भारत में लघु कला और कलाकृतियों का प्रारंभ और विकास

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
10-03-2021 10:36 AM
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भारत में लघु कला और कलाकृतियों का प्रारंभ और विकास
रामपुर में स्थित रज़ा पुस्तकालय में ऐतिहासिक मूल्य के अनेक संग्रहों को संरक्षित रखा हुआ है। ये पुस्तकालय बादशाहों की लंबी कहानियों को बयान करता है। इसमें संरक्षित पांडुलिपियां युद्ध, पौराणिक कहानियों, शिकार के दृश्यों, वन्य जीवन, शाही जीवन, पौराणिक कथाओं आदि जैसे विषयों को दर्शाती है। ये मंगोल (Mongol), फ़ारसी (Persian), दखिनी मुग़ल (Mughal Deccani), राजपूत (Rajput), पहाड़ी, अवध और ब्रिटिश स्कूल ऑफ़ पेंटिंग (British Schools of Paintings) की दुर्लभ लघु चित्र, और सचित्र पांडुलिपियों से समृद्ध है। पुस्तकालय में चित्र और लघुचित्रों के पैंतीस एल्बम (Albums) हैं, जिनमें ऐतिहासिक मूल्य के लगभग पाँच हज़ार चित्र शमिल हैं। इन एल्बमों में अकबर के शासनकाल के शुरुआती वर्षों का एक अनूठा एल्बम ‘तिलिस्म’ (Tilism) भी है, जिसमें समाज के विभिन्न तबके के जीवन के 157 लघुचित्र शामिल हैं। इसके अलावा ज्योतिषीय और जादुई अवधारणाओं के शाही बैनर (Banner) में कुरान की आयतें और प्रतीकात्मक तिमूरिद (Timurid) बैनर को सूरज और शेर के साथ चित्रित किया गया है, जबकि अन्य में राशि चक्र के संकेत निहित हैं। एल्बम में अवध नवाबों की मुहरें भी हैं, जो यह इंगित करता है कि यह वहां उनके कब्जे में था। पुस्तकालय संग्रह में संतों और सूफियों के चित्र वाला एक एल्बम भी संग्रहीत है। रागमाला एक बहुत ही मूल्यवान एल्बम है जिसमें सचित्र 35 राग और रागनियों को सुंदर परिदृश्य देवताओं और देवी युवा संगीतकारों के माध्यम से चित्रित किया है, जिसे विभिन्न ऋतुओं, समय और मनोदशाओं के अलावा, मुगल शैली में 17वीं शताब्दी में विशेष रूप से चित्रित किया गया था। कुछ एल्बमों में मंगोल तिमूरिद और रानियों सहित मुगल शासकों के चित्र हैं जिनमें चिंगेज़ हुल्कू, तिमूर, बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगज़ेब, मुहम्मद बहादुर शाह ज़फ़र, गुल, गुल बदन बेगम, नूरजहाँ, बहराम खान, इतिमाद-उद-दौला, आसफ खान, बुरहान-उल-मुल्क, सफदर जंग, शुजा-उद-दौला, आसिफ-उद-दौला, बुरहान निजाम शाह द्वितीय, अबुल हसन तना शाह आदि शामिल हैं। संग्रह के अलावा ईरानी राजा और राजकुमारियों जैसे कि इस्माइल सफवी और शाह अब्बास की तस्वीरें शामिल हैं। इनमें एक लघु चित्र मौलाना रम शिराजी का भी है। इनमें से कुछ शाही चित्रकारों जिनके कार्य पुस्तकालय में संरक्षित है, वह- अबुल हसन नादिर-उज़-ज़मन, असी क़हार, बिछित्र, भवानी दास, चित्रमन, डाल चन्द, रामदास, सांवला, फारूख चेला, फतह चन्द, कान्हा, गोवर्धन, लाल चन्द, लेख राज, मनोहर, मुहम्मद आबिद, नरसिंह, ठाकुर दास, मुहम्मद अफ़ज़ल, मुहम्मद हुसैन, मुहम्मद युसुफ, गुलाम मुर्तज़ा है। ये सभी सचित्र पांडुलिपियाँ एक अत्यंत ही बहुमूल्य धरोहर हैं जो की रजा पुस्तकालय में सहेज कर रखी गयी हैं।
यदि लघु चित्रों के इतिहास के बारे में बात करे तो भारतीय लघुचित्र लगभग 1000 ईसा पूर्व से जीवित हैं। भारतीय लघु चित्रों में हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि के प्राचीन धर्म ग्रंथों में हमें लघु चित्रकारी दिखाई देती हैं जो की ताड़ के पत्तों (Palm-Leaf) पर की जाती थी। कालान्तर में हमें इस्लाम के भी लघु चित्र देखने को मिल जाते हैं। शुरूआती दौर के बाद जब कागज का विकास हुआ तब मुग़ल कला का विकास शुरू हुआ था। यह 16 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बहुत जल्दी विकसित हुई, जो मौजूदा लघु परंपरा और मुगल सम्राट के दरबार में बुलाये गये लघु परंपरा में प्रशिक्षित फारसी कलाकारों के संयुक्त प्रभाव से प्रसारित हुई। इस समय की चित्रों में प्राकृत के साथ साथ भौतिक दुनिया के वस्तुओं का भी समावेश किया गया था। अगली दो शताब्दियों में धीरे-धीरे यह शैली मुस्लिम और हिंदू दोनों ही दरबारों में फैल गई। भारत के दक्खन के इलाके में जो कला फैली उसे दक्खनी कला का नाम मिला और हिमाचल आदि के क्षेत्रों की कला को पहाड़ी और राजस्थान के इलाकों में फैली कला को राजपूत कला का नाम मिला। मुग़ल काल के दौरान लघुचित्रों में सुलेख परम्परा का भी समावेश हमें देखने को मिलता है।
