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हम सभी जानते हैं की, साल 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, USSR यानी सोवियत यूनियन ने
भारत का समर्थन करके, भारत की विजय प्राप्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दूसरी ओर, खुद को
भारत का मित्र देश बताने वाले देश, संयुक्त राज्य अमेरिका ने उस समय पाकिस्तान का समर्थन किया
था। अब कल्पना कीजिए की, आज जबकि भारत के मित्र देश, रूस को स्वयं ही हथियारों की आवश्यकता है!
ऐसे में क्या उसके लिए भारत में, युद्ध जैसे हालातों में भारत की सहायता करना संभव है? शायद नही! और
इसीलिए अब समय आ गया है की, भारत खुद की रक्षा के लिए किसी बाहरी देश पर निर्भर न रहते हुए,
अपने देश की रक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से अपने ऊपर ले, और रक्षा क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन
जाए।
अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा, प्रणाली, जीवंत जनसांख्यिकी और मांग, आत्मनिर्भर भारत के पांच स्तंभ
माने जाते हैं। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को रणनीतिक स्वतंत्रता का सबसे महत्वपूर्ण आधार माना जा
सकता है। हालांकि अपनी स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने आत्मनिर्भरता का अनुसरण किया है, लेकिन फिर
भी प्रयासों के परिणाम निराशाजनक ही रहे हैं।
भारत ने 1960 और 1970 के दशक में पूर्व सोवियत
यूनियन और ब्रिटिश जैसे देशों की मदद से अपनी घरेलू रक्षा उत्पादन सुविधाओं का निर्माण किया था।
12 मई 2020 को, भारत को आत्मनिर्भर बनाने और COVID-19 द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का सामना
करने के लिए, भारत सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ रुपये (भारत के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 10% के
बराबर) का विशेष आर्थिक और व्यापक पैकेज, उपलब्ध कराया गया था।
मानव संसाधनों में कौशल सेट के विशाल, प्रतिभाशाली और भारतीय सशस्त्र बलों की बड़े पैमाने पर
आधुनिकीकरण की आवश्यकताओं के कारण इसमें जबरदस्त विकास की संभावना है। रक्षा क्षेत्र, रोजगार
के अवसर पैदा करके तथा आयात बोझ को कम करने से राजकोष की बचत और अर्थव्यवस्था को भी
मजबूत किया जा सकता है। भारत सरकार ने देश में रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और
निर्माण को बढ़ावा देने तथा एक स्थायी रक्षा औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए, विभिन्न
नीतिगत कार्रवाइयां शुरू कर दी हैं। जिसमें से एक कदम, संशोधित रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (Revised
Defense Acquisition Procedure (DAP)-2020 के माध्यम से स्वदेशी बाजार से पूंजीगत सामान
प्राप्त करना भी है।
हालांकि यूक्रेन-रूसी संघर्ष से कोई भी सैन्य सबक लेना जल्दबाजी होगी, लेकिन निश्चित रूप से चल रहे
संघर्ष में दो बातें स्पष्ट रूप से सामने आई हैं।
पहली की सूचना युद्ध, आर्थिक प्रतिबंध और सोशल मीडिया नए युद्ध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया
है, और दूसरा आत्मनिर्भरता का महत्व। भारत, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने को समझ चुका है। भविष्य में
हमें किसी भी तरह की प्रतिक्रिया से बचने के लिए, स्वदेशी के लिए एक स्पष्ट रोड मैप (road map) की
सख्त आवश्यकता है। एक मजबूत और अच्छी तरह से सुसज्जित सेना, किसी भी बाहरी और आंतरिक
जोखिम से, देश को प्रतिरक्षा प्रदान करती है। रोड मैप एक रक्षा तंत्र के रूप में काम करता है, और देश की
सैन्य क्षमता तथा किसी भी घटना के खिलाफ खुद की रक्षा करने की क्षमता को दर्शाता है। इसलिए, सेना
को नवीनतम तकनीक से लैस करना और मौजूदा हथियारों और निगरानी प्रणालियों की सूची का
आधुनिकीकरण करना बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। भारत को अपनी सुरक्षा और खुफिया जानकारी को
मजबूत करने, तथा अपनी क्षेत्रीय अखंडता को सुरक्षित करने के लिए, तकनीकी रूप से उन्नत रक्षा
उपकरणों से लैस एक मजबूत सैन्य बल बनाने की जरूरत है।
हमारे भारतीय सशस्त्र बलों की क्षमताओं को और आगे बढ़ाने और मजबूत करने के लिए, 2022-23 के
वार्षिक बजट में, रक्षा क्षेत्र के लिए पूंजीगत परिव्यय में पिछले वर्ष की तुलना में 12.82% की वृद्धि की गई
है। आयात पर निर्भरता को कम करने और हमारी घरेलू तकनीक के साथ हमारे बलों को आधुनिक बनाने
के लिए, सरकार ने धीरे-धीरे घरेलू उद्योग के पूंजीगत खरीद बजट में वृद्धि की है, और वर्ष 2022-23 के
लिए यह लक्ष्य 68% रखा गया है।
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के संदर्भ में हाल ही में जारी, स्वदेशी सैन्य प्लेटफार्मों की तीसरी सूची में, प्रमुख
सैन्य उपकरण/प्लेटफॉर्म आदि के दिसंबर 2025 तक भारत में पूरी तरह से स्वदेशी होने की उम्मीद की
गई है।
पहली सूची में 155mm/39 Cal Ultra-Light Howitzer, Light Combat Aircraft (LCA) Mk-IA के
अलावा सूची में पारंपरिक पनडुब्बियां और संचार उपग्रह GSAT-7C जैसे सैन्य उपकरण शामिल थे।
दूसरी सूची में T-72 टैंकों के लिए 1000 HP इंजन, स्मार्ट एंटी-फील्ड वेपन सिस्टम (Smart Anti-Field
Weapon System (SAAW), Mk-I, नेक्स्ट जनरेशन कार्वेट, लैंड बेस्ड MRSAM वेपन सिस्टम (Next
Generation Corvette, Land Based MRSAM Weapon System), ऑनबोर्ड ऑक्सीजन जेनरेशन
सिस्टम (Onboard Oxygen Generation System (OBOGS), जैसे प्रमुख उपकरण शामिल थे!
