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1857 साल के महासंग्राम के बाद दिल्ली में शायरी और कविता आदि कलाक्षेत्र का क्षय होने लगा जिस वजह से वहाँ के बहुतसे शायर, कवी और लेखक दिल्ली छोड़ कर लखनऊ और रामपुर जैसे शहर जाने लगे। वहाँ के शासक जैसे अवध नवाब, रामपुर के नवाब आदि कला के कद्रदान थे और खुद कलाकार भी थे। शायद यही वजह थी की रामपुर जल्द ही उर्दू शायारीका एक बहुत बड़ा केंद्र बन गया था। रामपुर नवाब इन शायरों को बड़ी इज्जत से मासिक आवृति, जागीर आदि इनाम देते थे। मान्यता है की रामपुर नवाबों की मेहेरनज़र और कला तथा शायरी के प्रति आसक्ति की वजह से बहुत शायर लखनऊ और दिल्ली से ज्यादा यहीं पर रहना पसंद करते थे। रामपुर राजसभा के 4 प्रमुख शायर थे जिन्हें रामपुर के अलंकार माना जाता था। इनका नाम है अमीर अहमद मीनाई, नवाब मिर्ज़ा खान दाग़, अहमद हुसैन तस्लीम और ज़मीन अली जलाल। अमीर अहमद मीनाई बहुतायता से इस्लाम और पैगम्बर मोहम्मद के बारे में कवितायें लिखते थे। उनके उर्दू शब्दकोष अमीर-उल-लुगात और सनमखाना-ए-इश्क तथा उनके ग़ज़ल के संग्रह सुबह-ए-अज़ल और शाम-ए-अवध बहुत मशहूर हैं। नवाब मिर्ज़ा खान दाग़ का लिखने का तरीका काफी सरल और सुगम था एवं कविता की भाषा स्वच्छ तथा सुरुचिपूर्ण थी। इस वजह से वे काफी प्रसिद्ध थे और उनका लेखन पढ़ना पसंद किया जाता था। वे अपने काल के सर्वोत्तम रोमानी शायर माने जाते थे। उनके चार दिवान थे: गुलजारे-दाग़, आफ्ताबे-दाग़, माहताबे-दाग़ तथा यादगारे-दाग़ और फरियादे-दाग़ ये एक खंडकाव्य था। दाग़ का नाम उर्दू के श्रेष्ठ 12 कवियों में लिया जाता है। अहमद हुसैन तस्लीम मुन्शी अमीरउल्ला इस नाम से ज्यादा जाने जाते थे और उन्होंने 8 प्रेम-उपन्यास लिखे जिसमे से दिल-ओ-जान,नाला-ए-तस्लीम आदि तथा नज़्म-ए-अरिमंद, नज़्म-ए-दिलफ्रोज़, और दफ्तर-ए-खयाल यह कवितासंग्रह भी प्रसिद्ध हैं। ज़मीन अली जलाल को मीर ज़मीन अली जलाल इस नाम से भी जाना जाता है। ये ज्यादातर छंद शास्त्र और उर्दू व्याकरण में दिलचस्पी रखते थे। उनकी लिखी सरमाया-ए-ज़बान-इ-उर्दू ये उर्दू मुहावरों की किताब है तथा मुफीद-उश-शुआरा ये उर्दू व्याकरण के जातिविभाग के बारे में है। मियां ग़ालिब को भी रामपुर के नवाबों ने बहुत सराहा था। ऐसी मान्यता है की सन 1857 की गदर के बाद नवाब युसफ अली खान के लिए उन्हें बतौर उस्ताद 100 रुपये माह पर कायम किया था। रामपुर नवाब युसूफअली खान और नवाब कल्बअली खान भी खुद शायर थे। नवाब युसूफअली के समयकाल को रामपुर संगम के नाम से जाना जाता है, क्यूंकि इसी वक़्त दिल्ली, लखनऊ और रामपुर के शायर यहाँ रामपुर में आकर बसे। नवाब कल्बअली खान के समयकाल को उर्दू-शयरी का सुवर्णकाल कहा जाता है। वे देशभर के सभी कलाकारों को एकत्र ले आये और रामपुर के दरबार में उन्हें अपनी कला प्रदर्शित करने के लिए मंच दिया। प्रस्तुत चित्र में ग़ालिब की एक किताब के साथ अर्ध-मूर्ति रखी हुई है। 1. हिस्ट्री ऑफ़ उर्दू लिटरेचर: ग्रैहम बैली 1932 2. शेर-ओ-सुखान, भारतीय ज्ञानपीठ https://goo.gl/ohjs7b 3. रामपुर स्टेट गज़ेटियर 1914 4. https://goo.gl/msF3uW
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