हमारी संस्कृति के एक महत्वपूर्ण घटक,कुश्ती के अखाड़ों को क्यों छोड़ रहे हैं, भारतीय पहलवान

य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
29-12-2023 09:52 AM
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हमारी संस्कृति के एक महत्वपूर्ण घटक,कुश्ती के अखाड़ों को क्यों छोड़ रहे हैं, भारतीय पहलवान

भारतीय संस्कृति में कुश्ती, केवल मनोरंजन तक सीमित एक खेल नहीं है। एक समय में कुश्ती, भारत की ग्रामीण संस्कृति का एक अहम् हिस्सा हुआ करती थी। लेकिन हर गुज़रते दिन के साथ लोगों में कुश्ती के प्रति रूचि भी काफी कम हुई है। चलिए जानते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? कुश्ती एक पारंपरिक भारतीय युद्ध खेल है, जिसके तहत पहलवान गुरु के अधीन प्रशिक्षण लेते हैं। यह संस्कृति उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में प्रचलित है; दंगल और सुल्तान जैसी फिल्मों से कुश्ती और अखाड़े की पहचान बढ़ी है। कुश्ती खेलने के लिये पहलवान लंगोट पहनकर प्रतिदिन एक विशेष व्यायामशाला में एकत्रित होते हैं। इस व्यायामशाला को “अखाड़ा” कहा जाता है। कुश्ती मैच का प्रमुख लक्ष्य “अपने प्रतिद्वंद्वी के कंधों को ज़मीन पर टिका देना होता है।” इस खेल की महानता देखिए कि “अपनी ताक़त का प्रदर्शन करने वाले इस खेल में मुक्का मारने की ही अनुमति नहीं होती है!” कुश्ती की प्रत्येक लड़ाई या अभ्यास से पहले, पहलवान वानर-देवता हनुमान से प्रार्थना करते हुए धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। कुश्ती के लिए गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता पड़ती है। इस खेल में निपुर्ण होने के लिए पहलवान कई दिनों तक अखाड़े में ही रहते हैं, और सख्त आहार का पालन करते हैं। उन्हें लगभग हर दिन प्रशिक्षण लेना पड़ता है। इस तरह एक साथ रहने और प्रशिक्षण करने से पहलवानों के बीच समुदाय की मज़बूत भावना पैदा होती है। पहलवानों के अखाड़े में हर कोई समान होता है, चाहे उनकी पृष्ठभूमि, उम्र या पेशा कुछ भी हो। हालाँकि इतना सब होने के बावजूत भी अफ़सोस की बात है कि आजकल, भारत में बहुत कम लोग पारंपरिक कुश्ती का अभ्यास कर रहे हैं, और कुछ चुनिंदा लोग ही कुश्ती में रुचि दिखा रहे हैं। युवा लोग, फुटबॉल और क्रिकेट जैसे अंतरराष्ट्रीय खेलों में अधिक रुचि रखने लगे हैं। हालाँकि, कोल्हापुर और वाराणसी जैसे कुछ शहरों में, कुश्ती अभी भी लोकप्रिय है, जहाँ लोग अक्सर सीज़न के दौरान प्रतियोगिताएं आयोजित करते हैं। भारत में कुश्ती संस्कृति के पतन के दो मुख्य कारण हैं। इनमें से पहलवानों के लिए धन की कमी सबसे बड़ी समस्या बन गई है। क्या आप जानते हैं कि “एक पहलवान के आहार पर प्रति माह लगभग या न्यूनतम 12,000 से 15,000 रुपये का खर्च आता है?” देखा जाए तो गरीब ग्रामीण परिवारों के पहलवानों के लिए यह एक बहुत बड़ी राशि है। ये लोग चैम्पियनशिप (Championship) जीतने और सरकारी नौकरियों की उम्मीद में अखाड़ों में शामिल होते हैं। हालांकि, सरकारी नौकरियों की कमी और पहलवानों के लिए कम होते सरकारी तथा सामाजिक समर्थन के कारण, कई लोग 20 वर्ष की आयु के मध्य तक कुश्ती छोड़ देते हैं ताकि अच्छी आजीविका के लिए अन्य नौकरियों की तलाश और तैयारी कर सकें। हरियाणा में एक पहलवान प्रति मैच केवल 101 से 501 रुपये कमाता है, जो उनके दैनिक खर्चों की तुलना में बहुत कम है। भारत में कुश्ती की लोकप्रियता में कमी आने का दूसरा सबसे बड़ा कारण मुक्केबाज़ी, मय थाई (Muay Thai) और मिश्रित