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भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा रबर उत्पादक है।यहां स्थित केरल राज्य देश में उत्पादित कुल
रबर का 80 प्रतिशत हिस्सा बनाता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है, कि देश के लगभग 12
लाख किसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। रबर किसान का जीवन
टायरों पर निर्भर करता है। ऐसा इसलिए है,क्योंकि टायर, दुनिया के लगभग 60 प्रतिशत
प्राकृतिक रबर की खपत करते हैं। लेकिन अर्थव्यवस्था में मंदी के साथ,विशेष रूप से चीन में
(जो कि दुनिया का सबसे बड़ा रबर उपभोक्ता है) में टायरों की मांग कम हो गई है,तथा
परिणामस्वरूप रबर की कीमत गिर गई है। इस प्रकार दुनिया भर में मौजूद रबर किसानों का
जीवन संकट में आ गया है।तो चलिए आज पेड़ों से रबर के दोहन तथा भारत में इस प्रक्रिया के
इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
रबर भारत सहित विश्व के अनेकों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण उत्पाद है।रबर की प्राप्ति के लिए
हैविया ब्राजीलिएन्सिस (Havia braziliansis) नामक एक पेड़ अत्यधिक प्रसिद्ध है। भारत में
यह पेड़ केरल और उत्तर-पूर्वी राज्यों में प्रमुख तौर पर उगाया जाता है।यह जीनस हेविया का
आर्थिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण सदस्य है, क्योंकि पेड़ से निकाला गया दूधिया लेटेक्स प्राकृतिक
रबर का प्राथमिक स्रोत है। यह एक लंबा पर्णपाती पेड़ है, जो कि जंगलों में 43 मीटर (141
फीट) की ऊंचाई तक बढ़ सकता है।
लेकिन जिन पेड़ों को विशेष रूप से उगाया जाता है, वे
आमतौर पर बहुत छोटे होते हैं,क्योंकि लेटेक्स निकालने से पेड़ की वृद्धि सीमित हो जाती है।
इसका तना बेलनाकार होता है,और इसका आधार बोतल के आकार के समान हो सकता है।
इसकी छाल भूरे रंग की होती है, तथा क्षतिग्रस्त होने पर भीतरी छाल लेटेक्स निकालती
है।पत्तियों में तीन पत्रक होते हैं, जो कि सर्पिल रूप से व्यवस्थित होते हैं।पुष्पक्रम में अलग नर
और मादा फूल लगे होते हैं।
प्राकृतिक रबर के पेड़ की पहली फसल प्राप्त करने में करीब सात से दस साल का समय लगता
है।पेड़ों से रबर प्राप्त करने के लिए सबसे पहले इसकी छाल में एक कांटेदार चाकू की मदद से
एक चौथाई इंच (6.4 मिलीमीटर) की गहराई तक खांचे काटे जाते हैं, तथा छाल को पुनः छीला
जाता है। लेटेक्स प्राप्त करने के लिए पेड़ लगभग छह साल पुराने और छह इंच (150
मिलीमीटर) व्यास वाले होने चाहिए।छाल को छीलने पर पेड़ से दूधिया रंग का सफ़ेद पदार्थ
टपकने लगता है, जिसे एक कप या बर्तन में एकत्रित कर लिया जाता है।यह काम प्रायः रात में
या दिन का तापमान बढ़ने से पहले किया जाता है, ताकि जिस स्थान को खरोंचा गया है, वहां
पर लेटेक्स जमा न हो तथा यह लंबे समय तक टपकता रहे।लेटेक्स को लंबे समय तक संरक्षित
करने के लिए, लेटेक्स कप में अतिरिक्त रसायनों को भी जोड़ा जा सकता है।जैसे अमोनिया
विलयन प्राकृतिक जमाव को रोकने में मदद करता है और लेटेक्स को अपनी तरल अवस्था में
रहने देता है।
पेड़ों से रबर को प्राप्त करने की यह प्रक्रिया रबर टैपिंग (Tapping) कहलाती है।रबर टैपिंग की
यह प्रक्रिया जंगल के लिए हानिकारक नहीं है, क्योंकि लेटेक्स को निकालने के लिए पेड़ को
