सूर्य ग्रहण को लेकर आज भी कायम हैं कुछ अंधविश्वास और मान्यताएं

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
26-10-2022 10:18 AM
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सूर्य ग्रहण को लेकर आज भी कायम हैं कुछ अंधविश्वास और मान्यताएं

25 अक्टूबर 2022 को, आंशिक सूर्य ग्रहण था जिसे यूरोप, पश्चिमी एशिया और पूर्वोत्तर अफ्रीका के कुछ हिस्सों में देखा गया । इस खगोलीय घटना को देश के पश्चिमी और उत्तरी हिस्सों में दोपहर में बेहतर ढंग से देखा गया । आंशिक ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सीधे सूर्य और पृथ्वी के बीच से गुजरता है। आंशिक ग्रहण के दौरान उतना अंधेरा नहीं होता जितना कि पूर्ण ग्रहण के दौरान होता है, क्योंकि आंशिक ग्रहण सूर्य के प्रकाश को आंशिक रूप से अवरुद्ध करता है। इसके बाद केवल 2032 में ही एक अन्य आंशिक सूर्य ग्रहण होगा जिसे भारतीय देख पाएंगे। नासा (NASA) के अनुसार सूर्य ग्रहण चार प्रकार के होते हैं, पूर्ण सूर्य ग्रहण, कुंडलाकार सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण और संकर सूर्य (हाइब्रिड hybrid) ग्रहण।
1: पूर्ण सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच से गुजरता है, जिससे सूर्य का प्रकाश पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाता है।
2: कुंडलाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पूरी तरह से सूर्य को आच्छादित करता है।
3: आंशिक सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच से गुजरता है, लेकिन सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी पूरी तरह से संरेखित नहीं होते हैं। सूर्य का केवल एक भाग ही ढका हुआ दिखाई देगा, जो इसे अर्धचंद्राकार आकार देता है।
4: हाइब्रिड सूर्य ग्रहण: एक हाइब्रिड ग्रहण एक दुर्लभ प्रकार का सूर्य ग्रहण है जो चंद्रमा की छाया के पृथ्वी की सतह पर जाने के रूप में अपना स्वरूप बदलता है। पूरे मानव इतिहास में, सूर्य ग्रहण का बहुत महत्व है, यह अक्सर शगुन या दैवीय चेतावनी या नकारात्मक संकेत के रूप में देखा जाता है। शास्त्रों में भी ग्रहण से जुड़ी कई बातें कहीं गई है। भारत में ग्रहण को लेकर कई अंधविश्वास भी हैं। ग्रहण सदा से इंसान को जितना आश्चर्यचकित करता रहा है, उतना ही भयभीत भी करता रहा है। असल में, जब मनुष्य को ग्रहण की वजहों की सही जानकारी नहीं थी, उसने सूरज को घेरती अंधेरी छाया को लेकर कई कल्पनाएं कीं और कई कहानियां गढ़ीं। मज़े की बात यह है कि आज जब हम ग्रहण के वैज्ञानिक कारण जानते हैं तब भी ग्रहण से जुड़ी कहानियां और विश्वास बरकरार हैं।
प्राचीन समय में मनुष्य की दिनचर्या कुदरत के नियमों के हिसाब से संचालित होती थी। इन नियमों में कोई भी फ़ेरबदल मनुष्य को बेचैन करने के लिए काफ़ी था। एंथनी एवेनी (Anthony Aveni ) कोलगेट विश्वविद्यालय (Colgate University) में खगोल विज्ञान और मानव विज्ञान के प्रोफेसर हैं। अपनी नई किताब, "इन द शैडो ऑफ द मून" (In The Shadow Of The Moon,) में, एवेनी ने कई कहानियों को बताया कि कैसे सदियों से विश्वभर की संस्कृतियों का सौर ग्रहणों से संबंध रहा है। वे बताते है कि कुछ पूर्व-आधुनिक समाजों में, सूर्य को एक जीवित वस्तु के रूप में देखा जाता था। सूर्य ग्रहण के दौरान, कुछ लोगों को लगा कि कोई शक्ति सूरज खा रही है और इसका सामना करने के लिए और आने वाले खतरे से बचने के लिए सभी को सतर्क रहने की जरूरत है। प्रकाश और जीवन के स्रोत सूर्य का अंधेरे में लीन होना लोगों को डराता था और इसीलिए इससे जुड़ी तरह-तरह की कहानियां प्रचलित हो गई थीं। सबसे व्यापक रूपक था सूरज को ग्रसने वाले दानव का। पश्चिमी एशिया में मान्यता थी कि ग्रहण के दौरान दानव सूरज को निगलने की कोशिश करता है और इसलिए वहां उस दानव को भगाने के लिए ढोल-नगाड़े बजाए जाते थे। कई समाजों में यह भी मान्यता थी की ग्रहण के समय शोर मचाने से सूर्य का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है। जो लोग यहूदियों की तरह एक ईश्वर में विश्वास करते थे, उन्हें भी सूर्य ग्रहण ने डरा दिया, उनका मानना था कि यह एक अभिशाप है। यहाँ हम देख सकते हैं कि ग्रहण के बारे में विभिन्न सभ्यताओं का नज़रिया इस बात पर निर्भर करता है कि जहाँ प्रकृति उदार या अनुदार है, भरपूर खाने-पीने को है, वहाँ देवी- देवताओं का वास है, वहाँ ईश्वर या पराशक्तियों से मानव का रिश्ता बेहद प्रेमपूर्ण होता है और जहां जीवन मुश्किल है, क्रूर और डरावना है वहाँ दानव वसते हैं, इसीलिए ग्रहण से जुड़ी कहानियाँ भी डरावनी हैं।
