विभिन्न क्षेत्रों में केरोसिन कैसे हुआ अत्यधिक लोकप्रिय

नगरीकरण- शहर व शक्ति
27-09-2023 09:29 AM
Post Viewership from Post Date to 26- Oct-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2165 261 2426
विभिन्न क्षेत्रों में केरोसिन कैसे हुआ अत्यधिक लोकप्रिय

दैनिक जीवन के विभिन्न कार्यों को करने के लिए हमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है। विद्युत ऊर्जा और ईंधन ऊर्जा हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, जो हमें विभिन्न नवीकरणीय और गैर नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त होती है। वर्तमान समय में इनके बिना जीवन की कल्पना करना असंभव प्रतीत होता है। एक समय ऐसा था जब विद्युत ऊर्जा या ईंधन ऊर्जा के लिए मनुष्य मिट्टी के तेल अर्थात केरोसिन (Kerosene) पर निर्भर था। तो आइए, आज इस लेख के जरिए केरोसिन के आविष्कार तथा इसकी उपयोगिता के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
मिट्टी का तेल अर्थात केरोसिन, जिसे पैराफिन (Paraffin) के नाम से भी जाना जाता है, एक दहनशील हाइड्रोकार्बन तरल (hydrocarbon liquid) है, जिसे पेट्रोलियम (Petroleum) से प्राप्त किया जाता है। केरोसिन का उपयोग हवा में उड़ने वाले विमानों के साथ-साथ घरों में ईंधन के रूप में व्यापक रूप से किया जाता है। केरोसिन शब्द “ग्रीक” (Greek) भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है "मोम”। केरोसिन शब्द का उपयोग अर्जेंटीना (Argentina), ऑस्ट्रेलिया (Australia), कनाडा (Canada), भारत, न्यूजीलैंड (New Zealand), नाइजीरिया (Nigeria) और संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) के अधिकांश हिस्सों में किया जाता है, जबकि चिली (Chile), पूर्वी अफ्रीका (Eastern Africa), दक्षिण अफ़्रीका (South Africa), नॉर्वे (Norway) और यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में केरोसिन को पैराफिन के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा एशिया (Asia) और दक्षिणपूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकांश हिस्सों में केरोसिन को लैंप ऑयल (Lamp Oil) के नाम से जाना जाता है।
केरोसिन के बारे में एक अवधारणा है कि यह पेट्रोलियम से प्राप्त होता है किंतु सबसे पहले केरोसिन का आविष्कार पेट्रोलियम से नहीं, बल्कि कोयले का आसवन करके किया गया था तथा इसका पहला बड़ा अनुप्रयोग खाना पकाने के ईंधन के रूप में नहीं, बल्कि लैंप जलाने के लिए (बिजली के आविष्कार से पहले) किया गया।
तेल के लैंप का उपयोग सदियों से किया जाता रहा है, सबसे पहले खोजे गए लैंप 9वीं शताब्दी के फारस (Persia) के हैं। ऐतिहासिक रूप से ये लैंप वनस्पति तेल, मनुष्य या पशु वसा से जलाए जाते थे। 1700 और 1800 के दशक की शुरुआत में, लैंप जलाने के लिए व्हेल के तेल का उपयोग किया जाता था । लेकिन फिर 1846 में जब कनाडा (Canada) के प्रसिद्ध भूविज्ञानी और आविष्कारक अब्राहम गेस्नर (Abraham Gesner) बिटुमिनस कोयले (Bituminous coal) और तेल शेल (Oil shale) का आसवन कर रहे थे, तब उन्हें एक महत्वपूर्ण पदार्थ प्राप्त हुआ जिसे केरोसिन नाम दिया गया। केरोसिन पारंपरिक तेल के लैंप को रोशन करने के लिए इस्तेमाल होने पर एक चमकदार लौ पैदा करता था जिससे इसका उपयोग व्यापक हो गया। केरोसिन के आविष्कार के बाद 1854 में इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू हुआ। इसका उपयोग व्यापक रूप से विमान के जेट इंजनों और कुछ रॉकेट इंजनों को रॉकेट प्रोपेलेंट-1 या रिफाइंड पेट्रोलियम-1 (Rocket Propellant-1 or Refined Petroleum-1 (RP-1) के रूप में ऊर्जा देने के लिए किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग आमतौर पर खाना पकाने के लिए और प्रकाश ईंधन के रूप में भी किया जाता है। एशिया के कुछ हिस्सों में केरोसिन का उपयोग छोटी आउटबोर्ड मोटरों (Outboard motors) या मोटरसाइकिलों के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है। ऐसा अनुमान है कि पूरे विश्व में विभिन्न प्रयोजनों के लिए प्रति दिन लगभग 1,110,000 घन मीटर केरोसिन का उपयोग होता है। केरोसिन की खोज के बाद कई दैनिक गतिविधियां बहुत आसान बन गईं। उद्योगों और घरों में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाने लगा। विभिन्न उद्योग बिजली पैदा करने और ईंधन के रूप में केरोसिन का उपयोग करने लगे तथा लोगों ने दीयों या लैंपों को जलाने और खाना पकाने के लिए केरोसिन का उपयोग शुरू कर दिया।
