अब उत्तरप्रदेश में भी फैलेगी चंदन की महक, क्यों कि रामपुर के किसानों ने शुरू की है चंदन की खेती

पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें
06-03-2023 10:44 AM
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अब उत्तरप्रदेश में भी फैलेगी चंदन की महक, क्यों कि रामपुर के किसानों ने शुरू की है चंदन की खेती

चंदन का पेड़, जिसका वैज्ञानिक नाम सैंटेलम एल्बम (Santalum Album) है, अपने गुणों और चिकित्सीय मूल्य के कारण शायद धरती की सबसे महंगी लकड़ी वाला वृक्ष है। चूंकि इसकी लकड़ी की खूशबू इतनी मनमोहक होती है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी मांग और कीमत बहुत अधिक है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी लकड़ी की कीमत 10,000 रुपए प्रति किलो तक होती है। भारत में यह पेड़ ज्यादातर दक्षिण भारत, खासकर कर्नाटक और तमिलनाडु, में बहुतायत में होते है हालाँकि, ये पेड़ उत्तरी और अन्य क्षेत्रों में भी उगाए जा सकते हैं। इस वृक्ष को बढ़ने के लिए बहुत कम पानी की जरूरत होती है। इसके पेड़ पर साल भर फल लगते रहते हैं, जो कि तोते और कोयल जैसे पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अन्य पेड़ों की तरह ये वृक्ष भी कार्बन सिंक (Carbon Sink) के रूप में कार्य करते हैं तथा ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं। इन वृक्षों की विशेषताओं एवं कीमत को जानकर शायद आप भी इन बेहद महंगे चंदन के पेड़ों की खेती करने के बारे में सोच रहे होंगे। लेकिन यह इतना आसान नहीं है। ज्यादातर किसान भी इसे नहीं उगाते हैं क्योंकि भारत सरकार द्वारा सभी राज्यों में इन पौधों को उगाने पर प्रतिबंध लगाया गया था। हालांकि, अब भारत के कुछ राज्यों में चंदन के पेड़ों की खेती को वैध कर दिया गया है और कई राज्यों में इन पेड़ों को उगाने की शुरूआत भी कर दी गई है । बाजार में चंदन के पेड़ों की कई किस्में उपलब्ध हैं, लेकिन भारतीय चंदन और ऑस्ट्रेलिया (Australia) के चंदन को मुख्य रूप से पसंद किया जाता है। बाजार में इन दोनों किस्मों का आश्चर्यजनक व्यावसायिक मूल्य है। भारत में चंदन कई रंगों में, मुख्य रूप से सफेद, पीले और लाल रंगों में, उपलब्ध है। लकड़ी के अलावा इस वृक्ष की पत्तियां भी महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि इनका उपयोग जानवरों के लिए चारे के रूप में किया जाता है। इसके अलावा, इनका उपयोग जैविक खाद के रूप में भी किया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश के लिए यह बहुत खुशी की बात है कि अब यहां के खेतों में भी चंदन की खुशबू महकने वाली है। रामपुर के किसानों ने अपनी आय बढ़ाने के लिए चंदन की खेती शुरू कर दी है। साथ ही वे अब दूसरे किसानों को भी चंदन की खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। रामपुर के शहजादनगर थानाक्षेत्र के ग्राम ककरौआ के निवासी रमेश कुमार ने बैंगलोर के ‘इंस्टिट्यूट ऑफ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ (Institute of Wood Science and Technology) संस्थान से चंदन की खेती के बारे में प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने खेतों में इसके बीजों का रोपण किया। शीघ्र ही यह बीज पौधों में रोपित हो गए । रमेश कुमार की सफलता को देखकर अब मुरादाबाद के किसान भी चंदन की खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पहले चंदन की खेती प्रतिबंधित थी, लेकिन 2017 में सरकार ने इसे इस शर्त के साथ प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया कि चंदन के पेड़ों की लकड़ी को तैयार होने के बाद सिर्फ सरकार द्वारा ही खरीदा एवं निर्यात किया जाएगा । चंदन मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है, जिसमें लाल चंदन और सफेद चंदन शामिल है। लाल चंदन की खेती केवल दक्षिण भारत के राज्यों में होती हैं, जबकि सफेद चंदन उत्तर प्रदेश में उगाया जा सकता है।
इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच (pH) मान 7.5 होना चाहिए। इसके पेड़ की ऊंचाई 18 से 20 मीटर तक होती है तथा इसे पकने में 10-12 वर्ष तक का समय लग सकता है। इसकी खेती के लिए जल सोखने वाली उपजाऊ चिकनी मिट्टी तथा 500 मिलीमीटर से लेकर 625 मिलीमीटर तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। एक एकड़ भूमि में चंदन के करीब 400 से 500 पौधे लगाए जा सकते हैं।
चंदन के पौधे को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है, इसलिए यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इसे ऐसी जगह पर न लगाएं, जहां पर पानी का भराव अधिक होता हो। चंदन का पौधा परजीवी पौधा होता है, इसलिए इसके साथ एक मेजबान (Host) पौधा लगाना जरूरी होता है। जब मेजबान पौधे की जड़ें चंदन के पौधे की जड़ों से मिलती हैं, तभी चंदन के पौधे का विकास तेजी से होता है। चंदन के पौधे को लगाने के बाद इसके आस-पास साफ-सफाई का भी विशेष ध्यान रखना होता है। इसके पौधे की कीमत 200 रुपये से लेकर 400 रुपये तक हो सकती है, जो पेड़ों की संख्या पर भी निर्भर करती है। चंदन के एक पेड़ से किसान को 25 से 40 किलो तक लकड़ी आराम से मिल जाती है। इस प्रकार किसान चंदन के एक पेड़ से पांच से छह लाख रुपये तक आसानी से कमा सकते हैं । इसकी लकड़ी का इस्तेमाल सबसे ज्यादा परफ्यूम बनाने में किया जाता है। आयुर्वेद में भी चंदन को औषधीय रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। इसके अलावा सौंदर्य प्रसाधन की वस्तुओं के निर्माण में भी यह महत्वपूर्ण है। शुरू के आठ सालों तक चंदन के पेड़ को किसी बाहरी सुरक्षा की जरूरत नहीं होती, किंतु जैसे ही पेड़ की लकड़ी पकने लगती है, और खुशबू प्रसारित करने लगती है, तब इसे संरक्षण की आवश्यकता होती है। इसके लिए किसान इसके खेत की तार से घेराबंदी करा सकते हैं, या फिर खेत के चारों तरफ पांच फिट की दीवार बनवा सकते हैं।

संदर्भ:

https://bit.ly/3SJhjFs
https://bit.ly/3ETVwoV
https://bit.ly/3YaQhYQ
https://bit.ly/3ESETKb

चित्र संदर्भ

1. चंदन की खेती को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr, wikimedia, maxpixel)
2. चंदन के पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. चंदन के बीजों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. चंदन की लकड़ी के ढेर को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)

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