खाद्य सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं, चलिए मिलकर रोकें भोजन की बर्बादी

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खाद्य सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं, चलिए मिलकर रोकें भोजन की बर्बादी

आज पूरा विश्व,“विश्व खाद्य दिवस” मना रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य दुनिया से भुखमरी को खत्म करना तथा सभी तक भोजन की उचित मात्रा उपलब्ध कराना है। आज 2022 में हम यह स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, कि कोरोना महामारी और ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ती जा रही हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय तनाव भी बढ़ता जा रहा है। परिणामस्वरूप हमारी वैश्विक खाद्य सुरक्षा बहुत बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। आज हमें एक ऐसी स्थायी दुनिया बनाने की जरूरत है जहां हर किसी को, हर जगह पर्याप्त पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो, तथा कोई भी इससे वंचित न रहे।हालांकि हमने एक बेहतर दुनिया के निर्माण की दिशा में प्रगति की है, लेकिन अभी भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो पौष्टिक खाद्य सुरक्षा से वंचित हैं तथा मानव विकास, नवाचार या आर्थिक विकास का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। वास्तव में, दुनिया भर में ऐसे लाखों लोग हैं, जो स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकते हैं, और अक्सर खाद्य असुरक्षा और कुपोषण का सामना करते हैं। भूख को खत्म करने के लिए केवल खाद्य आपूर्ति ही काफी नहीं है, बल्कि धरती पर सभी को उचित खाद्य सुविधा प्रदान करने के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन भी आवश्यक है। भारत अपने नागरिकों की खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।खाद्य सुरक्षा पर किसी भी प्रकार का कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए।सभी अंतरराष्ट्रीय बाजारों को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि भोजन तक लोगों की पहुंच उनका एक अनिवार्य अधिकार है।विकासशील देशों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाएगा कि खाद्यान्न पैदा करने वाले किसानों के अधिकारों से कभी समझौता न किया जाए।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 के अनुसार,भारत में एक व्यक्ति हर साल 50 किलो खाना बर्बाद करता है, जबकि 14% भारतीय कुपोषित रहते हैं। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के मुताबिक 2017 से 2020 के बीच सरकारी गोदामों में रखा गया 11,520 टन अनाज सड़ गया था। दिसंबर 2020 में हंगर वॉच (Hunger Watch) के सर्वेक्षण में यह कहा गया कि कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान 27% भारतीयों को अक्सर भूखे सोना पड़ता था।ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) में 107 देशों में भारत 94वें स्थान पर है। इस गंभीर स्थिति के बावजूद भी पिछले चार वर्षों में खराब रखरखाव के कारण 11,520 टन खाद्यान्न बर्बाद हो गया। यह रिपोर्ट एक ऐसे समय में जारी हुई थी, जब कोविड-19 के कारण सरकार अपनी तमाम खाद्य योजनाओं के बावजूद बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए संघर्ष कर रही थी। दक्षिण एशियाई (Asian) देशों में, सबसे अधिक भोजन अफगानिस्तान (Afghanistan–82 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष) में बर्बाद होता है।इसके बाद नेपाल (Nepal - 79 किलोग्राम), श्रीलंका (Sri Lanka - 76 किलोग्राम), पाकिस्तान (Pakistan - 74 किलोग्राम) और बांग्लादेश (Bangladesh -65 किलोग्राम) का स्थान है।2017 से 2020 के बीच 11,520 टन अनाज सड़ने से करीब 150 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 में भारत का स्कोर 27.2 है, जिसका मतलब है कि भारत में भूख की स्थिति चिंताजनक है।
कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए देश में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान,आबादी के एक बड़े हिस्से को खाद्य समस्याओं का सामना करना पड़ा,खासकर ग्रामीण भारत को।महामारी के प्रभाव का आकलन करने के लिए गांव कनेक्शन के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि देश में 68 प्रतिशत ग्रामीणों ने तालाबंदी के दौरान भोजन की भारी कमी का सामना किया।दिसंबर 2020 में राइट टू फूड फाउंडेशन (Right to Food Foundation) की हंगर वॉच रिपोर्ट (Hunger Watch Report) के अनुसार लॉकडाउन के दौरान कई परिवारों को भूखे पेट सोना पड़ा। इसके अनुसार 2015 से अब तक देश में करीब 100 लोगों की भूख से मौत हो चुकी है।शेल फाउंडेशन (Shell Foundation) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 30 वर्षों में वैश्विक खाद्य उत्पादन में 17% की वृद्धि हुई है, लेकिन इसका लगभग आधा हिस्सा अंतिम उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचता है। किफायती कोल्ड स्टोरेज (cold storage) और कोल्ड ट्रांसपोर्ट (cold transport) सुविधाओं की कमी ग्रामीण किसानों और खाद्य उत्पादकों के सामने एक आम चुनौती है। चूंकि ताजा उपज की शेल्फ लाइफ सीमित होती है, इसलिए जिन किसानों के पास रेफ्रिजेरेटेड स्टोरेज तक पहुंच नहीं है, उन्हें अपनी फसल को कम लागत पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है, ताकि बर्बादी से बचा जा सके। इससे वित्तीय नुकसान होता है और व्यापक बाजारों तक उनकी पहुंच भी कम हो जाती है।अपव्यय को रोकने और भारत के लिए खाद्य सुरक्षा बनाने के लिए एक मजबूत, तकनीक-सक्षम कोल्ड चेन (cold chain) की अत्यधिक आवश्यकता है।रणनीतिक रूप से नियोजित कोल्ड स्टोरेज और कोल्ड ट्रांसपोर्ट सुविधाएं उपज की बर्बादी से सम्बंधित समस्याओं को हल करने में मदद कर सकती है और किसानों को लाभान्वित करते हुए भूख से लड़ने में मदद कर सकती हैं।
मजबूत, तकनीक-सक्षम कोल्ड चेनन केवल ताजा उपज को बर्बाद होने से रोकती है,बल्कि उपज की शेल्फ लाइफ को भी बढ़ाती है। इसकी मदद से किसान अधिक उपज वाली फसलों में निवेश कर सकते हैं।एक मजबूत कोल्ड स्टोरेज और कोल्ड सप्लाई इंफ्रास्ट्रक्चर की मदद से,किसान अब कई उच्च नकदी वाली उपज जैसे फल और विदेशी सब्जियों का विकल्प चुन सकते हैं,जो उन्हें बेहतर राजस्व प्रदान करते हैं।तकनीकी सक्षम कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं के उपयोग से किसान अपनी उपज की शेल्फ लाइफ के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता भी बढ़ा सकते हैं।बेहतर कोल्ड ट्रांसपोर्ट सुविधाओं की मदद से,उत्पाद की बाजार तक पहुंच को बढ़ाया जा सकता है। इसकी मदद से किसान उपज और उसकी बिक्री पर बेहतर नियंत्रण रख सकते हैं।वे इसकी मदद से अपनी उपज को बेचने के लिए नए बाजार ढूंढ सकते हैं और अपनी उपज को सर्वोत्तम मूल्य पर बेचने का विकल्प चुन सकते हैं।तकनीकी सक्षम कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की मदद से वे बेहतर कृषि पद्धतियों के साथ प्रयोग कर सकते हैं।
सरकार द्वारा हाल ही में घोषित कुछ पहलें जिनमें नेशनल सेंटर फॉर कोल्ड चेन डेवलपमेंट (National Centre for Cold Chain Development) भी शामिल है,135 कोल्ड चेन परियोजनाओं, 40 मेगा फूड पार्कों आदि के साथ बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3SZM3BB
https://bit.ly/3CO1JB9
https://bit.ly/3eyV31k

चित्र संदर्भ
1. भोजन की बर्बादी एवं वितरण को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. बाजार में खाद्य उत्पाद बेचती महिला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भोजन की बर्बादी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भोजन करती महिला को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. महिला किसानों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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