एकाग्रता की कमी के कारण, पाठकों की संख्या भी हो रही है कम

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
21-09-2023 09:41 AM
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एकाग्रता की कमी के कारण, पाठकों की संख्या भी हो रही है कम

आज के समय में जब हमारे पास इंटरनेट के माध्यम से हर तरह की जानकारी उपलब्ध है, ऐसे में लोगों को अपनी एकाग्रता बनाये रखने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। शोधकर्ताओं के अनुसार, वर्ष 2000 में मनुष्य की औसत ध्यान अवधि 12 सेकंड की थी, अर्थात उस समय एक इंसान बारह सेकंड तक एकाग्र रह सकता था। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि 2015 में यह एकाग्रता समय घटकर केवल 8 सेकंड रह गया है। कुल मिलाकर आज मनुष्यों की एकाग्र रहने की क्षमता सुनहरी मछली (Golden Fish) से भी कम हो गई है। अब प्रश्न उठता है कि मनुष्यों में एकाग्रता की अवधि को कैसे मापा जा सकता है? शोध बताते हैं कि लोगों की पढ़ने की आदतों का अध्ययन करके, हम उनकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। साल 2009 में, भारत में ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ (National Book Trust) के तहत ‘नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च’ (National Council For Applied Economic Research (NCAER) ने एक सर्वेक्षण किया, जिसमें उन्होंने यह पता करने की कोशिश की कि भारत में, वास्तव में, कितने युवा किताबें पढ़ते हैं।13 से 35 वर्ष की आयु के 660,000 उत्तरदाताओं की भागीदारी के साथ 199 कस्बों और 207 ग्रामीण जिलों में आयोजित सर्वेक्षण को भारत में पढ़ने की आदतों पर अब तक के सबसे बड़े सर्वेक्षण के रूप में मान्यता प्राप्त है।
इस सर्वेक्षण में पाया गया कि:
१. भारत में 459 मिलियन युवाओं में से 333 मिलियन युवा साक्षर हैं।
२. साक्षर युवाओं में से 83.4 मिलियन (साक्षर युवाओं का 25%) युवा मनोरंजन के लिए किताबें पढ़ते हैं।
३. मनोरंजन के लिए पढ़ने वालों में से 47% शहरों में और 53% ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।
. जब उनसे पूछा गया कि वे क्यों पढ़ते हैं, तो 46% लोगों ने कहा कि वे नई चीजें सीखने के लिए पढ़ते है और 19-20% ने कहा कि वह केवल मनोरंजन और विश्राम के लिए पढ़ते हैं।
५. सर्वेक्षण में शामिल लगभग 47.7% व्यक्तियों ने यह व्यक्त किया है कि टेलीविजन, इंटरनेट के बढ़ते प्रचलन और समय की कमी के कारण शैक्षणिक अध्ययन में रुचि कम हो रही है।६. पढ़ने वाले 70% युवाओं ने कहा कि, उन्होंने अब तक जो पड़ा है उससे वे संतुष्ट हैं। सर्वेक्षण के इन निष्कर्षों से पता चलता है कि भारत में युवा वर्ग किताबों के प्रति कितना उदासीन है। इस उदासीनता के पीछे टीवी और इंटरनेट के साथ-साथ एकाग्रता की कमी भी एक प्रमुख कारण है। एकाग्रता में कमी कभी-कभी पढ़ने और समझने में कठिनाई के कारण भी होते है। यदि आपको या किसी भी छोटे बच्चे को पढ़ने और समझने में दिक्क्त आती है, तो यह समस्या संभवतः “अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर” (Attention Deficit Disorder) के कारण पैदा हो सकती है।
अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर हमारी एकाग्रता, ध्यान केंद्रित करने और शब्दों को डिकोड (Decode) करने की क्षमता को बाधित कर सकता है।
अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर से जूझ रहे बच्चों में पढ़ने की समस्याएँ दो मुख्य प्रकार की होती हैं:
1. डिकोडिंग समस्याएँ: अक्षरों को ध्वनियों या चित्रों में बदलने की क्षमता को डिकोडिंग क्षमता कहा जाता है। डिकोडिंग की समस्या के कारण बच्चों को, शब्दों को पढ़ने में परेशानी हो सकती है। ऐसे बच्चे यह नहीं समझ पाते हैं कि यह कौन सा शब्द है और इन शब्दों का उच्चारण कैसे किया जाए। इन बच्चों को अपने पढ़ें हुए शब्दों को याद रखने में भी बहुत अधिक कठिनाई होती है।
2. समझ संबंधी समस्याएं: समझ संबंधी समस्याओं वाले बच्चे शब्दों को सही ढंग से पढ़ तो लेते हैं, लेकिन वे उनका मतलब नहीं समझ पाते हैं। अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर से जूझ रहे बच्चों के माता पिता को, पढ़ाई में उनकी अतिरिक्त सहायता करनी चाहिए, और उनके ध्यान तथा एकाग्रता में सुधार के लिए शिक्षण रणनीतियाँ अपनानी चाहिए। साथ ही उन्हें अपने बच्चों को उनके स्मृति कौशल (Memory Skills) विकसित करने में भी मदद करनी चाहिए।इन उपायों कोअपनाने से बच्चों में किताबें पढ़ने और शब्दों के अर्थ समझने की क्षमता विकसित हो सकती है!
नीचे दी गई सूची, उपलब्ध नवीनतम वर्ष के अनुसार प्रकाशित पुस्तकों के शीर्षकों की संख्या के आधार पर शीर्ष 10 देशों को दर्शाती है, जिससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों में पुस्तकों के प्रति कितनी उदासीनता है :

