हमारी मनपसंद शिकँजबीन, अमृत इस गर्मी में, लेकिन क्यों हैं आजकल नींबू इतने मेहेंगें?

साग-सब्जियाँ
22-04-2022 08:04 AM
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हमारी मनपसंद शिकँजबीन, अमृत इस गर्मी में, लेकिन क्यों हैं आजकल नींबू इतने मेहेंगें?

पिछले कुछ हफ्तों में नींबू की कीमत में भारी उछाल आया है, जिसमें सामान्य आकार का एक नींबू 10 रुपये और छोटे वाले तीन नीबू 20 रुपये में बेचे जा रहे हैं। नींबू विक्रेताओं और निम्बू-पानी की स्टॉल के मालिकों ने नींबू की बढ़ती कीमत पर चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि उपभोक्ता खट्टे फल खरीदने के इच्छुक नहीं हैं। मडगांव के नए बाजार में एक स्टॉल चलाने वाले एन गाडेकर, जो 25 रुपये में नींबू पानी और नींबू सोडा बेचते हैं, वे बताते हैं कि "मैंने अपनी कीमतें नहीं बढ़ाई हैं और मैं इसे घाटे में बेच रहा हूं। जिसमें एक नींबू की कीमत 10 रुपये है, सोडा या पानी की कीमत भी 10 रुपये है और इसमें डिस्पोजेबल ग्लास और स्ट्रॉ की कीमत जोड़कर बेचता हूं।" उन्होंने बताया कि वह रोजाना 100 गिलास नींबू पानी बेचते हैं, लेकिन हाल के हफ्तों में 100 नींबू के दाम 250 रुपये से बढ़कर 1,000 रुपये हो गए हैं। एक और विक्रेता जो होली स्पिरिट चर्च (Holy Spirit church) के पीछे कुछ महीनों से केवल नीबू बेच रहा है, वह बताता है कि, हम खट्टे फलों को दो श्रेणियों में विभाजित करना पसंद करते हैं, बड़ा और छोटा लेकिन कीमत समान है।
"जब हमने लगभग 40 से 45 किलो वजन के नीबू का एक बैग बेचना शुरू किया था, तब इसकी कीमत हमें 1,500 रुपये थी। लेकिन पिछले कुछ हफ्तों में हम उसी बैग के लिए 9,500 रुपये का भुगतान कर रहे हैं। सलीम जो वरका के सालसेटे तटीय गांव के एक सब्जी विक्रेता हैं, वे बताते हैं कि "हम हर नींबू पर 2 से 3 रुपये का नुकसान कर रहे हैं, लेकिन अगर हम नुकसान को अवशोषित नहीं करेंगे, तो हमारे ग्राहक कहीं और खरीदारी करने लगेंगे और अंततः हमें अपने ग्राहकों को खोना पड़ेगा। ग्राहकों को खोने की तुलना में नींबू पर नुकसान करना बेहतर है।" बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि भारत में नींबू इतना महंगा कभी नहीं रहा। मौजूदा समय में बाजार में नींबू का खुदरा भाव 300 रुपये से 350 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। लोकप्रिय ग्रीष्मकालीन पेय में नींबू एक महत्वपूर्ण घटक है, लेकिन नींबू की ऊंची कीमत पेय के आकर्षण और सार को छीन रही है। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल 3.17 लाख हेक्टेयर में फैले बगीचों में 37.17 लाख टन से अधिक नींबू की खेती की जाती है। नींबू के पौधे साल में तीन बार फूल और फल देते हैं। आंध्र प्रदेश 45,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल के साथ भारत का सबसे बड़ा नींबू उत्पादक राज्य है। इसके अलावा तमिलनाडु, महाराष्ट्र, ओडिशा और गुजरात में भी नींबू की खेती बहुत अच्छी होती है। उत्तर प्रदेश के आनंद मिश्रा जो भारत में लेमनमैन (Lemonman) के नाम से मशहूर हैं उनका कहना है कि, भारत में नींबू की दो श्रेणियां हैं, लेमन (Lemon) और लाइम (Lime)। लेमन की श्रेणी में आने वाली, छोटी, गोल और पतली चमड़ी वाली कागजजी (Kagji) देश में सबसे अधिक उगाई जाने वाली नींबू की किस्म है, जबकि लाइम एक गहरा हरा फल है, जिसकी खेती मुख्य रूप से भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में व्यापार के लिए की जाती है। भारत में उत्पादित नींबू की खपत देश में ही होती है, भारत न तो नींबू का आयात करता है और न ही निर्यात करता है। आनंद बताते हैं कि गर्म, मध्यम शुष्क और नम जलवायु नींबू की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है। अत्यधिक वर्षा होने पर फल रुक जाते हैं।