हिंदू धर्म में ग्रहण शब्‍द को नकारात्मक माना जाता है। सूर्य ग्रहण को लेकर हिंदू धर्म में कई अंधविश्‍वास हैं। हिंदू धर्म में ग्रहण को राहु-केतु नामक दो दैत्‍यों की कहानी से जोड़ा जाता है और इसके साथ ही कई अंधविश्‍वास भी इससे जुड़ जाते हैं। माना जाता है कि देवता हमेशा से भगवान और धर्म के पक्ष में रहते आये हैं, और उनके आदेशों का पालन करते हैं। जैसे की अंधकार प्रकाश का सामना नहीं कर सकता, वैसे ही राक्षस देवताओं की शक्ति का सामना नहीं कर सकते। लेकिन अस्थायी रूप से कई बार देवताओं को भी राक्षसों के हाथों हार का सामना करना पड़ता है।
वैदिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य ग्रहण का संबंध राहु-केतु और उनके द्वारा अमृत पाने की कथा से है। एक बार स्वरभानु नाम का राक्षस अमृत पीने की लालसा में रूप बदलकर सूर्य और चंद्र के बीच बैठ गया लेकिन सौभाग्य से, सूर्य और चंद्रमा ने इसे देखा और भगवान विष्णु को सूचित किया, भगवान विष्णु ने उसे पहचान लिया, लेकिन तब तक स्वरभानु अमृत पी चुका था और अमृत उसके गले तक आ गया था। तभी भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन यह राक्षस अमृत पी चुका था इसलिए मरकर भी जीवित रहा। इसका सिर राहु कहलाया और धड़ केतु। तब से, इन दोनों राक्षसों ने सर्प शरीर धारण किया हुआ है। चूँकि उनकी योजना को सूर्य और चंद्रमा ने विफल कर दिया था, इसलिए वे उन्हें ग्रहण लगा कर उनसे बदला लेते हैं। उस दिन से जब भी सूर्य और चंद्रमा पास आते हैं राहु-केतु के प्रभाव से ग्रहण लग जाता है।
ऋषि-मुनियों को ग्रह नक्षत्रों की इस घटना का ज्ञान बहुत पहले से ही है। महर्षि अत्रि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले प्रथम आचार्य माने गए हैं। तैत्तिरीय ब्राह्मण में सूर्य ग्रहण का उल्लेख है, जिसे ऋषि अत्रि ने देखा था। इसी तरह के संदर्भ हमें ताण्ड्य ब्राह्मण और सांख्यायन में भी मिलते हैं। इन विवरणों से पता चलता है कि ऋग्वैदिक काल की शुरुआत में, ऋषि-मुनि खगोलविद ग्रहणों से परिचित थे, और इस घटना की भविष्यवाणी करने में सक्षम थे। ग्रहण का उल्लेख रामायण और महाभारत दोनों में भी मिलता है। महाभारत युद्ध की शुरुआत ग्रहण के समय हुई थी। वहीं युद्ध के आखिरी दिन भी ग्रहण था। इसके साथ ही युद्ध के बीच में एक सूर्यग्रहण और हुआ था। इस तरह 3 ग्रहण होने से महाभारत का भीषण युद्ध हुआ। महाभारत में अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली थी कि वो सूर्यास्त के पहले जयद्रथ को मार देंगे वरना खुद अग्निसमाधि ले लेंगे। कौरव ने जयद्रथ को बचाने के लिए सुरक्षा घेरा बना लिया था, लेकिन उस दिन सूर्यग्रहण होने से सभी जगह अंधेरा हो गया। तभी जयद्रथ अर्जुन के सामने यह कहते हुआ आ गया कि सूर्यास्त हो गया है अब अग्निसमाधि लो। इसी बीच ग्रहण खत्म हो गया और सूर्य चमकने लगा। तभी अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया। इसी तरह, रामायण में उल्लेख है कि जब भगवान राम राक्षसों से लड़ रहे थे तब एक ग्रहण दिखाई दिया था।  

संदर्भ:
https://bit.ly/3VHNxCg
https://bit.ly/3MHquU5
https://n.pr/3D88pv9

चित्र संदर्भ
1. अपने परिवार को सूर्य ग्रहण दिखाते श्री कृष्ण को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. सूर्य ग्रहण की स्थिति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. सूर्य ग्रहण के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. सौर स्थिति के आधार पर देवताओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. युद्ध के मैदान में आमने सामने कर्ण तथा अर्जुन दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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