प्रथम विश्व युद्ध में गैलीपोली की लड़ाई: ज़रा याद करो कुर्बानी

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
13-11-2023 10:18 AM
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प्रथम विश्व युद्ध में गैलीपोली की लड़ाई: ज़रा याद करो कुर्बानी

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, 16,000 से अधिक भारतीय सैनिकों ने वर्त्तमान तुर्की में गैलीपोली की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गैलीपोली की लड़ाई (Gallipoli campaign) तुर्की में ऑटोमन साम्राज्य के खिलाफ आठ महीने तक चला एक भीषण अभियान था। तुर्की के थ्रासियन क्षेत्र में स्थित गैलीपोली प्रायद्वीप, रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण था। भारत समर्थक मित्र देशों की सेनाओं (Allied Forces) का उद्देश्य इस प्रायद्वीप पर कब्जा करना था ताकि डारडेनेल्स (Dardanelles) को मित्र देशों के युद्धपोतों के लिए खोला जा सके, ओटोमन साम्राज्य को कमजोर किया जा सके और संभावित रूप से युद्ध को समाप्त किया जा सके। डारडेनेल्स, तुर्की में एक संकीर्ण जलडमरूमध्य (strait) है जो एजियन सागर (Aegean Sea) को मरमारा सागर (Sea of Marmara) से जोड़ता है और एशिया और यूरोप के बीच की सीमा का हिस्सा बनता है। डारडेनेल्स में अंग्रेजों और उनके मित्रों का तुर्कों और उनके मित्रों के बीच एक बड़ा युद्ध हुआ। युद्ध बहुत ही कठिन और खूनी संघर्ष साबित हुआ था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत ने भीषण गैलीपोली अभियान में लड़ने के लिए सैनिकों की एक टुकड़ी भेजी थी। आठ महीने लंबे चले इस क्रूर अभियान में 16,000 से अधिक भारतीय सैनिकों ने भाग लिया था, लेकिन फिर भी ऐतिहासिक वृत्तांतों में उनकी भागीदारी को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। यह युद्ध भारत के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि कई भारतीय मुसलमान इस बात से चिंतित थे कि इस युद्ध के बाद तुर्की में इस्लाम के पवित्र स्थानों का क्या होगा?
यह देखकर भारत के ब्रिटिश शासक भी यह भांप गए कि इस अभियान में मुस्लिम सैनिक परेशानी खड़ी कर सकते हैं। इसलिए उन्होंने कुछ भारतीय मुस्लिम सैनिकों को डार्डानेल्स के बजाय फ्रांस में लड़ने के लिए भेजा। भारतीय सैनिकों ने डार्डानेल्स के विभिन्न हिस्सों में लड़ाई लड़ी। उन्होंने क्रिथिया नामक शहर पर भी हमला किया, लेकिन तुर्कों ने इस हमले का बहुत कड़ा जवाब दिया। इस युद्ध में अनेक सिख सैनिक मारे गये। भारतीय सैनिकों ने भी तुर्कों को ऊंची पहाड़ी से नीचे आने से रोकने की कोशिश की, लेकिन वे टिक नहीं सके। फिर दिसंबर में उन्होंने डारडेनेल्स को छोड़ दिया। इस युद्ध में भारतीय सैनिक के साथ कई भारतीय खच्चर और गाड़ियां भी थीं। ये खच्चर और गाड़ियां भोजन, पानी, हथियार और अन्य चीज़ें ले जाती थीं जिनकी सैनिकों को जरूरत थी।
