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धतूरा‚ सोलानेसी (Solanaceae) परिवार के वेस्परटाइन-फूलों (vespertine-
flowering) वाले पौधों की नौ जहरीली प्रजातियों में से एक है। “धतूरा” एक हिंदू
शब्द है‚ जिसका अर्थ “कांटे वाला सेब” होता है। इन्हें थॉर्नएपल्स (Thornapples)‚
जिमसनवीड्स (Jimsonweeds)‚ तथा डेविल्स ट्रम्पेट्स (devil's trumpets) भी
कहा जाता है। धतूरा एक रात में खिलने वाला शाकाहारी तथा बारहमासी पौधा है‚
जो आमतौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका (United States America)‚ बाजा
(Baja) तथा उत्तरी मैक्सिको (Northern Mexico) के शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता
है। धतूरा आमतौर पर समुद्र तल से 7‚000 फीट की ऊंचाई तक कहीं भी पाया जा
सकता है।
इस अनोखे पौधे को अन्य सामान्य नाम जैसे चाँद के फूल‚ कांटेदार सेब‚ चाँद
लिली‚ भारतीय सेब‚ परी की तुरही‚ शैतान की तुरही‚ तोलगुआचा‚ लोकोवीड तथा
जिमसन वीड के रूप में भी जाना जाता है।
धतूरे की सभी प्रजातियां जहरीली होती
हैं तथा इस पौधे के अधिकांश हिस्सों में जहरीले मतिभ्रम पाए जाते हैं‚ विशेष रूप
से उनके बीज और फूलों को ज्यादा मात्रा में सेवन करने से ये जानवरों के साथ-
साथ मनुष्यों में भी श्वसन अवसाद‚ बुखार‚ मतिभ्रम‚ एंटीकोलिनर्जिक सिंड्रोम
(Anticholinergic syndrome)‚ मनोविकृति तथा यहां तक कि मृत्यु का कारण
भी बन सकते हैं। धतूरे के प्रभावों और लक्षणों के कारण इतिहास में इसका ज़हर
के रूप में तथा विभिन्न समूहों द्वारा मतिभ्रम के रूप में भी उपयोग किया गया
है।
धतूरा 2 से 3 फीट ऊंचा हो सकता है और 6 से 8 फीट ऊंचाई तक पहुंच सकता
है। इसमें एक बड़ा‚ मांसल मूल जड़ होता है। इसकी पत्तियों के किनारे चिकने होते
हैं तथा पौधे के मजबूत और मोटे तनों पर व्यवस्थित होते हैं। इसकी पत्तियों का
रंग ऊपर के भाग में गहरा हरा तथा नीचे के भाग में हल्का हरा होता है तथा इन
पत्तियों में एक अनोखी सी अप्रिय गंध होती है। मौसम परिवर्तन के साथ एक धतूरे
का पौधा दर्जनों बड़े‚ सुगंधित तुरही के आकार के फूलों को पैदा करता है। ये फूल
आमतौर पर सफेद रंग के होते हैं लेकिन इसमें कभी-कभी हल्का लैवेंडर रंग भी
होता है‚ जो फूल के किनारों को ओर अधिक आकर्षित बनाता है। धतूरे के फूल
शाम को जल्दी खुलते हैं और अगले दिन दोपहर तक बंद हो जाते हैं। क्योंकि यह
एक रात में खिलने वाला पौधा है‚ इसलिए इन्हें रात का उल्लू भी कहा जाता है।
कुछ मूल अमेरिकी संस्कृतियों (Native American Cultures) द्वारा भी‚ धतूरे
का उपयोग धार्मिक समारोहों में किया जाता है। प्राचीन काल में चिकित्सा पुरुष‚
पवित्र पुरुष‚ अध्यात्मवादी और यहां तक कि स्वघोषित राक्षसों ने भी इसका प्रयोग
किया है। जानवरों या मनुष्यों द्वारा इसका सेवन कम ही किया जाता है‚ क्योंकि
इस पौधे के सभी भाग अत्यंत कड़वे होते हैं।
धतूरे के सुंदर तुरही के फूलों तथा
इसके जहरीले‚ क्षारीय स्वभाव के बीच का विरोधाभास‚ इसे प्रकृति का एक
मनमोहक उपहार बनाता है‚ जिसका आनंद इसकी फूलों की सुंदरता के लिए लिया
जा सकता है।
पौधे‚ प्रकृति के सौर ऊर्जा के प्रमुख संसाधक हैं‚ जो हमारे अस्तित्व के लिए
महत्वपूर्ण हैं। वे फूल‚ फल‚ लकड़ी या दवाएं भी देते हैं‚ और इस प्रकार हिंदुओं
