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‘रोहिल्ला’ शब्द का इस्तेमाल पश्तून मूल के मुस्लिम समुदाय को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। रोहिल्ला 18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के पतन के दौरान अफगानिस्तान से भारत आ गए। पश्तून में रोह का अर्थ पर्वत और रोहिल्ला का शाब्दिक अर्थ पर्वतारोही जनजातियाँ होता है। रोह पहाड़ी विस्तार का प्रतिनिधित्व करता है, जो उत्तर में स्वात और बाजौर से लेकर दक्षिण में सिबी और भक्कर और पूर्व में हसन अब्दाल से लेकर पश्चिम में काबुल और कंधार तक फैला हुआ है। रोहिल्ला लोग अपने उग्र युद्ध कौशल और स्वतंत्रता के लिए जाने जाते थे। मुगल साम्राज्य के पतन के दौरान भारत में आगमन के बाद रोहिल्ला लोग भारत में स्थानीय जमींदारों और नवाबों (शासकों) के साथ मिलकर सेना में काम करने लगे। यहां तक कि सम्राट औरंगजेब द्वारा उन्हें राजपूत विद्रोह को दबाने के लिए मुगल सेना में भी भर्ती किया गया था। समय के साथ रोहिल्लाओं ने धीरे-धीरे उन क्षेत्रों पर नियंत्रण करना शुरू कर दिया जहां वे रहते थे।
जैसे-जैसे मुगल साम्राज्य ढहता गया, वैसे-वैसे रोहिल्लाओं की शक्ति बढ़ती गई और एक समय ऐसा आया जब उन्होंने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। हालाँकि, 18वीं शताब्दी में, उन्हें अपने खिलाफ कई संघर्षों का सामना करना पड़ा, जिस कारण उन्हें ब्रिटिश शासित भारत, बर्मा और दक्षिण अमेरिका में बसने के लिए मजबूर होना पड़ा। 1947 में विभाजन के बाद रोहिल्ला समुदाय के लोग बड़ी संख्या में केवल अब भारत में ही रह गए हैं। जिस क्षेत्र में वे रहते थे, उसे आज “रोहिलखंड” के नाम से जाना जाता है, जिसमें हमारा रामपुर भी शामिल है।जैसा कि हमने अभी बताया, ब्रिटिश कालीन भारत में रहने के दौरान, रोहिल्लाओं को कई संघर्षों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। उनके सामने सबसे बड़ी समस्या 1772-1774 के बीच खड़ी हुई जब, अवध के “नवाब शुजा-उद-दौला” ने रोहिल्लाओं के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध में नवाब को कर्नल अलेक्जेंडर चैंपियन (Colonel Alexander Champion) के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना का समर्थन प्राप्त था, जिस वजह से नवाब शुजा-उद-दौला इस युद्ध को आसानी से जीत गए। इस युद्ध का सबसे बड़ा कारण “रोहिल्लाओं द्वारा नवाब शुजा-उद-दौला से लिया गया कर्ज़ था।”
यह कर्ज़ कुछ ठोस कारणों से लिया गया था। दरअसल इस युद्ध के कुछ वर्ष पूर्व, भारत में मराठों द्वारा रोहिल्लाओं को पहाड़ों की ओर वापस खदेड़ दिया गया था। इसके बाद बदला लेने और मराठों से मिली इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए, रोहिल्लाओं ने अवध के नवाब शुजा-उद-दौला से सहायता मांगी थी। शुजा-उद-दौला उनकी मदद के लिए तेयार भी हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपनी मदद के बदले में, रोहिल्लाओं से चालीस लाख (चार मिलियन) रुपये के भारी भुगतान की मांग की। उस समय रोहिल्लाओं ने मांग को स्वीकार कर दिया, जिसके बाद ब्रिटिश सेना के समर्थन से शुजा-उद-दौला की सेना ने मराठों को हरा दिया।
