फैशन उद्योग में एक व्यवहार्य विकल्प: रेशम के कीड़े की हत्या किए बगैर बना “अहिंसा सिल्क”

तितलियाँ व कीड़े
15-02-2023 11:28 AM
फैशन उद्योग में एक व्यवहार्य विकल्प: रेशम के कीड़े की हत्या किए बगैर बना “अहिंसा सिल्क”

अक्सर रेशम का नाम सुनते ही जहन में एक कोमल और मखमली अहसास सा होने लगता है, क्योंकि रेशम से बने कपड़े की बात ही कुछ और होती है । रेशम के धागे के निर्माण के दौरान रेशम के कीटों को मार दिया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है “अहिंसा सिल्क” के नाम ने अब उन लोगों के बीच अपनी जगह बना ली है जो जीवहत्या के डर से रेशम नहीं पहनते थे।
रेशम का उत्पादन कैसे किया जाता है यह रहस्य एक हजार से अधिक वर्षों तक प्राचीन चीन द्वारा संरक्षित रखा गया था, जो अपने एकाधिकार को छोड़ने के लिए अनिच्छुक था । उस समय यह कपड़ा सबसे मूल्यवान वस्तुओं में से एक था।उस युग में, रेशम का मूल्य सोने के मूल्य के बराबर था। कपास के विपरीत, जो पौधे के तंतुओं से बनता है , रेशम, रेशम के कीड़ों की लार से बना एक प्रोटीन फाइबर होता है, जिसे वैज्ञानिक रूप से ‘बॉम्बिक्स मोरी मोथ’ (Bombyx Mori Moth) के नाम से जाना जाता है।
रेशमकीट अपने जीवनचक्र की शुरुआत में, शहतूत के पत्तों का सेवन करते है, लगभग 35 दिनों के बाद और आकार में बढ़ने के बाद, रेशम के कीड़े पास की एक टहनी पर चढ़ते हैं और अपने रेशेदार कोकून को बुनना शुरू कर देते हैं। रेशम एक निरंतर बुना हुआ रेशा होता है जिसमें फाइब्रोइन प्रोटीन (Fibroin protein) होता है और जो प्रत्येक कीड़े के सिर में दो लार ग्रंथियों से स्रावित होता है ।साथ ही इसमें एक प्रकार का गोंद भी होता है, जिसे सेरिकिन (Sericin) कहा जाता है, जो तंतुओं को मजबूत करने में मदद करता है। एक बार जब कोकून पूरा हो जाता है, तो पारंपरिक रूप से रेशम के तंतुओं को अलग करने और उनका लच्छा बनाने के लिए उन्हें गर्म पानी में डाल दिया जाता है जिससे उसमें मौजूद रेशम का कीड़ा भी मर जाता है। रेशम के कीड़ों को पालने और उनको कोकून में मारने की यह प्रक्रिया रेशम की मांग को पूरा करने के लिए सदियों से लगातार चली आ रही है। नतीजतन, हाल के वर्षों में रेशम-खेती की प्रथाओं की आलोचना की गई है, और ‘जानवरों के नैतिक उपचार के लिए लोग’ (People for the Ethical Treatment of Animals (PETA) जैसे पशु अधिकार समूहों ने रेशम पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया है।
परन्तु हाल ही में रेशम के कीड़ों को नुकसान पहुँचाए या मारे बिना रेशम की कटाई करने का एक और तरीका सामने आया है। इस पद्धति को भारत में विकसित किया गया है , और इसे अहिंसा रेशम के रूप में जाना जाता है। कभी- कभी इसे नैतिक रेशम (ethical silk), शांति रेशम (peace silk) या क्रूरता-मुक्त रेशम (cruelty-free silk) भी कहा जाता है। हालांकि, अहिंसा रेशम उत्पादन में कई पारंपरिक रेशम उत्पादन प्रथाएं शामिल हैं, लेकिन कटाई में कीड़े को मारना शामिल नहीं है। अहिंसा रेशम बनाने की प्रक्रिया दो तरीकों से होती है: पहला रेशम के कीड़े को स्वयं से बाहर निकलने दिया जाता है या कभी-कभी कोकून को काटकर खोल दिया जाता है और प्यूपा को बाहर निकलने दिया जाता है, जिससे कीट सुरक्षित रहता है।
चूँकि अहिंसा रेशम का उत्पादन करना अधिक कठिन होता है और अतिरिक्त कार्य होने के कारण इस रेशम के मूल्य में भी वृद्धि हो जाती है। फिर भी, यह लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है और इसे फैशन उद्योग में एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। भारत में रेशम को वैभव एवं समृद्धि के प्रमुख मापदंडों में से एक माना जाता है। पारिवारिक शुभ अवसरों एवं समारोहों में रेशमी वस्त्रों का प्रयोग आनंद को द्विगुणीत कर देता है। कच्चा रेशम बनाने के लिए रेशम के कीटों का पालन ‘रेशम कीट पालन’ (Sericulture) कहलाता है। इसने अब एक उद्योग का रूप ले लिया है। यह क्षेत्र सबसे अधिक श्रम प्रधान क्षेत्रों में से एक है, जो कृषि और उद्योग दोनों गतिविधियों को जोड़ता है। कृषि आधारित उद्यम होने के कारण रेशम उत्पादन ग्रामीण लोगों की आर्थिक स्थिति को आकार देने में प्रमुख भूमिका निभाता है। यह ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर मुहिया करता है। रेशम उत्पादन एक बहुचरणीय गतिविधि है जिसमें शहतूत की पत्ती का उत्पादन, रेशमकीट पालन (कोकून उत्पादन), रेशमकीट अंडा उत्पादन, रेशम की रीलिंग (यार्न उत्पादन), छपाई और रंगाई, बुनाई, परिष्करण, परिधान डिजाइनिंग, विपणन आदि शामिल हैं।
