घड़ियाल का परिचय‚ संरक्षण तथा मगरमच्छों के विभिन्न धार्मिक प्रतिवाद

रेंगने वाले जीव
18-11-2021 09:09 AM
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घड़ियाल का परिचय‚ संरक्षण तथा मगरमच्छों के विभिन्न धार्मिक प्रतिवाद

घड़ियाल गेवियालिडे (Gavialidae) जाति का एक मगरमच्छ है‚ जिसे गेवियल (gavial) नाम से भी जाना जाता है‚ ये बाकी सभी मगरमच्छों में सबसे लंबा है। जिनमें परिपक्व महिलाएं 2.6–4.5 मीटर तथा पुरुष 3–6 मीटर लंबे होते हैं। घड़ियाल अपने लंबे‚ पतले थूथन और 110 नुकीले‚ अन्तर्ग्रथन दांतों के कारण मछली पकड़ने के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है‚ इसलिए इसे फिश-ईटिंग क्रोकोडाइल (fish-eating crocodile) भी कहा जाता है।
घड़ियाल का नाम भारतीय शब्द ‘घड़ा’ (ghara) से लिया गया है‚ क्योंकि इसके थूथन के अंत में एक बल्बनुमा उभार मौजूद होता है‚ जो एक मिट्टी के बर्तन ‘घड़ा’ जैसा दिखता है। घड़ियाल संभवतः उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित हुआ था। प्लियोसीन (Pliocene) निक्षेपों में‚ शिवालिक पहाड़ियों और नर्मदा नदी घाटी में प्राचीन घड़ियाल अवशेषों की खुदाई की गई थी। यह वर्तमान में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग के मैदानी इलाकों की नदियों में निवास करता है। घड़ियाल पूर्णतया जलचर मगरमच्छ है‚ जो केवल नम रेत के किनारे पर गर्म होने और घोंसला बनाने के लिए पानी छोड़ता है। मादा घड़ियाल वसंत ऋतु में घोंसले खोदने के लिए एकत्र होती हैं‚ जिसमें वे 20-95 अंडे देती हैं। 1930 के दशक के बाद से जंगली घड़ियाल आबादी में भारी गिरावट आई है‚ 1976 तक‚ इसकी वैश्विक सीमा इसकी ऐतिहासिक सीमा की केवल 2% तक ही रह गई थी‚ जिसमें 200 से कम घड़ियाल के जीवित रहने का अनुमान लगाया गया था। घड़ियाल के सबसे पुराने ज्ञात चित्रण लगभग 4‚000 साल पुराने हैं‚ जो सिंधु घाटी में पाए गए थे। हिंदू संस्कृति में इसे देवी गंगा नदी का वाहन माना जाता है। नदियों के पास रहने वाले स्थानीय लोगों का मानना है‚ कि घड़ियाल के पास रहस्यमई उपचार शक्तियां हैं‚ इसलिए वे इसके शरीर के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल‚ स्वदेशी चिकित्सा के अवयवों के रूप में करते हैं। भारत और नेपाल में शुरू किए गए संरक्षण कार्यक्रम 1980 के दशक की शुरुआत से बंदी-नस्ल के घड़ियाल को फिर से शुरू करने पर केंद्रित थे। रेत खनन और कृषि में रूपांतरण‚ मछली संसाधनों की कमी और हानिकारक मछली पकड़ने के तरीकों के कारण‚ आवास की हानि इनकी आबादी के लिए खतरा बनी हुई है। इसे 2007 से आईयूसीएन रेड लिस्ट (IUCN Red List) में‚ गंभीर रूप से संकटग्रस्त के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
घड़ियाल कभी उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप की सभी प्रमुख नदी प्रणालियों; पाकिस्तान में सिंधु नदी‚ भारत में गंगा‚ पूर्वोत्तर भारत में ब्रह्मपुत्र नदी और बांग्लादेश से म्यांमार में इरावदी नदी तक पनपता था। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में‚ इसे सिंधु नदी और इसकी पंजाबी सहायक नदियों में आम माना जाता था। 1980 के दशक की शुरुआत तक‚ यह सिंधु में लगभग विलुप्त हो चुका था। 2008 और 2009 के सर्वेक्षण में नदी में कोई घड़ियाल नहीं देखा गया था। नेपाल में‚ गंगा की सहायक नदियों में इसकी छोटी आबादी मौजूद है‚ और धीरे-धीरे ठीक हो रही है। 2017 में नेपाल में मानव रहित हवाई वाहन का उपयोग करके बाबई नदी (Babai River) का सर्वेक्षण किया गया था‚ जिसमें 102 किमी की दूरी पर 33 घड़ियाल का पता चला था। भारत में कॉर्बेट नेशनल पार्क (Corbett National Park) में रामगंगा नदी‚ हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य (Hastinapur Wildlife Sanctuary) में गंगा नदी‚ कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य (Katarniaghat Wildlife Sanctuary) में गिरवा नदी‚ राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में चंबल नदी‚ पार्वती नदी‚ केन और यमुना नदियों के संगम‚ सोन नदी‚ ओडिशा के सतकोसिया गॉर्ज अभयारण्य (Odisha’s Satkosia Gorge Sanctuary) में महानदी नदी ऐसे स्थान हैं‚ जहां अलग-अलग दशकों में बंदी-नस्ल के घड़ियाल छोड़े गए थे। बाद में किए गए सर्वेक्षणों से यह पता चला कि इनमें से कई स्थानों में घड़ियालों की आबादी बढ़ी है तथा वहां घड़ियाल आज भी मौजूद है। इसके अलावा बिहार में कोशी नदी में जनवरी 2019 के अंत में लगभग 175 किमी की दूरी पर दक्षिण एशियाई नदी डॉल्फ़िन (South Asian River Dolphins) को लक्षित करते हुए एक सर्वेक्षण के दौरान दो घड़ियाल को देखा गया था। 