रक्षा मंत्रालय के अनुसार तीसरी सूची में, 100 से अधिक उपकरणों को विकसित किया जा रहा है। और
अगले पांच वर्षों में इनके ठोस ऑर्डर में तब्दील होने की उम्मीद है। इस सूची में लड़ाकू विमान, पनडुब्बियों,
जटिल हथियार प्रणालियों और बख्तरबंद वाहनों सहित लगभग 300 परिष्कृत वस्तुएं, शामिल होने जा
रही हैं।
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने, 1982-83 में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में
स्वदेशी मिसाइल सिस्टम का विकास शुरू किया था। इनमें 'पृथ्वी', 'आकाश' जैसी कम दूरी की सतह से हवा
में मार करने वाली मिसाइलें और 'नाग' जैसी टैंक रोधी निर्देशित मिसाइलें शामिल थीं। स्वदेशी मिसाइल
प्रणाली विकसित करने के प्रयास करने के अलावा, भारत ने 1998 में एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल
(supersonic cruise missile) प्रणाली, 'ब्रह्मोस' विकसित करने के लिए रूस के साथ एक समझौता भी
किया। यह दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसे पनडुब्बियों, जहाजों या विमानों से
लॉन्च किया जा सकता है।
महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था के आलोक में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई 2020 को आत्मनिर्भर
भारत अभियान की शुरुआत की थी। स्वदेशी उत्पादों की खरीद को प्रोत्साहित करने के लिए 'वोकल फॉर
लोकल ('Vocal for Local)' शब्द भी पेश किया गया था, ताकि स्थानीय उद्योग भी फल-फूल सके। एक
छत्र अवधारणा के रूप में, आत्मनिर्भर भारत का उद्देश्य प्रौद्योगिकी-संचालित अर्थव्यवस्था को प्राप्त
करना, अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे का निर्माण करना और आर्थिक विकास उत्पन्न करने के लिए देश की
जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल की ताकत का उपयोग करना है।
रक्षा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख रणनीतिक क्षेत्रों में से एक है, जिसमें मानव संसाधन और सशस्त्र
बलों की बड़े पैमाने पर आधुनिकीकरण आवश्यकताओं के संदर्भ में जबरदस्त विकास की क्षमता है। यह
क्षेत्र रोजगार के नए अवसर पैदा करके और आयात के बोझ को कम करके, देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत
करने में मदद करेगा। उदाहरण के लिए, 2015-19 के दौरान जहां भारत के हथियारों का आयात, दुनिया के
कुल का लगभग 10 प्रतिशत था। वहीँ 2011-15 और 2016-20 के बीच भारत के हथियारों के आयात में 33
प्रतिशत की कमी आई है। रक्षा मंत्रालय (MoD) ने रक्षा निर्माण में 'मेक इन इंडिया (Make in India)' नीति
को बढ़ावा देने के लिए भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), की सीमा
को पहले की सीमा 49 प्रतिशत, से बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दिया गया है। साथ ही 2021-22 के बजट में
रक्षा पूंजी परिव्यय में 18.75 प्रतिशत की वृद्धि भी की गई है।
घरेलू उद्योग को उच्च-प्रौद्योगिकी वाले हथियारों और उपकरणों के निर्माण में सक्षम बनाने के लिए,
सरकार तेज़ी से, रक्षा अधिग्रहण में निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ावा दे रही है। भारत ने रक्षा उपकरणों केनिर्यात में काफी वृद्धि हासिल की है। 2015-20 के दौरान, भारत का रक्षा निर्यात लगभग 2,000 करोड़
रुपये से बढ़कर 9,000 करोड़ रुपये हो गया। उत्तर-पूर्वी राज्यों, वामपंथी उग्रवाद के अनियंत्रित खतरे और
शहरी आतंकवाद से बढ़ती चुनौतियों ने, भारत के सुरक्षा वातावरण को और जटिल बना दिया है। अब,
समय आ गया है, की देश गहरी नींद से बाहर निकलने, और एक नए युग की शुरुआत करे।
संदर्भ
https://bit.ly/3mfDfZG
https://bit.ly/3xrEyLv
https://bit.ly/3NSPirA
चित्र संदर्भ
1. डीआरडीओ एमसी राइफल, को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
2. गणतंत्र दिवस परेड के दौरान अर्जुन मार्क-I टैंक को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. नई दिल्ली में पिनाका 214 एमएम मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. आत्मानिर्भर भारत अभियान के आर्थिक पैकेज को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
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