भारतीय कला की छाप प्राचीनकाल से ही विश्वभर में प्रसिद्ध है, फिर चाहे वह एक छोटे से आभूषण में की गयी हो या फिर भव्य ऐतिहासिक इमारतों में। भारत विश्व का सबसे बड़ा पीतल के बर्तन बनाने वाला देश है और इन बर्तनों पर की गयी पारंपरिक कलाकारी के कारण यह विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। यह कला भारत में हज़ारों वर्ष पहले से चली आ रही है। पुरातत्व अभिलेखों के अनुसार, पीतल भारत में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लोकप्रिय हो गया था और अधिकांश देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी इसी धातु से बनायी जाती थीं। रामपुर के निकट स्थित मुरादाबाद शहर पीतल के काम के लिए प्रसिद्ध है और दुनिया भर में हस्तकला उद्योग में अपना एक विशेष स्थान बना चुका है। मुरादाबाद में बने पीतल के बर्तन संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), ब्रिटेन (Britain), कनाडा (Canada), जर्मनी (Germany) और मध्य पूर्व (Middle East) और एशिया (Asia) जैसे देशों में का निर्यात किए जाते हैं। इसलिए मुरादाबाद को "ब्रास सिटी" (Brass city) या पीतल नगरी भी कहा जाता है। मुरादाबाद की स्थापना 1600 में मुगल बादशाह शाहजहां के बेटे मुराद ने की थी, इन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम पड़ा।
इस शिल्प का वर्तमान प्रचलित रूप केवल 400 साल पहले अस्तित्व में आया था, और यह जंडियाला गुरु समुदाय (Jandiala Guru community) के थेरसों (thateras) द्वारा प्रारंभ किया गया था। बाद में, मुरादाबाद में बसने वाले मुस्लिम परिवारों ने एक नए स्तर की कारीगरी का परिचय दिया और बहादुर शाह जफर के शासन में इन्हें बहुत संरक्षण दिया गया। दो शताब्दियों के बाद, भारत में ब्रिटिश शासन ने विदेशी बाजारों में अलंकृत शिल्प को बढ़ावा दिया, जिससे देश की विरासत में इसकी जड़ें पैदा हुईं। 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में मुरादाबाद में पीतल उद्योग का विस्तार हुआ और ब्रिटिश इस कला को विदेशी बाजारों में ले गए। बनारस, लखनऊ, आगरा और कई अन्य स्थानों से आए अन्य आप्रवासी कारीगरों ने मुरादाबाद में पीतल के बर्तनों के उद्योग का समूह बनाया। 1980 में पीतल जैसे विभिन्न अन्य धातु के सामान; लोहा, एल्युमिनियम (Aluminum) आदि को भी मुरादाबाद के कला उद्योग में पेश किया गया। नई तकनीकों जैसे इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating), लैक्विरिंग (lacquering), पाउडर कोटिंग (powder coating) आदि ने भी यहां उद्योग के लिए अपना रास्ता खोज लिया।
यहां लगभग 850 निर्यातक इकाइयाँ और 25000 धातु शिल्प औद्योगिक इकाइयाँ हैं। शहर की संकीर्ण गलियों में, दुनिया भर में निर्यात किए जाने वाले सबसे उत्तम पीतल उत्पादों के कारीगर दिन भर कार्य करते हैं। मुरादाबाद में पीतल का काम छोटे पैमाने पर होने वाला और न्यून प्रौद्योगिकी वाला उद्योग है। कुछ कारीगरों के पास वास्तव में अपने घरों में ही अपनी विनिर्माण इकाइयाँ और कार्यशालाएँ हैं। स्वाभाविक रूप से, इस कला की परंपरा को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्रदान किया जा रहा है। यहां के ज्यादातर पीतल के कारीगर मुस्लिम हैं और वे अपने काम पर बहुत गर्व करते हैं। वे हर एक कौशल (विशेषज्ञता) में माहिर हैं और उत्पादन प्रक्रिया के संबंधित बारिकियों को भलि भांति संभालते हैं।
किसी भी पीतल के उत्पाद को बनाने के लिए निम्न छह बुनियादी चरणों से गुजरना पड़ता है:
सांचा बनाना:
