भीड़ नियंत्रण के लिए जरूरी है गैर घातक हथियारों का इस्तेमाल और उत्पादन

हथियार व खिलौने
31-05-2022 07:04 AM
भीड़ नियंत्रण के लिए जरूरी है गैर घातक हथियारों का इस्तेमाल और उत्पादन

लगभग 138 करोड़ की आबादी, और सैकड़ों धर्मों के अनुयायियों वाले हमारे देश में, कभी-कभी किन्ही दो गुटों या सम्प्रदायों अथवा सरकार के किसी फैसले के विरोध में तनाव पूर्ण स्थिति उत्पन्न हो जाना, कोई असंभव बात नहीं है! वास्तव में कई बार देश की जनता कई कारणों से असंतुष्ट होकर सड़कों पर आ सकती है। ऐसे में स्थिति को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी, पूरी तरह से देश के सशस्त्र सुरक्षा बलों और पुलिस के कंधों पर आ जाती हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की, हिंसा की घटनाओं में अभूतपूर्व वृद्धि के बावजूद, आज भी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (Central Armed Police Forces (CAPF) के पास, अनियंत्रित भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आधुनिक, प्रभावी और गैर-घातक (non-lethal) हथियारों की भारी कमी है। जब भारत जैसे बेहद बड़े देश की बात आती है, तो भीड़ नियंत्रण, पुलिसिंग का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू हो जाता है। सशस्त्र बलों द्वारा भीड़ प्रबंधन कई कारकों द्वारा निर्धारित किया जाता है, जिसमें सामाजिक- राजनीतिक स्थितियों, जनसांख्यिकी, अंतर-सामुदायिक मुद्दों, उग्रवाद, भीड़ मनोविज्ञान, शत्रुता के स्तर, हिंसा का कारण, पुलिस की ताकत, और एक मेजबान जैसे पहलुओं के कारण भिन्नताएं शामिल हैं। हालांकि हिंसा की घटनाओं में अभूतपूर्व वृद्धि के बावजूद, राज्य पुलिस कर्मियों के पास पर्याप्त मात्रा में आधुनिक समय के, कम घातक हथियारों (less lethal weapons) की भारी कमी है। यहां तक ​​कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के पास भी अनियंत्रित भीड़ को तितर-बितर करने के लिए प्रभावी और गैर-घातक हथियारों की कमी देखी गई है।
कुप्रबंधन के अलावा, भारतीय सशस्त्र बलों में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उचित प्रशिक्षण का भी अभाव है। भीड़ नियंत्रण अभ्यास, अभी भी वैसे ही हैं, जैसे औपनिवेशिक युग के दौरान होते थे। अधिकांश उपकरण, कई दशकों बाद भी ज्यादा नहीं बदले हैं। जम्मू-कश्मीर में पैलेट गन (pellet gun) से नागरिकों को हुई, गंभीर चोटों के लिए सरकार को गैर-घातक विकल्पों की तलाश करनी पड़ी, जो केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के अनुसार उत्तेजित भीड़ को नियंत्रित करने में अत्यधिक प्रभावी होते हैं। कश्मीर में 2010 में सबसे खराब विरोध प्रदर्शन हुआ तब सुरक्षा बलों द्वारा गोली चलाए जाने के बाद लगभग 110 प्रदर्शनकारियों की गोली लगने से मौत हो गई। उस घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 12-गेज पंप-एक्शन शॉटगन (12-Gauge Pump-Action Shotgun) को कश्मीर भेजा। सरकार ने घाटी में उपद्रवी भीड़ के लिए, पैलेट गन के उपयोग को उचित ठहराया, जिसने घाटी में कितने ही लोगों को अंधा कर दिया था। मामले को बदतर बनाने के लिए, सुरक्षा बलों को भीड़ के खिलाफ ऐसे हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए कथित तौर पर प्रशिक्षित भी नहीं किया गया था। 2016 में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पैलेट गन के गैर-घातक विकल्पों की जांच करने के लिए सीआरपीएफ, जम्मू और कश्मीर पुलिस और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सदस्यों से मिलकर एक समिति का गठन किया। समिति ने सुरक्षा बलों के लिए व्यवहार्य विकल्पों का सुझाव दिया, उनमें से PAVA या पेलार्गोनिक एसिड वानीलीलामाइड (Pelargonic Acid Vanillylamide) नामक, कृत्रिम काली मिर्च का अर्क (artificial black pepper extract) था। PAVA, सीएस या आंसू गैस की तुलना में अधिक शक्तिशाली होता है, और अस्थायी रूप से आंखों में तेज दर्द का कारण बनता है।
