मुरादाबाद और कश्मीर के पौधों और जानवरों में से कई ले जाए गए न्यूज़ीलैंड

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
22-12-2021 03:32 PM
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मुरादाबाद और कश्मीर के पौधों और जानवरों में से कई ले जाए गए न्यूज़ीलैंड

बुजुर्गों और विभिन्न किताबों के माध्यम से हमने जाना है की, अंग्रेज़ों के शाशन काल से पूर्व भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। लेकिन लगभग 200 वर्षों तक भारत में शाशन करने के दौरान अंग्रेज़ भारत से न केवल सोना बल्कि कई अन्य बहुमूल्य सामग्रियों को भी अपने साथ ले गए। अंग्रेज़ न केवल भारत की भौतिक वस्तुओं को अपने साथ ले गए, बल्कि उन्होंने यहां की संस्कृतियों और विभिन्न तकनीकों जैसे खेती की परंपराओं का भी बारीकी से अवलोकन किया, और जो कुछ भी उन्हें अपने परिदृश्य में उचित लगा उसे उन्होंने अपने मूल देश में भी लागू किया। उदाहरण के तौर पर भारत में ही जन्मे एक ब्रिटिश-शिक्षित सिविल सेवक और किसान सर जॉन क्राक्रॉफ्ट विल्सन (Sir John Cracroft Wilson) ने भारत की कृषि संस्कृति का विस्तार अपने गढ़ न्यूज़ीलैंड में भी किया। जॉन क्राक्रॉफ्ट विल्सन का जन्म भारत के ओनामोर में हुआ। वे मद्रास सिविल सर्विस में जज अलेक्जेंडर विल्सन (Alexander Wilson FRS) और एक प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री, एलिजाबेथ क्लेमेंटिना विल्सन (Elizabeth Clementina Wilson) के बेटे थे। ऑक्सफ़ोर्ड के ब्रासेनोज़ (Brasenose College, Oxford) कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात वह 1828 में भारत लौट आए और एक कैडेट के रूप में बंगाल सिविल सेवा में प्रवेश किया। 4 नवंबर 1828 को उन्होंने एलिजाबेथ (Elizabeth née Wall) से शादी की, आठवें बच्चे को जन्म देने के बाद 1843 में मुरादाबाद में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान, उन्होंने लेफ्टिनेंट-गवर्नर से विशेष शक्तियां प्राप्त कीं और भारत में फ़ैल रहे असंतोष के प्रसार को रोकने के लिए कार्य किया। उनका हस्तक्षेप बेहद प्रभावी साबित हुआ। उन्हें अपने हठ साहस और दृढ़ता के बलबूते भारत में किसी भी व्यक्ति की तुलना में अधिक ईसाई जीवन बचाने का गौरवपूर्ण गौरव प्राप्त है। हलांकि वर्ष 1853 के बाद से ही उनकी तबियत थोड़ी ख़राब रहने लगी और उन्हें ठंडे एवं शांत वातावरण में रहने की सलाह दी गई। इसके बाद वह ऐसी भूमि खोजने लगे जो ईस्ट इंडिया कंपनी से रिटायरमेंट के पश्चात् उनके लिए उचित रहे। इसलिए वह अपने परिवार एवं नौकरों के साथ ऑस्ट्रेलिया चले गए। लेकिन उन्हें ऑस्ट्रेलिया अधिक रास नहीं आया, जिसके बाद वह अपनी कर्म भूमि इंग्लैंड को लौट चले। जहाँ उन्होंने पोर्ट हिल्स (Port Hills) के दूसरी ओर 108 हेक्टेयर (1.08 किमी 2) भूमि खरीदी और भारतीय राज्य कश्मीर के नाम पर खेत का नाम कश्मीरी (अब क्राइस्टचर्च का एक उपनगर) रखा। उन्होंने तीन अन्य भूमि क्षेत्रों को भी लीज़ (lease) पर लिया जिनका नाम उन्होंने ब्रॉडलैंड्स, हाई पीक्स और क्रॉक्रॉफ्ट (Broadlands, High Peaks and Crowcroft) रखा। क्रॉक्रॉफ्ट पूरे कैंटरबरी में दूसरा सबसे बड़ा व्यक्तिगत भूमि क्षेत्र था। अपने कश्मीरी स्टेशन पर खेत में उन्होंने 11 कमरों के साथ एक घर बनाया। ऐसा माना