Post Viewership from Post Date to 09- Feb-2021 (5th day) | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2621 | 1443 | 0 | 0 | 4064 |
संग्रहालयों में हमें कई ऐसे साक्ष्य मिलते हैं जिनके माध्यम से हम अपने इतिहास का साक्षात अवलोकन कर लेते हैं। तस्वीरें भी इनमें से एक हैं हमारे रामपुर शहर की भी ऐसी पुरानी तस्वीरें हैं जिन्हें किसी अज्ञात फोटोग्राफर द्वारा लिया गया और रामपुर की इन तस्वीरों को एक एल्बम (album) में संकलित किया गया। नवंबर 1911 में ब्रिटिश इंडिया कार्यालय (British India office) में इन्हें प्रस्तुत किया गया। इसी दौरान सेर्गेई प्रोकुडिन-गोर्स्की (Sergey Prokudin-Gorsky) रूस (Russia) की तत्कालीन रंगीन तस्वीरें ले रहे थे, हालांकि अब तक रंगीन तस्वीरों की तकनीक पूर्णतः: विकसित नहीं हुयी थी। यह रूसी साम्राज्य के एक रसायनज्ञ और फोटोग्राफर (Photographer) थे और यह रंगीन फोटोग्राफी (Photography) में अपने अग्रणी काम और 20 वीं सदी के शुरुआती रूस के दस्तावेज़ों के संकलन हेतु अपने प्रयासों के लिए जाने जाते हैं।
प्रोकुडिन-गोर्सकी का जन्म 1863 में रूस के व्लादिमीर प्रांत (Vladimir Province) के मुरम (Murom) में हुआ था। एक रसायनज्ञ के रूप में शिक्षित, प्रोकुडिन-गोर्सकी ने अपना जीवन फोटोग्राफी की उन्नति के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने सेंट पीटर्सबर्ग (St। Petersburg), बर्लिन (Berlin) और पेरिस (Paris) में प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के साथ अध्ययन किया। उनके अपने मूल शोध में रंगीन फिल्म स्लाइड (Color Film Slides) बनाने और रंगीन गति चित्रों को पेश करने के लिए पेटेंट (Patent) प्राप्त किया था। 1901 में, प्रोकुडिन-गोर्स्की ने सेंट पीटर्सबर्ग (Saint Petersburg) में एक फोटोग्राफिक स्टूडियो (photographic studio) और प्रयोगशाला की स्थापना की। अगले वर्ष, उन्होंने बर्लिन (Berlin) की यात्रा की और यहां 6 सप्ताह बिताए और उस समय जर्मनी (Germany) में सबसे उन्नत व्यवसायी, फोटोकैमिस्ट्री (photochemistry) के प्रोफेसर एडोल्फ मिटे (Professor Adolf Miethe) के साथ रंग संवेदना और तीन-रंग की फोटोग्राफी (three-colour photography ) का अध्ययन किया। 1906 में उन्हें आईआरटीएस फोटोग्राफी (IRTS photography) अनुभाग का अध्यक्ष और रूस की मुख्य फोटोग्राफी पत्रिका का संपादक चुना गया। गोर्स्की 1920 से 1932 के बीच रॉयल फ़ोटो ग्राफ़िक सोसायटी (Royal Photo Graphic Society) के सदस्य रहे।
लगभग 1907 में प्रोकुडिन-गोर्सकी ने रंगीन फोटोग्राफी की नयी तकनीकी का उपयोग करते हुए तत्कालीन रूसी साम्राज्य को व्यवस्थित रूप से चित्रित करने की योजना बनाई। इस योजना के पीछे उनका प्रमुख उद्देश्य अपने ऑप्टिकल कलर प्रोजेक्शन (optical color projections) के माध्यम से रूस के स्कूली बच्चों को रूसी साम्राज्य के विशाल और विविध इतिहास, संस्कृति और आधुनिकीकरण के विषय में शिक्षित करना था। उन्होंने अपने काम के कई सचित्र व्याख्यान दर्शाए। उनकी तस्वीरें प्रथम विश्व युद्ध की पूर्व संध्या के समय रूसी साम्राज्य और उसके बाद रूसी क्रांति का साक्षात नजारा दिखाती हैं। इनकी तस्वीरों में