कश्मीर में सड़कों पर विरोध प्रदर्शनों से निपटने के लिए, सरकार की नवीनतम योजना, घातक पैलेट गन को गैर-घातक प्लास्टिक की गोलियों (non-lethal plastic bullets) से बदलने की है। इसके निर्माताओं का दावा है कि, प्लास्टिक की गोलियां पूरी तरह से अलग हैं, लेकिन इन्हें एके-47 राइफल (AK-47 Rifle) से दागा जा सकता है। यदि प्लास्टिक की गोलियां कमर के नीचे लगती हैं, तो यह घातक नहीं होती, हालांकि, अगर गोली किसी महत्वपूर्ण अंग से टकराती है, तो घातक होने की संभावना बढ़ जाती है। टर्मिनल बैलिस्टिक्स रिसर्च लेबोरेटरी (Terminal Ballistics Research Laboratory (TBRL), चंडीगढ़ के निदेशक, मंजीत सिंह के अनुसार, “एक प्लास्टिक की गोली की घातकता, छर्रों की तुलना में 500 गुना कम होती है। इसका उपयोग दंगे की स्थिति में लक्षित शूटिंग के लिए किया जा सकता है। ” हालांकि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defense Research and Development Organization (DRDO) के अधिकारियों की माने तो, चेहरे या किसी महत्वपूर्ण अंग पर चोट लगने पर ये प्लास्टिक की गोलियां जानलेवा भी साबित हो सकती हैं। हवा की दिशा में बदलाव के कारण आंसू गैस का प्रयोग भी अक्सर अप्रभावी साबित हुआ है, जो इसे निरर्थक बना देता है।
भारत में पहली बार कम घातक हथियार का इस्तेमाल, बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद के विरोध प्रदर्शनों के दौरान किया गया था, जब प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछारों का प्रयोग किया गया था गया था। हालांकि भारतीय सुरक्षा बलों ने तब से कई गैर-घातक हथियारों को हासिल और तैनात किया है, फिर भी उनके पास भीड़ नियंत्रण के लिए प्रभावी और हानिरहित गोला-बारूद की कमी है।
दंगा प्रबंधन के लिए, प्लास्टिक बुलेट, मोम बुलेट, रबर बुलेट, बीन बैग राउंड, रिंग एयरफॉइल प्रोजेक्टाइल (plastic bullet, wax bullet, rubber bullet, bean bag round, ring airfoil projectile” और इलेक्ट्रोशॉक (electroshock) जैसे हथियार, टेसर और धातु की गोलियों की तुलना में कम घातक माने जाते है। 28 अप्रैल, 2022 को न्यूयॉर्क, (ग्लोब न्यूजवायर) इनसाइट पार्टनर्स (New York, (Globe Newswire) Insight Partners) ने " गैर-घातक हथियार बाजार " पर नवीनतम शोध अध्ययन प्रकाशित किया। जिसमें कहा गया की, गैर-घातक हथियार बाजार का आकार, वैश्विक स्तर पर, 2028 तक $9.28 बिलियन, 6.1% की सीएजीआर (CAGR) से बढ़ने की उम्मीद है। व्यक्तिगत उपयोग के लिए न्यूजीलैंड और भारत जैसे कई देशों में गैर-घातक हथियारों को वैध नहीं किया गया है। हालांकि,आत्मरक्षा के लिए एक गैर-घातक हथियार के रूप में काली मिर्च स्प्रे का उपयोग, विशेष रूप से पुरुषों के खिलाफ, इटली, फ्रांस, चेक गणराज्य, स्पेन, ऑस्ट्रिया, पोलैंड, रूस, स्विट्जरलैंड, जर्मनी जैसे कई देशों में भी वैध किया जा रहा है।
