बरसात में पानी की अधिकता से त्राहिमाम मचा रहता है व् गर्मियों में पानी की कमी से

नदियाँ
11-08-2021 07:53 AM
बरसात में पानी की अधिकता से त्राहिमाम मचा रहता है व् गर्मियों में पानी की कमी से

बारिश का मौसम शुरू होते ही विशेष तौर पर देश के, कम आधुनिक अथवा ग्रामीण इलाकों में त्राहिमामं मच जाता है। जिन नदियों को साल के अन्य महीनों में जीवनदायनी माना जाता है, बरसात शुरू होते ही वे भी साक्षात् मृत्यु का रूप धारण कर लेती हैं। ऐसा प्रतीत होता है, मानों उन्हें किसी ने यह नहीं बताया हो की, उन्हें खतरे के लाल निशान से नीचे बहना है। वे अपनी सीमाएं भूल जाती हैं, ठीक उसी प्रकार जिस तरह मनुष्य अपनी सीमा से परे जाकर प्रकृति का दोहन कर रहा है। आमतौर पर ऐसा प्रतिवर्ष होता है, लेकिन यदि हम साल 2019 का उदहारण ले तो इस वर्ष भारी बारिश के कारण बांधों पर भारी जल दबाव पड़ा। जिस कारण रामनगर बैराज से भारी मात्रा में पानी छोड़ा गया, जिसके परिणाम स्वरूप कोसी नदी उफान पर आ गई। इतनी भारी मात्रा में पानी छोड़े जाने के परिणाम स्वरूप नदी का जल खतरे के निशान से कहीं ऊपर उठकर किसानों के खेतों में बहने लगा, जिस कारण मजबूर किसानों की सालभर की मेहनत से उगाई गई फसल पूरी तरह चौपट हो गई। किसान बस इतना कह पाए कि, पानी से उनकी लौकी, तोरई, भिंडी, करेला, खीरा आदि की फसलें पूरी तरह से नष्ट हो गई हैं। उनकी आँखों में बेचैनी स्पष्ट रूप से झलक रही थी।
केवल रामपुर ही नहीं वरन देश के अधिकांश नदी किनारों पर स्थित खेतों और किसानों के, बारिश के मौसम में कमोवेश ऐसे ही हालात रहते हैं। अधिकारीगण भी आते हैं, मुआइना भी करते हैं, और चले जाते हैं, तथा आंकड़ों को केवल अपने मशीनी उपकरणों में दर्ज कर लेते हैं। फिर प्रकृति और मनुष्यों द्वारा यह प्रक्रिया साल दर साल दोहराई जाती है, न बेचारे किसानों की सुध ली जाती है, और न ही इतने भयावह हालत उत्पन्न होने के असल कारणों की जांच की जाती है। यद्यपि हम इस विनाश के लिए प्रकृति (भारी बारिश) को भी दोषी ठहरा सकते हैं, परंतु नदियों के विकराल रूप धारण करने के पीछे कई अथवा केवल मानवीय कारण हो सकते हैं। जैसे नदियों के किनारे पर मिट्टी के कटाव के कारण जलस्तर बढ़ने पर नदियों का पानी खेतों में जा रहा है, साथ ही किनारों की कच्ची मिट्टी को भी अपने साथ बहा ले जा रहा है।
दरअसल नदियों से अवैध तौर पर किये गए रेत के खनन के परिणाम स्वरूप मिट्टी के कटाव जैसी स्थितियाँ बन रही हैं, साथ ही पर्यावरण को भी यह भयावह रूप से प्रभवित कर रहा है। रामपुर जिले में अवैध रेत खनन के कारण हुए पर्यावरणीय नुकसान के संबंध में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (The National Green Tribunal (NGT) ने, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड Central Pollution Control Board (CPCB) को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया। निर्देशनुसार किये गए अवलोकन से पता चलता है कि, खुदाई करने वाली मशीनों का उपयोग करके अवैध रेत खनन के कारण कोसी नदी में गहरी कट और खाई बन गई है, जो पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर रही है। इसे रोकने के लिए अनेक याचिकाकर्ताओं ने माफिया द्वारा अवैध और मशीनीकृत खनन से और नदी के किनारों की सुरक्षा की मांग की थी।
बरसात के मौसम में पानी की अधिकता से त्राहिमाम मचा रहता है, तथा गर्मियों में पानी की कमी से लोग परेशान रहते हैं। रामपुर में रामगंगा उप-बेसिन के हाइड्रोलॉजिकल विश्लेषण के आधार पर, अतिरिक्त बाढ़ के पानी को संग्रहीत करने और कब्जा करने और चरम प्रवाह को कम करने के लिए अपेक्षित अनुमानित भूमि क्षेत्र को परिभाषित किया गया है। कालागढ़ के पास स्थित यह रामगंगा जलाशय, सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन प्रदान करता है।
रामपुर शहर के निवासियों की कृषि तथा पेयजल आवश्यकता की पूर्ती भी भूमिगत जल पर निर्भर है, परंतु वहां भी असंगठित सिंचाई, राजकीय नलकूपों बनाम निजी नलकूपों की संख्या के कारण जल स्तर लगातार गिर रहा है। जल स्तर में गिरावट को रोकने के लिए, उपयुक्त कृत्रिम पुनर्भरण, जल संरक्षण तकनीकों को अपनाया जाना चाहिए, जिसमें सिंचाई के लिए सतही जल के उपयोग पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए। आपूर्ति पक्ष पर भी, उचित हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, जैसे कि ऐसी फसलों को उगना जिनमे पानी की कम आवश्यकता हो। साथ ही ड्रिप सिंचाई का उपयोग करने जैसी आधुनिक तकनीक से भूजल स्तर को ऊपर लाया जा सकता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3xF5EeN
https://bit.ly/3lODZWw
http://cgwb.gov.in/District_Profile/UP/Rampur.pdf
https://bit.ly/3lRzM4h
https://bit.ly/2X7G3hW

चित्र संदर्भ
1. उत्तराखंड बाढ़ जून 2013 - रुद्रप्रयाग तथा भीषण गर्मी में भयंकर सूखे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. बाढ़ में डूब चुके खलिहानों तथा घरों का एक चित्रण (flickr)
3.रामपुर में रामगंगा बांध का एक चित्रण (wikimedia)

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