आदि गुरु शंकराचार्य के आशिर्वाद से बसे जोशीमठ की स्थिति देख अब जल जाए हममें पृथ्वी संरक्षण की ज्योति

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16-02-2023 10:42 AM
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 आदि गुरु शंकराचार्य के आशिर्वाद से बसे जोशीमठ की स्थिति देख अब जल जाए हममें पृथ्वी संरक्षण की ज्योति

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के चमोली जनपद में बसा “जोशीमठ” एक सुंदर, अध्यात्मिक और व्यस्त शहर है। सनातन धर्म में यह नगर, ऐतिहासिक, धार्मिक और सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य को यहीं पर कल्प वृक्ष के नीचे दिव्य ज्योति अर्थात आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई थी। किंतु दुर्भाग्य से, आज पूरा जोशीमठ नगर एक अभूतपूर्व संकट से जूझ रहा है, जिसके बारे में आप सभी ने अभी अखबारों में पढ़ा होगा तथा टीवी में भी देखा होगा। । हालांकि, कई लोगों के लिए यह स्वीकार करना बेहद कठिन हो सकता है लेकिन, वर्तमान संकट कई मायनों में प्राकृतिक न होकर मानव जनित हस्तक्षेप का परिणाम है। और यहां भूकंप जैसे हालात स्थिति को बद से बदतर बना सकते हैं। चलिए जानते हैं कैसे?
आज जोशीमठशहर के सभी नौ मोहल्लों में 723 घरों के फर्श, छत और दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं। पहली बार यहां पर अक्टूबर 2021 में कुछ ही घरों में दरारें दिखीं थी। लेकिन इस साल इमारतों में अधिक दरारें दिखाई देने के बाद, 145 परिवारों को अस्थायी रूप से सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया। किंतु अब जोशीमठ के भविष्य पर बड़ी बहस छिड़ी हुई है।
जोशीमठ के लोग जिस मौजूदा संकट का सामना कर रहे हैं, वह अप्रत्याशित हो सकता है, लेकिन शहर की नाजुक स्थलाकृति के बारे में भूवैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार चेतावनी दी जा रही थी। 1976 में ही "प्रसिद्ध" मिश्रा समिति की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था, "जोशीमठ रेत और पत्थर का भंडार है - यह मुख्य चट्टान नहीं है - इसलिए यह एक बस्ती के लिए उपयुक्त नहीं था "।
इसी तरह, 2021 रैणी गांव त्रासदी के बाद, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की 2022 की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया, "नंदा देवी पर्वत प्रणालियों के तहत आठ प्रमुख ग्लेशियर मौजूद हैं। चमोली में कुल 16 नदी बेसिन सिस्टम हैं, जिसके कारण यह क्षेत्र सबसे सक्रिय और संवेदनशील भूकंपीय क्षेत्र है।” अक्टूबर 2021 में जोशीमठ के छावनी बाजार और गांधीनगर इलाके के करीब 14-15 घरों में दरारें देखी गई थी जिसके बाद ‘जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति’ द्वारा कस्बे में विरोध प्रदर्शन किया गया था।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मुद्दे को गंभीरता से लेने में सरकार ने 14 महीने बर्बाद कर दिए। अगर उस समय कुछ किया गया होता, तो हम आज जोशीमठ को बचा लेते।''
‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (Indian Space Research Organization (ISRO) ने अपनी एक रिपोर्ट में पहले कहा था कि 27 दिसंबर, 2022 से 8 जनवरी, 2023 के बीच जोशीमठ शहर जमीन में 5.4 सेमी तक धंस गया है । हालांकि, बाद में रिपोर्ट और उपग्रह छवियों को इसरो की वेबसाइट से हटा दिया गया था। ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (National Disaster Management Authority (NDMA) ने भी जोशीमठ में सर्वेक्षण और डेटा संग्रह से जुड़े सभी विभागों और संगठनों को निर्देश दिया है कि वे मीडिया से बातचीत न करें या सोशल मीडिया (Social Media) पर कोई जानकारी साझा न करें। जोशीमठ भारत की ‘भूकंपीय क्षेत्रीकरण योजना’ (Seismic Zoning Plan) के उच्च जोखिम वाले क्षेत्र ‘जोन V’ (Zone V) में स्थित है। यह एक ऐसा भूकंपीय क्षेत्र होता है, जहां क्षेत्र के भूविज्ञान के कारण भूकंप आने की संभावना उच्च होती है। ‘जर्नल ऑफ द इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर द प्रिवेंशन एंड मिटिगेशन ऑफ नेचुरल हैज़र्ड्स’ (Journal of the International Society for the Prevention and Mitigation of Natural Hazards) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का लगभग 65% क्षेत्रफल उच्च से बहुत उच्च भूकंपीय क्षेत्रों में आता है।
