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विश्व बैंक (World Bank) के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत में बाहरी देशों से लगभग 100 बिलियन अमरीकी डालर धन प्रेषण के रूप में भेजा गया, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3 प्रतिशत है । अमेरिका (America), ब्रिटेन (Britain) और सिंगापुर (Singapore) जैसे अमीर देशों में भारत के कुशल कामगार प्रवासी रहते हैं, जो भारत में विदेशी मुद्रा भेजने में विशेष योगदान निभाते हैं । भारत में बाहर से पैसा भेजे जाने वाले चार अग्रणी देशों में अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) (United Arab Emirates (UAE), ब्रिटेन और सिंगापुर शामिल हैं। प्रेषण के राज्यवार विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में आने वाले कुल प्रेषण का 58.7% केवल चार राज्यों- केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में आता है। जबकि इस प्रेषण में केरल की सबसे बड़ी हिस्सेदारी 19% है, असम, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर और झारखंड मिलकर केवल 1% का ही योगदान देते हैं। उत्तर प्रदेश में भारत के कुल आवक का लगभग 3.1% भाग आता है।
भारत से दुनिया के विभिन्न देशों में सबसे ज्यादा प्रवासी काम करने के लिए जाते हैं जिसके फलस्वरूप भारत में आने वाले प्रेषण का अनुपात भी अन्य देशों की तुलना में अधिक है एवं इसमें साल दर साल वृद्धि हो रही है। इसके अनुरूप ही, भारत में प्रेषण 2017 में 68.9 बिलियन डॉलर की तुलना में 2018 में 14% की पर्याप्त वृद्धि के साथ बढ़कर 78.6 बिलियन डॉलर हो गया । यह 2016 में 62.7 बिलियन डॉलर की तुलना में 25% की वृद्धि का भी प्रतिनिधित्व करता है। कुछ वर्षों में आयी कमी को छोड़कर 1990 के बाद से भारत में प्रेषण लगातार बढ़ा है। कुल वैश्विक प्रेषण प्रवाह में से 11.4% हिस्सा अकेले भारत को भेजा जाता है।
महामारी के बाद टीकाकरण और यात्रा की बहाली ने 2021 की तुलना में 2022 में अधिक प्रवासियों को काम फिर से शुरू करने में मदद की । जहां एक तरफ खाड़ी देशों में खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) की मूल्य समर्थन नीतियों के कारण 2022 में मुद्रास्फीति को कम रखने में सहायता मिली, वहीं दूसरी तरफ तेल की उच्च कीमतों के कारण श्रम की मांग में भी वृद्धि हुई, जिसने भारतीय प्रवासियों को प्रेषण बढ़ाने में सक्षम बनाया । भारतीय प्रवासियों ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के मूल्यह्रास (जनवरी से सितंबर 2022 के बीच 10 प्रतिशत) का लाभ उठाकर प्रेषण प्रवाह में वृद्धि की । आंकड़ों से पता चलता है कि इसी कारण संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीयों के लिए औसत घरेलू आय 2019 में लगभग 120,000 डॉलर थी, जबकि सभी अमेरिकियों के लिए लगभग 70,000 डॉलर थी।
वैश्विक स्तर पर, 2022 में वैश्विक प्रेषण प्रवाह में 4.9 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान था । 2022 में विकासशील क्षेत्रों में प्रेषण प्रवाह को कई कारकों द्वारा आकार दिया गया । जहां एक ओर मेजबान देशों की अर्थव्यवस्थाओं में विभिन्न क्षेत्रों ने कई प्रवासियों की आय और रोजगार की स्थिति का विस्तार किया, वहीं दूसरी ओर, बढ़ती कीमतों ने प्रवासियों की वास्तविक आय और प्रेषण पर प्रतिकूल प्रभाव भी डाला।