भारत में रेशम उत्पादन न केवल एक परंपरा है बल्कि एक जीवित संस्कृति भी है। पूरे देश में लगभग 52,360 गांवों में यह कार्य किया जाता है और इससे लगभग 71 लाख लोगों को रोजगार मिलता है, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे और सीमांत किसान होते हैं। प्रति हेक्टेयर शहतूत के एक खेत द्वारा ही कम से कम 12-13 लोगों के लिए रोजगार पैदा किया जाता हैं, इसलिए रोजगार की तलाश में ग्रामीण शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कम करने लगे है। वैश्विक स्तर पर रेशम के उत्पादन में भारत द्वितीय स्थान पर है, साथ ही विश्व में भारत रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। 2010-11 में ही भारत 21,000 मिलियन टन से अधिक रेशम के वार्षिक उत्पादन के साथ दुनिया में रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया था । भारत में, अनुकूल जलवायु परिस्थितियों के प्रसार के कारण, रेशम के लिए शहतूत की खेती मुख्यतया पांच राज्यों, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और जम्मू और कश्मीर में की जाती है, जबकि गैर-शहतूत रेशम का उत्पादन झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में होता है।
इसमें भी अधिकांश रेशम उत्पादन मैसूर और उत्तरी बैंगलोर में होता है। तमिलनाडु एक अन्य उभरता हुआ रेशम उत्पादन केन्द्र है जहां शहतूत की खेती सेलम, इरोड और धर्मपुरी जिलों में केंद्रित है। हैदराबाद (आंध्र प्रदेश) और गोबीचेट्टीपलायम (तमिलनाडु) में भी रेशम निर्माण की स्वचालित इकाइयों की स्थापना की गई है । रेशम उद्योग में श्रमिक बल प्रधान है, जो मुख्य रूप से भारत में 9.42 लाख से अधिक परिवारों को आजीविका प्रदान करता है, इनमें से श्रमिकों की एक बड़ी संख्या महिलाओं सहित समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित है। लगभग 71 लाख लोग वर्तमान में रेशम उत्पादन में लगे हुए हैं। व्यावसायिक महत्त्व के दृष्टिकोण से भारत में मुख्य रूप से रेशम की कुल 5 किस्में (शहतूत और गैर-शहतूत रेशम उत्पादन जैसे ओक तसर - (सावित्री, सुजाथम्मा), उष्णकटिबंधीय तसर, मूगा, एरी होती हैं जो रेशमकीट की विभिन्न प्रजातियों से प्राप्त होती हैं और विभिन्न खाद्य पौधों पर पलती हैं। भारत में रेशम उत्पादन के इतिहास की बात करे, तो हड़प्पा और चन्हुदड़ो में हाल की पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि 2450 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व के बीच, सिंधु घाटी सभ्यता के समय, , देशी रेशमकीट प्रजातियों से जंगली रेशम के धागों का उत्पादन किया जाता था। सिंधु घाटी में रेशम एक से अधिक कीट प्रजातियों एंथेरिया (Antheraea) और फिलोसैमिया (Philosamia) से प्राप्त किया जाता था। हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) के पुरातत्वविदों द्वारा रेशम के इलेक्ट्रॉन माइक्रोग्राफ को स्कैन करने से पता चला कि उस समय भी महात्मा गांधी द्वारा प्रचारित अहिंसा रेशम के समान, रेशम कीट को कोकून से बाहर निकलने के बाद कुछ रेशम काते गए थे। रेशम जैव चिकित्सा क्षेत्र में भी काफी संभावनाएं रखता है। क्योंकि यह मजबूत और रोगाणुरोधी है, रेशम का चिकित्सा में भी एक लंबा इतिहास है। हाल ही में, त्वचा पुनर्जनन में इसकी अद्भुत क्षमता का पता लगाया गया है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3lwJavX
https://bit.ly/3lzzFw0
https://bit.ly/3XkGjn7

चित्र संदर्भ
1. ‘बॉम्बिक्स मोरी मोथ’ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. रेशम कीट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ‘चौथे इंस्टार रेशमकीट लार्वाको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. खेत में बढ़ते बॉम्बिक्स मोरी वर्म्स को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. रेशम कीट के व्यवसायिक पालन को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)

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