प्रारंभ में केरोसिन बहुत महंगा था, लेकिन जब शोध से पता चला कि केरोसिन को पेट्रोलियम से भी परिष्कृत किया जा सकता है, तो केरोसिन के उपयोग में वृद्धि होने लगी। ऐसा अनुमान है कि 1860 तक अमेरिका में केरोसिन का उत्पादन करने वाली रिफाइनरियों की संख्या 30 के आस-पास हो गई । जिससे धीरे-धीरे केरोसिन के दाम में गिरावट होने लगे । 1850 के दशक के उत्तरार्ध में केरोसिन से जलने वाले लैंपों की मांग में अत्यधिक बढ़ोतरी हुई। 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के दौरान केरोसिन की सहायता से जलने वाले लैंपों का उपयोग घर, खुदरा प्रतिष्ठान, चिकित्सा कार्यालय, अस्पताल, कारखानें इत्यादि लगभग हर जगह किया जाने लगा। एक समय तो ऐसा भी था जब शहरों की कानून व्यवस्था की देखभाल करने वाली पुलिस भी प्रकाश व्यवस्था के लिए पूरी तरह से केरोसिन पर निर्भर थी। इसके अलावा ट्रेनों के लिए इनडोर लाइटिंग (Indoor lighting), हेडलैम्प्स (Headlamps) और सिग्नलिंग उपकरणों (Signaling devices) में भी केरोसिन का उपयोग किया जाने लगा। केरोसिन का आविष्कार कृषि में भी सहायक बना क्योंकि अब किसान घंटों तक अपने खेतों में काम कर सकते थे, परिणामस्वरूप उनकी उपज में वृद्धि हुई। विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी केरोसिन का उपयोग किया जाने लगा, यहां तक कि सिर के जूँ को मारने के लिए भी केरोसिन उपयोगी हो गया। 1879 में एक विश्वसनीय, व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य इलेक्ट्रिक लाइट बल्ब के आविष्कार के साथ केरोसिन से जलने वाले लैंपों या दीयों के उपयोग में गिरावट आने लगी। हालांकि, 1940 के दशक तक भी कुछ समुदाय केरोसिन से जलने वाले लैंपों का उपयोग कर रहे थे। आज अधिकांश देशों, विशेष रूप से, उत्तरी अमेरिका में केरोसिन को एक सुखद स्मृति के रूप में याद किया जाता है, जो उन्हें पुराने अच्छे दिनों की याद दिलाता है। कुछ विकासशील देशों जैसे नाइजीरिया (Nigeria) में अनुमानित 90 प्रतिशत घर अभी भी खाना पकाने, प्रकाश आदि के लिए केरोसिन पर निर्भर हैं।
भारत में केरोसीन को सबसे पहले अलाप्पुझा स्थित मैसर्स अर्नोल्ड चेनी एंड कंपनी ऑफ न्यूयॉर्क (M/s Arnold Cheney and Co of New York) और बाद में मैसर्स रिप्ले और मैके (M/s Ripley and Mackay) द्वारा त्रावणकोर में आयात किया गया था। इसके बाद बर्मा-शेल (Burma Shell) कंपनी ने 1928 में केरोसिन का आयात और विपणन किया। भारत में केरोसिन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की शुरुआत करीब 80 से 90 साल पहले हुई थी। अमेरिकियों ने भारत में केरोसिन का एक बड़ा बाजार देखा और इस प्रकार भारत में 5 जुलाई 1952 को 'ईएसएसओ' (ESSO) कंपनी एक नए नाम 'स्टैंडर्ड वैक्यूम रिफाइनिंग कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड' (Standard Vacuum Refining Company of India Limited) के साथ स्थापित की गई। बर्मा शेल (Burma Shell) कंपनी ने भारत में केरोसिन की खोज की, जिससे भारत में केरोसिन का उपयोग अधिक व्यापक हो गया । परिणामस्वरूप, भारत इस तरल पदार्थ पर काफी निर्भर हो गया। घरों में इस्तेमाल होने वाले लैंप और लालटेन केरोसिन से जलाए जाने लगे, गाड़ियाँ, मोटरसाइकिलें और यहाँ तक कि पंखे भी केरोसिन की मदद से चलाए जाने लगे। केरोसिन ने कई अन्य उद्योगों को भी जन्म दिया, जैसे लैंप में इस्तेमाल होने वाले रेशम के आवरण तथा केरोसिन के इस्तेमाल से उपयोग की जाने वाली इस्त्री आदि। भारत में केरोसिन दैनिक जीवन का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया कि इसे राशन की दुकानों में बेचा जाने लगा। हालांकि, आज विद्युत या बिजली ने केरोसिन का स्थान ले लिया है, जो आज सबसे दूरस्थ स्थानों तक भी पहुंच गई है। जिस केरोसिन से कभी बाइक और कारें चलती थीं, वह बिजली के आविष्कार के बाद से अप्रचलित हो गई। स्वच्छ और अधिक परिष्कृत ईंधन उपलब्ध होने के कारण केरोसिन पर लोगों की निर्भरता कम हो गई।

संदर्भ:

https://tinyurl.com/y2emjxnc
https://tinyurl.com/2zyd326v
https://tinyurl.com/mr2mdh5n
https://tinyurl.com/dpvd43ch
https://tinyurl.com/28ytcytj

चित्र संदर्भ

1. केरोसिन पंप को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
2. भारत में पुराने केरोसिन स्टोव को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. मिट्टी के तेल से खाना पकाने वाले चूल्हे को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
4. केरोसिन लैंप को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
5. केरोसिन या डीज़ल स्टेशन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. केरोसिन के प्रचार को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.