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मिट्टी की नमी भूमि की सतह और यहां होने वाली सभी गतिविधियों को समझने की कुंजी है। इनमें कृषि, जल विज्ञान, मौसम और मानव स्वास्थ्य आदि शामिल हैं। लेकिन पहले यह समझना जरूरी है कि मिट्टी की नमी क्या है। मिट्टी की नमी पृथ्वी की सतह पर, जल तालिका के ऊपर, मिट्टी और कार्बनिक पदार्थों के मैट्रिक्स(matrix) के भीतर उपलब्ध पानी है।मिट्टी की नमी को "वडोज़ ज़ोन" (vadose zone) में मिट्टी में जमा पानी माना जाता है। यह मिट्टी की वह परत है जिसमें भूमि के आधार पर आमतौर पर सतह से लेकर 1 मीटर की गहराई तक मिट्टी में हवा और पानी का मिश्रण होता है।फसलों को बढ़ने के लिए पर्याप्त पानी की जरूरत होती है, लेकिन सही मात्रा में। बहुत अधिक मिट्टी की नमी का मतलब है कि किसान अपनी फसलों का प्रबंधन आसानी से नहीं कर सकते हैं।
मिश्रित भू-वातावरण में होने वाली प्रक्रियाओं के माध्यम से जलवायु की चरम सीमाओं को बदलने में मिट्टी की नमी (एसएम) महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कृषि में मिट्टी की नमी एक महत्वपूर्ण पैरामीटर या घटक है। यदि पानी की कमी या अधिकता हो, तो पौधे मर सकते हैं, या अस्वस्थ्य स्थिति में हो जाएंगे । साथ ही, यह आंकड़े कई बाहरी कारकों, मुख्य रूप से मौसम की स्थिति और जलवायु परिवर्तन पर भी निर्भर करते हैं।
हाल के कुछ दशकों में दुनिया के प्रमुख भूमि क्षेत्रों में तापमान चरम सीमा (ExT) में गंभीर वृद्धि देखी गई है। तापमान वृद्धि वाले इन क्षेत्रों की सूचि में भारतीय उपमहाद्वीप भी है। हाल के अध्ययनों ने अनुमान लगाया है कि 21 वीं शताब्दी के अंत में भारत में तापमान की उच्च तीव्रता का प्रकोप अधिक सामान्य या एक आम घटना की भांति होने वाला है। इस वजह से भारतीय क्षेत्र ने अप्रैल-मई-जून के पूर्व-मानसूनी महीनों के दौरान अत्यधिक गर्मी की स्थिति का अनुभव किया। इसके अलावा, तापमान चरम सीमा में वृद्धि पारिस्थितिकी तंत्र, मानव स्वास्थ्य, कृषि और अर्थव्यवस्था, पर गंभीर प्रभाव डालती है।
मिट्टी की नमी की स्थिति के दो प्रमुख कारक हैं, सूखा और बाढ़ । जब मिट्टी की नमी स्थानीय पौधों के मुरझाने के बिंदु से नीचे चली जाती है, तो सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है, पौधे मुरझाने लगते हैं और मर भी जाते हैं । सूखे की स्थिति हवा के कटाव का कारण भी बन सकती है ।
दूसरी चरम स्थिति तब होती है जब मिट्टी जल संतृप्ति तक पहुंच जाती है। पानी मिट्टी में नीचे जाने के बजाय सतह पर बहना शुरू कर देता है। जब यह वर्षा के साथ मिलता है, तो बाढ़ आ जाती है।कभी-कभी बाढ़ तब आती है जब मिट्टी भारी वर्षा को सोख नहीं पाती है। थलचर प्रवाह द्वारा बाढ़ मिट्टी के जल अपरदन को प्रभावित करती है।
जब सौर ऊर्जा मिट्टी की सतह से टकराती है, तो अधिकांश ऊर्जा, पानी और मिट्टी की नमी को वाष्पीकृत करने लगती है। पानी के वाष्पीकरण में ऊर्जा का यह उपयोग (हमारे पसीने की तरह) सतह को तब तक गर्म होने से रोकता है जब तक कि मिट्टी की सारी नमी वाष्पित न हो जाए। इस तरह, मिट्टी की नमी एक ठंडी जलवायु को बनाए रखने में मदद करती है। मिट्टी की नमी भूमि की सतह के लिए थर्मोस्टेट (thermostat) है। भूमि की सतह के ताप पर इस प्रभाव का अर्थ है कि मिट्टी की नमी की मात्रा का मौसम प्रणालियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
मिट्टी की नमी का प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर भी देखा जा सकता है। सूखे की स्थिति के दौरान, हवाएँ, मिट्टी में धूल के कणों को ढीला कर सकती हैं और उन्हें हवा में छोड़ सकती हैं। यह वायु की गुणवत्ता को कम करता है, जोकि वातस्फीति, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा से पीड़ित लोगों को प्रभावित करता है। सूखी मिट्टी से हवा के कटाव से फंगलबीजाणु और मोल्ड भी हो सकते हैं, जिससे वैलीफीवर(valley fever) जैसी अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। अन्य मानव सुरक्षा मुद्दे भी मिट्टी की नमी की कमी से उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे कि धूल, नेविगेशन (navigation) और परिवहन के लिए दृश्यता के लिए खतरा हो सकती है।
यह मिट्टी की नमी का हमारे दैनिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का संक्षिप्त अवलोकन है। मिट्टी की नमी का कुशल प्रबंधन और मिट्टी की नमी की स्थिति की निगरानी दोनों ही वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के अध्ययन के बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जो इसके महत्व को पहचानते हैं।
आईआईटी (IIT) गांधीनगर और भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के एक संयुक्त अभ्यास में, देश भर में मिट्टी की नमी का पूर्वानुमान लगाया था। रबी मौसम के लिए मिट्टी की नमी का पूर्वानुमान महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सीधे फसल की वृद्धि को प्रभावित करता है। पूर्वानुमान से यह पता लगाने में भी मदद मिलती है कि क्षेत्र के लिए कितनी सिंचाई की आवश्यकता है। वर्तमान पूर्वानुमान से पता चला है कि गुजरात, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु और दक्षिणी आंध्र प्रदेश में मिट्टी की नमी में कमी होने की संभावना है।रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि गर्म द्वीपों (Urban heat islands) के कारण शहरों में गर्मी की लहरें तेज होंगी, भले ही ग्लोबलवार्मिंग (Global warming) 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक सीमित हो। इसके अलावा, 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि पर, गर्मी से तनावग्रस्त होते बड़े शहरों की संख्या, दोगुनी हो जाएगी, संभावित रूप से 2050 तक 350 मिलियन से अधिक लोगों को घातक गर्मी और तनाव का सामना करना पड़ेगा।
संदर्भ:
https://go.nature।com/3Yl7u1J
https://bit.ly/3YgTo1m
https://bit.ly/3mwwwgY
चित्र संदर्भ
1. खेत में काम करते किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण (pixahive)
2. वडोज़ ज़ोन" को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. मिट्टी के प्रकार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मिट्टी से फूटते अंकुरों को संदर्भित करता एक चित्रण (maxpixel)
5. मिट्टी की नमी मीटर के साथ नमी सामग्री के मूल्यांकन को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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