समयसीमा 234
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 960
मानव व उसके आविष्कार 744
भूगोल 227
जीव - जन्तु 284
Post Viewership from Post Date to 16- Oct-2023 (31st Day) | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2931 | 416 | 3347 |
हिंदू धर्म में देवों के देव, महादेव को ईश्वर का सर्वोच्च रूप माना जाता है। महादेव को “सृष्टि के विध्वंसक देवता" के रूप में भी देखा जाता है। हालांकि, देवों के देव होते हुए भी, महादेव योगी के रूप में कैलाश पर्वत पर एक साधारण जीवन व्यतीत करते हैं। उन्हें नीलकंठ, गंगाधर, अघोड़, गौरी नाथ और रुद्र इत्यादि सैकड़ों नामों से पुकारा जाता है। उन्हें लालच, अहंकार और पाखंड कदापि पसंद नहीं है। उनका एक नाम “भोला” भी है, जो यह दर्शाता है कि वह कितने निश्छल हैं! वह इतने भोले हैं कि केवल सच्चे मन से उनका ध्यान करने पर ही वह प्रसन्न हो जाते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव को भांग अत्यधिक प्रिय है इसलिए महाशिवरात्रि और होली के त्यौहार के दौरान भांग का सेवन किया जाता है। लेकिन कई लोग यह सोचते हैं कि “भांग पीने से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं।" लेकिन इसकी असल वास्तविकता हम सभी को समझनी चाहिए।
भांग, मूल रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाले कैनेबिस पौधे (Cannabis Plant) की पत्तियों से बनाई जाने वाली एक खाद्य सामग्री है। भारत में इसका उपयोग, प्राचीन काल (लगभग 1000 ईसा पूर्व) से ही भोज्य और पेय पदार्थ के रूप में किया जाता रहा है। पारंपरिक रूप से महाशिवरात्रि और होली के त्यौहार के दौरान भांग का सेवन किया जाता है। सिलबट्टे और मूसल का उपयोग करके, कैनेबिस पौधे की पत्तियों को पीसकर भाँग का पेस्ट (Paste) बनाया जाता है, जिसके बाद इसे खाद्य पदार्थों में मिलाया जा सकता है। पेय बनाने के लिए इसे दूध के साथ मिलाया जाता है, जिसके बाद इसमें कुशा घास, चीनी, फल और विभिन्न मसालों को मिलाकर इसका स्वाद बढ़ाया जाता है। भांग को बैंगनी रंग का हलवा बनाने के लिए भी, घी और चीनी के साथ मिलाया जाता है। इससे चटपटी तथा चबाने योग्य छोटी गोलियां भी बनाई जाती हैं। साथ ही इसका उपयोग उत्तराखंड के कुमाऊंनी व्यंजनों में ‘भांग की चटनी’ के रूप में किया जाता है, जिसे ‘भंगिरे की चटनी' भी कहा जाता है। इस चटनी को भांग के बीजों को पुदीना, टमाटर और विभिन्न मसालों के साथ पीसकर बनाया जाता है। विशेष रूप से उत्तर भारत में होली के दौरान भांग की लस्सी पीने की परंपरा बेहद आम है। मथुरा में भी भांग का बड़ी मात्रा में सेवन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि मथुरा में यह प्रथा भगवान श्री कृष्ण के अनुयायियों द्वारा शुरू की गई थी, और तब से आज तक चली आ रही है।
प्राचीन काल से ही भारतीय उपमहाद्वीप में भांग हिंदू परंपरा और रीति-रिवाजों का हिस्सा रही है। ग्रामीण भारत के कुछ हिस्सों में, लोग भांग के पौधे में विभिन्न औषधीय गुण होने की बात भी करते हैं। माना जाता है कि यदि भांग को उचित मात्रा में लिया जाए, तो यह बुखार, पेचिश और लू को भी ठीक कर सकती है। साथ ही यह कफ को साफ करती है, पाचन में सहायता करती है, भूख बढ़ाती है, गले की खराबी और यहाँ तक की तुतलाने की समस्या को भी ठीक कर सकती है।
भारत के कई हिस्सों में भंग का उपयोग वैध भी है। हमारे उत्तर प्रदेश में लाइसेंस प्राप्त भांग की दुकानें भी हैं। इसके अलावा भारत में कई स्थानों पर कोई भी भांग उत्पाद खरीद सकता है और भांग से बनी लस्सी पी सकता है। बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्य भी भांग के उत्पादन की अनुमति देते हैं। हालांकि, राजस्थान जैसे राज्य, भांग के उत्पादन की अनुमति नहीं देते हैं, लेकिन यहां पर दूसरे राज्यों से भांग की खरीद और बिक्री करने की अनुमति दी गई है।
