अपनी साहित्यिक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध, रामपुर में आज क्या है साहित्य की नींव?

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अपनी साहित्यिक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध, रामपुर में आज क्या है साहित्य की नींव?

हमारा शहर रामपुर अपनी साहित्यिक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है और शायद इसीलिए, शहर का हृदय– एक पुस्तकालय, अर्थात रज़ा लाइब्रेरी है। हालांकि, वास्तव में, शहर के पुस्तक या पत्रिका मुद्रण एवं प्रकाशन उद्योग ने कभी गति नहीं पकड़ी है। रामपुर में किताबों एवं पुस्तकों की कोई बड़ी दुकानें भी नहीं हैं। जबकि, रामपुर का ‘साहित्यिक अतीत’ गौरवशाली रहा है। अतः हमारे शहर के कई प्रसिद्ध उर्दू और फ़ारसी लेखकों ने दिल्ली, लखनऊ और मेरठ के प्रकाशकों से अपनी पुस्तकें प्रकाशित करवाई हैं।
इसीलिए, शहर के कुछ स्थानीय नागरिकों द्वारा निजी तौर पर, एक पुस्तक-क्लब(Book club) स्थापित किया गया है।पुस्तकों में एवं उन्हें पढ़ने में, रुचि रखने वाले तथा समान विचारधारा वाले अधिक लोगों के एकत्र आने से,इस पुस्तक क्लब का विस्तार हुआ है। और अब, इस क्लब की गतिविधियां सांस्कृतिक चहल क़दमी एवं दर्शन तक भी, विस्तारित हो गई हैं। दरअसल, इस पुस्तक क्लब के लिए थोड़ी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है।रामपुर के कई नवाब और उनकी पत्नियां, कवि और लेखिक थे। साथ ही, इनके शिक्षक मिर्ज़ा ग़ालिब, अमीर मिनाई तथा दाग दहलवी जैसे कुछ प्रसिद्ध कवि थे। संस्कृति और उर्दू शायरी के संदर्भ में, दिल्ली और लखनऊ के बाद रामपुर को कविता का तीसरा स्कूल(School of poetry) माना जाता है। दहलवी द्वारा स्थापित, “रामपुर काव्य विद्यालय” आज भी, साहित्यिक इतिहासकारों में अपनी मजबूत और प्रारंभिक शैली के लिए प्रशंसित है। इसमें, कई समकालीन कथा लेखक भी शामिल हैं, जो उर्दू और हिंदी भाषा में लिखते हैं।प्रतिभाशाली युवालेखक कंवल भारती और कई अन्य अद्भुत उर्दू कवि भी इससे जुड़े हुए हैं।
रामपुर के शुरुआती शासकों अर्थात नवाबों के समय से ही, शहर के लेखकों, कवियों और उनके कार्यों, पांडुलिपियों और पुस्तकों को संरक्षण दिया जाता था। नवाबों ने ही, बहुमूल्य ग्रंथों और कला कार्यों को संजोए रखने हेतु, रज़ा लाइब्रेरी की स्थापना की थी। यहां “काव्यात्मक संप्रभुता” थी और रामपुर को तब “अरामपुर” कहा जाता था। यह प्रचलन विशेष रूप से 1857 में, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इर्द–गिर्द था। क्योंकि, तब अन्य कई उत्तर भारतीय शहर उथल-पुथल में थे और कवियों, लेखकों और कलाकारों को अपने घरों से भागना पड़ा था, और उन्हें रामपुर के नवाबों ने शरण दी थी। अकादमिक संरक्षण और सीखने की यह संस्कृति स्वतंत्रता के बाद भी वर्षों तक जारी रही।इसमें, रामपुर के नागरिकों के लिए पुस्तकों और पत्रिकाओं के उत्पादन और वितरण को जारी रखने के लिए, सौलत पुस्तकालय और सरकारी प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की गई।
