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भारतभूमि के दूरदर्शी और अत्यंत बुद्धिमान पूर्वजों ने आज से हजारों वर्ष पूर्व, जल अर्थात पानी की नितांत क्षमता और अगाध शक्ति को भांपकर एक छोटे से श्लोक “अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजम्” (ऋग्वेद.1-23-19)" की रचना की थी, जिसका हिंदी भाषा में अर्थ "जल में अमृत है, जल में औषधि है" होता है। लेकिन आधुनिक विज्ञान ने इस श्लोक में “विद्युत्" अर्थात बिजली या ऊर्जा शब्द भी जोड़ दिया है। यानी आज हम कह सकते हैं कि जल में अथाह ऊर्जा भी होती है, और यह वही ऊर्जा है जो कई दशकों से भारत के घर-घर को दीप्तिमान कर रही है।
पानी से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा अर्थात हाइड्रोपावर (Hydropower) कई दशकों से नवीकरणीय ऊर्जा का एक विश्वसनीय स्रोत और निम्न-कार्बन उत्सर्जन के साथ बिजली उत्पादन की रीढ़ रही है, जो आज दुनिया भर के लगभग आधे हिस्से को रौशन कर रही है। वैश्विक उर्जा उत्पादन के तहत परमाणु ऊर्जा की तुलना में जल विद्युत का योगदान 55% अधिक है। इसके अलावा पवन, सौर पीवी (Solar PV), बायोएनेर्जी (Bioenergy) और भू-तापीय उर्जा सहित अन्य सभी नवीकरणीय ऊर्जा की तुलना में तो यह योगदान काफी बड़ा है। विश्व स्तर पर पिछले 20 वर्षों के दौरान, जलविद्युत की कुल क्षमता 70% बढ़ी है।
जलविद्युत ऊर्जा के मुख्य लाभों में इसकी बाढ़ नियंत्रण क्षमता, सिंचाई सहायता और स्वच्छ पेयजल प्रदान करने की क्षमता शामिल है। उदाहरण के तौर पर, पानी के प्राकृतिक प्रवाह का उपयोग करके, जलविद्युत संयंत्र दिए गए क्षेत्र में पानी की मात्रा को विनियमित और नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं, बाढ़ के जोखिम को कम कर सकते हैं और कृषि के लिए सिंचाई स्रोत भी प्रदान कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, जलविद्युत अन्य ऊर्जा स्रोतों की तुलना में समय की बचत के साथ-साथ कम लागत वाली बिजली और स्थायित्व प्रदान करता है। हालांकि जलविद्युत संयंत्र के निर्माण की प्रारंभिक लागत अधिक हो सकती है, किंतु इसकी परिचालन लागत अपेक्षाकृत कम होती है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं के लिए कम लागत वाली बिजली पैदा होती है। इसके अतिरिक्त, जलविद्युत संयंत्रों का जीवनकाल भी लंबा होता है, जो अक्सर महत्वपूर्ण रखरखाव या मरम्मत की आवश्यकता के बिना भी कई दशकों तक चलता है। यह स्थायित्व, कम परिचालन लागत के साथ संयुक्त रूप से जलविद्युत को समय के साथ ऊर्जा का एक लागत प्रभावी स्रोत बनाता है। जलविद्युत से उत्पन्न ऊर्जा से प्रति यूनिट ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी सबसे कम होता है, और यह अपने जीवन काल में कई पर्यावरणीय लाभ भी प्रदान करता है।
आज की तारीख में हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में छह बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं चालू हैं।
2021 और 2030 के बीच जलविद्युत की वैश्विक क्षमता में 230 GW या 17%की वृद्धि होने की उम्मीद है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है, लेकिन, प्रति व्यक्ति, औसतन वैश्विक उर्जा के केवल एक-तिहाई हिस्से का ही उपभोग करता है। 2015 में उर्जा की राष्ट्रीय मांग 250,000 मेगावाट से बढ़कर 2031-32 में 800,000 मेगावाट होने का अनुमान लगाया गया था।
85,000 मेगावाट की अप्रयुक्त ऊर्जा क्षमता के साथ, जलविद्युत परियोजनाएं इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। जलविद्युत को भारत में एक परिपक्व तकनीक माना जाता है। भारत में 1897 से इसका एक लंबा इतिहास रहा है। 1947 में स्वतंत्रता के समय, भारत में 300 से कम बड़े बांध थे, फिर भी सदी के अंत तक भारत बड़े बांध निर्माण के संदर्भ में विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर आ गया था, इस दौरान 4000 से अधिक बांध बनाए गए थे। नदियों और मानसूनी बारिश की प्रचुरता के साथ भारत का भूगोल, हमारे देश को जल विद्युत उत्पादन के लिए अच्छी तरह से अनुकूल बनाता है। जलविद्युत को अक्षय ऊर्जा स्रोत माना जाता है क्योंकि यह पृथ्वी के प्राकृतिक जल चक्र पर निर्भर करता है।