पुराने रूस के मध्ययुगीन चर्चों (Churches) और मठों से लेकर, उभरती औद्योगिक शक्ति के रेलमार्गों, कारखानों, रूस की विविध आबादी के दैनिक जीवन और कार्यों को संकलित किया गया था। ज़ार निकोलस II (Czar Nicholas II) द्वारा प्रदान की गई एक रेलरोड-कार डार्करूम (railroad-car darkroom) का उपयोग करते हुए, प्रोकुडिन-गोर्स्की ने 1909 से 1915 के बीच रूसी साम्राज्य का अवलोकन किया, जिसमें उन्होंने विभिन्न पहलुओं को संकलित करने के लिए अपनी तीन-छवि वाली रंगीन फोटोग्राफी का उपयोग किया। जिनमें से उनकी कई निगेटिव (Negative) खो गईं थी या नष्ट हो गयी थी।
1918 में प्रोकुडिन-गोर्स्की ने रूस छोड़ा और नॉर्वे (Norway) और इंग्लैंड (England) का दौरा किया अंत में यह फ्रांस (France) में जाकर बस गए। प्रोकुडिन-गोर्स्की ने अपने तीन वयस्क बच्चों के साथ मिलकर पेरिस में एक फोटो स्टूडियो (Photo studio) स्थापित किया, जिसका नामकरण उन्होंने अपने चौथे बच्चे एल्का के नाम पर रखा। 1930 के दशक में, बुजुर्ग प्रोकुडिन-गोर्स्की ने फ्रांस में युवा रूसियों को अपनी तस्वीरों को दिखाने वाले व्याख्यान जारी रखे, लेकिन वाणिज्यिक काम बंद कर दिया। 1944 में पेरिस (Paris) में इनकी मृत्यु हो गई, प्रोकुडिन-गोर्स्की द्वारा ली गयी फोटो एलबम और नेगेटिव की नाजुक कांच की प्लेटों के बचे हुए बक्से को पेरिस की इमारत के तहखाने में संग्रहीत कर लिए गए किंतु इनका परिवार इस धरोहर के क्षतिग्रस्त होने को लेकर चिंतित था। 1948 में कांग्रेस की यूनाइटेड स्टेट्स लाइब्रेरी (United States Library) ने प्रोकुडिन-गोर्स्की के उत्तराधिकारियों से $3500- $5000 में इन्हें खरीद लिया। कांग्रेस के पुस्तकालय में संग्रहित नेगेटिव से फोटोग्राफिक रंगीन प्रिंट बनाने के लिए बहुत ही विशिष्ट और श्रम-गहन प्रक्रियाओं की आवश्यकता थी, अत: आगे की अर्ध-शताब्दी तक प्रदर्शन, पुस्तकों और विद्वानों के लेखों के लिए प्रोकुडिन द्वारा ली गयी तस्वीरों में से लगभग सौ छवियों का ही उपयोग किया गया।
2000 में कांग्रेस की लाइब्रेरी ने प्रोकुडिन-गोर्स्की की सभी फोटोग्राफिक सामग्रियों के डिजिटल स्कैन (Digital scan) करने के लिए एक परियोजना शुरू की और मोनोक्रोम नेगेटिव (monochrome negative) को रंगीन छवियों में संयोजित करने के लिए फोटोग्राफर वाल्टर फ्रैंकहॉउस (Walter Frankhauser) के साथ अनुबंध किया। उन्होंने डिजीक्रोमैटोग्राफी (digichromatography) नामक एक विधि का उपयोग करके 122 रंग रेंडरिंग (color renderings ) बनाए और यह निर्धारित किया कि प्रत्येक तस्वीर संरेखित, स्वच्छ और रंगीन होने में लगभग छह से सात घंटे तक का समय लेगी। 2001 में, कांग्रेस के पुस्तकालय ने द एम्पायर दैट वाज़ रशिया: द प्रोकुडिन-गोर्सकी फोटोग्राफिक रिकॉर्ड रिक्रिएटेड (The Empire That Was Russia: The Prokudin-Gorskii Photographic Record Recreated) नाम से इन तस्वीरों की प्रदर्शनी लगायी।
