गुजरात की जाफराबादी और महाराष्ट्र की नागपुरी भैंसों का संरक्षण, क्यों है महत्त्वपूर्ण

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गुजरात की जाफराबादी और महाराष्ट्र की नागपुरी भैंसों का संरक्षण, क्यों है महत्त्वपूर्ण

हमारे देश भारत में भैंसों की कुछ विशिष्ट स्वदेशी नस्लें पाई जाती हैं, और उन सभी का नाम उनके मूल क्षेत्रों और ज़िलों के नाम पर रखा गया है। खाद्य और कृषि संगठन की एक हालिया रिपोर्ट में, भारतीय मवेशियों की 30 विशिष्ट एवं प्रलेखित नस्लों के बारे में बात की गई है। इसमें भैंस की 10 नस्लों, भेड़ की 40 नस्लों, बकरी की 20 नस्लों, मुर्गी पालन की 18 नस्लों, ऊंट की नौ नस्लों और घोड़ों की छह नस्लों के बारे में बताया गया हैं।
‘जाफराबादी या गिर भैंस’एक नदी तटीय भैंस है, जिसकी उत्पत्ति हमारे देश भारत के गुजरात राज्य में हुई थी।अनुमान है कि, दुनिया में लगभग 25,000 जाफ़राबादी भैंसें हैं।साथ ही,जाफराबादी भारत एवं पाकिस्तान की कुछ महत्वपूर्ण भैंस नस्लों में से एक है। यह ब्राजील(Brazil) को निर्यात की जाने वाली, पहली भैंस नस्ल है,और 2017 तक,वहां पाली गई, चार भैंस नस्लों में से भी एक है।इन चार में से, अन्य तीन भैंसें भूमध्यसागरीय, मुर्रा और दलदली भैंस हैं। भारतीय राष्ट्रीय वैज्ञानिक दस्तावेज़ीकरण केंद्र, का कहना है कि, जाफ़राबादी भैंस अफ़्रीकी केप भैंस(African Cape buffalo) और भारतीय जल भैंस(Indian water buffalo) का एक संकर है, जिसे मूल रूप से,मांस के लिए, ब्रिटिश भारत में लाया गया था। दस्तावेज़ीकरण केंद्र ने इसी कारण को, इस भैंस के खराब गुणवत्ता वाले वीर्य का एक प्रमुख कारक माना है।
फिर भी, जाफ़राबादी भैंसें अच्छा दूध उत्पादन करती हैं और, प्राकृतिक रूप से चरने पर, अच्छी तरह से रह सकती हैं। इनके दूध में वसा की मात्रा भी काफ़ी अच्छी होती है। इनकी औसत दूध उपज 1,000 से 1,200 किलोग्राम है। ये संकर भैंसें जाफराबाद में व्यापक रूप से मौजूद थीं, और इसीलिए, उन्हें जाफराबादी भैंस यह नाम दिया गया। जाफराबादी भैंसों के सिर भारी होते है,तथा,इनके सींग काफी बड़े, मोटे और चपटे होते हैं।ये सींग उनके गर्दन के किनारों पर लटकते हैं, और उनके कानों तक ऊपर की ओर जाते हैं।यह जल भैंस, उन नस्लों में से एक है, जो ‘गिर वन राष्ट्रीय उद्यान’ में एशियाई शेरों का शिकार बनती है।
इन भैंसों का सामान्य रंग काला होता है, लेकिन कुछ मवेशियों के माथे, पैर और पूंछ पर भूरे रंग या सफेद धब्बे भी देखे जाते हैं। 86.42% वयस्क भैंसों का माथा थोड़ा उभरा हुआ होता है। इनके सींग गर्दन के दोनों ओर झुके हुए होते हैं, और फिर सिरों पर ऊपर की ओर मुड़ जाते हैं। बड़े सींगों के कारण, तथा सिर बड़ा और विशाल होने के कारण, इनकी आंखें छोटी दिखती हैं, जिसे, ‘सुस्त आंख’ कहा जाता है। और विशेष रूप से नरों में, कभी-कभी यह स्थिती अंधेपन का भी कारण बन सकती है। इनकी गर्दन चौड़ी और मोटी होती है। कान लंबे और क्षैतिज होते हैं। दूसरी ओर, पूंछ आकार में मध्यम होती है। वयस्क जाफ़राबादी मवेशियों का शरीर आमतौर पर, लंबा, विशाल और तुलनात्मक रूप से सघन और मोटा होता है। इस नस्ल को अधिकतर, ‘मालधारी’ नामक पारंपरिक प्रजनकों द्वारा पाला जाता है, जो खानाबदोश लोग होते हैं। भार उठाने के लिए,जाफराबादी नर अच्छी तरह से जाने जाते हैं।क्योंकि, जाफ़राबादी भैंस, सभी भारतीय भैंस नस्लों में सबसे भारी होती है। हल एवं गाड़ी चलाने के लिए, इनका उपयोग किया जाता हैं।