कई देशों में, COVID-19 महामारी के दौरान भीड़ को तितर-बितर करने के लिए गैर-घातक हथियारों का इस्तेमाल किया गया था। बढ़ती सशस्त्र हिंसा और राजनीतिक तनाव के परिणामस्वरूप दुनिया भर में सरकारों द्वारा सावधानी बरती जा रही है, और दुनिया भर में सैन्य और पुलिस बलों को सशस्त्र बनाया जा रहा है, जिससे गैर-घातक हथियारों के बाजार मे अभूतपूर्व विकास हुआ है। ये सभी कारक गैर-घातक हथियारों के बाजार पर सकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। अवलोकन प्रौद्योगिकी के आधार पर, गैर-घातक हथियारों के बाजार को रासायनिक, ध्वनिक, विद्युत चुम्बकीय, और गतिज और यांत्रिक में विभाजित किया गया है। काइनेटिक और यांत्रिक (kinetic and mechanical) गैर-घातक हथियारों का उपयोग लोगों को हानिकारक कार्यों को करने से रोकने के लिए किया जाता है। यांत्रिक और गतिज हथियार, जैसे बंदूकें, गोला-बारूद, स्मोक ग्रेनेड लांचर, और पेपर बॉल गन (Smoke Grenade Launcher, and Paper Ball Gun), का उपयोग दंगों, विरोधों और आतंकवादी हमलों को नियंत्रित करने के लिए गैर-घातक हथियारों के रूप में किया जा सकता है। गैर घातक हथियारों की उपयोगिता और भविष्य को देखते हुए, नोएडा की एक फर्म ने आमने-सामने की लड़ाई में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक भारतीय हथियारों से प्रेरित सुरक्षा बलों के लिए गैर-घातक हथियार विकसित किए हैं। एस्ट्रान के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी (सीटीओ) मोहित कुमार के अनुसार, इस तरह के हथियारों की प्रेरणा उन्हें, चीनी सैनिकों के गलवान संघर्ष के दौरान सैनिकों के खिलाफ तार वाली लाठी और टेसर का इस्तेमाल करने के बाद मिली। एलएसी की गलवान घाटी में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (People's Liberation Army) के हमले में जून 2020 में 20 जवानों के शहीद होने के बाद भारतीय सेना के लिए गैर-घातक हथियारों की आवश्यकता पैदा हुई। हथियारों में 'वज्र', 'त्रिशूल', 'सैपर पंच' 'दंड वी1' और 'दंड वी2' शामिल हैं।" सेना को इसकी एक खेप पहुंचा दी गई है और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (Indo- Tibetan Border Police (ITBP) जैसी अन्य इकाइयां ऐसे हथियार खरीदने पर विचार कर रही हैं।
गैर- घातक हथियारों की उपयोगिता के बारे में बताते हुए, कुमार ने कहा कि 'वज्र', एक धातु का टसर है, जिसका इस्तेमाल टेजिंग और टेसिंग के लिए किया जाता है, इसे सुरक्षात्मक दस्ताने की तरह पहना जाता है और झटका देने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही इन हथियारों में 'दंड वी1' और 'दंड वी2 ('Dandal V1' and 'Dandal V2')' 'लाठियां' भी शामिल हैं, जिनका उपयोग टेजर उपकरण के रूप में किया जा सकता है। वे सभी पॉली कार्बोनेट सामग्री से बने होते हैं। और इनमें से कोई भी गैर-घातक हथियार, मौत या गंभीर चोट का कारण नहीं बनेगा।

संदर्भ

https://bit.ly/3NxoL2O
https://bit.ly/3GqFUca
https://bit.ly/3z4YyEW

चित्र संदर्भ
1. कश्मीर में भीड़ का सामना करते भारतीय सेना के जवानों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. आंसू गैस का प्रयोग करते भारतीय पुलिस कर्मी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एयर गन पेलेट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एके-47 राइफल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पुलिस और आम नागरिकों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
६. गैर घातक हथियारों की उपयोगिता और भविष्य को देखते हुए, नोएडा की एक फर्म ने आमने-सामने की लड़ाई में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक भारतीय हथियारों से प्रेरित सुरक्षा बलों के लिए गैर-घातक हथियार विकसित किए हैं। जिनको दर्शाता एक चित्रण (youtube)

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