ओजोन क्षरण की पुष्टि और उसकी माप

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19-09-2022 10:23 AM
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ओजोन क्षरण की पुष्टि और उसकी माप

1785 में, डच रसायनज्ञ मार्टिनस वैन मारम (Martinus Van Maram) पानी के ऊपर विद्युत स्पार्किंग (sparking) से जुड़े प्रयोग कर रहे थे, तब उन्होंने एक असामान्य गंध महसूस की, जिसे उन्होंने विद्युत प्रतिक्रियाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया, किंतु उन्‍हें उस समय यह महसूस नहीं हुआ कि उन्‍होंने वास्‍तव में ओजोन (Ozone) का निर्माण किया था। लगभग 50 साल बाद फ्रेडरिक शॉनबीन (Frederick Schönbein) ने पाया कि बिजली के बोल्‍ट के बाद यह गन्‍ध उत्‍पन्‍न होती है। 1839 में, उन्होंने गैसीय रसायन को अलग करने में सफलता प्राप्त की और इसे "ओजोन" नाम दिया, जो कि ग्रीक शब्द ओज़िन (ozin) से लिया गया है, जिसका अर्थ है "गंध करना"।
ओजोन अणु मुख्य रूप से 10 से 40 किमी की ऊंचाई के बीच समताप मंडल में केंद्रित होते हैं। वे समताप मंडल की तापमान संरचना का निर्धारण करते हैं और हानिकारक पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित करके इस ग्रह पर जीवन की रक्षा करते हैं। पृथक ओजोन अवलोकन 1920 के दशक में किए गए थे, लेकिन व्यवस्थित माप लगभग 50 साल पहले ही शुरू हुए थे। वर्तमान में, कुछ 50 डब्ल्यूएमओ (World Meteorological Organization, WMO) सदस्य देशों में 70 से अधिक एजेंसियां, डब्ल्यूएमओ की ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच ((Global Atmosphere Watch) GAW) में ओजोन निरिक्षण में योगदान दे रही हैं, जो ओजोन परत की स्थिति और उसमें होने वाले परिवर्तनों को समझने के लिए आवश्यक डेटा प्रदान करती हैं। इन आंकड़ों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाने लगा, जब 1970 के दशक की शुरुआत में, वैज्ञानिक निष्कर्षों ने गंभीर पर्यावरणीय प्रभावों के साथ ओजोन को नष्ट करने के लिए क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) (Chlorofluorocarbons (CFCs)) और हैलोन (halon) की क्षमता पर प्रकाश डाला। कुछ ओजोन डेटा लंबे समय से भारत में दर्ज किया गया जा रहा है। कुल ओजोन को मापने के लिए डॉबसन स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (dobson spectrophotometer) का उपयोग करने वाले स्टेशनों का एक नेटवर्क, दिन में लगभग छह बार, श्रीनगर, नई दिल्ली, वाराणसी, अहमदाबाद और कोडाइकनाल को कवर करता है। ओजोन प्रोफाइल (ozone profile) को भी नियमित रूप से विमान का उपयोग करके रिकॉर्ड किया जाता है।
  नई दिल्ली में राष्ट्रीय ओजोन केंद्र के प्रमुख एस.के श्रीवास्तव के अनुसार, भारत में कोई विशेष ओजोन रिक्‍तीकरण नहीं दिख रहा है। भारतीय मौसम विभाग के वी थपयाल और एस.