गैलीपोली में मित्र देशों की समग्र हार के बावजूद, भारतीय सैनिकों के साहस ने अभियान पर एक अमिट छाप छोड़ी दी। गैलीपोली की लड़ाई उन भारतीय सैनिकों के अटूट साहस और समर्पण का प्रमाण है, जो अपने मित्र देशों के समकक्षों के साथ लड़े थे। 'द ब्लफ़ ('The Bluff')' नामक एक चट्टान पर कब्ज़ा करना भारतीय सैनिकों की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक थी, क्यों की यह चट्टान रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण थी। इस ऑपरेशन के तहत गोरखा राइफल्स (Gorkha Rifles) और पंजाबी बटालियन (Punjabi Battalion) के बीच एक समन्वित प्रयास देखा गया था। दरसल 'द ब्लफ़' पर कब्ज़ा करने के लिए गोरखा सैनिक अंधेरे की आड़ में ब्लफ़ की ओर बढ़ रहे थे, वहीँ उन्हें पीछे से समर्थन दे रहे पंजाबी सैनिकों ने दुश्मन ध्यान अपनी ओर खींच लिया। जिससे उनके दुश्मनों का ध्यान भटक गया और गोरखाओं को बिना किसी की नजर में आये आगे बढ़ने का मौका मिल गया। इस प्रकार 15 मई को भोर होने तक, गोरखाओं और पंजाबियों ने ब्लफ़ पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया था। उनके इस कदम से मित्र देशों की स्थिति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और इसके बाद सैनिकों को मिलने वाली मदद में भी वृद्धि हुई। पूरे गैलीपोली अभियान में भारतीय सैनिक उल्लेखनीय वीरता का प्रदर्शन करते रहे। हालांकि उनके महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, इन भारतीय सैनिकों की कहानियाँ अक्सर अनकही रह गई हैं। भारतीय सैनिकों के बजाय उनके ऑस्ट्रेलियाई, न्यूजीलैंड और ब्रिटिश समकक्षों की कहानियां अधिक बताई जाती हैं। इतिहासकार पीटर स्टेनली (Peter Stanley) ने अपनी पुस्तक "डाई इन बैटल, डू नॉट डेस्पायर - द इंडियंस एट गैलीपोली, 1915 (Die in Battle, Do Not Despair – The Indians at Gallipoli, 1915)" में भारतीय सैनिकों के महत्वपूर्ण योगदान को उजागर किया है। यह पुस्तक जान महोमेद जैसे भारतीय सैनिकों की कहानी बताती है, जिन्होंने युद्ध के दौरान भी, पानी पिलाकर प्यासे ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों की प्यास बुझाई थी। इसमें करम सिंह के बारे में भी बताया गया है, जो कि एक पहाड़ी तोपची थे और उन्होंने संघर्ष में अपनी दोनों आँखें खोने के बावजूद भी अपने सैनिकों को निर्देशित किया। प्रोफेसर स्टेनली का यह शोध, सांस्कृतिक और भाषाई मतभेदों के बावजूद भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों के बीच विकसित हुए गहरे सम्मान और सौहार्द पर प्रकाश डालता है। इस पुस्तक में 80 से अधिक तस्वीरों और रंगीन मानचित्रों के साथ, गैलीपोली अभियान के दौरान शहीद हुए भारतीय सैनिकों की पूरी सूची शामिल है। यह उनके बलिदानों की मार्मिक याद दिलाता है और विपरीत परिस्थितियों में उनकी अटूट बहादुरी को श्रद्धांजलि देता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/atw8erk2
https://tinyurl.com/4n59sxtm
https://tinyurl.com/3pw64yys

चित्र संदर्भ
1. युद्ध के दौरान अपने घायल साथी को हाथों में उठाये सैनिक को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
2. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय लांसर्स की एक रेजिमेंट आक्रमण की तैयारी कर रही थी! इस दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
3. पीटर स्टेनली की पुस्तक "डाई इन बैटल, डू नॉट डेस्पायर - द इंडियंस ऑन गैलीपोली को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
4. 30 जुलाई 1918 के दिन पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने मॉन्ट डेस कैट्स पर एक अवलोकन पोस्ट का दौरा किया। इस दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
5. युद्ध की छवि को दर्शाता एक चित्रण (rawpixel)

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