भक्ति काव्य रस की एक अनुपम कृति है, राष्ट्रकवि रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित ‘गीतांजलि’ काव्यसंग्रह

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09-05-2023 10:00 AM
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भक्ति काव्य रस की एक अनुपम कृति है, राष्ट्रकवि रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित ‘गीतांजलि’ काव्यसंग्रह

आज 9 मई के दिन हम महान बंगाली कवि, लेखक, चित्रकार, संगीतकार और दार्शनिक रबिन्द्रनाथ टैगोर की जयंती मना रहे हैं। हालांकि, ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, रबिन्द्रनाथ टैगोर का जन्म दिवस 7 मई को मनाया जाता है किंतु जैसा कि वह मूल रूप से बंगाल से थे और उनका जन्म बंगाली कैलेंडर के अनुसार बंगाली महीने बोइशाख (২৫শে বৈশাখ) के 25वें दिन (1861 ई.) को हुआ था, जो इस वर्ष 9 मई अर्थात आज के दिन है। रबिन्द्रनाथ टैगोर ने केवल आठ साल की उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था और सोलह साल की उम्र में उन्होंने लघु कथाओं और नाटकों में भी महारत हासिल कर ली थी। रबिन्द्रनाथ टैगोर एक समाज सुधारक भी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अपना योगदान दिया था। वर्ष 1931 में, उन्हें साहित्य श्रेणी में ‘नोबेल पुरस्कार’ (Nobel Prize) से सम्मानित किया गया। वे इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले न केवल पहले भारतीय बल्कि पहले गैर-यूरोपीय (Non-European) गीतकार थे। कविता के क्षेत्र में उनके विलक्षण योगदान की वजह से उन्हें ‘बंगाल के कवि’ (The Bard of Bengal) भी कहा जाता है। 1912 में रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखी गई “गीतांजलि” भक्ति कविताओं की एक कड़ी है। गीतांजलि को अपने भक्ति काव्य रस के कारण ‘गीत प्रसाद’ भी कहा जाता है। गीतांजलि में प्रेम एक प्रमुख विषय है जो सभी छंदों को जोड़ता है। यह काव्य संग्रह हमें भक्ति परंपरा की याद दिलाता है।
भारत में सातवीं शताब्दी में संगीत और नृत्य के साथ भक्ति पंथ द्वारा पूजा का प्रचार किया गया जिसे “भक्ति आंदोलन” के रुप में भी जाना जाता है। भक्ति कवि ईश्वर के प्रति समर्पण और भगवान के नाम की स्तुति में विश्वास करते थे। भक्ति शब्द का अर्थ उस तीव्र प्रेम से है, जो कोई व्यक्ति अपने ईश्वर के लिए महसूस करता है; या ऐसे भाव से है जिसमें हम दिव्यता के प्रति सर्वोच्च लगाव महसूस करते हैं।
दरअसल, भक्ति योग के दो पहलू थे – निर्गुण भक्ति और सगुण भक्ति। निर्गुण भक्ति में, ईश्वर या सर्वोच्च शक्ति एक निराकार ऊर्जा या शक्ति थी जिसे गहराई से महसूस किया जाना था। इन कवियों ने दैनिक गतिविधियों को ईश्वर की सेवा के रूप में वर्णित किया है। जबकि, सगुण भक्ति परंपरा एक ऐसे ईश्वर में विश्वास करती है जिसका मानव रूप और व्यक्तित्व अलौकिक गुणों से संपन्न है। बंगाल में, कवियों द्वारा प्रारंभ से ही विष्णु के अवतार कृष्ण के प्रति गहरे धार्मिक भक्ति भाव व्यक्त किए गए हैं। बारहवीं शताब्दी के अंत में, कवि जयदेव से लेकर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु तक, सभी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने भक्ति भाव को व्यक्त किया है। गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर इन कवियों द्वारा व्यक्त किए गए भक्ति भाव से अछूते नहीं रहे। वैष्णव संप्रदाय के कवियों द्वारा रचित प्राचीन गीतात्मक कविताओं के संग्रह को पढ़कर वे सदैव आनंदित हुए।