मार्शल आर्ट (Mixed Martial Arts (MMA) जैसे अधिक ग्लैमरस खेलों (Glamorous Games) की बढ़ती लोकप्रियता भी है, जिसके कारण पारंपरिक कुश्ती में लोगों की रुचि कम हो गई है। मिश्रित मार्शल आर्ट एक ऐसा दोहरी लड़ाई का खेल है‚ जिसमें मुक्केबाज़ी‚ कुश्ती‚ जूडो‚ जुजित्सु (Jujitsu)‚ कराटे‚ मय थाई (Muay Thai) तथा दुनिया भर के विभिन्न युद्ध खेलों और मार्शल आर्ट की तकनीकों को शामिल किया गया है। इसे केज फाइटिंग (Cage Fighting)‚ नो होल्डज़ बार्ड (No Holds Barred (NHB) तथा अल्टीमेट फाइटिंग (Ultimate Fighting) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक मुकाबले वाला खेल है‚ जो पूर्ण रूप से प्रहार‚ हाथापाई और ज़मीनी लड़ाई पर आधारित है। मिश्रित मार्शल आर्ट (Mixed Martial Arts) शब्द का सबसे पहला उपयोग 1993 के दस्तावेज़ों में‚ टेलीविजन के समीक्षक हॉवर्ड रोसेनबर्ग (Howard Rosenberg) द्वारा युएफसी 1 (UFC 1) की समीक्षा में किया गया था। आजकल भारतीय युवाओं के बीच कुश्ती के बजाय पार्कौर (Parkour) जैसे रोमांचक खेल भी अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। “पार्कौर" का उद्भव औपचारिक रूप से "शारीरिक शिक्षा" के क्षेत्र से हुआ था। 1900 के दशक की शुरुआत में मार्टिनिक (Martinique) द्वीप पर फ्रांस (French) से उत्पन्न, पार्कौर एक ऐसा खेल है जिसने पूरी दुनिया में काफी लोकप्रियता हासिल की है। मध्य वर्ष 2000 में यूट्यूब (Youtube) के माध्यम से पार्कौर विश्व भर में फैल गया। हमारा रामपुर भारत में पार्कौर के क्षेत्र में सबसे आगे है। रामपुर का अपना पार्कौर क्लब (Parkour Club) भी है और रामपुर भारतीय पार्कौर के अग्रदूतों में से एक है। आज के समय में लोगों के पास खर्च करने योग्य आय अधिक हो रही है, इसलिए वे पारंपरिक कुश्ती के बजाय ऐसे ही प्रसिद्ध खेलों से जुड़ना पसंद कर रहे हैं, क्यों कि वह इन खेलों से संबंधित खर्चों का वहन कर सकते हैं। हालाँकि इन सबके बावजूद भारत में कुश्ती को प्राथमिकता मिलनी चाहिए क्योंकि भारत में कुश्ती सिर्फ एक खेल से कहीं अधिक है। यह सदियों से हमारी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण घटक रही है। कुश्ती के कई संदर्भ, महाभारत में कृष्ण, बलराम, भीम और जरासंध जैसे पात्रों के साथ जोड़े जा सकते हैं। कुश्ती के सराहनीय पहलुओं में अंतर्गत, महिलाओं का सम्मान करना और कमज़ोर लोगों की रक्षा करना सिखाया जाता है। कुश्ती एक सांस्कृतिक विरासत के तौर पर सदियों से हमारे देश का हिस्सा रही है, इसलिए कुश्ती को हमारी समृद्ध विरासत के प्रमाण के रूप में संरक्षित, समर्थित और प्रेरित करने की आवश्यकता है।

संदर्भ
http://tinyurl.com/bc4vbkxn
http://tinyurl.com/t2yubc8x
http://tinyurl.com/5c47rmh8
http://tinyurl.com/y7dtn3hm

चित्र संदर्भ
1. दो पहलवानो को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. भारतीय पहलवानो के चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (Look and Learn)
3. युवा पहलवानों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. बड़े टायर के साथ भारतीय पहलवान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कुश्ती की प्रतियोगिता को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
6. मिश्रित मार्शल आर्ट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. पार्कौर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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