1961 में ‘स्वापक औषधियों पर एकल सम्मेलन’ (Single Convention On Narcotic Drugs), ऐसी पहली अंतरराष्ट्रीय संधि थी जिसमें कैनेबिस यानी भांग के पौधे को अन्य दवाओं के साथ शामिल किया गया था। हालांकि, इस संधि में औषधीय और अनुसंधान उद्देश्यों के अलावा, कैनेबिस के उत्पादन और आपूर्ति पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। साथ ही एकल सम्मेलन की ‘कैनेबिस' की परिभाषा में कैनेबिस पौधे की पत्तियां शामिल नहीं हैं, जिस कारण भारत में भांग अभी भी वैध है।
इसके साथ ही दूसरी ओर भारत में कैनेबिस पौधे पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना काफी कठिन भी है, क्योंकि भांग भारत की संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है। भारत में भांग के पौधे को सबसे पवित्र पौधों में से एक माना जाता है। वेदों में भी इस पौधे का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि “यह पौधा चिंता से राहत देता है।"
इस प्रकार, एक पवित्र पौधा होने के कारण इसका उपयोग आध्यात्मिक और धार्मिक अनुष्ठानों में प्रचुरता से किया जाता है। सनातन धर्म में एक किवदंती प्रचलित है, जिसके अनुसार, ‘समुद्र मंथन' के दौरान, अमृत के अलावा ‘हलाहल' नामक घातक विष (जहर) भी निकला था। यह विष इतना जहरीला था कि यह पूरी सृष्टि को समाप्त कर सकता था। इसलिए सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने पूरा जहर स्वयं ही पी लिया। जहर पीने के बाद उत्पन्न हुई गहरी पीड़ा ने महादेव के कंठ को नीला कर दिया, जिससे उन्हें नीलकंठ की उपाधि मिली। इसके बाद भगवान शिव को शिथिल करने और राहत पहुंचाने के लिए देवताओं ने उन्हें भांग पिलाई थी। हलाहल के प्रभाव से शिव को राहत दिलाने की इस कहानी के कारण भी कैनेबिस को औषधीय गुणों वाले पौधे के रूप में जाना जाने लगा।
आयुर्वेद चिकित्सक भांग को एक अच्छे तंत्रिका दर्द-निवारक पदार्थ के रूप में देखते हैं। उनके अनुसार सिरदर्द, माइग्रेन (Migraine) आदि के साथ-साथ साइटिका (Sciatica) दर्द से पीड़ित लोगों को भी भांग से लाभ हो सकता है। इसके अलावा गठिया, बवासीर, मौसमी संक्रमण और यहां तक कि अनिद्रा जैसी स्व-प्रतिरक्षित रोगों (Autoimmune Conditions) के प्रबंधन में भी भांग को लाभकारी बताया जाता है। भांग का तेल और पत्तियां, दोनों ही दर्द निवारक साबित हो सकते हैं। भांग के पौधे के प्रत्येक भाग (पत्तियां, फूल, बीज, डंठल या रेशे) के असंख्य फायदे होते हैं। इसके अलावा चरस और हशीश, भांग से प्राप्तशुद्ध राल होते हैं जिनमें बहुत अधिक मात्रा में टीएचसी (टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल) (THC (Tetrahydrocannabinol) होता है, जिसकी थोड़ी सी ज्यादा मात्रा भी आपके दिमाग के लिए हानिकारक हो सकती है। आयुर्वेद में वर्णित है कि भांग को दूध के साथ उबालने से यह कम मनो-सक्रिय हो जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3hyzazj4
https://tinyurl.com/yc2j7xw5
https://tinyurl.com/2bfbuvdx
https://tinyurl.com/yb5wen32
https://tinyurl.com/bddysyk9
चित्र संदर्भ
1. भांग पेय तैयार करते भगवान शिव को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. भगवान् शिव को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
3. भांग के पौंधे को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
4. भांग के गोले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बनारस के भंगेरियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. होली में भांग की पार्टी करते लोगों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.