इस्लामी वास्तुकला में सुलेख एवं ज्यामितीय पैटर्न का महत्व और उत्पत्ति

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27-10-2021 09:14 PM
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इस्लामी वास्तुकला में सुलेख एवं ज्यामितीय पैटर्न का महत्व और उत्पत्ति

किसी भी इमारत को विशिष्ट बनाने में न केवल उसके ढांचे वरन उसकी वास्तुकला का भी बड़ा और अतुलनीय योगदान होता है। यदि आप आगरा स्थित ताजमहज अथवा रामपुर के रजा पुस्तकालय का गौर से अवलोकन करेगे, तो आपको पहली नज़र में यह महज एक शानदार ढांचा नज़र आ सकता है, लेकिन बारीकी से अवलोकन करने पर आप इसकी शानदार नक़्क़ाशीयों, ज्यामितीय पैटर्न और सुलेखों (calligraphy) के मुरीद बन जांएंगे। भवन और आभूषण निर्माण के संदर्भ में दुनियाभर में इस्लामी वास्तुकला के ज्यामितीय पैटर्न और सुलेख न केवल लोकप्रिय हैं, बल्कि अपने आप में अद्वितीय भी हैं।
इस्लाम में सुलेख को कला के सबसे पवित्र रूपों में से एक माना जाता है। इसे यह पवित्रता इस्लामी धर्मग्रन्थ कुरान से प्राप्त हुई है, जिसे पहली बार अरबी में लिखा गया था। दरअसल 7वीं शताब्दी के दौरान मुस्लिम लेखकों को अल्लाह के वचनों संरक्षित और विस्तारित करने के लिए एक योग्य लिपि विकसित करने की आवश्यकता पड़ी। इसलिए मुस्लिम शास्त्रियों ने सुलेख का उपयोग करके कुरान लिखना प्रारंभ कर दिया, जो अब आध्यात्मिक रूप से मुसलमानों के लिए अति महत्व रखती है। इस्लामी वास्तुकला में सुलेख न केवल एक आकर्षक सौंदर्य है, बल्कि आध्यात्मिकता की भावना पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। सुलेख ने मुख्य रूप से इस्लामी वास्तुकला में एक केंद्रीय भूमिका निभाई है। सदियों पूर्व जब पवित्र कुरान की पहली प्रतियां तैयार की गई थीं। तब शास्त्रियों की समझ में यह बात आ चुकी थी की भविष्य में कुरान को बहुत विस्तार से लिखा जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप इसकी लंबाई कई मीटर तक हो सकती है। इसलिए 7वीं शताब्दी के दौरान शास्त्रियों ने अपनी सुलेख तकनीकों का उपयोग करके मस्जिद की दीवारों पर कुरान की आयतों को लिखना शुरू कर दिया।
चूँकि शुरू से ही इस्लाम में अल्लाह का प्रतिनिधित्व करने के लिए छवियों का उपयोग करना वर्जित है, जिसने इस्लामी वास्तुकला में सुलेख के उदय में भी एक आवश्यक भूमिका निभाई थी। इस्तांबुल में स्थित हागिया सोफिया का मस्जिद में परिवर्तन इस बात का एक प्रमुख उदाहरण है कि, कैसे दृश्य छवियों को इस्लामी वास्तुकला में सुलेख में बदल दिया गया था। मुसलमानों द्वारा विकसित सजावटी कला सुलेख में कुशल अक्षरों का उपयोग होता है, जिसे कभी-कभी ज्यामितीय और प्राकृतिक रूपों के साथ जोड़ा जाता है। अरबी (मुस्लिम) सुलेख दो मुख्य रूप प्रदर्शित करता है। पहला कुफ़ी है, जो कूफ़ा शहर से निकला है। इस शहर से लेखकों के एक प्रसिद्ध स्कूल का उदय हुआ जो कुरान के प्रतिलेखन में लगे हुए थे। इस लिपि प्रकार के अक्षरों का एक आयताकार रूप होता है, जिसने उन्हें वास्तुशिल्प उपयोग के साथ अच्छी तरह से फिट किया। दूसरे प्रकार के सुलेख को नस्खी के नाम से जाना जाता है। अरबी लेखन की यह शैली कुफिक से पुरानी है, फिर भी यह आधुनिक पात्रों से मिलती जुलती है। इसकी विशेषता