माइनॉरिटी पास्ट्स: लोकैलिटी, इमोशन्स एंड बिलोंगिंग इन प्रिंसली रामपुर(Minority Pasts: Locality, Emotions, and Belonging in Princely Rampur) पुस्तक के अध्याय 1 में, वर्ष 1857 के बाद सर्वोपरिता की औपनिवेशिक नीति के तहत एक रियासती इलाके के रूप में, रामपुर के ऐतिहासिक उत्थान का जिक्र मिलता है। इस पुस्तक को रज़ाक खान द्वारा लिखा गया है।यह तत्कालीन नवाब कल्ब-ए-अली खान के अधीन,रामपुर रियासत में “काव्य संप्रभुता” के मामले पर बहस करने के लिए मुगल-अवध संप्रभुता की परंपरा से लेकर रियासती संरक्षण की नीति तक, निरंतरता और परिवर्तन दोनों की जांच करता है। यह अध्याय रामपुर के प्रवचन को 1857 के बाद, बढ़ी महान अशांति के समय में,शरण मिलने की जगह के रूप में समझने के लिए संरक्षक, कवियों और काव्य ग्रंथों पर केंद्रित है। मुगलई-अवधी और रोहिल्ला परंपराओं को समझने के लिए एक प्रभावशाली संग्रह के रूप में कविता पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए, यह अध्याय संरक्षण संस्कृति की दृढ़ता, परिवर्तन और कविता की भूमिका के साथ-साथ मुस्लिम रियासतों की राजनीति में पवित्रता, दोनों को प्रदर्शित करता है।
इसके अलावा, रामपुर का भारतीय मुस्लिम संस्कृति और स्थानीय विद्वता की बौद्धिक एवं साहित्यिक विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान है। रज़ा लाइब्रेरी इस बौद्धिक और सांस्कृतिक योगदान के प्रतीक के रूप में सामने आती है। इस पुस्तकालय में संस्कृत, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित साहित्य का विशाल भंडार शामिल है। यह इम्तियाज़ अहमद अर्शी रामपुरी द्वारा पुस्तकालय संसाधनों के संरक्षण के मूल्यवान कार्य तथा नूरुलहसन के प्रयासों के कारण था, जो नवाब रज़ा अली खान के दामाद और सरकार में मंत्री भी थे। यह पुस्तकालय फ़ारसी और उर्दू साहित्य के अध्ययन को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रज़ा लाइब्रेरी दुर्लभ पांडुलिपियों, प्राचीन ग्रंथों और मूल्यवान दस्तावेजों के विशाल संग्रह के लिए प्रसिद्ध है। इसमें 30,000 से अधिक पांडुलिपियां संग्रहित हैं, जिनमें अरबी, फ़ारसी, उर्दू और अन्य भाषाओं की रचनाएं भी शामिल हैं। इस संग्रह में साहित्य, इतिहास, धर्म, दर्शन, विज्ञान और खगोल विज्ञान सहित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है।
पुस्तकालय में ताड़ के पत्तों, चर्मपत्र और हस्तनिर्मित कागज पर लिखी पांडुलिपियां भी पाई जा सकती हैं, जिनमें से कुछ कई शताब्दियों पहले की हैं। इनमें से कई पांडुलिपियां उस समय की कलात्मक और सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करते हुए, खूबसूरती से प्रकाशित और जटिल सुलेख से सजी हुई हैं।
इस संग्रह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उज़्बेकिस्तान देश की कुछ पांडुलिपियों द्वारा भी दर्शाया गया है। लाइब्रेरी के संग्रह में, उज़्बेकिस्तान की साहित्यिक विरासत के दो खंड मौजूद हैं। इनमें से अधिकांश पुस्तकें ट्रान्सोक्सियाना(Transoxiana) क्षेत्र में या भारत में, बाबुरीड काल(Baburid period) के दौरान, ट्रान्सोक्सियाना के अप्रवासियों द्वारा बनाई गई थीं। जुलाई 1975 में, संसद के एक अधिनियम के माध्यम से रामपुर रज़ा लाइब्रेरी को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया था। रामपुरियों ने ऐतिहासिक रूप से अपने इतिहास को संरक्षित करने की पहल की है और सौलत सार्वजनिक लाइब्रेरी (Saulat Public Library), विशेष रूप से इन संरक्षण प्रयासों के हिस्से के रूप में उभरा है।
