जैन दर्शन के सात मौलिक सिद्धांत

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
14-04-2022 09:46 AM
Post Viewership from Post Date to 18- Apr-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1763 98 1861
जैन दर्शन के सात मौलिक सिद्धांत

इस संसार में केवल अपने व्यक्तिगत अनुभव के बलबूते, सब कुछ जान लेना वास्तव में एक जटिल कार्य है! खासतौर पर, ईश्वर और मानव जीवन के अस्तित्व एवं कारण जैसे जटिल आध्यात्मिक विषयों को समझना हो तो, हमें ऐसे प्रामाणिक श्रोत की आवश्यकता पड़ती है, जो इस आध्यात्मिक मार्ग से पहले ही गुजर चुका हो, तथा जिसे हमारे सभी गूढ़ प्रश्नों के उत्तर पहले से ही ज्ञात हों। यदि आपके मस्तिष्क में भी अपने अस्तित्व अथवा ईश्वर की प्रमाणिकता जैसे जटिल किन्तु बेहद जरूरी प्रश्न उठते हैं, तो जैन दर्शन (Jain philosophy) इस संदर्भ में एक प्रामाणिक स्त्रोत हो सकते हैं, और आपकी सहायता कर सकते हैं। जैन दर्शन, प्राचीन भारतीय दर्शन माने जाते है। इसमें अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जैन धर्म की मान्यता अनुसार, 24 तीर्थंकर संसार चक्र में फंसे जीवों के कल्याण हेतु उपदेश देने के लिए, समय-समय पर इस धरती पर आते रहे है। जैन तीर्थंकरों में से कुछ के नाम ऋग्वेद में भी मिलते हैं, जिससे इनकी प्राचीनता प्रमाणित होती है। लगभग छठी शताब्दी ई॰ पू॰ में अंतिम तीर्थंकर, भगवान महावीर के द्वारा जैन दर्शन का पुनराव्रण हुआ। अंतिम जैन तीर्थंकर महवीर ने अपने शिष्यों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करने), ब्रह्मचर्य (शुद्धता) और अपरिग्रह (गैर- लगाव) की शिक्षा दी, और उनकी शिक्षाओं को जैन आगम कहा गया। जैन दर्शन के अनुसार जीव और कर्मो का सम्बन्ध अनादि काल से मौजूद है। जब जीव इन कर्मो को अपनी आत्मा से सम्पूर्ण रूप से मुक्त कर देता है तो वह स्वयं भगवान बन जाता है।
जैन दर्शन में सात "तत्वों" (सत्य, वास्तविकताओं या मौलिक सिद्धांतों) का अनुसरण किया जाता है। जैन दर्शन बताता है कि निम्नवत दिए गए सात तत्त्व ही वास्तविकता का निर्माण करते हैं। 1. जीव (Jīva): जैन धर्म का मानना ​​है कि, आत्माएं (जीव) एक वास्तविकता के रूप में मौजूद हैं, और यह शरीर से अलग, अपना अस्तित्व रखती है। आत्मा जन्म और मृत्यु दोनों का अनुभव करती है, वह न तो वास्तव में नष्ट होती है और न ही बनाई जाती है। असीमित चेतना, ज्ञान, आनंद और ऊर्जा, अभौतिक जीवों (non-material beings) की विशेषता होती है। इस प्रकार यह एक प्रकार से शाश्वत है, और दूसरे रूप में अनित्य है। मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य आत्मा से जुड़े सभी कर्म कणों को हटाना है। इस स्थिति में आत्मा शुद्ध और मुक्त हो जाएगी।
2.अजीव (Ajīva): अजीव किसी भी अचेतन पदार्थ को संदर्भित करता है। ऐसे पांच अजीव अथवा निर्जीव पदार्थ हैं, जो जीव के साथ-साथ ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं।
1. पुद्गला (पदार्थ) - पुद्गला अर्थात पदार्थ को, ठोस, तरल, गैसीय, ऊर्जा, सूक्ष्म कर्म सामग्री और अति सूक्ष्म पदार्थ या परम कणों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। परमाणु या परम कणों को सभी पदार्थों का मूल निर्माण खंड माना जाता है। जैन धर्म के अनुसार, इसे न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है।
2,3. धर्म-तत्त्व (गति का माध्यम) और अधर्म-तत्त्व (विश्राम का माध्यम) - इन्हें धर्मास्तिक्य और अधर्मस्तिकाय के नाम से भी जाना जाता है। वे गति और विश्राम के सिद्धांतों का चित्रण करने वाले जैन विचार माने जाते हैं। कहा जाता है कि, वे पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त हैं। धर्मास्तिक्य के बिना गति संभव नहीं है और धर्मशास्त्रीय के बिना ब्रह्मांड में विश्राम अथवा स्थिरता संभव नहीं है।
4. आकाश (अंतरिक्ष) - अंतरिक्ष एक पदार्थ है जो आत्माओं, पदार्थ, गति के सिद्धांत, आराम के सिद्धांत और समय को समायोजित करता है। यह सर्वव्यापी, अनंत और अनंत अंतरिक्ष-बिंदुओं से बना है।