प्रोकुडिन-गोर्स्की द्वारा प्रयुक्त रंगीन फोटोग्राफी की विधि पहली बार 1855 में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल (James Clerk Maxwell) द्वारा सुझाई गई थी और 1861 में इसे प्रदर्शित किया गया, लेकिन उस समय उपलब्ध फोटोग्राफिक सामग्रियों के साथ अच्छे परिणाम संभव नहीं थे। एक सामान्य मानव नेत्र की रंग की समझ की नकल करने के लिए, रंगों के दृश्यमान स्पेक्ट्रम (Spectrum) को तीन श्वेत-श्याम तस्वीरें के रूप में कैप्चर (Capture) किया गया और फिर इसे सूचना के तीन चैनलों (Channels) में विभाजित किया गया, एक लाल फिल्टर (filter) के माध्यम से लिया गया, एक हरे फिल्टर के माध्यम से, और एक नीले फिल्टर के माध्यम से। परिणामस्वरूप देखा गया कि तीनों तस्वीरों को एक ही रंग के फिल्टर के माध्यम से प्रोजेक्ट (project) किया जा सकता था और स्क्रीन (screen) पर सुपरइम्पोज़ (superimposed ) किया जा सकता था, जो रंग की मूल सीमा को संश्लेषित करता है। इस विधि द्वारा व्यापक रूप से अच्छे परिणामों का प्रदर्शन करने वाला पहला व्यक्ति फ्रेडरिक ई. इवेस (Frederic E। Ives) था, जिसकी दर्शक, प्रोजेक्टर और कैमरा उपकरण की "क्रॉम्स्कोप" (Kromskop) प्रणाली 1897 से लगभग 1907 तक व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हो गयी थी।
फोटोग्राफिक प्लेटें (Photographic plates), जिनमें कांच की पतली शीट पर प्रकाश-संवेदी पायसन या इमल्शन (emulsion) का लेप लगाया गया था, का उपयोग आमतौर पर लचीली फिल्म के स्थान पर किया जाता था, क्योंकि ग्लास प्लेटों (Glass plates) से प्लास्टिक की फिल्म (plastic film) में एक सामान्य परिवर्तन अभी भी जारी था और ग्लास ने सबसे अच्छी आयामी स्थिरता प्रदान की थी। एक साधारण कैमरे (cameras) का उपयोग तीन चित्रों को लेने के लिए किया जा सकता था, इसे फिर से लोड करके (reloading) और एक्सपोज़र (exposures) के बीच फिल्टर को बदलकर, लेकिन अग्रणी रंगीन फोटोग्राफरों ने आमतौर पर विशेष कैमरों का निर्माण किया या खरीदा जिसने इस प्रकिया को सरल और किफायती बना दिया। आवश्यक एक्सपोज़र (exposure) समय प्रकाश की स्थिति, फोटोग्राफिक प्लेट की संवेदनशीलता और कैमरा लेंस एपर्चर (camera lens aperture ) पर निर्भर करता था। लियो टॉल्स्टॉय को लिखे एक गए एक पत्र में प्रोकुडिन-गोर्स्की ने एक बैठी हुयी तस्वीर के एक्सपोज़र का समय तीन सेकंड का बताया, लेकिन बाद में, टॉल्स्टॉय के साथ अपने समय को याद करते हुए, उन्होंने एक धूप वाले दिन में छह सेकंड का एक्सपोज़र बताया।
प्रोकुडिन-गोर्स्की (Prokudin-Gorsky) के स्वयं के आविष्कारों, उनमें से कुछ सहयोगी, ने कई पेटेंट दिए, जो कि उनके स्वैच्छिक निर्वासन के वर्षों के दौरान जारी किए गए थे और सीधे तौर पर शारीरिक कार्य से संबंधित नहीं थे, जिस पर उनकी प्रसिद्धि टिकी हुई थी। कुछ प्रक्रियाओं के माध्यम से घटिया रंग पारदर्शिता बनती थी, जिन्हें किसी विशेष प्रक्षेपण या देखने के उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है। प्रोकुडिन-गोर्स्की के परिवार द्वारा इनमें से कुछ उदाहरण संरक्षित किए गए थे जो हाल ही में ऑनलाइन (Online) दिखाई दिए हैं। उनके अधिकांश पेटेंट प्राकृतिक-रंग गति चित्रों के उत्पादन से संबंधित थे, यह एक संभावित आकर्षक अनुप्रयोग था जिसने 1910 और 1920 के दशक के दौरान रंगीन फोटोग्राफी के क्षेत्र में कई आविष्कारकों का ध्यान आकर्षित किया था।
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.