पौधों को ग्राफ्टिंग द्वारा उगाया जाता है। नागपुर में आईसीएआर-केंद्रीय साइट्रस अनुसंधान संस्थान (सीसीआरआई) (ICAR-Central Citrus Research Institute (CCRI)) और विभिन्न राज्य कृषि संस्थान (State Agricultural Institutes) नींबू की अच्छी किस्म उगाते हैं। आमतौर पर किसान एक एकड़ में 210 से 250 नींबू के पेड़ लगाते हैं, जिसकी पहली फसल रोपण के लगभग तीन साल बाद आती है और एक पेड़ औसतन लगभग 1000-1500 नींबू पैदा करता है। पुणे के सब्जी व्यापारी बताते हैं कि, फिलहाल थोक बाजार में 10 किलो नींबू का एक बैग 1,750 रुपये में बिक रहा है। 10 किलो के बैग में आमतौर पर 350-380 नींबू होते हैं इसलिए एक नींबू की कीमत अब 5 रुपये है। पुणे में एक नींबू का खुदरा मूल्य लगभग 10-15 रुपये है। उन्होंने बताया कि इस बाजार में नींबू की ये कीमत अब तक की सबसे अधिक कीमत है और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि बाजार में नींबू के आवक कम हैं। आमतौर पर यहां के बाजार में रोजाना 10 किलो के करीब नींबू की 3,000 बोरी आती थी, लेकिन अब आवक को मुश्किल से एक हजार बोरी ही मिल पा रही है। नींबू का थोक भाव मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता जैसे बाजारों में क्रमशः 120 रुपये, 60 रुपये और 180 रुपये प्रति किलो है,जो ठीक एक महीने पहले क्रमशः 100 रुपये, 40 रुपये और 90 रुपये प्रति किलो था। कृषि विज्ञान केंद्र (Krishi Vigyan Kendra), आजमगढ़ के फसल मामलों के विशेषज्ञ आरपी सिंह बताते हैं कि नींबू के दाम बढ़ने के एक नहीं बल्कि कई कारण हैं। उन्होंने बताया कि पिछले साल पूरे देश में मानसून बहुत अच्छा था, लेकिन सितंबर और अक्टूबर के महीने में हुई अत्यधिक बारिश के कारण नींबू के बाग को बहुत नुकसान पहुंचा। भारी बारिश के कारण पौधे बिल्कुल नहीं फूले, इस फसल को आमतौर पर कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है, लेकिन जब फूल नहीं आए तो उत्पादन प्रभावित हुआ, अगर नींबू कोल्ड स्टोर में रखा होता तो कीमत इतनी ज्यादा नहीं होती। वे बताते हैं कि फरवरी के अंत में ही तापमान में वृद्धि हुई थी, जिसका असर फसलों पर भी पड़ा। छोटे-छोटे फल बागों में ही गिर गए। गर्मियों में जब नींबू की मांग सबसे ज्यादा होती है तो दोहरी मार के कारण फसल बाजार में मांग के मुताबिक नहीं पहुंच पाई और कम आवक के कारण देश भर में नींबू की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई को पार कर गई।
आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे प्रमुख नींबू उत्पादक राज्यों में भी तापमान बढ़ने से पैदावार प्रभावित हुई, जिससे इसकी कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई। दूसरी ओर पेट्रोल, डीजल और सीएनजी के दाम बढ़ने से माल भाड़ा में हुई बढ़ोतरी भी कीमतों में बढ़ोतरी का एक प्रमुख कारण रहा है। भारत में ईंधन की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, जिससे परिवहन लागत में वृद्धि हुई है, जिसके कारण नींबू समेत सभी