द्वारा कृतज्ञता के रूप में इनकी पूजा की जाती है। पौधों को भगवान या देवताओं
का प्रतीक भी माना जाता है‚ तथा वे भारत के मिथकों और रीति-रिवाजों में एक
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पौधों तथा उनसे प्राप्त उत्पादों के बिना धार्मिक और
सांस्कृतिक अनुष्ठान पूरे नहीं होते हैं। पौधों की कुछ प्रजातियों का कुछ देवताओं
के साथ विशेष संबंध है। जैसे- भगवान शिव की पूजा‚ बेल पत्र की पत्तियों‚ आक
के फूल भांग‚ धतूरे के फल‚ बेर‚ एलियोकार्पस गैनिट्रस (Elaeocarpus ganitrus)
के बीज- रुद्राक्ष तथा चंदन की लकड़ी से की जाती है। भगवान शिव‚ कैलाश पर्वत
के जंगल में साधु का जीवन जीते हैं तथा कपड़ों के रूप में जानवरों की खाल को
धारण करते हैं। वह सभी जंगली चीजों से स्नेह करते हैं‚ इसीलिए उनकी पूजा में
जंगली फल तथा पौधों का ही उपयोग किया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में‚
भगवान शिव ‘सृष्टि के देवता’ के रूप में जाने जाते हैं। उनके नाम का अर्थ है
‘शुभ’ जिसका अर्थ है कि हर आपदा के बाद कुछ अच्छा होता है। शिवरात्रि‚ अर्थात
‘शिव की रात’‚ भगवान शिव के लाखों भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है।
महा शिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह दिवस है‚ जो फाल्गुन
माह में मनाया जाता है। इस रात भगवान शिव के उपासक अपने सभी पापों से
मुक्त हो जाते हैं तथा उन्हें जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है। महा
शिवरात्रि भगवान शिव की श्रद्धा में मनाई जाती है‚ जो शिव और शक्ति के
अभिसरण का प्रतीक है।
धार्मिक संघ के आधार पर धतूरे के फूल तथा फलों को पवित्र माना जाता है और
इसका उपयोग भगवान शिव के अनुष्ठानों और पूजा में किया जाता है। धतूरे के
फलों से बनी माला भगवान शिव को अर्पित की जाती है। हिंदू धार्मिक ग्रंथ “वामन
पुराण” के अनुसार धतूरा भगवान शिव की छाती से निकला हुआ माना जाता है।
शिव को विषधारी या नील-कठ के नाम से भी जाना जाता है‚ क्योंकि उन्होंने
विश्व कल्याण के लिए जहर का सेवन किया था‚ जो देव और असुरों के बीच हुए
समुद्र मंथन से निकला था। ऐसा माना जाता है कि शिव को धतूरा चढ़ाने का
अपना प्रतीकात्मक अर्थ होता है‚ जो ईर्ष्या‚ आतंक‚ प्रतिद्वंद्विता‚ अभद्र भाषा
तथा दुष्ट प्रकृति के जहर से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव को चढ़ाया जाता
है‚ ताकि व्यक्ति शुद्ध तथा सभी पापों से मुक्त हो सके। धतूरा‚ आमतौर पर
खरपतवार के रूप में उगता हैं‚ जो‚ ट्रोपेन एल्कलॉइड (Tropane Alkaloids) की
उपस्थिति के कारण विषैला और जहरीला होता है। जहरीला होने के बावजूद
आयुर्वेद में‚ अस्थमा‚ नपुंसकता‚ ग्लूकोमा‚ हृदय रोग‚ मिर्गी‚ त्वचा रोग‚ मूत्र
संबंधी समस्याओं को ठीक करने के लिए तथा शल्य चिकित्सा और बच्चे के जन्म
के दौरान संवेदनाहारी के रूप में इस पौधे के विभिन्न भागों का उपयोग प्राचीन
काल से किया जाता आ रहा है।
संदर्भ:
https://bit.ly/2VOLQsA
https://bit.ly/3nEtfef
https://bit.ly/2VMBNnT
चित्र संदर्भ
1. धतूरे के वृक्ष का एक चित्रण (istock)
2. धतूरे के कांटेदार फल का एक चित्रण (flickr)
3. धतूरे के घोट निर्माण का एक चित्रण (youtube)
4. शिवलिंग में अर्पित धतूरे का एक चित्रण (amarujala)
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