पहला कदम सांचा बनाना है जिससे कई उत्पादों को तैयार किया जाता है। ये आम तौर पर मोम से बने होते हैं, क्योंकि यह नरम होता है और इसके साथ काम करना आसान होता है। कभी-कभी लकड़ी का भी उपयोग किया जाता है। रेत कास्टिंग (sand casting) को सुविधाजनक बनाने के लिए इस 'मास्टर-कॉपी' (master-copy) को हमेशा दो (या अधिक) वियोज्य हिस्सों में बनाया जाता है।
विगलन:
दूसरा चरण पीतल की धातु को कोयला-भट्ठी में पिघलाकर तैयार करना है। कच्चे माल में कई धातुओं जैसे तांबा, जस्ता, सीसा इत्यादि का मिश्रण होता है। धातु में मौजूद अशुद्धियों को दूर करने के लिए इसमें एक फ्लक्स (flux) भी जोड़ा जाता है। एक विशाल कंटेनर में लगभग बारह घंटे तक इसे पिघलाया जाता है ताकि एक बार में 350 किलोग्राम पीतल का उत्पादन किया जा सके। पिघली हुई धातु को स्ट्रिप्स (strips) बनाने के लिए लोहे के सांचों पर ठंडा करने हेतु छोड़ दिया जाता है जो बाद में कास्टिंग कारीगरों (casting craftsmen) को भेजे जाते हैं।
ढलाई (Casting):
सैंड कास्टिंग (Sand casting) पीतल के बर्तन बनाने की एक पारंपरिक विधि है। धातु को ढालने के लिए मोल्ड बॉक्स (mould box) के चारों और रेत को लगाया जाता है। सांचे के आकार को धारण करने में रेत रासायनिक बंधन का कार्य करती है, जिसे बाद में हटा दिया जाता है और पिघली हुई धातु को एक छिद्र के माध्यम से सांचे में डाल दिया जाता है। कुछ मिनटों के लिए ठंडा करने के बाद, कास्ट धातु को मोल्ड बॉक्स से निकाल दिया जाता है। रेत और गेटिंग (gating) (गुहा में पिघली हुई धातु के प्रवाह को निर्देशित करने के लिए मोल्ड में बनाया गया रास्ता) को बाद में तोड़ दिया जाता है। अगली कास्टिंग में इनका दोबारा इस्तेमाल किया जाता है।
स्क्रैपिंग (Scraping):
कच्ची धातु को एक बेलनाकार लकड़ी के ब्लॉक पर लगाया जाता है, जो खराद मशीन (lathe machine) के हेडस्टॉक (headstock) से जुड़ा होता है। धातु के टुकड़े को स्क्रैप करने और इसकी अनियमित सतह को चिकना करने के लिए विभिन्न छेनी और रेती का उपयोग किया जाता है। कभी-कभी जब उत्पाद अलग-अलग हिस्सों में बनाया जाता है, तो इसे पहले एक साथ जोड़ा जाता है और फिर स्क्रैपिंग (scraping) और पॉलिशिंग (polishing) के लिए भेजा जाता है।
नक्काशी (Engraving):
नक्काशी सभी प्रक्रियाओं का सबसे परिष्कृत और कलात्मक कार्य है। उत्पाद पर जिस डिजाइन (design) को उकेरा जाना है, उसे पहले कागज पर स्केच (sketch) किया जाता है और फिर उत्पाद के आकार के अनुसार स्केल-अप (scaled-up) किया जाता है। पैटर्न को सामंजस्यपूर्ण और सीतात्मक बनाने के लिए मापन एक महत्वपूर्ण पहलू है। ये मुख्य रूप से प्रकृति के विभिन्न रूपों जैसे पेड़, फूल, पक्षी और जानवरों से प्रेरित होते हैं। ज्यामितीय वाले मुगल वास्तुकला से संबंधित हैं। सबसे पहले, पूरे डिजाइन की एक रूपरेखा एक उत्कीर्णन उपकरण से लकड़ी के ब्लॉक (block) पर अंकित की जाती है। उसके बाद, प्रमुख उत्पाद की पृष्ठभूमि पर उकेरने और पैटर्न (pattern) को गहराई देने के लिए व्यापक उपकरणों का उपयोग किया जाता है। ये अक्सर रंगीन लाख या तामचीनी से भरे होते हैं।
चमक देना (Polishing):
पॉलिशिंग में मुख्य रूप से एक मुलायम स्क्रब (scrub ) से पीतल के बर्तन को साफ करना और फिर इसे सुनहरी चमक के लिए मशीन पर बफर (buffing) करना शामिल है।
