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2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 1.77 मिलियन लोग बेघर हैं, अर्थात ऐसे लोग जिनके पास अपने
सिर को ढकने के लिए, कोई भी छत नहीं है! बेघरों की यह संख्या देश की कुल आबादी की 0.15% मानी
जाती है, जिसमें एकल पुरुष, महिलाएं, बुजुर्ग और विकलांग शामिल हैं। इसपर कई लोग ऐसे भी हैं, जिनके
मकानों को घर के बजाय ठिकाना कहना सही होगा, क्यों की यह केवल उनके सिर को ढक ही सकते है।
यद्यपि सरकार द्वारा इन बेघरों को पक्की छत प्रदान करने के लिए कुछ महत्वकांशी योजनाएं भी चलाई
गई हैं, किंतु कुछ मामलों में यह योजनाएं भी महंगी जमीन और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है! लेकिन आज
सरकारी आवास योजनाओं ने फिर से अपने घर की उम्मीद जगाई है!
1998 में पहली बार शहरी भारतीयों को किफायती और औपचारिक आवास प्रदान करने के लिए, पहली
आवास नीति (first housing policy) की परिकल्पना की गई थी। इस प्रकार भारतीय जन आवास बाजार,
केवल कुछ दशक ही पुराना माना जा सकता है।
1980 और 1990 के दशक के मध्य के शहरी भारत में उपलब्ध, जी+3 या 4 (भूतल प्लस तीन/चार मंजिल)बिना लिफ्ट वाला एकमात्र सामूहिक आवास होता था, जो दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA), या
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (GDA) जैसे विकास प्राधिकरणों द्वारा प्रदान किया गया था।
इसमें निजीकरण के उद्देश्य से पहला सुधार तब आया जब विकास प्राधिकरणों ने सहकारी समूह आवास
समितियों (Co-operative Group Housing Societies (CGHS) के निर्माण के लिए पंजीकृत खरीदारों के
समूहों को भूमि आवंटित करनी शुरू की। 1990 के दशक के मध्य तक यह आवंटन भी धोखाधड़ी की भेंट
चढ़ गया था, और द्वारका (दिल्ली) में 3,500 से अधिक घर, संचालन में अनियमितताओं के कारण अधूरे
रह गए थे। इन घरों में से अभी भी कई घर अनिश्चितता की स्थिति में फंसे हुए हैं। यह भारत के आवास
बाजार में संरचित धोखाधड़ी (structured fraud) का पहला मामला था।
वर्ष 1998 में भारतीय आवास उद्योग में पहली आवास नीति तैयार की गई थी , जिसमें मध्यम वर्ग की
महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आवास में अधिक से अधिक निजी क्षेत्र की भागीदारी का आह्वान
किया गया था। 1991 में अर्थव्यवस्था के खुलने और वृद्धि करने के बाद, आम लोगों के वेतन में हुई वृद्धि
ने, रोजगार की तलाश में नए शहरों की यात्रा कर रहे, मध्यम वर्ग की अपने निजी घर की महत्वाकांक्षाओं
को हवा दी।
मध्यम वर्ग के इस सपने को साकार करने के लिए, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (scheduled commercial
banks) की हाउसिंग फाइनेंस शाखा (Housing Finance Branch) द्वारा लगभग 8.5 प्रतिशत ब्याज पर,
किफायती आवास वित्त (Affordable Housing Finance) का वितरण भी किया गया। लाइफ इंश्योरेंस
कॉरपोरेशन (LIC), पंजाब नेशनल बैंक (PNB) और सिंडिकेट बैंक ने हाउसिंग फाइनेंस आर्म्स (Housing
Finance Arms) का निर्माण किया। नेशनल हाउसिंग बैंक, जिसे 1988 में आवास क्षेत्रों को किफायती बनाने
के लिए पुनर्वित्त एजेंसी के रूप में बनाया गया था, को 2019 तक हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के नियमन
सहित कई अधिकार दिए गए थे। इसके पीछे का इरादा वित्त और भूमि को सस्ती दरों पर उपलब्ध कराना
था। कुल मिलाकर इस कदम का उद्देश्य कामकाजी आबादी को अपने निजी घर के मालिक होने की
अनुमति देना था।
हालांकि यहां वाणिज्यिक अचल संपत्ति (commercial real estate) के रूप में बहुत अधिक विदेशी धन आ
रहा था, लेकिन इसके बावजूद यहां सामाजिक क्षेत्र की बाध्यताएं मौजूद थीं, तथा आवास में विदेशी निवेश
की अनुमति नहीं थी।
हालांकि 2001-2004 की अवधि में यह बाधा भी तब हट गई, जब होम लोन की ब्याज दरों में ढील दी गई,
और निजी डेवलपर्स (private developers) को सामान्य रखरखाव के साथ बहु-मंजिला कॉन्डोमिनियम
लॉन्च (Multi-storey condominium launch) करने के लिए पैसे मिलने लगे।
पेशेवर डेवलपर्स की इस पहली पीढ़ी ने जनता के लिए कई आवासों का निर्माण किया। सरकार ने भी अपनी
ओर से, धारा 80IB(10) प्रावधान के तहत उन डेवलपर्स को टैक्स में छूट दी, जिन्होंने दिल्ली और मुंबई में
1,000 वर्ग फुट के घर और छोटे शहरों में 1,500 वर्ग फुट के घर बनाए। पहले यह टैक्स छूट 1998 से 2005
तक थी, जिसे बाद में 2007 तक बढ़ा दिया गया था।
