स्थानीय खाद्य पदार्थों और स्वादों को पुनर्जीवित करने में सहायक होगी, तिलक चंदन चावल की खेती

साग-सब्जियाँ
11-02-2021 10:17 AM
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स्थानीय खाद्य पदार्थों और स्वादों को पुनर्जीवित करने में सहायक होगी, तिलक चंदन चावल की खेती
भारत में हरित क्रांति के दौरान अनाज और सब्जियों की कई संकर किस्मों को विकसित किया गया ताकि, बढ़ती आबादी के लिए भोजन की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके। हालांकि, अधिक उपज देने वाली ये किस्में पोषण, स्वाद और सुगंध के मामले में मूल किस्मों की अपेक्षा ज्यादा अच्छी नहीं थीं। यूके यूनिवर्सिटी (UK University) के सहयोग से हाल ही में, रामपुर में देशी चावल की किस्म "तिलक चंदन" उगाई जा रही है, ताकि, इससे बनने वाले कुछ स्थानीय खाद्य पदार्थों और स्वादों को पुनर्जीवित किया जा सके तथा इस विरासत को विलुप्त होने से बचाया जा सके। तिलक चंदन की विशिष्ट विशेषताओं की बात करें तो, यह एक मोटा, छोटे दाने वाला चावल है, जिसे मुख्य रूप से अपनी सुगंध के लिए जाना जाता है। इसे खीर और खिचड़ी जैसे व्यंजनों को बनाने के लिए अत्यधिक उपयुक्त माना जाता है, क्यों कि, यह व्यंजनों के अन्य अवयवों के साथ अच्छी तरह से मिश्रित हो जाता है। रामपुर में रहने वाले पुराने समय के लोगों का कहना है कि, जब तिलक चंदन चावल को कोई व्यक्ति अपनी रसोई में पकाता था, तो इसकी खुशबू पड़ोस के अन्य घरों में भी फैल जाती थी। आज, विभिन्न व्यंजनों को बनाने के लिए भले ही आप पुराने समय के लोगों द्वारा इस्तेमाल किये गये नुस्खों को अपनाएं, लेकिन वह स्वाद प्राप्त नहीं कर सकते, जो पहले कभी हुआ करता था। ऐसा इसलिए है, क्यों कि, वर्तमान समय में उस अनाज का स्वाद ही बदल गया है। यदि उन्हें बचाने का प्रयास नहीं किया जाता है तो, कुछ स्वाद और सुगंध हमेशा के लिए खो जाएंगे, और केवल यादों में ही जिंदा रहेंगे।
बाजारों में कुछ लोगों द्वारा तिलक चंदन चावल बेचने का दावा किया जाता है, किंतु वास्तव में ऐसा नहीं होता। उनके द्वारा बेची जाने वाली किस्म उन आधुनिक किस्मों में से एक होती है, जिसकी महक तिलक चंदन से मिलती-जुलती है। ऐसे बहुत कम किसान मौजूद हैं, जो वास्तविक किस्म की खेती करते हैं। ऐसा इसलिए है, क्यों कि, तिलक चंदन की खेती में रोपाई से लेकर कटाई तक लगभग 180 दिन लग सकते हैं, जबकि आधुनिक बासमती में 110 दिन अर्थात अपेक्षाकृत कम दिन लगते हैं। वहीं इसकी उपज भी अपेक्षाकृत बहुत कम होती है। हर डंठल में बहुत कम दाने होते हैं, तथा डंठल आधुनिक किस्मों से अधिक लंबे होते हैं, जिसका अर्थ है, कि बारिश और हवा उन्हें अधिक आसानी से नष्ट कर सकते हैं। चावल की देशी किस्म, आधुनिक किस्मों (जो कि, रोग-प्रतिरोधी, उच्च उपज वाली) हैं, के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं है, इसलिए व्यावसायिक रूप से अविश्वसनीय मानी जाती हैं। यही कारण है कि, तिलक चंदन की खेती बड़े पैमाने पर नहीं की जा रही है। हालांकि, कुछ किसान इस किस्म को पूर्ण रूप से विलुप्त होने से बचाने के लिए तथा घरेलू उपभोग के लिए इसकी खेती छोटे पैमाने पर कर रहे हैं।
चावल की देशी किस्म को संरक्षित करने की अत्यधिक आवश्यकता है, क्यों कि, जिन किस्मों को प्रयोगशाला में उगाया जाता है, वे मिट्टी की गुणवत्ता को ख़राब करती हैं। इसके अलावा इन्हें उगाने के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की भी बहुत अधिक आवश्यकता होती है। देशी नस्लें विशेष रूप से मिट्टी और किसी विशेष क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल होती हैं, इसलिए उन्हें रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होती। देशी किस्में चरम जलवायु परिस्थितियों का सामना करने में भी सक्षम होती हैं। इसलिए, खाद्य सुरक्षा और पोषक तत्वों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों दोनों को मूल किस्मों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। रामपुर में तिलक चंदन को उगाने के लिए किया जा रहा प्रयास जैविक खेती और स्वदेशी चावल के रोपण को प्रोत्साहित करने में सहायक सिद्ध होगा।
संदर्भ:
https://bit.ly/2NekQOA
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर में तिलक चंदन की खेती और चावल को दिखाया गया है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर में तिलक चंदन के खेत को दिखाया गया है। (youtube)
तीसरी तस्वीर में चावल की फसल को दिखाया गया है। (unsplash)
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