मुरादाबाद के पीतल उत्पादों की श्रेणी में मुख्यत: धार्मिक मूर्तियाँ, फूल मालाएँ और पौधे, सुरही (गोल बर्तन), टेबलवेयर (tableware) (प्लेटें, कटोरे, बक्से आदि), ऐश ट्रे (ash trays), दीये, मोमबत्ती स्टैंड (candle stands), उपकरण, ताला, हुक्का आदि शामिल हैं। प्राचीन गहने, फर्नीचर आदि कुशल कारीगरों द्वारा बनाए जाते हैं। श्री हरि इंटरनेशनल (Shri Hari International) के मालिक सुभाष सहगल दो दशकों से इस शिल्प के पारिवारिक व्यवसाय में हैं। मुरादाबाद में वर्तमान परिदृश्य के बारे में बात करते हुए, वह कहते हैं कि लगातार नए उत्पाद बाजार में प्रवेश कर रहे हैं और अपने नए खरीदार बना रहे हैं। “हम हमेशा नई वस्तुओं को बनाने के लिए नवाचार कर रहे हैं, जिनमें से कुछ हमारे अपने प्रयोग हैं जबकि कुछ खरीदारों द्वारा प्रदान किए गए हैं। मेरा मानना है कि इन बदलते समय में अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए यही एक मात्र तरीका है। पिछले कुछ वर्षों में, बाजार में निश्चित रूप से विस्तार हुआ है और अधिक खरीदार आ रहे हैं। लेकिन वे अब पीतल या चांदी के बने उत्तम या पारंपरिक उत्पादों को नहीं खरीद रहे हैं। मुरादाबाद में, 50% से अधिक शिल्पकार अब एल्यूमीनियम, तांबा या स्टेनलेस स्टील (stainless steel) जैसी सस्ती धातुओं का उपयोग कर रहे हैं। यही कारण है कि बड़े-बड़े उद्योग प्रकाश, लोहे और दीवार कला, दर्पण, सजावटी सामान, फूलदान आदि जैसे अधिक तेजी से चलने वाले सामानों पर शिफ्ट (Shift) कर हैं।
वर्तमान में यह शिल्प अभ्यास और इस अभ्यास में शामिल कारीगर कुछ चुनौतियों और संकटों का सामना कर रहे हैं। पीतल और कोयले की कीमतों में वृद्धि के कारण पीतल के उद्योग को भी एक बड़ा झटका लगा है। इसके अलावा बिजली, पानी, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी और कारीगरों की खराब स्थिति के कारण पीतल के उद्योग पहले से ही संकट में है। कोयला और पीतल के आयातक और निर्यातक दोनों द्वारा कारीगरों का शोषण किया जा रहा है साथ ही इन्हे कोई सब्सिडी (subsidies) नहीं होने के कारण यह पारंपरिक शिल्प अभ्यास खतरे में पड़ गया है। उदाहरण के लिए, कई कारीगर नहीं चाहते हैं कि उनके बच्चे और आने वाली पीढ़ी इस ऐतिहासिक परंपरा को आगे बढ़ाए या जारी रखे और कई कारीगर पहले ही इस शिल्प को छोड़ चुके हैं। यहां तक कि जो कारीगर कास्टिंग (ढलाई) की प्रक्रिया में शामिल हैं, वे चीन से आयातित कोयले जो लागत की तुलना में सस्ती है, से जहरीली गैसों के कारण तपेदिक, अस्थमा, त्वचा रोग और कई अन्य बीमारियों से गंभीर रूप से पीड़ित हैं।
लॉकडाउन (lockdown) के दौरान इन पीतल के बर्तन निर्माताओं का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा, इन्होंने स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर अपने परिवार के सदस्यों के साथ घर से ही काम जारी रखा। हालांकि, इनकी आजीविका को बनाए रखने के लिए, यह आवश्यक है कि इनके उत्पाद कोविड (Covid) सुरक्षित शिल्प मेलों और कार्यक्रमों के माध्यम से या डिजिटल प्लेटफार्मों (digital platforms) के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचें। हाल ही में रामपुर में संपन्न रामपुर हुनर हाट (Rampur Hunar Haat) में 27 राज्यों के कारीगरों ने हिस्सा लिया। इसमें लगभग 18 लाख लोगों ने भाग लिया और 22 करोड़ रुपये तक का व्यापार हुआ। इस आयोजन से हमारे पारंपरिक कारीगरों और शिल्पकारों को एक व्यापक मंच और दर्शक प्राप्त करने में मदद मिली। 'हुनर हाट' में स्थानीय हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक फैशन शो (fashion show) आयोजित किया गया था। मॉडल ने पारंपरिक कारीगरों और शिल्पकारों द्वारा पतंग, चाकू और जातीय वस्त्र जैसे उत्पादों का प्रदर्शन किया। स्थानीय कलाकारों को बड़े पैमाने पर रोजगार और रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए 'हुनर हाट' एक प्रभावी मंच साबित हुआ है।
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