इस प्रस्ताव का लाभ उठाने वाले घरों को 2012 तक पूरा करना था। हालांकि डेवलपर्स नए थे, और उन्होंने
जरूरतमंद लोगों के लिए घर बनाना शुरू कर दिया, और इस प्रकार वित्त की आसान पहुंच के कारण स्वतंत्र
भारत के इतिहास में 40 दशकों में पहली बार, बड़ी संख्या में युवा पेशेवरों ने अपने घर के लिए भुगतान
करना शुरू कर दिया। मकानों के निर्माण में 2-4 साल लगे और खरीदारों ने वर्ग फुट के आधार पर घर के
लिए भुगतान करना शुरू कर दिया।
जल्द ही, मांग ने आपूर्ति को बढ़ा दिया, और बहुत से खरीदारों ने शुरुआती लॉन्च कीमतों (initial launch
prices) पर खरीदारी करके और बाजार दरों पर बिक्री करके बहुत पैसा कमाया। यह निवेश मार्ग जहां
त्वरित रूप से अपनाया जा सकता हैं, वहीँ यहां उच्च लाभ भी कमाया जा सकता है, तथा निवेशकों की एक
नई नस्ल तैयार की जा सकती है।
2004 और 2006 के बीच के निवेशक एक नए फॉर्मूले के साथ सामने आए। उन्होंने शेयर बाजार से या
पिछली संपत्ति की बिक्री के माध्यम से अपार्टमेंट के लिए टोकन राशि या डाउन पेमेंट (Down Payment) से
भुगतान किया और कुछ मामलों में किश्तों का भुगतान करने के लिए उधार के पैसे का भी इस्तेमाल किया।
COVID-19 महामारी के निरंतर चक्रीय उतार-चढ़ाव के बावजूद, भारतीय रियल एस्टेट क्षेत्र आज भी काफी
हद तक लचीला बना हुआ है। यह अब वैश्विक अर्थव्यवस्था के चालक के रूप में भारत की मजबूत स्थिति
के साथ-साथ कार्यालय, आई एंड एल, आवासीय और वैकल्पिक रियल एस्टेट सेगमेंट जैसे क्षेत्रों में
आशाजनक विकास के संकेत दर्शा रहा है।
रियल एस्टेट कंसल्टिंग फर्म (Real Estate Consulting Firm “CBRE”) साउथ एशिया ने अपनी रिपोर्ट
'रियल एस्टेट मार्केट आउटलुक (Real Estate Market Outlook “2022”) में कहा है, की "2022 में, हम
उम्मीद करते हैं कि यह क्षेत्र बुनियादी ढांचे के विकास और औद्योगिक विकास पर सरकार के निरंतर
ध्यान का लाभ उठाएगा, जिसमें लॉजिस्टिक्स और मैन्युफैक्चरिंग (Logistics and Manufacturing) जैसे
सेगमेंट मुख्य फोकस होंगे।
सीबीआरई, के अनुसार, “महामारी की दूसरी लहर भारतीय अर्थव्यवस्था और रियल एस्टेट क्षेत्र के विस्तारपर एक झटका थी। लेकिन पिछले 6 महीनों में हमनें, सभी क्षेत्रों में लीजिंग गतिविधि (leasing activity) मेंतेजी देखी गई है, और हम उम्मीद करते हैं कि, यह वृद्धि 2022 तक जारी रहेगी।
आज वैश्विक निवेशक, भारतीय रियल एस्टेट में फिर से अरबों डॉलर लगाने की सोच रहे हैं, क्योंकि यहां
उन्हें आवासीय और वाणिज्यिक दोनों क्षेत्रों में सुधार दिखाई दे रहा है। अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी
(ADIA) से लेकर, CPPIB तक, कई वैश्विक निवेशक भारत के रियल एस्टेट सेक्टर में हिस्सा लेने के लिए,
भारतीय फंड मैनेजर्स या डेवलपर्स (Indian Fund Managers or Developers) के साथ गठजोड़ कर रहे हैं।
ADIA, विश्व स्तर पर सबसे बड़े सॉवरेन फंडों (sovereign funds) में से एक, कोटक महिंद्रा समूह की निजी
इक्विटी शाखा, कोटक इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स (Kotak Investment Advisors) के नए फंड ढांचे (new
fund structure) में निवेश करना चाहता है। यह फंड आवासीय परियोजनाओं और डेवलपर्स को उधार
देगा।
इसके साथ ही एडीआईए, जिसके पास 2021 के अंत में 829 अरब डॉलर की प्रबंधनाधीन संपत्ति (property
under management) थी, कोटक फंड में 1 अरब डॉलर (7,600 करोड़ रुपये) तक निवेश कर सकती है।
2019 में, कोटक इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स ने संकटग्रस्त संपत्ति कोष के लिए एंकर निवेशक के रूप में ADIA
से $500 मिलियन जुटाए। इस बीच कनाडा पेंशन प्लान इन्वेस्टमेंट बोर्ड (Canada Pension Plan
Investment Board) ने टाटा रियल्टी एंड इंफ्रास्ट्रक्चर (Tata Realty And Infrastructure) के साथ एक
नए संयुक्त उद्यम की घोषणा की, जो पूरे देश में वाणिज्यिक कार्यालय स्थान विकसित करने और उसका
मालिक बनने का सपना पूरा करेगी।
संदर्भ
https://bit.ly/3rJIfZy
https://bit.ly/3rJrnSK
https://bit.ly/3v48XhD
https://bit.ly/3rFGo8c
चित्र संदर्भ
1 आवास योजना को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. बालकनियों के मुखोटों, को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
3. संघीय आवास वित्त एजेंसी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. निर्माणाधीन इमारतों को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
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