इसके अक्षरों के गोल और घुमावदार है। गुजरते समय के साथ नास्की सुलेख अधिक लोकप्रिय हो गया और ओटोमन्स द्वारा काफी विकसित किया गया था। वर्ष 2017 में संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के रामपुर रज़ा पुस्तकालय से इस्लामी सुलेख के मूल्यवान संग्रह की तस्वीरों की प्रदर्शनी का उद्घाटन ब्रुनेई दारुस्सलाम में भारत महोत्सव के उद्घाटन समारोह के रूप में किया गया था। इस प्रदर्शनी में पवित्र कुरान के छंदों सहित सुलेख की 36 तस्वीरें, और फ़ारसी और अरबी में कविता, रामपुर रज़ा पुस्तकालय संग्रह में 3000 से अधिक सुलेख टुकड़ों में से चुनी गई हैं।
सुलेख के साथ ही इस्लाम में इस्लामी ज्यामितीय पैटर्न (Islamic geometric patterns) भी इस्लामी आभूषण के प्रमुख रूपों में से एक हैं, जो इमारतों की सजावट के लिए छवियों का उपयोग करने से बचते हैं, क्योंकि कई पवित्र ग्रंथों के अनुसार एक महत्वपूर्ण इस्लामी आकृति का प्रतिनिधित्व करने के लिए मना किया जाता है। इस्लामी कला में ज्यामितीय डिजाइन अक्सर वर्गों और मंडलियों के दोहराव के संयोजन से बनाए जाते हैं, यह संयोजन एक साथ गठित होकर पुष्प या सुलेख अलंकरण के लिए एक रूपरेखा बना सकते हैं। ज्यामितीय पैटर्न इस्लामी कला और वास्तुकला में विभिन्न रूपों में पाए जाते हैं, जिनमें किलिम कालीन, फ़ारसी गिरिह और मोरक्कन ज़ेलिज टाइलवर्क, मुकर्णस सजावटी तिजोरी, जालीदार पत्थर की स्क्रीन, चीनी मिट्टी की चीज़ें, चमड़ा, सना हुआ ग्लास, लकड़ी का काम और धातु का काम शामिल है। कीथ क्रिचलो (Keith Critchlow) जैसे लेखकों ने इस्लामी पैटर्न, केवल सजावट होने के बजाय अंतर्निहित वास्तविकता (underlying reality) की समझ विकसित करने के लिए बनाए जाते हैं। डेविड वेड (David Wade) कहते हैं कि "इस्लाम की अधिकांश कला, चाहे वास्तुकला, चीनी मिट्टी की चीज़ें, वस्त्र या किताबों में, सजावट की कला, अपने आप में परिवर्तन की कला भी है। इस्लामी अलंकरण की एक विशेषता इसके पैटर्न की अनंतता भी है। इसमें शामिल जटिल ज्यामितीय पैटर्न स्पष्ट रूप से सर्वशक्तिमान अल्लाह की अनंतता को चित्रित करते हैं। इसमें अद्भुत कल्पना और आविष्कारशीलता का प्रदर्शन करते हुए विभिन्न पैटर्न वाली अनूठी इंटरलेसिंग लाइनें (interlacing lines) बुनी जाती हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/3bc6t6c
https://bit.ly/3pzNKtz
https://bit.ly/3jDXNtD
https://bit.ly/2rUydsX
https://bit.ly/3GpAXjq
https://bit.ly/2XKhmJ5

चित्र संदर्भ
1. अताबकी साहन, क़ोम, ईरान में फातिमा मासूमे तीर्थ के प्रवेश द्वार पर शानदार सुलेख एवं ज्यामितीय पैटर्न को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. रेजा अब्बासी संग्रहालय में 12वीं सदी की कुरान की पांडुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. क़ुतुब मीनार पर वर्णित सुलेख को दर्शाता एक चित्रण (istock)
4. बौ इनानिया मदरसा, फेस, मोरक्को, ज़ेलिज टाइलवर्क में ज्यामितीय पैटर्न को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. मोरक्को में स्थानीय भाषा की सजावटी इस्लामी शैलियों की एक किस्म को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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