1970 के बाद से नदी में जंगली घड़ियाल का यह पहला रिकॉर्ड है। घड़ियाल की घटती संख्या का कारण‚ घड़ियाल आवास में मछली पकड़ने के लिए उपयोग किया जाने वाला जाल भी है। घड़ियाल जाल में उलझ कर अक्सर पानी के नीचे फंस जाता है और डूब जाता है‚ उलझे हुए घड़ियाल आमतौर पर मारे जाते हैं। बांध‚ बैराज‚ सिंचाई नहर और पानी की निकासी उपयुक्त नदी आवासों को सीमांत या अनुपयुक्त झीलों में बदलकर‚ और डाउनस्ट्रीम नदी वर्गों के लिए उपलब्ध पानी की मात्रा और गुणवत्ता में बदलाव‚ घड़ियाल को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। नदी तल की खेती घड़ियाल के अस्तित्व को खतरे में डाल देती है‚ क्योंकि वे अपने निवास स्थान के स्थलीय घटक से विमुख हो जाते हैं‚ जिससे मरुस्थलीकरण और पलायन होता है। निरंतर खनन गतिविधियां‚ घोंसले के स्थलों को नष्ट कर देती है जिसके परिणामस्वरूप अंडों की प्रत्यक्ष मृत्यु भी हो सकती है। दिसंबर 2007 और मार्च 2008 के बीच चंबल नदी में 111 मृत घड़ियाल पाए गए‚ जिनकी मृत्यु का कारण सीसा और कैडमियम (cadmium) जैसी भारी धातुओं का उच्च स्तर था। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया (WWF-India) दिसंबर 2007 में राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल संकट के बाद से प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम (Species Recovery Programme) में शामिल रहा है। उत्तर प्रदेश वन विभाग के सहयोग से‚ डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया ने हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य में एक घड़ियाल पुनरुत्पादन कार्यक्रम शुरू किया। जनवरी 2009 से‚ कुकरैल पुनर्वास केंद्र (Kukrail Rehabilitation Centre) लखनऊ से 250 बंदी-नस्ल के घड़ियालों को गंगा नदी में छोड़ा गया है। टोक्यो विश्वविद्यालय (University of Tokyo)‚ जापान और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के सहयोग से‚ पानी के नीचे की गतिविधि और एक मुक्त घड़ियाल के आसपास के आवास को समझने के लिए घड़ियाल बायो-लॉगिंग विज्ञान (Gharial Bio-logging Science) पर एक अध्ययन शुरू किया गया है। यह ई- फ्लो को बनाए रखने‚ अवैध रेत खनन‚ प्रदूषण और नदी के किनारे खेती के प्रभावों को कम करने की दिशा में भी काम कर रहा है। घड़ियाल को सीआईटीईएस अनुबंध I (CITES Appendix I) में सूचीबद्ध किया गया है। भारत में‚ यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम‚ 1972 (Wildlife Protection Act of 1972) के तहत संरक्षित है। मगरमच्छ का भारत के लोगों के साथ एक अजीब रिश्ता रहा है। यह पूजनीय और आशंकित दोनों रहे है‚ इसे रक्षक भी माना जाता है और खतरा माना जाता है। भारत में मगरमच्छों के सबसे पहले ज्ञात चित्रणों में से एक‚ मुहर पर चित्रित हड़प्पा सभ्यता से है। मकर (Makara) मगरमच्छ का सबसे प्रसिद्ध चित्रण है‚ हालांकि मकर का रूप जगह-जगह बदलता रहता है। इसे अक्सर मगरमच्छ के जबड़े के साथ एक संकर प्राणी के रूप में दिखाया जाता है। यह गंगा नदी के साथ नर्मदा नदी तथा वरुण सागर का वाहन भी है। यह प्रेम के देवता कामदेव से भी जुड़ा है‚ वे जहां भी जाते हैं उनकी पत्नी मगरमच्छ को अपने साथ ले जाती है। एक किवदंती के अनुसार‚ एक बार हाथियों का राजा गजेंद्र अपने रिवाज के अनुसार पहरा दे रहा था‚ जब उसके झुंड की मादाएं नदी में स्नान कर रही थी। तभी एक मगरमच्छ ने उसे परेशान किया और उसका पैर पकड़ लिया। वह एक हजार साल तक गंजेंद्र के पैर पर रहा जब तक कि गजेंद्र ने भगवान विष्णु को उसकी मदद करने के लिए नहीं बुलाया। भगवान विष्णु ने फिर मगरमच्छ को मारने के लिए अपने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल किया। गोवा में मंगेम थापन्नी (Manngem Thapnni) नामक त्योहार के दौरान मगरमच्छ की पूजा की जाती है। ग्रामीण सीपियों के साथ मिट्टी का एक मगरमच्छ बनाते हैं और अंडे या मुर्गे की बलि चढ़ाते हैं। इस पूजा के कई कारण हैं; कुछ का मानना है कि यह उनकी रक्षा करेगा और मगरमच्छों को धान के खेतों में घूमने से रोकेगा‚ जबकि अन्य का मानना है कि यह वर्षा देवता वरुण को प्रसन्न करेगा।

संदर्भ:

https://bit.ly/3cpLz3K
https://bit.ly/31YbY6T
https://bit.ly/3oIbdXA

चित्र संदर्भ   

1. म्यावाडी, म्यांमार में एक विशाल मगरमच्छ की मूर्ति पर मंदिर, को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. घड़ियालों के झुंड को दर्शाता एक चित्रण (Pxfuel)
3. मगरमच्छ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. जैन संग्रहालय, खजुराहो में मकर मूर्तिकलाको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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