सब्जियों के दाम भी बढ़ गए हैं। नींबू के दाम बढ़ने का एक और कारण आपूर्ति कम और मांग ज्यादा होना भी है। गर्मियों में नींबू की मांग बहुत अधिक होती है, जिसके कारण कीमतें भी पहले से ही अधिक होती हैं। लेकिन चक्रवात के कारण फसलों को हुए नुकसान ने भी स्थिति को और खराब कर दिया। एक प्राचीन लोककथा के अनुसार, भारत के दक्षिणी सिरे पर श्रीलंका के द्वीप के सिंहल के बीच, दो नाग देवताओं के बीच लड़ाई के दौरान नींबू की उत्पत्ति हुई थी। उनके नुकीले दांत नींबू के बीज बन गए और उनका जहर अम्लीय रस बन गया। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि श्रीलंका से लगभग 1,500 मील पूर्व में मलेशिया (Malaysia) में असली नींबू की उत्पत्ति हुई थी। नींबू पालतू साइट्रोन(citrons) और पापेडा (Papeda) की एक जंगली प्रजाति के बीच एक प्राकृतिक संकर है, जो एक गैर-व्यावसायिक साइट्रस (citrus) उपजाति है। साइट्रस ऑरेंटिफोलिया (Citrus aurantifolia), मलेशिया में उत्पन्न होने वाला असली नींबू है, जो अब व्यावसायिक उत्पादन के स्थानों के लिए मैक्सिकन लाइम (Mexican lime) या की लाइम (key lime) के रूप में जाना जाता है।
साइट्रस की खेती भारत में भी हुई, लेकिन अलग-अलग साइट्रस के लिए समान नाम नींबू को अलग से ट्रैक करना असंभव बनाते हैं। साइट्रस की वृद्धि और विकास के लिए उपोष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे उपयुक्त है। युवा पौधों के लिए नीचे का तापमान - 40C हानिकारक है और जड़ वृद्धि के लिए मिट्टी का तापमान 25C के आसपास इष्टतम लगता है। अच्छी तरह से परिभाषित गर्मी और 75 सेमी से 250 सेमी तक कम वर्षा वाली शुष्क और रूखी परिस्थितियाँ फसल की वृद्धि के लिए सबसे अनुकूल होती हैं। उच्च आर्द्रता कई बीमारियों के प्रसार का पक्षधर है और पाला अत्यधिक हानिकारक है। गर्मियों के दौरान गर्म हवा के कारण फूल और युवा फल सूख जाते हैं और गिर जाते हैं। साइट्रस मिट्टी की एक विस्तृत श्रृंखला में अच्छी तरह से पनप सकता है। मिट्टी की प्रतिक्रिया, मिट्टी की उर्वरता, जल निकासी, मुक्त चूना और नमक की सांद्रता जैसे मिट्टी के गुण, कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं जो खट्टे वृक्षारोपण की सफलता को निर्धारित करते हैं। अच्छी जल निकासी वाली हल्की मिट्टी में खट्टे फल अच्छी तरह से पनपते हैं, जिसके लिए 5.5 से 7.5 की पीएच रेंज वाली गहरी मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। हल्की दोमट या भारी लेकिन अच्छी जल निकासी वाली उप-मिट्टी साइट्रस के लिए आदर्श प्रतीत होती है। रोपण का सबसे अच्छा मौसम जून से अगस्त तक है, लेकिन सिंचाई की अच्छी व्यवस्था होने पर अन्य महीनों में भी बुवाई की जा सकती है।

संदर्भ:
https://bit.ly/38968mu
https://bit.ly/3rGSXQy
https://bit.ly/3k1IMln
https://bit.ly/3L456qm

चित्र संदर्भ
1.नींबू विक्रेताओं को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. नीम्बुओं को हाथ में पकडे किसान को दर्शाता एक चित्रण (iStock)
3. आईसीएआर-केंद्रीय साइट्रस अनुसंधान संस्थान (सीसीआरआई) को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
4. गली में बैठे नींबू विक्रेता को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. नींबू के रस को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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