प्रसिद्ध रामपुरी चाकू और रामपुरी टोपी के बाजार के केंद्र में, पुरानी तहसील इमारत है, जिसमें सौलतलाइब्रेरी स्थित है। हालांकि, अपने समृद्ध इतिहास वाला यह पुस्तकालय अब खराब स्थिति में है।2013 के मानसून के दौरान, पुरानी इमारत को भारी नुकसान पहुंचा था, और पुस्तकालय की एक दीवार गिर गई थी।इसके परिणामस्वरूप, पुस्तकालय का समृद्ध संग्रह, जो वैसे भी संसाधनों की कमी के कारण संरक्षण की बुरी स्थिति में था, अब निश्चित विनाश के संपर्क में है। सौलत लाइब्रेरी राजनीति और विरोध की सार्वजनिक संस्कृति के हिस्से के रूप में अस्तित्व में आई थी, जिसमें रामपुर रियासत के भीतर अधिक सार्वजनिक प्रतिनिधित्व शामिल था। 1934 में एक सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना, उस समय की रामपुरी मुस्लिम राजनीति की विविधता और समृद्धि को दर्शाती है। इस लाइब्रेरी ने रामपुरियों के बीच जनमत निर्माण और शिक्षा के लिए एक संस्था के रूप में कार्य किया है। रामपुरियों के योगदान के आधार पर, पुस्तकालय में जल्द ही अरबी, फ़ारसी, उर्दू पांडुलिपियों और प्रकाशनों का एक समृद्ध संग्रह विकसित हुआ। इसमें मिर्ज़ा ग़ालिब के कविता संग्रह का दुर्लभ पहला संस्करण– महावर और कुरिया: 2013, भी शामिल है। मौलाना आज़ाद के अल-हिलाल और मुहम्मद अली के कॉमरेड(Comrade) जैसे ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण समाचार पत्रों की प्रतियों के साथ, यहां समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का एक समृद्ध संग्रह भी है।
इन पुस्तकालयों के अलावा, हुसैनी प्रेस, रामपुर का 1870 में स्थापित, पहला प्रिंटिंग प्रेस(Printing press) था। यह एक निजी प्रेस था, जिसमें उर्दू और फ़ारसी भाषा में मुद्रण किया जाता था। जबकि, आज भी, शहर में एक सरकारी प्रेस, अर्थात राजकीय मुद्रणालय एवं कुछ पुस्तक प्रकाशक हैं।
रज़ा लाइब्रेरी में नाजुक पांडुलिपियों एवं दुर्लभ पुस्तकों का संरक्षण और रखरखाव सर्वोच्च प्राथमिकता है। अतः इसकी संस्था ने मूल्यवान संग्रह की सुरक्षा और पुनर्स्थापन के लिए संरक्षण तकनीकों और अत्याधुनिक सुविधाओं को नियोजित किया है। पुस्तकालय डिजिटल सेवाएं(Digital services) भी प्रदान करता है, जिससे दुनिया भर के विद्वानों और शोधकर्ताओं को दूरस्थ रूप से इसके संसाधनों तक पहुंचने की अनुमति मिलती है। हमारे शहर की साहित्यिक विरासत में एक नया जीवन लाने हेतु, रामपुर को पुस्तक प्रकाशन, इंटरनेट पर ऑनलाइन प्रकाशन(Online Publication) और पुस्तकों की दुकानें स्थापित करने में अधिक निवेश करने की आवश्यकता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/mr2krxcp
https://tinyurl.com/wvsxk56k
https://tinyurl.com/2sdm9rcm
https://tinyurl.com/ycxvwtvr
https://tinyurl.com/5bd8d7w2
https://tinyurl.com/4bbuursx

चित्र संदर्भ
1. रामपुर के रजा पुस्तकालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, amazon)
2. किसी विषय से जुड़ा प्रश्न पूछती महिला को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. माइनॉरिटी पास्ट्स: लोकैलिटी, इमोशन्स एंड बिलोंगिंग इन प्रिंसली रामपुर को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
4. रामपुर रज़ा लाइब्रेरी को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
5. एक मुद्रक कार्यशाला को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)

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