगठनों द्वारा आयोजित बिक्री सह प्रदर्शनियों जैसे अवसरों पर ही अपने टेराकोटा उत्पादों को बेचने के लिए बाहर जाते हैं। एक गैर सरकारी संगठन ‘उत्तर पूर्व शिल्प एवं ग्रामीण विकास संगठन’ (North East Craft And Rural Development Organisation (Necardo) द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण में धुबरी के अशरिकांडी गांव में टेराकोटा कारीगरों का वार्षिक कारोबार 12 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया गया है। यह संगठन पिछले 25 वर्षों से अशरिकांडी में पर्यटन के साथ-साथ टेराकोटा और इसके व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहा है। अशरिकांडी शिल्प गांव अब भारत के सबसे बड़े टेराकोटा और मिट्टी के बर्तनों के व्यापार समूहों में से एक है। 1982 में, यहाँ की एक महिला कारीगर सरला बाला देवी को अपने उत्कृष्ट टेराकोटा शिल्प “हातिमा गुड़िया” , जो गोद में एक बच्चे को लिये एक सुंदर महिला की आकृति है, के लिए राष्ट्रपति से पुरस्कार ही प्राप्त हुआ है।

संदर्भ
https://shorturl.at/kGNU8
https://shorturl.at/nsxB0
https://shorturl.at/lzBN3
https://shorturl.at/gjknU
https://shorturl.at/bdhoy

चित्र संदर्भ
1. मिट्टी के बर्तन बेचती भारतीय महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (PickPik)
2. टेराकोटा मिट्टी के बर्तनों को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
3. टेराकोटा की सजावटी मूर्तियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मिट्टी के बर्तन बनाती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. टेराकोटा मिट्टी के बर्तनों को बेचती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण ( Just Walked By)

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