पृथ्‍वी पर प्रहार क्रेटेरों की वर्तमान स्थिति

खनिज
29-06-2021 09:14 AM
पृथ्‍वी पर प्रहार क्रेटेरों की वर्तमान स्थिति

हमारी पृथ्‍वी न जाने कितनी आश्‍चर्यचकित संरचनाओं से भरी पड़ी है जिनमें से कुछ ज्ञात हैं तो कुछ अज्ञात। पृथ्‍वी पर बने उल्कापिंड प्रहार क्रेटर (Impact Crater)यहां की सबसे दिलचस्प भूवैज्ञानिक संरचनाओं में से एक हैं।यह क्रेटर गोलाकार या उसके निकट होते हैं, इनका निर्माण विस्‍फोटन से होता है, यह विस्‍फोट ज्वालामुखी, अंतरिक्ष से गिरे उल्कापिंड या फिर ज़मीन के अन्दर अन्‍य कोई गतिविधि के कारण होते हैं। पृथ्‍वी के विकास के साथ ही कई प्राकृतिक घटनाओं के कारण यह क्रेटर नष्‍ट हो गए हैं। इनमें से कई ’एस्‍ट्रोब्‍लेम्‍स (astroblemes) (ग्रीक में शाब्दिक अर्थ स्टार घाव (star wound)) गड्ढे और विकृत आधार के गोलाकार भूवैज्ञानिक निशान आज भी मौजूद हैं। अक्‍सर अंतरिक्ष के धूमकेतु या क्षुद्रग्रहों के चट्टानी टुकड़े पृथ्‍वी के वायुमण्‍डल के संपर्क में आते ही विस्‍फोटित हो जाते हैं, इनमें से कुछ एक वायुमण्‍डल को पार करते हुए पृथ्‍वी तक पहुंच जाते हैं, इन्‍हें उल्‍कापिण्‍ड कहा जाता है। यह उल्‍का पिण्‍ड हर साल पृथ्‍वी पर गिरते हैं किंतु इनको खोज पाना लगभग असंभव कार्य है, क्योंकि वे निर्जन जंगल के विशाल क्षेत्रों में या समुद्र के खुले पानी में गिरत हैं।जब यह वायुमण्‍डल से टकराते हैं तो एक विस्‍फोट होता है जिससे तीव्र प्रकाश निकलता है, इसे हम पृथ्‍वी से देख सकते हैं।
विस्‍फोट के बाद इनमें से अधिकांश धूल मिट्टी बन जाते हैं और कुछ उल्‍का पृथ्‍वी के भीतर प्रवेश कर जाते हैं।अंतरिक्ष में होने वाली उल्‍का वर्षा को पृथ्‍वी से देखा तो जा सकता है किंतु इन उल्‍कापिण्‍डों के अवशेषों को पृथ्‍वी में खोजा नहीं जा सकता है। पेर्सेइड (Perseids) एक प्रकार की उल्कावर्षा है जो सुइफ्ट-टटल (Swift–Tuttle) नामक केतु से सम्बन्धित है। इसमें मौजूद उल्‍का बहुत नाजुक होते हैं उनमें से अधिकांशत: बर्फ और धूल का मिश्रण होते हैं। वे 132,000 मील प्रति घंटे (212,433 किमी / घंटा) की रफ्तार से वायुमंडल से गुजरने हेतु पर्याप्त मजबूत नहीं होते हैं। परिणामत: वे कभी उल्कापिंड नहीं बना पाते हैं। 50 मील (80 किमी) की ऊँचाई तक पहुंचने तक वे पूर्णत: वाष्पीकृत हो जाते हैं। पृथ्‍वी तक पहुंचने वाले अधिकांश उल्कापिंड का वजन एक पाउंड से भी कम होता है। पत्‍थरों के ये छोटे टुकड़े ज्‍यादा नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। एक 1-lb (0.45 किलोग्राम) उल्कापिंड 200 मील प्रति घंटे (322 किमी / घंटा) की रफ्तार से घर की छत पर गिर सकता है या फिर कार के ग्‍लास पर गिरकर उसे नुकसान पहुंचा सकता है। वहीं पृथ्‍वी में कुछ ऐसी उल्‍कापीण्‍डिय घटना भी हुयी हैं जिसने आज तक अपनी छाप छोड़ी है। वैज्ञानिकों ने भारत में भू-पर्पर्टी में तीन गहरे निशान खोजे हैं जिनके बारे में माना जाता है कि यह उल्कापिंड के गड्ढे के अवशेष हैं। जिनमें लोनार झील दुनिया के सबसे बड़े बेसाल्टिक प्रभाव गड्ढा होने के लिए प्रसिद्ध है, अन्य दो, रामगढ़ और ढला, अपेक्षाकृत अज्ञात हैं। लोनार झील महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित एक खारे पानी की झील है। इसका निर्माण एक उल्का पिंड के पृथ्वी से टकराने के कारण हुआ था। कई वर्षों से निरंतर हुए कटाव के कारण इन उल्कापिंडों के प्रभाव से बने गड्ढे के सटीक आकार को निर्धारित करना मुश्किल कार्य है। लोनार क्रेटर (Lonar Crater) बेसाल्ट चट्टान (Basalt Rock) में बना सबसे कम उम्र का और सबसे अधिक संरक्षित प्रहार क्रेटर है और यह संपूर्ण पृथ्वी पर इस प्रकार का एकमात्र गड्ढा है। लगभग पच्चीस हज़ार साल पहले एक उल्का जो एक मिलियन टन से अधिक वजन का था, 90,000 किमी प्रति घंटे की अनुमानित गति से पृथ्वी पर गिरा, ‍जिससे लोनार झील के गड्ढे का निर्माण हुआ। लोनार झील जैव विविधता से घिरी हुयी है, इसके निकट एक वन्‍यजीव अभ्‍यारण्‍य है जो एक अद्वितीय पारिस्थितिकी से भरपूर है।