हालांकि, “गीतांजलि” में भगवान का कोई नाम या निवास नहीं है; और किसी विशिष्ट भगवान के साथ इसकी पहचान भी नहीं की जा सकती है। गीतांजलि में भगवान को कभी एक प्यार करने वाले पिता के रूप में दिखाया जाता है, जो हमारी परवाह करता है और कभी एक प्रेमी के रूप में भी दिखाया जाता है, जो हमसे प्रतिफल पाने की प्रतीक्षा कर रहा है। गीतांजलि में संगीत, रचनात्मकता के झरनों की अभिव्यक्ति बन जाता है, जो आत्मा से बहता है। ऐसा संगीत भक्तों को भगवान की महिमा का गान करने की अनुमति देता है। मनुष्य, ईश्वर के प्रेम को धरती पर लाने का एक साधन है। और संगीत ईश्वर की ओर से एक उपहार, एक दिव्य अभिव्यक्ति है, जिसे ईश्वर की कृपा के बिना महसूस नहीं किया जा सकता है। कवि “गाने के आनंद से मंत्रमुग्ध” है, क्योंकि वह जानता है कि वह केवल एक गायक के रूप में ही भगवान के सामने खड़ा है। टैगोर का मानना था कि मनुष्य से प्रतिफल के बिना ईश्वर का प्रेम अधूरा है। गीतांजलि के माध्यम से कवि रबिन्द्रनाथ, "गीत के दूर तक फैले पंख के साथ भगवान के अगम्य चरणों को छूने की इच्छा रखते हैं। कवि का मानना है कि “संपूर्ण जीवन ईश्वर द्वारा रचित संगीत है। संगीत का प्रकाश संपूर्ण दुनिया को रोशन करता है।”बौद्ध धर्म और बॉल धर्म (Baul) जैसे स्थानीय लोक धर्मों की अभिव्यक्तियों से प्रभावित, टैगोर ने बॉल लोक गीतों से अपनी कई छवियों को आकार दिया था। बॉल धर्म के सरल गीत, टैगोर को ईश्वर के प्रति प्रेम की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति लगते थे। साथ ही, बॉल, नश्वर मानव शरीर को ईश्वर का मंदिर मानते थे। टैगोर गीतांजलि में वैष्णव धर्म पर भी अपने विचार व्यक्त करते हैं। गीतांजलि में टैगोर के भगवान, धार्मिक उत्साह के असाधारण प्रदर्शनों की तुलना में भक्ति के सरल भावों को पसंद करते हैं।
कर्णप्रियता, समर्पण, प्रभु के लिए प्रेम, प्रभु के लिए स्तुति, प्रभु से वियोग में पीड़ा और अपने भीतर ईश्वर की अंतिम अनुभूति, ये सभी भक्ति कविता की विशेषताएं हैं। और इस प्रकार गीतांजलि भक्ति की एक अनुपम कृति है। अतः हमारा आपसे अनुरोध है कि जब भी आपको पर्याप्त समय मिले, तब ज़रूर गीतांजलि काव्य संग्रह पढ़े।

संदर्भ
https://bit.ly/3APW7FT
https://bit.ly/3NDHzAM
https://bit.ly/4224jyx

चित्र संदर्भ
1. राष्ट्रकवि रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित ‘गीतांजलि’ काव्यसंग्रह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia - Amazon)
2. रबिन्द्रनाथ टैगोर के श्याम स्वेत चित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. चीनी भाषा में गीतांजलि को संदर्भित करता एक चित्रण (讀書共和國)
4. 1913 के साहित्य में नोबेल पुरस्कार के विजेता की इंडिया स्टाम्प-1952 को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. रबिन्द्रनाथ टैगोर की एक अन्य रचना नौका डूबी को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)

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