मानव समाज में गुफा चित्रों का महत्त्व और इतिहास

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
03-07-2021 09:52 AM
मानव समाज में गुफा चित्रों का महत्त्व और इतिहास

आज हम आधुनिकता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ हमें दूसरों तक अपने संदेश पहुँचाने तथा अपनी परमपरा को आगे की पीढ़ियों में प्रेषित करने के लिए किताबें और इंटरनेट जैसे ढेरों माध्यम उपलब्ध हैं। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि, आज से हजारों वर्ष पूर्व जब काग़ज़ और इंटरनेट जैसे माध्यमों की कल्पना करना भी मुश्किल था, तब हमारे पूर्वज आदिमानवों ने किस प्रकार एक दूसरे से संचार स्थपित किया होगा? और कैसे उन्होंने अपने द्वारा की गयी खोजो एवं अपनी प्रतिभा को अगली पीढ़ी तक प्रेषित किया होगा? दरअसल मनुष्य प्रजाति पाषाण काल में भी आज की ही भांति चतुर और जिज्ञासु क़िस्म की प्रवर्ति रखती थी। अपनी इसी प्रकृति के अनुरूप हमारे पूर्वजों ने आग की खोज की, धीरे-धीरे आदिमानवों द्वारा अपनी भावनाओं और संदेशों के संचार हेतु पहली बार गुफा चित्रों को अस्तित्व में लाया गया। गुफा कला, जिसे पार्श्विका कला या गुफा चित्र भी कहा जाता है, एक सामान्य शब्द है, जिसका प्रयोग प्राचीन काल से गुफाओं में की जा रही चित्रकारी हेतु किया जाता है।
गुफा चित्रों से सम्बंधित सबसे प्रसिद्ध स्थल अपर पैलियोलिथिक यूरोप (Upper Paleolithic Europe) में हैं, जहाँ लगभग 20,000-30,000 साल पहले विलुप्त जानवरों, मनुष्यों और ज्यामितीय आकृतियों को चित्रित करने के लिए, चारकोल और गेरू सहित अन्य प्राकृतिक रंगों से बने पॉलीक्रोम (बहु-रंगीन) चित्रों का उपयोग किया गया है।
गुफाओं में कलाकारी के उद्द्येश्य पर व्यापक रूप से बहस होती है। गुफा कला को "रचनात्मक विस्फोट" का प्रमाण भी माना जाता है। इन चित्रों से यह स्पष्टता आती है कि प्राचीन मनुष्यों के दिमाग़ पूरी तरह से विकसित हो गए थे। इन चित्रों में से अधिकांश जानवरों और शिकार प्रकरण से सम्बंधित होते थे। आज, विद्वानों का मानना ​​​​है कि व्यवहारिक आधुनिकता की ओर मानव प्रगति अफ्रीका में शुरू हुई थी, जो की बहुत धीमी गति से विकसित हुई। अभी तक की ज्ञात सबसे पुरानी गुफा कला स्पेन में एल कैस्टिलो गुफा (El Castillo Cave in Spain) में पाई गई है, जहाँ करीब 40, 000 साल पहले एक गुफा की छत पर हाथ के निशान और जानवरों को चित्रित किया गया है। पूरे भारतं में लगभग 10, 000 से अधिक ऐसे स्थान ज्ञात हैं, जिनमें पुरापाषाणकालीन अवधि के भित्ति चित्र हैं, ये मुख्य रूप से कुछ प्राकृतिक और तराशी गयी गुफाओं में मिलते हैं, जिनमे से अजंता की गुफाएँ, बाग, सिट्टानवसल, अरमामलाई गुफा (तमिलनाडु) , रावण छाया रॉक शेल्टर, एलोरा गुफाएँ आदि प्रमुख हैं। भारत में गुफा चित्रों या रॉक कला का इतिहास प्रागैतिहासिक काल के (मध्य भारत) की गुफाओं से शुरू होता है, जिनमे भीमबेटका रॉक तथा अजंता और एलोरा की गुफाएँ प्रमुख हैं। भीमबेटका शैलाश्रय मध्य भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित एक पुरातात्विक स्थल है, जो भारतीय उपमहाद्वीप पर मानव जीवन के शुरुआती समय को प्रदर्शित करती है।
भीमबेटका एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जिसमें सात पहाड़ियाँ और 750 से अधिक रॉक शेल्टर शामिल हैं, जो 10 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले हुए हैं। भीमबेटका के कुछ शैलाश्रयों में प्रागैतिहासिक गुफा चित्र हैं, जिनमें भारतीय मध्यपाषाण काल ​​से सम्बंधित से 10, 000 वर्ष बी. सी. की सबसे पुरानी तिथि भी वर्णित है। ये गुफाचित्र जानवरों, नृत्य और शिकार के शुरुआती सबूत दिखाती हैं। भीमबेटका का नाम महाभारत में पांडवों के दूसरे भाई भीम के नाम पर रखा गया है, कुछ स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि भीम ने अपने भाइयों के साथ निर्वासन के बाद यहाँ विश्राम किया था। इन रॉक गुफाओं को दुनिया की सबसे पुरानी पेट्रोग्लिफ्स (petroglyphs) ": एक चट्टान पर नक्काशी या शिलालेख" माना जाता है। पुरापाषाणकालीन चट्टानों पर कला की पहचान पहली बार 1875 में अल्टामिरा, स्पेन (Altamira, Spain) में और 1879 में अर्देचे घाटी (Ardeche Valley) में चाबोट गुफा (Chabot cave) चित्रों से की गई, जिसके बाद हमारे पूर्वजों की जीवनशैली को वर्णित करती अनेक गुफाचित्रों की खोजे होने लगी। इस परिकल्पना से पता चलता है कि प्रागैतिहासिक मानवों द्वारा गुफाओं का प्रयोग नक्काशीदार और आकर्षक चित्रण सौंदर्य को प्रस्तुत करने हेतु किया जाता था। ऐसे अनेक कारण हैं जिनकी वज़ह से प्रागैतिहासिक मानव गुफाओं के प्रति विशेष आकर्षित होते थे, हेनरी बेगौएन (Henri Begouen, टूलूज़ विश्वविद्यालय (Toulouse University, France) में प्रागितिहास के प्रोफेसर थे, इसके अलावा उनकी संपत्ति पर गुफाओं की खुदाई भी हुई थी।) ने यह सुझाया कि प्रागैतिहासिक मनुष्यों ने अपने शिकार के परिणाम को गुफाओं में चित्रित करके संभवतः अन्य को प्रभावित करने का प्रयास किया। यूरोपीय पैलियोलिथिक पार्श्विका कला में पशुओं की विभिन्न प्रजातियों को चित्रित किया गया, जिनमे बारहसिंगा, बाइसन (Bison) और घोड़े ऐसे जानवर थे जिन्हें अक्सर चित्रित किया जाता था। हम कह सकते हैं कि पार्श्विका कला पुरापाषाण मानव और पशु जगत के संलयन का प्रतीक है।

संदर्भ
https://bit.ly/3dJoD0P
https://bit.ly/3dlL8bR
https://bit.ly/2SAjikZ
https://bit.ly/2UbhLlI
https://bit.ly/2Uexal9
https://bit.ly/3h3AVmv

चित्र संदर्भ
1. यूरोप में आदिमानवों के आगमन का एक चित्रण (RSE)
2. अल्तामिरा की गुफा से बाइसन पेंटिंग (प्रतिकृति), मैग्डलेनियन को दिनांकित चित्रण (wikimedia)
3. भीमबेटका के कुछ शैलाश्रयों में प्रागैतिहासिक गुफा चित्र (wikimedia)

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