काटने की आवश्यकता नहीं होती है।यदि टैपिंग की यह प्रक्रिया सावधानी से और कुशलता से की
जाती है, तो टैपिंग पैनल पांच घंटे तक लेटेक्स दे सकता है।यदि 375 प्रति हेक्टेयर (150 प्रति
एकड़) के क्षेत्र में इन पेड़ों की खेती की जाती है, तो प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष लगभग 2,500
किलोग्राम रबर का उत्पादन किया जा सकता है।
रबर वर्षावन से प्राप्त होने वाले सबसे महत्वपूर्ण उत्पादों में से एक है। हालांकि,दक्षिण अमेरिका
(America) के स्वदेशी वर्षावन निवासी पीढ़ियों से रबर का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन 1839 से
पहले तक औद्योगिक दुनिया में रबर का पहला व्यावहारिक अनुप्रयोग नहीं किया गया था।उस
वर्ष,चार्ल्स गुडइयर (Charles Goodyear) द्वारा गलती से रबर और सल्फर एक गर्म स्टोवटॉप
(Stove Top) पर गिर गया। इससे एक हल्के जले हुए चमड़े जैसी संरचना प्राप्त हुई, जो
प्लास्टिक के समान और लचीली थी।इस प्रक्रिया का एक परिष्कृत संस्करण,वल्केनाइजेशन
(Vulcanization) से हेविया (Hevea) पेड़ की छाल से निकले सफेद रस या लेटेक्स को
औद्योगिक युग के लिए एक आवश्यक उत्पाद में बदल दिया गया।
19वीं सदी के अंत में ऑटोमोबाइल के आविष्कार के साथ,रबर की मांग अत्यधिक बढ़ने
लगी।जैसे ही रबर की मांग बढ़ी, मनौस (Manaus), ब्राजील (Brazil) जैसे छोटे शहर रातों रात
वाणिज्य के क्रियाशील केंद्रों में बदल गए।भारत में, इसकी व्यावसायिक खेती ब्रिटिश प्लांटर्स
द्वारा शुरू की गई थी, हालांकि व्यावसायिक पैमाने पर रबर उगाने के प्रायोगिक प्रयास 1873 में
कलकत्ता बॉटनिकल गार्डन (British Botanical Garden) में शुरू किए गए थे। पहला
व्यावसायिक हेविया वृक्षारोपण 1902 में केरल के थट्टेकाडु में स्थापित किया गया था। बाद के
वर्षों में वृक्षारोपण का विस्तार कर्नाटक, तमिलनाडु और भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप
समूह तक हुआ।
सिंगापुर (Singapore) और मलाया (Malaya) में, सर हेनरी निकोलस रिडले (Sir Henry
Nicholas Ridley) द्वारा व्यावसायिक उत्पादन को भारी बढ़ावा दिया गया, जिन्होंने 1888 से
1911 तक सिंगापुर वनस्पति उद्यान के पहले वैज्ञानिक निदेशक के रूप में कार्य किया। उन्होंने
कई बागवानों को रबर के बीज वितरित किए और पेड़ को गंभीर नुकसान पहुंचाए बिना लेटेक्स
के लिए पेड़ों के दोहन की पहली तकनीक विकसित की।रबर अविश्वसनीय रूप से सामान्य और
बहुमुखी सामग्री है, जिसका उपयोग इलास्टिक बैंड, जूते, स्विमिंग कैप आदि जैसी कई वस्तुओं
को बनाने के लिए किया जाता है। दरअसल, उत्पादित रबर का आधा हिस्सा वाहनों के टायर
बनाने में चला जाता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3aiLaiR
https://bit.ly/3DquhPy
https://bit.ly/3v8L0UV
चित्र संदर्भ
1. रबड़ के पेड़ से तरल निकलती महिला का एक चित्रण (flickr)
2. रबर की प्राप्ति के लिए हैविया ब्राजीलिएन्सिस (Havia braziliansis) नामक एक पेड़ अत्यधिक प्रसिद्ध है, जिसको दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. प्राकृतिक रबर की गेंद बनाने का एक चित्रण (flickr)
4. मशीन में रबर निर्माण की प्रक्रिया का एक चित्रण (youtube)
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