हालाँकि, युद्ध जीतने के बाद रोहिल्ला शासकों ने शुजा-उद-दौला को दिए वादे के अनुसार चालीस लाख रुपये देने से मना कर दिया। इसके बाद हालात इतने बिगड़ गए कि नवाब शुजा-उद-दौला और रोहिल्लाओं के बीच युद्ध की नौबत आ गई। 1772-1774 के बीच अवध के नवाब शुजा-उद-दौला ने रोहिल्लाओं के खिलाफ युद्ध की घोषणा ही कर दी। रोहिल्लाओं को हराने और उनके क्षेत्र को जीतने के लिए शुजा-उद-दौला ने भारत के तत्कालीन गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स (Governor-General Warren Hastings) से मदद मांगी। हेस्टिंग्स ने भी मदद के लिए हामी भर दी, और यह दावा करते हुए अपने हस्तक्षेप को उचित ठहराया कि, रोहिल्लाओं ने अवध में ब्रिटिश हितों के लिए खतरा पैदा कर दिया है।
अंग्रेजों द्वारा नवाब शुजा-उद-दौला का समर्थन करने के पीछे एक मुख्य कारण यह भी था कि उन्हें अवध क्षेत्र को ब्रिटिश साम्राज्य के नियंत्रण में लाना था। वॉरेन हेस्टिंग्स 40 लाख की फीस के बदले में रोहिल्लाओं के खिलाफ लड़ाई में सहायता के लिए नवाब को ब्रिटिश सैनिकों की एक ब्रिगेड प्रदान करने पर भी सहमत हुए। जनवरी 1774 में, हेस्टिंग्स ने कर्नल अलेक्जेंडर चैंपियन की कमान के तहत कंपनी की सेना की एक ब्रिगेड को अवध की ओर बढ़ने का आदेश दे दिया। 17 अप्रैल के दिन अवध की सेनाओं के साथ मिलकर इस ब्रिगेड ने रोहिल्लाओं के क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। मीरान कटरा में बड़ी लड़ाई छिड़ गई। इस शक्तिशाली संयुक्त सेना ने 23 अप्रैल के दिन मीरान कटरा में रोहिल्लाओं को परास्त कर दिया। यह एक क्रूर संघर्ष था और इसके बाद रोहिल्लाओं के लिए हालात काफी बिगड़ने लगे थे। इस युद्ध में उनके नेता हाफ़िज़ रहमत खान की भी मृत्यु हो गई। 1774 में रोहिल्लाओं की हार के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) की सेना ने रोहिल्लाओं के क्षेत्र को भी अवध में मिला लिया। हमारे रामपुर में, अंग्रेजों ने एक छोटे से "संरक्षित" रोहिल्ला राज्य की स्थापना की और रोहिल्ला प्रमुख फैजुल्ला खान को यहाँ का नवाब बनाया।
1793 में फैज़ुल्लाह खान की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनके बेटे सत्ता में आने और रामपुर के नवाब बनने के लिए आपस में लड़ने लगे। अंततः, इसके कारण जनरल एबरक्रॉम्बी (General Abercrombie) के नेतृत्व में अंग्रेजों को एक बार फिर से बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा। इसके कारण 1794 में दूसरा रोहिल्ला युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में लगभग 25,000 रोहिल्ला सैनिकों को मार डाला गया। युद्ध के बाद, अंग्रेजों द्वारा अपने शहीद सैनिकों की याद में सेंट जॉन चर्च, कलकत्ता (St. John's Church, Calcutta) के परिसर में रोहिल्ला युद्ध स्मारक का निर्माण किया गया।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4292x3n8
https://tinyurl.com/nkshwjfz
https://tinyurl.com/bdhut5sx
चित्र संदर्भ
1. रोहिलखण्ड युद्ध को दर्शाता एक चित्रण (Prarang)
2. रोहिल्ला घुड़सवार सेना के एक सैनिक को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. दो रोहिल्ला सिपाहियों को प्रदर्शित करता एक चित्रण (British Library, London)
4. नवाबशुजा-उद-दौला को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. शुजाह उद-दौला और उनके बेटे शोबरल को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
6. युद्ध क्षेत्र को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
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