एम कुलश्रेष्ठ भी बताते हैं कि 1956 से 1986 की अवधि में "ओजोन माप साल दर साल परिवर्तनशील रही है, लेकिन भारत में कोई बढ़ती या घटती प्रवृत्ति नहीं दिखी।" हालांकि, नेशनल ओजोन सेंटर के पूर्व निदेशक, के चटर्जी,  चेतावनी देते हैं कि भारत में शालीनता का कोई मामला नहीं है। उनका दावा है कि उनके द्वारा की गयी गणना 1980 से 1983 तक नई दिल्ली और पुणे के ऊपर समताप मंडल की ऊपरी परतों में ओजोन रिक्तीकरण की प्रवृत्ति को प्रदर्शित करती है, इस दौरान अंटार्कटिक ओजोन छिद्र अपने उच्‍च स्‍तर पर था। चूंकि भारत ने पहले से ही पराबैंगनी (यूवी-बी) विकिरण की उच्च खुराक प्राप्त कर ली है, ओजोन परत की कमी के प्रभाव भारत में कहीं अधिक विनाशकारी हो सकते हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक ए.पी मित्रा स्पष्ट करते हैं कि हालांकि कुल ओजोन मूल्य में कोई प्रवृत्ति नहीं है, किंतु फिर भी यहां उच्च ऊंचाई पर ओजोन रिक्तीकरण के कुछ सबूत मिले हैं। हालांकि, उनका तर्क है कि यह कमी अपर्याप्त डेटा है और सौर चक्रों तथा अन्य प्राकृतिक घटनाओं के कारण हो सकती है। तथापि, सीएफ़सी और संबंधित के प्रभावों से इंकार नहीं किया जा सकता है। ओजोन का स्तर नवंबर और दिसंबर के दौरान सबसे कम और गर्मियों में सबसे ज्यादा होता है। देश भर में, विविधताएं मौजूद हैं। कोडाईकनाल (Kodaikanal) में कुल ओजोन 240 से 280 डॉबसन यूनिट (डीयू) (dobson unit (DU)), नई दिल्ली में 270 से 320 डीयू और श्रीनगर में 290 से 360 डीयू है। एक डॉबसन यूनिट 760 दुर्लभ पारा और 0C के दबाव में 0.01 मिमी संपीड़ित गैस के बराबर है।  
राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला के बी एन श्रीवास्तव, जो यूवी-विकिरण की घटना स्तरों पर काम कर रहे हैं, का कहना है कि दोपहर के समय, 290 नैनोमीटर (एनएम) की तरंग दैर्ध्य के साथ यूवी-बी रेडिएशन्स (UV-B Radiations) ओजोन छेद की अवधि के दौरान अंटार्कटिका में प्राप्त स्तरों के बराबर है। उन्होंने चेतावनी दी कि भारत के ऊपर ओजोन परत के मामूली क्षरण से भी देश में यूवी-बी विकिरण में बड़ी मात्रा में परिवर्तन हो सकते हैं।   बढ़ी हुई यूवी-बी विकिरण मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगी और पौधे तथा मछली उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी। पराबैंगनी विकिरण वृद्धि पत्तियों का आकार छोटा कर सकती है अंकुरण का समय बढ़ा सकती हैं। उच्च अक्षांशों के हल्‍की चमड़ी वाले लोग गहरे रंग के लोगों की तुलना में त्वचा रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
निम्‍न अक्षांश के निवासियों ने समय के साथ, त्वचा के रंगद्रव्य विकसित किए हैं जो इन हानिकारक विकिरणों को अवशोषित करने में सक्षम हैं। नई दिल्ली के प्रख्यात त्वचा विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में त्वचा कैंसर के मामले कम हैं, लेकिन वे मानते हैं कि किसी भी प्रवृत्ति की पहचान करने के लिए किए गए सर्वेक्षण अपर्याप्त हैं। उन्होंने कहा कि फसलों पर यूवी-बी विकिरण सांद्रता बदलने के प्रभावों का निरीक्षण करने के लिए नियंत्रित अध्ययन जारी हैं। हालांकि अभी तक देश में कोई फील्ड सर्वे नहीं किया गया है।  

संदर्भ:
https://bit.ly/3xaz1IA
https://bit.ly/3KYXDK0

चित्र संदर्भ
1. ओजोन क्षरण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. ग्रीनहाउस प्रभाव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ओजोन चक्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. ओजोन परत के लाभों को दर्शाता एक चित्रण (youtube)

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