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दुनिया के सात अजूबों में से एक क्राइस्ट द रिडीमर (Christ the redeemer), ब्राज़ील (Brazil) के रियो डी जेनेरो (Rio de Janeiro) में कोर्कोवाडो पर्वत (Corcovado Mountains) की चोटी पर स्थापित ईसा मसीह की एक प्रतिमा है। 1931 में बनकर तैयार हुई यह प्रतिमा अपने 9.5 मीटर (31 फीट) आधार सहित 39.6 मीटर (130 फीट) लंबी और 98 फीट (30 मीटर) ऊंची है। लगभग 26 फीट (8 मीटर) ऊंचे एक वर्गाकार पत्थर जो पहाड़ के शिखर पर स्थित है, के आधार पर स्थापित इस प्रतिमा को कंक्रीट से तैयार किया गया है, जिस पर हजारों त्रिकोणीय सोपस्टोन टाइलों (triangular soapstone tiles) के मोज़ेक (mosaic) लगे हुए हैं। मूर्ति जगत में यह सबसे बड़ी आर्ट डेको-शैली (Art Deco-style) की मूर्तिकला है। 7 जुलाई 2007 को स्विट्जरलैंड -स्थित द न्यू ओपन वर्ल्ड कारपोरेशन (The New Open World Corporation) द्वारा बनायी गयी एक सूची में क्राइस्ट द रिडीमर को दुनिया के नये सात अजूबों में से एक का नाम दिया गया। बैंको ब्राडेस्को (Banco Bradesco) सहित प्रमुख कॉरपोरेट (Corporate) प्रायोजकों ने प्रतिमा को शीर्ष सात में चुने जाने के लिये पैरवी की।
इस विशाल प्रतिमा को बनाने का सुझाव पहली बार 1850 के दशक में विन्सेन्टियन पादरी (Vincentian priest) द्वारा दिया गया था। जो कि उन्होंने सम्राट पेड्रो II की बेटी और ब्राजील की राजकुमार इसाबेल को सम्मानित करने के लिए दिया था, हालांकि उनके द्वारा इस परियोजना को कभी भी मंजूरी नहीं दी गई थी। दूसरा प्रस्ताव 1921 में रियो डी जनेरियो के रोमन कैथोलिक समूह द्वारा दिया गया, जिसमें उन्होंने कहा कि मसीहा की यह प्रतिमा 2,310-फुट (704-मीटर) शिखर पर बनेगी, जिससे इसे शहर के किसी भी हिस्से से देखा जा सके। इसके निर्माण की अनुमति दे दी गयी।
4 अप्रैल, 1922 (ब्राजील का स्वतंत्रता दिवस, इस दिन ब्राजील को पुर्तगाल से आजादी मिली थी) को औपचारिक रूप से इसकी आधारशिला रखी गई थी, हालांकि स्मारक का अंतिम डिजाइन (Design) अभी तक चुना नहीं गया था। उसी वर्ष एक डिजाइनर को खोजने के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की गई थी, जिसमें ब्राजील के इंजीनियर (Engineer) दा सिल्वा कोस्टा (Da Silva Costa) को उनके हाथ पर बने स्केच (Sketch) के आधार पर चुना गया था, इस स्केच में उनके दाहिने हाथ में क्रॉस पर टंगी मसीह की मूर्ति और बाएं हाथ पर दुनिया बनी थी। ब्राजील के कलाकार कार्लोस ओसवाल्ड (Carlos Oswald) के सहयोग से, सिल्वा कोस्टा ने बाद में अपने डिजाइन में संशोधन किया; ओसवाल्ड ने हाथ फैलाई खड़ी मूर्ति का सुझाव दिया। चर्च (church) द्वारा, निजी तौर पर, फंड (Funds ) जुटाए गए। सिल्वा कोस्टा की देखरेख में, 1926 में निर्माण कार्य शुरू हुआ।