इसे ‘भवनागरी’ या ‘जाफ़री’ भी कहा जाता है। जाफराबादी भैंस का मुख्य मूल स्थान, गुजरात का सौराष्ट्र क्षेत्र है।साथ ही,ये भैंसें गिर वन और उसके आसपास के क्षेत्र, जैसे जूनागढ़, भावनगर, जामनगर, पोरबंदर, अमरेली और राजकोट ज़िले आदि में भी,व्यापक रूप से पाई जाती हैं। कच्छ क्षेत्र को छोड़कर लगभग 64,339 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ये भैंसें पाई जाती हैं। भैंसों की एक अन्य नस्ल ‘नागपुरी’ है।इस नस्ल का प्रजनन क्षेत्र, महाराष्ट्र के नागपुर, अकोला और अमरावती ज़िले हैं। इन भैंसों को ‘एलिचपुरी’ या ‘बरारी’ भी कहा जाता है। इनके सींग लंबे, सपाट और घुमावदार होते हैं, जो इनकी पीठ के दोनों ओर, लगभग कंधों तक पीछे की ओर झुके होते हैं। इनका मुख लंबा और पतला होता है।जबकि, गर्दन थोड़ी लंबी,और अन्य अंग हल्के होते हैं।और, पूंछ तुलनात्मक रूप से छोटी होती है।
नागपुरी भैंस के दूध की पैदावार प्रति स्तनपान 700 से 1,200 किलोग्राम होती है। इनमें, प्रथम ब्यांत की आयु 45 से 50 माह तथा अंतर ब्यांत की अवधि 450 से 550 दिन होती है। नर भैंस दौड़ने के काम के लिए अच्छे होते हैं, लेकिन, उनकी गति धीमी होती है।
दुर्भाग्य से, इस पशुधन को हम बर्बाद कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, पिछले कुछ दशकों से, सरकार कथित उच्च पैदावार के लिए विदेशी संकर नस्लों पर आक्रामक रूप से ज़ोर दे रही है, जो देशी नस्लों के अस्तित्व के लिए विनाशकारी है। इनके प्रजनन का यह रुझान, पूरे देश में दोहराया जा रहा है।अल्पकालिक लाभप्रदता के लिए, स्वदेशी नस्लों को विदेशी, समरूप और जन्मजात नस्लों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है। इन प्रवृत्तियों से चिंतित होकर, भारतीय वैज्ञानिक 10वीं पंचवर्षीय योजना में, लुप्तप्राय देशी नस्लों के संरक्षण के लिए निर्धारित, लगभग 9 करोड़ रुपये प्राप्त करने में सक्षम हुए है। लेकिन, केवल पैसा पर्याप्त नहीं होता है।इस समस्या के दीर्घकालिक समाधान के लिए,हमारी मानसिकता एवं परियोजना में बदलाव की ज़रूरत है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/mrdcau5r
https://tinyurl.com/yus7v4k5
https://tinyurl.com/5n98u5my
https://tinyurl.com/2akf2r32
https://tinyurl.com/37eujhau
https://tinyurl.com/yndkufm9
https://tinyurl.com/va6m9t9b
https://tinyurl.com/yckznrp8

चित्र संदर्भ
1. ‘जाफराबादी’ भैंस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ‘जाफराबादी’ के एक अन्य चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (YouTube)
3. ‘जाफराबादी’ भैंस के झुंड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ‘नागपुरी’ भैंस को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)

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