जाता है कि 170 साल पहले जॉन क्राक्रॉफ्ट विल्सन के साथ भारत के यात्रियों द्वारा इस्लाम को न्यूजीलैंड लाया गया था। कई स्रोतों का सुझाव है की सर्वप्रथम न्यूजीलैंड में बसने वाले मुसलमान एक भारतीय परिवार से थे, जो 1850 के दशक में कश्मीरी, क्राइस्टचर्च (Christchurch) में बस गए थे। भारत में विल्सन एक मजिस्ट्रेट थे जो खेती में लिप्त रहते थे और भारत में दो जगहों - मुरादाबाद और कश्मीर को सबसे ज्यादा प्यार करते थे। रोज़ी लेवेलिन-जोन्स (Rosie Llewellyn-Jones) की 2007 की किताब 'द ग्रेट अपरीज़िंग इन इंडिया 1857-58: अनटोल्ड स्टोरीज़, इंडियन एंड ब्रिटिश' ('The Great Uprising in India) में उल्लेख किया गया है कि जॉन क्रॉक्रॉफ्ट विल्सन के पास कश्मीर में एक संपत्ति थी, जहां से उन्होंने खेती में रुचि ली। संभावना है कि विल्सन भारत के पहले मुस्लिम परिवार के न्यूजीलैंड में बसने का कारण बने। हालांकि, इस बात की तत्काल पुष्टि नहीं हो सकी है कि परिवार कश्मीर का था या मुरादाबाद का या बंगाल का। क्यों की विल्सन बंगाल सिविल सर्विसेज से भी ताल्लुक रखते थे। न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में, सर जॉन क्राक्रॉफ्ट विल्सन के खेत को कश्मीर के नाम पर कश्मीरी नाम मिला। न्यूज़ीलैंड में कश्मीरी की देश के अधिक समृद्ध और परिष्कृत उपनगरों के रूप में अपनी अलग प्रतिष्ठा है। विल्सन की अविश्वसनीय संपत्ति (1881 में उनकी मृत्यु पर उनकी संपत्ति और पूंजी का मूल्य लगभग £ 200 00018 था) ने उन्हें कैंटरबरी में बड़ी मात्रा में भूमि और संपत्ति खरीदने में सक्षम बनाया। अपने परिदृश्य के एक संवेदनशील सराहनाकर्ता, विल्सन ने पोर्ट हिल्स पर, लिटलटन के बंदरगाह के ऊपर, वन भूमि खरीदी विल्सन ने क्राइस्टचर्च के ऊपर की पहाड़ी को 'कश्मीरी' नाम दिया। विल्सन भारत में पैदा हुए थे और इंग्लैंड में अपनी शिक्षा के बाद, उन्होंने अपना लगभग पूरा कामकाजी जीवन भारतीय उपमहाद्वीप में बिताया। मुरादाबाद के विशेष वातावरण, पौधों और जानवरों के साथ-साथ व्यंजनों ने उन्हें खेती की ओर अधिक अग्रसर किया। जिसके बाद कैंटरबरी के कश्मीरी में अपने बगीचे में विल्सन ने करी मसाले और बांस लगाए। न्यूजीलैंड में, विल्सन ने उत्साहपूर्वक भारत के खाद्य पौधों के पहलुओं की खेती की। जिस प्रकार के विशेष वातावरण, पौधों और जानवरों के साथ विल्सन मुरादाबाद और कश्मीर में जो भोजन करने के आदी थे, उन्होंने उन्हीं पौधों और जानवरों में से कई को कश्मीरी में अपने बगीचे में उगाने एवं ले जाने की कोशिश की।

संदर्भ

https://bit.ly/3Ekj0Am
https://bit.ly/3FkLcEB
https://en.wikipedia.org/wiki/John_Cracroft_Wilson

चित्र संदर्भ   

1.1860 में सर जॉन क्राक्रॉफ्ट विल्सन भारत से क्राइस्टचर्च आए और रोडोडेंड्रोन की कुछ किस्मों के बीज लाए और रोपे। जिनमे से एक को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. भारत में ही जन्मे एक ब्रिटिश-शिक्षित सिविल सेवक और किसान सर जॉन क्राक्रॉफ्ट विल्सन (Sir John Cracroft Wilson) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. स्वान लेक कश्मीरी में शरद ऋतु, 31 मई 2014 क्राइस्टचर्च न्यूजीलैंड, को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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