दा सिल्वा कोस्टा ने अपने दिव्य डिजाइन को वास्तविकता में बदलने के लिए एक विश्व स्तरीय मूर्तिकार की तलाश में फ्रांस की यात्रा की। अंततः उन्होंने एक फ्रांसीसी-पोलिश मूर्तिकार पॉल लैंडोव्स्की (Paul Landowski) का चयन किया, जिन्होंने मूर्ति के आर्ट डेको डिज़ाइन (Art Deco design) को तीव्रता दी। अगले कई वर्षों बाद लैंडोव्स्की ने मिट्टी के आधार पर प्रबलित कंक्रीट की 98 फुट ऊंची मूर्ति का निर्माण किया और फिर इसे ब्राजील भेजा गया। इस मूर्ति पर लगभग 6 मिलियन टाइल्स का उपयोग किया गया है। इसका वजन 635 टन (700 शॉर्ट टन) है। इंजीनियरों और तकनीशियनों के एक समूह ने लैंडोव्स्की द्वारा की गयी प्रस्तुतियों का अध्ययन किया और इस्पात की बजाय संरचना को सुदृढ़ कांक्रीट से (अलबर्ट कैकोट द्वारा रूपांकित किया गया) तैयार करने का निर्णय लिया गया, जो क्रॉस के स्वरूप की प्रतिमा के लिए अधिक उपयुक्त था। बाहरी परतें सोपस्टोन की हैं जिसे इसके चिरस्थाई गुणों और इस्तेमाल में आसानी के कारण चुना गया था। उस दौरान सामग्री और श्रमिकों को रेलवे के माध्यम से शिखर पर पहुंचाया गया था। इसके पूरा होने के बाद, 12 अक्टूबर, 1931 को प्रतिमा का अनावरण किया गया। निर्माण में 1922 से 1931 तक नौ साल लग गए और इसकी लागत 250,000 अमेरिकी डॉलर के समकक्ष (2009 में लगभग 3।5 मिलियन अमेरिकी डॉलर) थी।
समय-समय पर हवा, बारिश और बिजली इस मूर्ति को किसी न किसी तरह की हानि पहुंचाते रहते हैं, जिसके चलते वर्षों से इसकी मरम्मत होती आ रही है, 1980 में इसकी पूरी तरह से सफाई भी की गयी थी। यहां पर एस्केलेटर (Escalators) और पैनोरमिक लिफ्ट (panoramic elevators) की शुरूआत 2002 में की गयी, इससे पहले लोग मूर्ति तक पहुंचने के लिए 200 चिढि़यां चढ़ा करते थे। अक्टूबर 2006 में प्रतिमा की 75वीं सालगिरह के अवसर पर रियो कार्निवल यूसेबियो ऑस्कर शील्ड (Rio Carnival Eusebio Oscar Shield) के आर्कबिशप (Archbishop) ने प्रतिमा के नीचे एक चैपल (chapel) (ब्राजील के संरक्षक संत--नोस्सा सेन्होरा एपारेसिडा (Nossa Senhora Aparecida) या "अवर लेडी ऑफ द एप्पारिशन" (Our Lady of the Apparition) के नाम पर) की स्थापना की। यह कैथोलिक (Catholic) धर्म के लोगों को वहाँ नामकरण और शादियों का आयोजन करने की अनुमति देता है। 10 फ़रवरी 2008, रविवार को एक प्रचंड बिजली के तूफ़ान के दौरान प्रतिमा पर बिजली गिरने से इसकी उंगलियों, सिर और भौहों को क्षति पहुंची थी। सोपस्टोन की कुछ बाहरी परतों को बदलने और प्रतिमा पर लगायी गयी बिजली की छड़ों की मरम्मत के लिये रियो डी जेनेरो की राज्य सरकार और आर्कडायोसीज (Archdiocese) द्वारा इसके जीर्णोद्धार का प्रयास किया गया। 2010 में एक प्रमुख परियोजना के तहत इसकी सतह की मरम्मत और नवीनीकरण किया गया।
भारत में भी इस प्रतिमा की कुछ प्रतियां बनायी गयी हैं जो क्रमश: आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में, केरल के त्रिवेंद्रम में और कोलकाता के इकोपार्क में हैं। केरल के विजिंजम (Vizhinjam) क्षेत्र में बनी क्राइस्ट द रिडीमर की एक प्रति 33 फीट ऊंची है जो जमीन से 90 फीट की ऊंचाई पर बनायी गयी है। चैपल द्वारा बनवायी गयी इस प्रतिमा को तैयार होने में दो वर्ष का समय लगा, इसे कंक्रीट से बनाया गया है। राजस्थान के मांउट आबू की पहाडि़यों में भी इस प्रतिमा की एक प्रति बनायी गयी है। हालांकि यह लैटिन अमेरिकी समकक्ष की तुलना में बहुत छोटा था। यह स्थान शांति और प्राकृतिक परिदृश्य से भरपूर है। क्राइस्ट द रिडीमर की एक अन्य प्रति आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में भी स्थित है।
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