गौर से देखिये यहां पर आर्थिक नहीं बल्कि पारिस्थितिक क्षति हुई है

समुद्र
09-02-2023 10:53 AM
गौर से देखिये यहां पर आर्थिक नहीं बल्कि पारिस्थितिक क्षति हुई है

समुद्र के पानी में तेल का रिसाव, एक प्रकार का प्रदूषण है, जिसमें मानवीय व प्राकृतिक गतिविधियों के कारण तरल पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन (Petroleum Hydro-Carbon) समुद्री पर्यावरण में घुल जाता है। महासागरों का हमारे पर्यावरण में कितना अधिक महत्व होता है यह जानने के बावजूद भी मानव महासागरों को लगातार दूषित कर रहे हैं, जिसका सीधा प्रभाव पर्यावरण पर भी पड़ता है । मानव जीवाश्म ईंधन पाने के लिए लालची बन गया है, उसकी दशा ऐसी हो गई है कि वह अपने स्वार्थ सिद्ध करने हेतु ईंधनों का लगातार दोहन कर रहा है।
उसकी ईंधनों के दोहन करने की प्यास लगातार बढ़ती ही जा रही है। समुद्र से ईंधन के दोहन के समय, हर साल लगभग 2.7 मिलियन लीटर तेल समुद्रों में बहाया जाता है, जिससे समुद्र का पानी दूषित हो रहा है, समुद्र में रहने वाले जीवो का जीवन संकट में पड़ रहा है, उनकी मौत हो रही है, और इस कारणवश पारिस्थितिक तंत्र एवं पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। मानव जीवन को बनाए रखने के लिए समुद्र अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। समुद्रों द्वारा मानव व्यापार करता है तथा भोजन एवं ऑक्सीजन प्राप्त करता है । साथ ही समुद्र जलवायु को नियंत्रित करते हैं। समुद्र अपने अंदर अनेक गुणों से परिपूर्ण हजारों प्रजातियों के जानवरों और सूक्ष्मजीवों को समेटकर उन्हें घर एवं जीवन प्रदान करते है, जो अद्भुत समुद्री पारिस्थितिक तंत्र बनाते हैं । फिर भी मानव अपनी गैर- जिम्मेदार गतिविधियों जैसे समुद्र में गंदा पानी, कचरा आदि फेंकना, के द्वारा इन जलीय वातावरणों के संतुलन को अस्थिर बनाता है । समुद्र के प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में से, तेल का रिसाव सबसे अधिक हानिकारक है ।
समुद्र के पानी में सबसे ज्यादा तेल भूमि से बहते पानी के माध्यम से आता है, जो शहरी वातावरण या औद्योगिक गतिविधियों से उत्पन्न होता है। सड़कों, राजमार्गों और पार्किंग स्थल पर वाहनों से रिसाव होकर तेल सीवेज सिस्टम या नदियों के माध्यम से महासागरों तक पहुंच जाता है, जो समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र को दूषित करता है । इसके अलावा कारखानों एवं अन्य औद्योगिक संस्थानों द्वारा भी गैर- जिम्मेदाराना ढंग से तेल या तेल के उत्पादों और अन्य खतरनाक रसायनों को ले जाने वाले पानी को समुद्र में बहा दिया जाता है । तेल टैंकर की सफाई, नाव में ईंधन भरना , समुद्री वाहनों से तेल रिसाव और परिवहन जहाजों और क्रूज जहाजों (Cruise Ship Liners) के द्वारा प्रदूषण जैसी गतिविधियों से मानव समुद्र प्रदूषण के उच्च स्तर में योगदान देते आ रहे हैं। इस प्रकार तेल रिसाव के कारणवश, चाहे वह प्राकृतिक हो या मानवजनित, समुद्र के वातावरण के लिए विनाशकारी परिणाम उत्पन्न हो रहे हैं । समुद्र तल पर गिरने वाला तेल भोजन और आश्रय के लिए समुद्र पर निर्भर मूंगा (coral) ,जानवरों और सूक्ष्मजीवों के लिए भी खतरा उत्पन्न कर देता है। तेल के संपर्क में आने वाले जानवर या तो इसकी विषाक्तता से मर् सकते हैं या अपनी प्राकृतिक सुरक्षा से समझौता कर सकते हैं। उदाहरण के लिए तेल स्तनधारियों के ताप अवरोधन गुणों और पक्षियों के पंखों की जलरोधक क्षमता को नष्ट कर देता है, जिससे वे ठंड के मौसम और डूबने के लिए अतिसंवेदनशील हो जाते हैं।