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भारत में मिट्टी के प्रकार में अनेकों विविधताएं पायी जाती हैं, जिनमें विशिष्ट विशेषताएं मौजूद होती हैं। यहां पायी जाने वाली प्रमुख मिट्टियों में जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल और पीली मिट्टी, लेटराइट (Laterite) मिट्टी, शुष्क मिट्टी आदि शामिल हैं। मिट्टी की यह विविधता रामपुर में भी देखने को मिलती है तथा यहां पायी जाने वाली प्रमुख मिट्टियों में आमतौर पर, बुल्ली (काली), दोमट और मटियार मिट्टी शामिल हैं। यहां के तराई क्षेत्रों की मिट्टी महीन बनावट वाली तथा कार्बनिक पदार्थों से समृद्ध होती है। ऊंचे क्षेत्रों या पहाड़ियों में जहां दोमट मिट्टी पायी जाती है, वहीं जलोढ़ मैदानों में सिल्टी (Silty) मिट्टी उपलब्ध होती है। मिट्टी के प्रकार ने क्षेत्र के भूमि उपयोग पैटर्न (Pattern) को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन सभी मिट्टियों के अपने विशेष गुण और उपयोगिताएं हैं। रामपुर में पायी जाने वाली काली मिट्टी को रेगुर (Regur - तेलुगु शब्द रेगुड़ा से) और काली कपास मिट्टी भी कहा जाता है क्यों कि, कपास इस मिट्टी पर उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण फसल है। यह मिट्टी उन स्थानों पर अधिक होती है जहां, वार्षिक वर्षा 50 से 80 सेंटीमीटर के बीच लगभग 30 से 50 दिनों तक होती है। इसलिए, यह प्रायद्वीप के शुष्क और गर्म क्षेत्रों का प्रमुख मिट्टी समूह है।
कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इस मिट्टी का काला रंग इसमें मौजूद टिटैनिफेरस मैग्नेटाइट (Titaniferous magnetite) की एक छोटी मात्रा तथा मूल चट्टान के लोहे और काले घटकों की उपस्थिति के कारण है। इस मिट्टी को काला रंग क्रिस्टलीय शिष्ट (Schists) और बुनियादी नाइस्सेस (Gneisses) से प्राप्त हुआ है। मिट्टी के इस समूह में काले रंग के विभिन्न वर्णक, जैसे गहरा काला, मध्यम काला, हल्का काला और लाल और काले रंग का मिश्रण पाये जा सकते हैं। काली मिट्टी की विशेषताओं की बात करें तो, यह एक परिपक्व मिट्टी है, जिसकी जल धारण क्षमता उच्च होती है। गीली होने पर यह फूल जाती है तथा सूखने पर सिकुड़ जाती है। सूखने पर इस मिट्टी में चौड़ी दरारें भी विकसित होती हैं, जो स्व-जुताई में सहायक बनती हैं। काली मिट्टी में लोहा, चूना, कैल्शियम (Calcium), पोटेशियम (Potassium), एल्यूमीनियम (Aluminum) और मैग्नीशियम (Magnesium) भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जबकि नाइट्रोजन (Nitrogen), फॉस्फोरस (Phosphorus) और कार्बनिक (Organic) पदार्थों की प्रायः कमी रहती है। नमी की उच्च उर्वरता और मंदता के कारण, काली मिट्टी का उपयोग व्यापक रूप से कई महत्वपूर्ण फसलों के उत्पादन जैसे कपास, गेहूं, ज्वार, तंबाकू, अरंडी, सूरजमुखी और बाजरा आदि के लिए किया जाता है। जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होती है, वहां काली मिट्टी में चावल और गन्ना भी उगाया जा सकता है। इसके अलावा इस मिट्टी में सब्जियों और फलों की भी अनेक किस्में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं। काली मिट्टी जहां कपास के उत्पादन के लिए व्यापक रूप से उपयोग की जाती है, वहीं क्रिकेट पिच (Cricket pitch) बनाने के लिए भी महत्वपूर्ण है। रामपुर की इस खास मिट्टी का उपयोग अनेकों प्रदेशों में क्रिकेट पिच बनाने के लिए होता है, क्योंकि इसमें चिकनी या मटियार (Clay) मिट्टी की मात्रा सबसे अधिक होती है। इसकी वजह से क्रिकेट की गेंद को अच्छा उछाल मिलता है, इसलिए क्रिकेट पिच के लिए काली मिट्टी का उपयोग व्यापक रूप से किया जाता है। काली मिट्टी के द्वारा फसलों की पैदावार को भी बढ़ाया जा सकता है। देशी लोग अपनी फसलों के अधिक उत्पादन हेतु मिट्टी की उर्वरता बढाने के लिए उसमें जैविक पदार्थों के साथ चारकोल (Charcoal) मिलाया करते थे तथा काली मिट्टी के लिए भी मुख्य घटक चारकोल ही है। यह बहुत लंबे समय तक कार्बन (Carbon) का भंडारण करता है और अम्लीय मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है। काली मिट्टी का अन्य महत्वपूर्ण घटक कार्बनिक पदार्थ हैं, जैसे कि, रसोई का कचरा - जो किण्वित होकर पोषक तत्वों से भरपूर मृदा परत बनाता है, जिसे ह्यूमस (Humus) कहा जाता है। यह मिट्टी की उर्वरता और फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए बहुत ही कुशल समाधान है, जो कम लागत और कम तकनीक पर किया जा सकता है। काली मिट्टी के अलावा रामपुर में दोमट मिट्टी भी उपलब्ध है, जो तीन प्रकार की मिट्टी सिल्ट, बलुआ (Sandy) तथा मटियार मिट्टी से बनी है। दोमट मिट्टी बनाने के लिए इन तत्वों को कार्बनिक पदार्थों और पानी के साथ मिलाकर हवा में सुखाया जाता है। इसमें मटियार मिट्टी की मात्रा 7% से 27%, सिल्ट की मात्रा 28% से 50% तथा बलुआ की मात्रा 52% या उससे कम होती है। दोमट मिट्टी में पानी धारण करने की क्षमता औसत होती है तथा यह सूखे के लिए प्रतिरोधी है। कुछ दोमट मिट्टी में पत्थर भी पाए जाते हैं, जो कुछ फसलों की बुवाई और कटाई को प्रभावित कर सकते हैं।
इस मिट्टी को आसानी से उपजाऊ बनाया जा सकता है। इसमें मौजूद बलुआ की मात्रा इसे एक मजबूत जल-निकासी क्षमता प्रदान करती है। अच्छी जल निकासी के अलावा दोमट मिट्टी में वातन का उत्कृष्ट स्तर होता है तथा पोषक तत्वों के स्तर को बनाए रखने की क्षमता मध्यम अर्थात न तो ज्यादा अच्छी और न ही ज्यादा खराब होती है। लेटराइट एक अन्य प्रकार की मिट्टी है, जिसमें लोहे की मात्रा अत्यधिक होती है। इस मिट्टी का उपयोग कपास, चावल, गेहूं, दाल, चाय की खेती तथा वृद्धि करती हुई कॉफी (Coffee), रबड़, नारियल और काजू के लिए किया जाता है। इस प्रकार, मिट्टी की इस विविधता में अनेक प्रकार की फसलों तथा शाक-सब्जियों को उगाया जा सकता है।
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