लाल चीटियों द्वारा दासता का विकास कैसे हुआ और लाल चींटी को लोग क्यों खाना पसंद करते है

तितलियाँ व कीड़े
13-05-2021 05:33 PM
लाल चीटियों द्वारा दासता का विकास कैसे हुआ और लाल चींटी को लोग क्यों खाना पसंद करते है

हर वर्ष गर्मियों में लाल चीटियों के प्रजाति में से फोर्मिका संगुनिआ (Formica singunea) अन्य चीटियों के प्रजाति को पकड़ने के लिए जाती है , वे अन्य चीटियों के घोसलो में घुसपैठ करके वहां के रानी को मारकर वहां के बच्चो (प्यूपा) का अपरहण करके अपने घोसलो में लेकर आती है। ये उन प्यूपा का अपरहण अपने देखभाल एवं रक्षा करने के लिए करती है , ठीक शब्दों में बोले तो दास या गुलाम बनाती है। जब वे प्यूपा नए घोसलो में आते है तो उनको अपने अपरहण के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है इसीलिए वे उनके लिए भोजन इकठ्ठा करते है और उनके घोसलो की रक्षा करते है जैसे की वह घोसला उनके खुद का हो। इस प्रकिया ने वैज्ञानिको को सोचने के लिए विवश कर दिया की ऐसे गुलाम व्यवहार कैसे विकसित हुए, पर अब ये नए साक्ष्यों से पता चला की लाल चीटिया अन्य प्रजाति के चीटियों या प्यूपा को अस्थायी पर जीव के रूप में इस्तेमाल किया करती है। वे प्यूपा को अपने घोसलो में रखकर उन्हें अपने बच्चो के देखभाल करने के लिए प्रयोग करती थी।

कई वैज्ञानिको ने इस दासता पद्धति को समझने का प्रयास किया पर किसी को कुछ खास हाथ नहीं लगा | फिर जाकर शोधकर्ता जोनाथन रोमीगुएर (Jonathan Romiguier) और उसके कुछ सहयोगियों ने क्रमबद्ध तरीके से 15 फॉर्मिक (formic) प्रजाति के अनुवांशिक सम्बन्ध का अध्ययन किया तथा एक पेड़ के अलग-अलग शाखाओं पर अन्य प्रजातियों को रखा और अबतक का सबसे शानदार रिपोर्ट तैयार किया , और उन्ही शाखाओं का क्रम बताता है की दासता कैसे विकसित हुई।
यह बात सुनने में जरूर अजीब लगे पर है सच । लाल चींटी की चटनी खाने से मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां नहीं होती हैं। छत्तीसगढ़ के सभी आदिवासी इलाकों में लाल चींटी के औषधीय गुण के कारण इसकी बहुत मांग हैं।
मीठे फलों के पेड़ पर अपना घोसला बनाने वाली चींटियों की इन इलाकों में बहुत मांग हैं। अपने औषधीय गुण के कारण धीरे-धीरे इसकी मांग बढ़ रही है। लाल चींटियों की चटनी यहां लगने वाले साप्ताहिक बाजारों में बेची भी जा रही हैं। आदिवासी इलाकों में लाल चींटियों से बनाई जाने वाली चटनी को चापड़ा कहा जाता है। लाल चींटी की चटनी को औषधि के रूप में प्रयोग ला रहे आदिवासियों का कहना है कि चापड़ा को खाने की सीख उन्हें अपनी विरासत से मिली है। यदि किसी को बुखार आजाए तो उस व्यक्ति को उस स्थान पर बैठाया जाता है जहां लाल चींटियां होती हैं। चींटियां जब पीड़ित व्यक्ति को काटती हैं तो उसका बुखार उतर जाता है।
प्रायःआम, अमरूद, साल और अन्य ऐसे पेड़ जिनमें मिठास होती है उन पेड़ों पर यह चींटियां अपना घरौंदा बनाती हैं। आदिवासी एक पात्र में चींटियों को एकत्र करते हैं। इसके बाद इनकों पीसा जाता है।नमक, मिर्च मिलाकर रोटी के साथ या ऐसे ही खा लिया जाता है। चींटी में फॉर्मिक एसिड होने के कारण इससे बनी चटनी चटपटी होती है। इसमें प्रोटीन भी होता है।

सन्दर्भ:-
https://bit.ly/3eHMkar
https://bit.ly/3tJlhje
https://bit.ly/3y9BqSL

चित्र संदर्भ
1.लाल चींटी तथा भोजन करते बच्चे का एक चित्रण (Youtube , Unsplash)
2.लाल चींटी की चटनी का एक चित्रण (Youtube)
3.पेड पर लाल चींटी का एक चित्रण (Freepik)

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