डॉल्फिन और व्हेल जो तेल युक्त पानी की सतह से सांस लेती है, उनकी प्रतिरक्षा, श्वसन और प्रजनन प्रणाली को नुकसान पहुंचता है। तेल रिसाव के संपर्क में आने वाले जानवरों को तत्काल पुनर्वास और सफाई की आवश्यकता होती है ताकि उन्हें भविष्य में होने वाले नुकसान से बचाया जा सके और तेल को खाद्य श्रंखला में पहुंचने से रोका जा सके।
समुद्र का निरंतर प्रदूषित होने का एक दुष्परिणाम टार बॉल्स (Tar Balls) का समुद्रों के किनारों पर परिलक्षित होने के रूप में देखा जा सकता है । आपको बता दें कि समुद्र तटों पर काले रंग की तेल वाली चिपचिपी और बदबूदार गेंद की तरह दिखाई देने वाले गोले टार बॉल्स कहलाते है। टार बॉल अपक्षयित तेल बूंदे हैं। यह समुद्र में जमा गंदगी ही है जो निरंतर समुद्री जीवन को प्रभावित करती है। यह एक चिंता का विषय ही है कि अरब सागर में महाराष्ट्र- गुजरात तट के साथ एक अपतटीय तेल रिसाव देखने को मिल रहा है, इसके साथ ही गोवा से लेकर कर्नाटक तक के समुद्र तट गहरे, चिपचिपे टार बॉल्स से अटे पड़े हैं। टारबॉल की समस्या एक ‘मौसमी घटना’ है जो हर साल अप्रैल और सितंबर के बीच भारत के पश्चिमी तट पर सामने आती है और संरक्षणवादियों और शोधकर्ताओं के लिए चिंता का कारण बन गई है। ये अपक्षयित टार बॉल्स अक्सर तेल रिसाव के अवशेष होते हैं, लेकिन, ये टार बॉल्स कुछ ऐसे स्थानों से, जहाँ तेल धीरे-धीरे पेट्रोलियम जलाशयों के ऊपर पृथ्वी की सतह से निकल जाता है, प्राकृतिक रिसाव से भी उत्पन्न हो सकते हैं । भारत के राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान ( National Institute of Oceanography (NIO) के शोधकर्ताओं ने 2010-2011 के टारबॉल के स्रोतों का दस्तावेजीकरण किया, जिसमें उन्होंने गोवा के विश्व स्तरीय प्रतिष्ठित कोलवा समुद्र तट पर तेल टैंकरों की सफाई को गुजरात के तटों पर टारबॉल के संभावित स्रोत बताया था । इसके साथ ही 2012 में बॉम्बे हाई (BH) के अपतटीय तेल रिग से कच्चे तेल का रिसाव हुआ था। पूरे भारत में, विभिन्न तटों पर टार के गोले सामने आ रहे हैं, जिससे कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। यह पर्यावरण के लिए अच्छा संकेत नहीं है।मानव को समझना होगा, अगर वह ऐसी ही गतिविधियां करता रहा तो एक दिन हम अपने पर्यावरण को खो देंगे।

सन्दर्भ
https://bit.ly/3HWvBOj
https://bit.ly/3jwRc7x
https://bit.ly/3I1pHN4

चित्र संदर्भ
1. समुद्र में तेल रिसाव को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. तेल के संपर्क में आकर मृत बतखों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pixnio)
3. तेल रिसाव से चमक रहे समुद्र को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. तेल को साफ़ करते कर्मियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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