विदेशी धरती पर लघुचित्रों के इतिहास की बात करे तो जब जर्मनी (Germany) में सबसे प्रसिद्ध पुनर्जागरण के चित्रकारों में से एक हैंस होल्बिन द यंगर (Hans Holbein the Younger) इंग्लैंड (England) में 1526-1528 में लघु चित्रों की कला में महारत हासिल कर रहे थे, तब भारत में यह पहले से ही 10 वीं शताब्दी में ताड़ के पत्तों में यह कला जीवित थी, बाद में यह कला अपने संरक्षक, दक्खन, पहाड़ी, राजस्थानी और लघु चित्रकला की मुगल शैली के बीच लोकप्रिय हो गयी। मध्ययुगीन काल के दौरान, प्रकाशकों ने लघु कलाकृतियों को बनाने के लिए हाथीदांत (ivory), वेल्लम (vellum) तथा तांबे का इस्तेमाल किया, जिन्हें लॉकेट (locket) के रूप में पहना जाता था या समाज में धन और स्थिति के प्रदर्शन के रूप में बक्से में रखा जाता था। लघु चित्रकला को लिमिंग (Limning) भी कहा जाता है। यह नाम मध्ययुगीन प्रबुद्ध लोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले माइनियम (Minium) या रेड लेड (Red Lead) से लिया गया है। प्रबुद्ध पांडुलिपि और मैडल (medal) की परंपराओं के संलयन से उत्पन्न यह लघु चित्रकला 16 वीं शताब्दी की शुरुआत से 19 वीं शताब्दी के मध्य तक फली-फूली। कहा जाता है कि सबसे पहले का चित्र योग्य लघुचित्र फ्रेंच (French) द्वारा बनाये गये थे, और माना जाता है कि ये सभी फ्रांसिस प्रथम (Francis I) के दरबार में जीन क्‍लौट (‌Jean Clouet) द्वारा चित्रित किए गए थे। राजा हेनरी VIII (Henry VIII) के संरक्षण के तहत, लुकास होरेनबाउट (Lucas Horenbout ) ने इंग्लैंड में दर्ज किए गए पहले चित्र लघु चित्रों को चित्रित किया। उन्होंने हंस होल्बिन द यंगर को यह तकनीक सिखाई, जो नायाब कला के नए स्वरूप की उत्कृष्ट कृतियों का निर्माण करते थे। होल्बिन ने इंग्लैंड में लघु चित्रकला की लंबी परंपरा को प्रेरित किया। उनके एक शिष्य, निकोलस हिलियार्ड (Nicholas Hilliard), देश में लघु चित्रकला के पहले मूल-जन्म गुरु बने। हिलियार्ड ने महारानी एलिजाबेथ I (Elizabeth I) के लिये 30 साल से अधिक समय तक लघु चित्रकार के रूप में काम किया।
वर्तमान समय में, बहुत सारे संरक्षित लघु चित्र संग्रहालय पाए जाते हैं। भारत में कुछ क्षेत्रों में कभी-कभी कला की इन शैलियों का अभ्यास अभी भी किया जाता है, लेकिन इनका स्तर वह नहीं है जो मूल चित्रों के जैसा था। अभी भी कई कलाकारों द्वारा दूर-दूर तक इसका अभ्यास किया जाता है। हाल ही में हैदराबाद में कोविड-19 की वजह से धी आर्ट्सस्पेस (Dhi Artspace) द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन प्रदर्शनी में कई कलाकारों ने भाग लिया, इसका शीर्षक “न्यू स्टोरिस इन ओल्ड फ्रेम्स” (New Stories in Old Frames) था। आज कई कलाकार है जो इस कला को बढ़ावा दे रहे है। कोविड के इस दौर में कलाकारों ने रामायण और महाभारत के विषयों से परे देख कर कोविड-थीम (Covid-Theme) को अपनी कला में प्रदर्शित करना शुरू किया है जो काफी पसंद भी किया जा रहा है और इनको को वे अच्छी खासी कीमतों पर बेच भी रहे हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/30i9Tih
https://bit.ly/3bm2sN8
https://bit.ly/3qoAAfQ
https://bit.ly/3eiwDqG
https://bit.ly/3t3abG9

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र लघु कलाकृति को दर्शाता है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर में लघु चित्रकला को दिखाया गया है। (विकिपीडिया)
अंतिम तस्वीर में राजस्थानी लघु चित्रकला को दिखाया गया है। (विकिपीडिया)
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