5. काल (समय) - जैन धर्म के अनुसार समय एक वास्तविक इकाई है, तथा सभी गतिविधियों, परिवर्तनों या संशोधनों को समय के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है। जैन धर्म में, समय की तुलना एक चक्र से की जाती है, जिसमें बारह तीलियाँ अवरोही और आरोही हिस्सों में विभाजित होती हैं। जिनमें छह चरण होते हैं, तथा जिनमें से प्रत्येक की अवधि, अरबों सागरोपमा या महासागरीय वर्षों में अनुमानित होती है। 3.श्राव (Āsrava): स्राव (कर्म का प्रवाह) शरीर और मन के प्रभाव को संदर्भित करता है, जिससे आत्मा कर्म उत्पन्न करती है। यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा अच्छे और बुरे कर्म पदार्थ जीव में प्रवाहित होते हैं। यह तब होता है जब मन, वाणी और शरीर की गतिविधियों से उत्पन्न स्पंदनों के कारण कर्म कण आत्मा की ओर आकर्षित होते हैं।
4.बंध (Bandha): कर्मों का प्रभाव तभी हावी होता है, जब वे चेतना से बंधे होते हैं। कर्म को चेतना से बांधना बंध कहलाता है। बंधन के अनेक कारणों में से वासना को बंधन का मुख्य कारण माना गया है। विभिन्न भावों या मानसिक प्रवृत्तियों के अस्तित्व के कारण कर्म वस्तुतः बंधे होते हैं। 5.सांवर (Samvara): साँवर को कर्म का विराम माना गया है। सांवर दो प्रकार के होते हैं: पहला वह जो मानसिक जीवन (भाव-सांवर) से संबंधित है, और दूसरा वह जो कर्म कणों (द्रव्य-सांवर) को हटाने से संबंधित है।
6.निर्जरां (Nirjara): पहले से संचित कर्मों के त्याग या विनाश को निर्जरा कहा गया है। निर्जरा दो प्रकार की होती है: कर्म को हटाने का मानसिक पहलू (भाव-निर्जरा) और कर्म के कणों का विनाश (द्रव्य-निर्जरा)। आत्मा एक दर्पण की तरह है, कर्म की धूल उस दर्पण की सतह पर जमा होने पर आत्मा धुंधली दिखती है। जब कर्म विनाश द्वारा हटा दिए जाते हैं, तो आत्मा अपने शुद्ध और पारलौकिक रूप में चमकती है। तब जाकर कोई मोक्ष के लक्ष्य को प्राप्त करता है। 7.मोक्ष (Mokṣha): मोक्ष का अर्थ है मुक्ति या आत्मा की मुक्ति। जैन धर्म के अनुसार, मोक्ष आत्मा की कर्म बंधन से पूरी तरह मुक्त, संसार (जन्म और मृत्यु के चक्र) से मुक्त अवस्था की प्राप्ति है। इसका अर्थ, कर्म द्रव्य और शरीर की सभी अशुद्धियों को दूर करना है, जो आत्मा के अन्तर्निहित गुणों जैसे ज्ञान और दर्द और पीड़ा से मुक्त आनंद की विशेषता है। सही विश्वास, सही ज्ञान और सही आचरण एक साथ मिलकर मुक्ति का मार्ग बनाते हैं। जैन धर्म में, यह सर्वोच्च और श्रेष्ठ उद्देश्य है, जिसे प्राप्त करने के लिए प्रत्येक आत्मा को प्रयास करना चाहिए। वास्तव में, यही एकमात्र उद्देश्य है, जो किसी व्यक्ति के पास होना चाहिए। इसीलिए, जैन धर्म को मोक्ष मार्ग या "मुक्ति का मार्ग" भी कहा जाता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3KAilir
https://bit.ly/3KQPPJz
https://bit.ly/3O2bC2K

चित्र संदर्भ
1. नेत्रहीनों का एक जैन चित्रण और एक हाथी दृष्टांत। शीर्ष पर, केवलिन को सभी दृष्टिकोणों को देखने की क्षमता दिखाते हुए दिखाया गया है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. जैन धर्म का आधिकारिक प्रतीक, जिसे जैन प्रतीक चिहना के नाम से जाना जाता है। इस जैन प्रतीक पर 1974 में सभी जैन संप्रदायों ने सहमति व्यक्त की थी।को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जैन धर्म में आत्मा (स्थानांतरण में) की अवधारणा का चित्रण। सुनहरा रंग नोकर्म का प्रतिनिधित्व करता है - अर्ध-कर्म पदार्थ, सियान रंग द्रव्य कर्म को दर्शाता है - सूक्ष्म कर्म पदार्थ, नारंगी भाव कर्म का प्रतिनिधित्व करता है - मनो-भौतिक कर्म पदार्थ और सफेद शुद्ध चेतना को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. छ: द्रव्यों के वर्गीकरण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. मोक्ष में मुक्त आत्माओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.