2022 की दूसरी तिमाही के दौरान प्रेषण दर 3 प्रतिशत के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) से भी दोगुने से अधिक रही। विश्व बैंक के ‘प्रेषण मूल्य विश्वव्यापी डेटाबेस’ (Remittance Price Worldwide Database) के अनुसार, भारत में अधिक प्रेषण प्रवाह का एक प्रमुख कारण 2022 की दूसरी तिमाही में वैश्विक स्तर पर 200 डॉलर भेजने की 6 प्रतिशत औसत लागत थी, जो पिछले साल के समान ही है। यह लागत विकासशील देशों में दक्षिण एशिया में सबसे कम लगभग 4.1 प्रतिशत थी, जबकि उप-सहारा अफ्रीका में उच्चतम औसत लागत लगभग 7.8 प्रतिशत थी । हालांकि 2023 में प्रेषण की वृद्धि दर में 2% की कमी होने का अनुमान है , क्योंकि उच्च आय वाले देशों में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि धीमी हो रही है। यूक्रेन (Ukraine) में युद्ध समाप्ति की अस्थिरता, अस्थिर तेल की कीमतों और मुद्रा विनिमय दरों, और प्रमुख उच्च-आय वाले देशों में अपेक्षा से अधिक गहरी गिरावट जैसे जोखिमों के साथ दक्षिण एशिया के लिए, प्रेषण प्रवाह की दर के 0.7 प्रतिशत तक धीमा होने का अनुमान है।
प्रवासी श्रमिक अपने मेजबान देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इसे विश्व बैंक भी महत्वपूर्ण मानता है ।अतः मेजबान देशों के पास इन प्रवासी श्रमिकों कीमदद करने के लिए नीतियां होनी चाहिए। इस संदर्भ में विश्व बैंक के वैश्विक निदेशक माइकल रुतकोव्स्की (Michal Rutkowski) कहते हैं "प्रवासी प्रेषण के माध्यम से अपने परिवारों का समर्थन करते हुए मेजबान देशों में तंग श्रम बाजारों को कम करने में मदद करते हैं। समावेशी सामाजिक सुरक्षा नीतियों ने श्रमिकों को कोविड-19 (COVID-19) महामारी द्वारा बनाई गई ‘आय और रोजगार अनिश्चितताओं’ का सामना करने में मदद की है । ऐसी नीतियों का प्रेषण के माध्यम से वैश्विक प्रभाव पड़ता है और इसे जारी रखा जाना चाहिए।”
योग्यता और गंतव्यों में संरचनात्मक बदलाव ने विशेष रूप से सेवाओं में उच्च-वेतन वाली नौकरियों से जुड़े प्रेषण में वृद्धि को गति दी है। महामारी के दौरान, उच्च आय वाले देशों में भारतीय प्रवासियों ने अच्छे वेतन के साथ घर से काम किया । महामारी के बाद, वेतन वृद्धि और रिकॉर्ड-उच्च रोजगार की स्थिति के कारणउच्च मुद्रास्फीति की स्थिति में प्रेषण दर में वृद्धि हुई । उच्च तेल की कीमतों और श्रम की बढ़ती मांग से भी जीसीसी देशों में भारतीय प्रवासियों को प्रेषण बढ़ाने में मदद मिलने की उम्मीद है।
प्रेषण के सकारात्मक गुणों में गरीबी में कमी, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक बेहतर पहुंच, स्वस्थ जीवन शैली, वित्तीय साक्षरता में वृद्धि और संपत्ति संचय आदि शामिल हैं। उच्च प्रेषण दर के कारण परिवारों की समग्र भलाई में भी सकारात्मक बदलाव देखा जा सकता है। लेकिन, प्रेषण के साथ मेजबान देशों पर निर्भरता भी बढ़ जाती है, जो एक जोखिम है। अमेरिका, खाड़ी क्षेत्रों और यूरोप जैसे मेजबान देशों में प्रवासियों के खिलाफ सख्त नियमों को लागू करने से भारत जैसे गंतव्य देशों में आर्थिक समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3SxN8Rz
https://bit.ly/3kxcVwQ
https://bit.ly/3IuxeTn
चित्र संदर्भ
1. पैसे के लेनदेन को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
2. एक अप्रवासी भारतीय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. 2010 में अमेरिका में एशियाई भारतीय जातीयता का दावा करने वाली जनसंख्या प्रतिशत को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. सऊदी अरब में विदेशी कर्मचारीयों में सबसे अधिक भारत से है, जिस चार्ट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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