जलविद्युत संयंत्र को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
1. बड़े जलविद्युत संयंत्र (Large Hydropower Plant (LHP)
2. छोटे जलविद्युत संयंत्र (Small Hydro Power Plant (SHP)
जलविद्युत की क्षमता को स्थायी रूप से बढ़ाने में सरकारों की भी अहम् भूमिका रही है। कई राज्य सरकारों ने हाइड्रोपावर में निवेश को बढ़ावा देने के लिए, नीतिगत उपायों को लागू किया है, जिसमें एचपीओ मानदंड (HPO Norms) स्थापित करना, एचपीओ के लिए एक दीर्घकालिक प्रक्षेपवक्र (Long Term Trajectory) और टैरिफ युक्तिकरण (Tariff Rationalization) जैसे उपाय शामिल हैं। उत्तराखंड सरकार द्वारा देहरादून में, बिजली के बिलों को कम करने के प्रयास के अंतर्गत 2,100 मेगावाट से अधिक की संयुक्त क्षमता वाली 20 बिजली परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने पर विचार किया जा रहा है। इसके अलावा, ‘जम्मू और कश्मीर’ और हिमाचल प्रदेश में कुल 6.8 GW की 10 जलविद्युत परियोजनाओं का भी निर्माण किया जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में, भारत सरकार ने जलविद्युत क्षमता बढ़ाने के कई प्रयास किए हैं, जिसमें 2003 में 50,000 मेगावाट की जलविद्युत योजना को विकसित करना भी शामिल है। वर्तमान में सिक्किम में 100 मेगावाट की एक परियोजना चालू की जा रही है। वहीं लगभग 4345 मेगावाट क्षमता की जलविद्युत परियोजना वर्तमान में निर्माणाधीन है। हालांकि, स्थानीय स्तर पर उत्पन्न हुई विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं के कारण कई परियोजनाओं में देरी भी हुई है या उनमें से कई को पूरी तरह से रोक दिया गया है।
विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं को पर्यावरणीय क्षति के कारण विरोध का सामना करना पड़ा है, क्योंकि इन परियोजनाओं के कारण स्थानीय आबादी को नुकसान हो सकता है तथा निर्माण के दौरान बाढ़ और भूस्खलन का खतरा भी हो सकता है।
बढती हुई मागं के कारण हाल के वर्षों में, जलविद्युत के माध्यम से बिजली पैदा करने के लिए, नदियों का दोहन भी बड़ी मात्रा में हुआ है। जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण का पर्यावरण और स्थानीय समुदायों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें निवास स्थान का छिन जाना और लोगों का विस्थापन भी शामिल है।
पर्यावरण और सामाजिक प्रभावों के अलावा, बड़े जलविद्युत बांधों से जुड़े कई अन्य नकारात्मक प्रभाव भी हैं। उदारहण के तौर पर, बांध की दीवार का निर्माण पानी के मार्ग को अवरुद्ध करता है और भूमि उपयोग में बदलाव लाता है, जिसके परिणामस्वरूप वनों और वन्य जीवन का नुकसान होता है और साथ ही स्वच्छ पानी के अभाव का भी सामना करना पड़ सकता है। जंगलों के नष्ट होने से हवा और पानी की गुणवत्ता को विनियमित करने की पृथ्वी की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप बड़े बाँध भूमि उपयोग तथा पानी के तापमान में परिवर्तन के कारण जलीय जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
इन नकारात्मक प्रभावों के बावजूद, सरकार ने एलएचपी बांधों के निर्माण को यह कहकर उचित ठहराया है कि इन परियोजनाओं से होने वाला लाभ, इनके लिए चुकाई गई लागत से अधिक हैं। किंतु इसके बावजूद सरकारों और नीति निर्माताओं के लिए इन प्रभावों पर विचार करना और उन्हें कम करने के उपाय लागू करना बेहद जरूरी है।
संदर्भ
https://bit.ly/3I9JYQL
https://bit.ly/3i2NSjP
https://bit.ly/3Cc00WD
चित्र संदर्भ
1. जल विद्युत परियोजना को संदर्भित करता एक चित्रण (GetArchive)
2. करछम, किन्नौर में करछम वांग्टू परियोजना के बांध स्थल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जल टरबाइन को दर्शाता एक चित्रण (Wikiwand)
4. भारत की ऊर्जा खपत को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पेरिंगालकुथु बांध भारत के केरल राज्य के त्रिशूर जिले में चलक्कुडी नदी पर बना एक कंक्रीट का बांध है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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