इस झील का पानी क्षारीय और खारा है, लोनार झील ऐसे सूक्ष्म जीवों का समर्थन करती है जो शायद ही कभी पृथ्वी पर पाए जाते हैं। हरे-भरे जंगल से घिरे इस झील के चारों ओर सदियों पुराने परित्यक्त मंदिर जो अब केवल कीड़ों और चमगादड़ों का घर हैं, और खनिजों के टुकड़े जैसे मास्कलीनाइट (maskelynite) पाए जाते हैं। मास्कलीनाइट एक प्रकार का प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला शीशा है जो केवल अत्यधिक उच्च-वेग के प्रभावों द्वारा बनता है। नासा (NASA) के अनुसार, इस सामग्री की उपस्थिति और ज्वालामुखी बेसाल्ट में क्रेटर की स्थिति लोनार को चंद्रमा की सतह पर प्रहार क्रेटर के लिए एक अच्छा एनालॉग (analogue) बनाती है। दिलचस्प बात यह है कि क्रेटर साइट से हाल ही में खोजा गया बैक्टीरिया अवसाद (bacterial strain) (बैसिलस ओडिसी (Bacillus odyssey)) मंगल ग्रह पर पाए जाने वाले पदार्थ जैसा दिखता है। रामगढ़ क्रेटर दक्षिणपूर्वी राजस्थान में बारां जिले के रामगढ़ गाँव के पास विशाल समतल भूमि पर स्थित है। रामगढ़ गड्ढा, 2.7 किमी के व्यास और लगभग 200 मीटर की ऊंचाई तक घिरा हुआ है, इसे 40 किमी की दूरी से आसानी से देखा जा सकता है। गड्ढे के केंद्र में स्थित छोटा शंक्वाकार शिखर प्राचीन, खूबसूरती से गढ़ी गई बांदेवाड़ा मंदिर का स्थान है। इस क्षेत्र में बहने वाली पार्वती नदी इस गड्ढे के भीतर एक छोटी झील बनाती है। लोनार क्रेटर की तुलना में, रामगढ़ क्रेटर का बहुत अधिक क्षरण हुआ है - केवल इजेक्टा (ejecta) (एक प्रकार की सामग्री जो एक उल्का प्रभाव या एक तारकीय विस्फोट के परिणामस्वरूप निष्‍कासित होती है) की एक पतली परत क्रेटर के किनारों को कवर करती है। इजेक्टा में निकेल (nickel) और कोबाल्ट (cobalt) सामग्री के उच्च अनुपात के साथ चमकदार चुंबकीय स्पैरुल्स (spherules) की घटना को वैज्ञानिकों द्वारा उल्‍लेखित किया गया है। इससे ज्ञात होता है कि कि यह क्रेटर उल्कापिंडीय प्रभाव के दौरान वायुमंडलीय प्रकोपों के कारण बना था। हालांकि, इस असामान्य गड्ढे ने अपनी खोज के बाद से भूवैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया है, इसकी उत्पत्ति, संरचना और लिथोलॉजी (lithology) का मूल्यांकन करने के लिए एक विस्तृत बहु- विषयक अध्ययन अभी बाकी है। शिव क्रेटर मुंबई अपतटीय क्षेत्र में स्थित एक आंसू के आकार की संरचना है, एक सिद्धांत के अनुसार, लगभग 40 किमी व्यास का एक विशाल क्षुद्रग्रह, भारत के पश्चिमी तट (बॉम्बे हाई (Bombay High) के पास) पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिससे 500 किमी चौड़ा एक विशाल गड्ढा बन गया। परिणामस्‍वरूप इस क्षेत्र में तापमान तेजी से बढ़ा, कई हजार डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया और दुनिया के पूरे परमाणु शस्त्रागार की तुलना से कई अधिक ऊर्जा निष्‍कासित हुई। जल्द ही, इस ऊर्जा ने वायुमंडल, पानी, मिट्टी और सतह की चट्टान (दक्कन ट्रैप (Deccan Trap) के सहित) की पतली परत को तोड़कर वातावरण को नष्ट करना शुरू कर दिया।
इसके परिणामस्‍वरूप डायनासोरों (Dinosaurs) का विनाश हुआ और वे बड़े पैमाने पर विलुप्त होना शुरू हो गए। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में स्थित ढाला गड्ढा लगभग कम से कम 1.8 बिलियन साल पुराना है, किंतु अब यह बड़े पैमाने पर नष्‍ट हो गया है। जबकि गड्ढा का केंद्र एक मीसा (mesa) जैसा समतल क्षेत्र है, रिम प्रभाव द्रवित चट्टानों और ग्रेनीटाइड (Granitide) से बना है। डायग्नोस्टिक शॉक मेटामॉर्फिक फीचर्स (diagnostic shock metamorphic features ) (प्रभाव की घटनाओं के दौरान विरूपण और ताप के कारण होने वाले भूगर्भीय परिवर्तन) के साथ, यह गड्ढा उल्का प्रभाव संरचना के रूप में पुष्टि करता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/2U3VshC
https://bit.ly/35QVoo9
https://bit.ly/3gQElJe

चित्र संदर्भ
1.उल्कापिंड के प्रभाव से बने गड्ढे एक चित्रण एक चित्रण (unsplash)
2. धरती पर गिरते उल्कापिंड का एक चित्रण (flickr)
3. उल्कापिंड के प्रभाव से बने लेनार गड्ढे एक चित्रण (wikimedia)
4. डायनासोर के खात्मे को दर्शाता एक चित्रण (youtube)

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