भारत के ‘भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र’ (Seismic Zoning Map) के 2002 वाले संस्करण के अनुसार, पिछले भूकंपों के दौरान तीव्रता के स्तर के आधार पर देश में भूकंप-प्रवण क्षेत्रों को चार क्षेत्रों या ज़ोन (II, III, IV और V ) में विभाजित किया गया है। हालांकि इससे पहले भी कई अन्य भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र प्रचलन में रहे थे। सबसे पहले 1934 में नेपाल-भारत भूकंप के बाद भारत का पहला ‘राष्ट्रीय भूकंपीय क्षेत्रीकरण मानचित्र’ 1935 में ‘भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण’ (Geological Survey of India) द्वारा संकलित किया गया था।
1962 में, ‘भारतीय मानक ब्यूरो’ (Bureau of Indian Standards (BIS) ने भारत का एक और भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र प्रकाशित किया। यह नक्शा देश में भूकंप के केंद्र को चिह्नित करता है। 1967 तक, भूकंपविज्ञानी यही मानते थे कि “भारत के अधिकांश डेक्कन पठार और प्रायद्वीप भूकंपीय गतिविधि से मुक्तहैं।” , अर्थात वहां पर भूकंप नहीं आ सकते थे। हालाँकि, 1967 के दौरान ‘कोयना पनबिजली परियोजना’ (Koyna Hydro Electric Project) में 6.3 तीव्रता वाले भूकंप से हजारों लोगों की जान चली गई और कितने घायल हो गए। इस घटना से सबक लेते हुए 1970 में भारत के भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र में बड़े संशोधन किये गए।
1970 के नक्शे में ‘व्यापक तीव्रता पैमाना -64’ (Comprehensive Intensity Scale (CIS-64) के साथ संशोधित मर्केली इंटेंसिटी (Modified Mercalli Intensity (MMI) पैमाने पर आधारित पांच ज़ोन (I, II, III, IV और V) शामिल किये गए। MMI पैमाना लोगों, वस्तुओं और इमारतों पर भूकंप के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, किसी विशिष्ट स्थान पर भूकंप से झटकों की तीव्रता का अनुमान लगाता है। मानचित्र के 1970 के संस्करण में एक बड़ा बदलाव किया गया जिसके तहत ज़ोन 0 को नक्शे से हटा दिया गया और ज़ोन V और VI का आपस में विलय कर दिया गया था। 1984 तक, भारत का मुख्य भूकंपीय कोड ‘IS 1893’ ही था, और सभी भूकंपीय क्षेत्र के नक्शे इसी पर आधारित थे। हालांकि, 1966, 1970, 1975 और 1984 में इस कोड को संशोधित किया गया था, किंतु 1991 में यह निर्णय लिया गया कि IS 1893 को विविध भागों में विभाजित किया जाएगा। 1993 में महाराष्ट्र राज्य के लातूर जिले में तीव्रता IX (MMI-CIS-64 पैमाने पर) का भूकंप आया था। रिएक्टर पैमाने पर 6.3 तीव्रता वाले इस भूकंप ने हजारों लोगों की जान ले ली थी। यह भूकंप ऐसे क्षेत्र में आया था जिसे जोन I अर्थात कम जोखिम वाले क्षेत्र में रखा गया था। इससे सबक लेते हुए भारत के भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र में और भी संशोधन किये गए। 2002 में भारत का नवीनतम भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र केवल चार क्षेत्रों (II, III, IV, और V) के साथ जारी किया गया था। आज देश का लगभग 11% क्षेत्र ज़ोन V में, 18% ज़ोन IV में, 30% ज़ोन III में और शेष क्षेत्रफल ज़ोन II में आता है।
पद्मश्री विजेता, भारतीय पृथ्वी वैज्ञानिक और भूकंपविज्ञानी हर्ष कुमार गुप्ता जी के अनुसार हिमालय की अधिकांश चट्टानें अवसादी (Sedimentary) हैं। धीरे-धीरे भारतीय टेक्टोनिक प्लेट (Tectonic Plate), यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट (Eurasian Tectonic Plate) के नीचे जा रही है। यह हलचल हर साल 4-5 सेंटीमीटर की दर से होती है। इस प्रकार हिमालय हर साल 1-2 सेंटीमीटर की दर से बढ़ रहा है। और यह प्रक्रिया लगातार चलती भी रहेगी। टेक्टोनिक प्लेटों के आपस में घिसाव से भूकंप के रूप में ऊर्जा बाहर निकलती है।
हिमालयी सीमांत क्षेत्र, जहां आज जोशीमठ स्थित है, अतीत में कई भूकंप देख चुका है। आज के हिमाचल प्रदेश में 1905 के दौरान एक बड़ा भूकंप आया था, इसमें 30,000 लोग मारे गए थे। हालांकि, 1950 के बाद से ऐसा दोबारा नहीं हुआ है। लेकिन अगला बड़ा भूकंप कहां और कब आ जाए किसी को पता नहीं। हर्ष कुमार गुप्ता जी के अनुसार, “हम छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास करते रहते हैं, लेकिन बड़ी समस्याओं को नज़रअंदाज या अनदेखा कर देते हैं। आज भूकंप और खतरों के साथ जीने की कला सीखना बेहद जरूरी हो गया है, लेकिन इस तरफ हम बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहे हैं।“

संदर्भ
https://bit.ly/3ljgy9u
https://bit.ly/3YFgfnU
https://bit.ly/3li1XLt
https://bit.ly/3xg8Xvm

चित्र संदर्भ
1. जोशीमठ शहर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. जोशीमठ की एक सुबह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत का भूकंप जोखिम क्षेत्र मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारत भूकंप जोन को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
5. जोशीमठ में तपोवन को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)

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