रैंक देश वर्ष शीर्षक
1 संयुक्त राज्य अमेरिका 2013 275,232
2 चीन 2013 208,418
3 यूनाइटेड किंगडम 2020 186,000
4 जापान 2017 139,078
5 इंडोनेशिया 2020 135,081
6 इटली 2020 125,948
7 रूस 2019 115,171
8 फ्रांस 2018 106,799
9 ईरान 2018 102,691
10 भारत 2013 90,000
ध्यान देने योग्य एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत में 2004 में प्रति 100000 जनसंख्या पर प्रति व्यक्ति प्रकाशित पुस्तकों की संख्या 6.3 थी। जबकि प्रति व्यक्ति पुस्तकों की सबसे अधिक संख्या ब्रिटेन (Britain) में (प्रति 100000 जनसंख्या पर 212 पुस्तकें) प्रकाशित हुई । हालांकि इसका मतलब कदापि यह नहीं है कि ब्रिटेन में भारत की तुलना में अधिक पाठक हैं। इसका एक कारण यह भी है कि ब्रिटेन जैसे अन्य देशों में अधिकांश पुस्तक प्रकाशकों की नीतियां भारत की तुलना में अधिक आधुनिक हैं ।
भारत में पुस्तक प्रकाशन की शुरुआत पहली बार 1556 में गोवा और 18वीं शताब्दी में ट्रैंकेबार तथा सेरामपुर (Tranquebar And Serampore) में पहली प्रिंटिंग प्रेस (Printing Presses) की स्थापना के साथ हुई थी। औपनिवेशिक सरकार ने 1835 में यह निर्णय लिया था कि, “सभी युवाओं को उच्च स्तर की शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से प्रदान की जाएगी।” इसके बाद अंग्रेजी में लिखित पाठ्यपुस्तकों की मांग में भारी वृद्धि देखी जाने लगी और भारतीय प्रकाशन उद्योग तेजी के साथ उभरने लगा।
आज भारत दुनिया के शीर्ष 6 पुस्तक प्रकाशकों में से एक बन गया । साथ ही भारत आज अंग्रेजी पुस्तकों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया है। हालाँकि, पढ़ने की बदलती आदतों और किताबों की बढ़ती लागत के कारण न केवल पाठकों बल्कि भारतीय प्रकाशकों को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आज कागज की कीमत लगभग दोगुनी हो गई है। पुस्तक वितरक, सीमित मांग को भी पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जिसके परिणामस्वरूप प्रकाशक भी किताबों की कीमतें बढ़ाने पर मजबूर हैं, जिससे पाठकों पर दबाव बढ़ रहा है। महामारी ने भी पढ़ाई का परिदृश्य और पुस्तकों की मांग को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। इसके अलावा, चूंकि आज ज्यादातर भारतीय मनोरंजन के लिए किताबें पढ़ते हैं, इसलिए वे किताबों के लिए ऊंची कीमत चुकाने को तैयार नहीं हैं। भारत के पुस्तक प्रकाशन उद्योग को कई अन्य चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है,जिसमे ई-पुस्तकों का उदय भी शामिल है, क्यों की आज लोगों के लिए ऑनलाइन किताबें पढ़ना अधिक सुलभ हो गया है। आज बड़ी संख्या में लोग अमेज़न (Amazon) से ई-पुस्तकें (E-books) खरीद रहे हैं। इसके अलावा भारत में पुस्तक प्रकाशन उद्योग के लिए साहित्यिक चोरी (Piracy) भी एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। साहित्यिक चोरी के कारण 25 फीसदी से अधिक राजस्व हानि होने का अनुमान है। इन सभी चुनौतियों से निजात पाने के लिए आज भारत में पुस्तक प्रकाशन उद्योग को 21वीं सदी की चुनौतियों के अनुरूप ढलने की जरूरत है। इसमें ई-पुस्तकें और ऑडियोबुक (Audiobook) जैसी नई तकनीकों को अपनाना भी शामिल हो सकता है।

संदर्भ

https://tinyurl.com/mtjrp2s
https://tinyurl.com/bdh8487s
https://tinyurl.com/3zhnde5w
https://tinyurl.com/4vrw6u6d
https://tinyurl.com/4xwup4kv

चित्र संदर्भ
1. सोशल मीडिया भटकाव को दर्शाता एक चित्रण (Free Vector)
2. मोबाइल और किताब को दर्शाता एक चित्रण (Pxfuel)
3. किताबें पकड़े हुए बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (pexels)
4. मोबाइल चलाते बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (pixahive)
5. मोबाइल पर गेम खेलते भारतीय बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (pixahive)

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