रामपुर में पारंपरिक खेती से आधुनिक कृषि की ओर बढ़ने पर आए हैं अभूतपूर्व बदलाव

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26-08-2023 09:59 AM
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रामपुर में पारंपरिक खेती से आधुनिक कृषि की ओर बढ़ने पर आए हैं अभूतपूर्व बदलाव

हमारे रामपुर की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खेती पर ही निर्भर रहती है। यहां जमीन फसलें उगाने के लिए आदर्श मानी जाती है। शायद यही कारण है कि भारत के सालाना लगभग 6,000 करोड़ रुपये के मेंथा यानि ‘पुदीना’ निर्यात में अकेला रामपुर 1750 करोड़ का योगदान देता है। शायद यह इसलिए संभव हो पाया है, क्योंकी रामपुर के किसानों ने पारंपरिक और आधुनिक कृषि तकनीकों के बीच संतुलन बनाना सीख लिया है। प्राचीन समय में कठिन कृषि कार्यों के लिए जानवर मुख्य स्रोत हुआ करते थे। फिर भाप की शक्ति ने इनका स्थान ले लिया, उसके बाद गैस से चलने वाले ट्रैक्टर और डीजल इंजन प्रचलित हुए। हालांकि, इससे विकसित देशों में कृषि श्रमिकों की संख्या कम हो गई, लेकिन मशीनरी के आगमन से कृषि उत्पादन में वृद्धि होने लगी। कृषि प्रौद्योगिकी ने उत्पादन और गुणवत्ता को बहुत बढ़ावा दिया। आजकल पुराने औजारों के इस्तेमाल से किसानों के स्वास्थ्य और समय का नुकसान होता है। यहां तक कि पारंपरिक ट्रैक्टर भी पुराने हो गए हैं। इनकी जगह आधुनिक कृषि मशीनरी ले रही है। कुछ महत्वपूर्ण आधुनिक मशीनों में कंबाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester), रोटरी टिलर (Rotary Tiller), ट्रैक्टर ट्रेलर (Tractor Trailer,), पावर हैरो (Power Harrow), लेवलर (Leveler), वॉटर बाउजर (Water Bowser), रीपर मशीन (Ripper Machine) और डिस्क हैरो (Disc Harrow) जैसे आधुनिक उपकरण आ गए हैं। आगे बढ़ने से पहले पारंपरिक और आधुनिक खेती के बीच मुख्य अंतरों पर एक नजर डाल लेते हैं।
 -पारंपरिक खेती:
1. पारंपरिक खेती मानव श्रम पर अधिक निर्भर करती है।
2. इसके अंतर्गत फसल चक्र और काटकर जलाने जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
3. इस प्रकार की खेती में उर्वरकों के लिए प्राकृतिक खाद का उपयोग किया जाता है।
4. फसलों को उगने में अधिक समय लगता है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन दर कम हो जाती है।
- आधुनिक खेती:
1. आधुनिक खेती पूंजी निवेश पर निर्भर करती है।
2. यहाँ पर हमारे पास मोनोक्रॉपिंग (Monocropping) और सटीक कृषि सामान्य (Precision Agriculture) जैसी तकनीकें उपलब्ध हैं।
3. इस तरह की खेती में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।
4. इस प्रणाली से तेज फसल वृद्धि के कारण उत्पादन दर भी अधिक होती है।
कुल मिलाकर पारंपरिक और आधुनिक खेती, दोनों के अपने-अपने फायदे और नुकसान होते हैं। पारंपरिक खेती में लोगों का प्रकृति से गहरा संबंध स्थापित हो जाता है। उन्होंने अपने पूर्वजों से जो कुछ भी सीखा होता है, वह उसका उपयोग करते हैं और आधुनिक विज्ञान तथा मशीनों पर ज्यादा भरोसा नहीं करते हैं। पारंपरिक तरीके छोटे क्षेत्रों और सीमित बजट के लिए उपयुक्त साबित होते हैं, जबकि आधुनिक तकनीक बड़ी आबादी को खिलाने के लिए अधिक उपज प्रदान करती हैं। किसान अपनी-अपनी ज़रूरतों, बजट और क्षमता के आधार पर निर्णय लेते हैं। हमारे रामपुर की अर्थव्यवस्था भी मुख्य रूप से खेती पर ही निर्भर करती है। यहाँ जमीन फसलें उगाने के लिए अच्छी मानी जाती है। इसके अलावा रामपुर वासियों का मुख्य व्यवसाय शराब बनाना, चीनी का प्रसंस्करण करना, कपड़ा बुनना और खेती के लिए उपकरण बनाना हैं। रामपुर में एक बड़ी चीनी मिल भी हुआ करती थी जो 1999 में राजनीति के कारण बंद हो गई। शहर में बड़ी संख्या में मेंथा के पौधे उगते हैं, जिनका उपयोग मेन्थॉल यानी पुदीने का तेल बनाने में किया जाता है। मक्का, गन्ना और चावल भी रामपुर में उगाई जाने वाली मुख्य फसलें हैं। इनमें से अधिकांश फसलों का उपयोग, उन्हें उगाने वाले किसानों द्वारा ही भोजन के रूप में किया जाता है। इस वजह से ये फसलें बाजार में नहीं बिकतीं। रामपुर शहर में मेन्थॉल तेल का भी उत्पादन भी किया जाता है। सरकार भी मेंथा उत्पादन देती है, जिससे यहां के किसान भी उसे उगाने के प्रति आशावादी रहते हैं। हमारा रामपुर, देश में मेंथा का प्रमुख निर्यातक जिला है। भारत से सालाना लगभग 6,000 करोड़ रुपये का मेंथा विदेशों में निर्यात किया जाता है। इसमें अकेले रामपुर 1750 करोड़ का योगदान देता है। रामपुर में कई किसान और श्रमिक इस उद्योग से जुड़े हुए हैं। वे मेंथा उगाते हैं, उसका तेल निकालते हैं और उसे अच्छी कीमतों पर बेचते हैं। रामपुर में मेंथा ऑयल से मेन्थॉल बनाने के 14 प्लांट भी हैं, जिनमें 5 निर्यातक प्लांट हैं। यहां के उत्पादों का निर्यात अमेरिका (America), इटली (Italy), स्पेन (Spain), जर्मनी और ब्राजील (Germany And Brazil) जैसे देशों में किया जाता है। मेंथा का उपयोग दवा, साबुन और सैनिटाइजर बनाने में किया जाता है। आपको बता दें कि मेन्थॉल का उपयोग दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों, मिठाइयों, पेय पदार्थों, सिगरेट आदि में सुगंध के लिए उपयोग किया जाता है। इसका तेल, (जिसे अक्सर नीलगिरी के तेल के साथ मिलाया जाता है) का उपयोग दर्द या गैस से राहत और गठिया के इलाज जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/32awb2mv
https://tinyurl.com/3bn4dy74
https://tinyurl.com/yw2afay8
https://tinyurl.com/2fsjd6js

चित्र संदर्भ
1. खेत में खड़े बैलों और ट्रैक्टर को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
2. एक पारंपरिक हल की जोत को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
3. खेत जोतने की तैयारी करते किसानों को दर्शाता चित्रण (Collections - GetArchive)
4. खेतों में खड़े कंबाइन हार्वेस्टर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. पुदीने के खेत को दर्शाता चित्रण (Hippopx)

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