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आरएनए (RNA) वायरल (SARS-cov-2) की त्रुटि दर उत्परिवर्तन सहिष्णुता की सीमा तक पहुंच गई है और इस दर में होने वाली थोड़ी सी वृद्धि को उत्परिवर्ती मंदी या एरर कटस्ट्रोफी (Error Catastrophe) के नाम से जाना जाता है। एरर कटस्ट्रोफी यानि अत्यधिक उत्परिवर्तन के परिणामस्वरूप एक जीव (अक्सर सूक्ष्मजीवों जैसे विषाणु के संदर्भ में) के विलुप्त हो जाना। एरर कटस्ट्रोफी की गणितीय प्रतिमानों में गणना की गई है और इसे अनुभव के आधार पर भी आंका गया है। पुनर्निर्माण के दौरान हर जीव की तरह विषाणु भी गलतियां करते हैं या बदलाव करते हैं। इससे उत्पन्न हुए परिवर्तन जैव विविधता बढ़ाते हैं और जीव के प्रतिरक्षा तंत्र को आगे होने वाले संक्रमण को पहचानने की शक्ति को प्रभावित करते हैं। पुनर्निर्माण के दौरान विषाणु जितने ज्यादा बदलाव करता है, प्रतिरक्षा तंत्र उसको पहचानने में उतना ही ज्यादा चूक जाता है। हालांकि, अगर यह बहुत अधिक बदलाव करता है तो यह अपनी कुछ जैविक विशेषताएं खो देते हैं, यहां तक कि पुनर्निर्माण की अपनी क्षमता भी। इसी आधार से कुछ प्रतिविषाणुज दवाओं का निर्माण किया जाता है, जो कोविड-19 (Covid-19) जैसे संक्रमक रोगों के उपचार में प्रयुक्त होती हैं।
आणविक विकास के सिद्धांत में मौलिक रूप से एरर कटस्ट्रोफी का पहली बार जिक्र हुआ था। इसके नाम का चलन विषाणुओं पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों के बीच काफी चर्चा में रहता है। हाल ही में छपे एक शोध पत्र में यह सुझाव दिया गया कि रायबावीरीन (Ryebavirin), जो कि एक आम विषक्त संक्रामक पदार्थ रोधी दवा है, इसके कारण पोलियो (Polio) विषाणु एरर कटस्ट्रोफी मोड (Error Catastrophe Mode) में चला जाता है, जिसकी वजह से संक्रमण फैलना बंद हो जाता है। वहीं एरर कटस्ट्रोफी की एक स्पष्ट परिभाषा मौजूद नहीं है बल्कि विवरणात्मक प्रकार की परिभाषाएं उपलब्ध है। यदि कुछ सहिष्णुता को पार कर लिया जाए तो आमतौर पर कटस्ट्रोफी शुरू हो जाती है। प्रतिकृति के लिए, वास्तव में त्रुटि या उत्परिवर्तन दर का ऐसा सीमित मूल्य है जिसे जंगली प्रकार को स्थिर रखने के लिए पार नहीं किया जाना चाहिए।
वर्ष भर के इंतजार के बाद कोरोनावायरस (Coronavirus) टीके का निर्माण हो चुका है, लेकिन भारत कोल्ड चेन (Cold chain) और वितरण बुनियादी ढांचे को लेकर एक कड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। भारत में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के लिए मौजूदा कोल्ड चेन नेटवर्क (Network) का उपयोग करने की योजना बनाई जा रही है। लेकिन उस बुनियादी ढांचे को केवल बच्चों और गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण के लिए तैयार किया गया है, भारत के 1.3 बिलियन लोगों को टीकाकरण की सुविधा प्रदान करने के लिए इसकी क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत द्वारा घरेलू और विदेश में निर्मित होने वाले विभिन्न टीकों का उपयोग किया जा रहा है, जिनमें फाइजर (Pfizer) और मोडेरना (Moderna) के शॉट (Shot) के अलावा दुनिया की सबसे बड़े टीका निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Serum Institute of India Limited) द्वारा निर्मित एस्ट्राज़ेनेका पीएलसी (AstraZeneca Plc’s) के शॉट शामिल है।
यहां तक कि टीके के वितरण करने वाली कंपनियों ने भी भारत की क्षमता को लेकर चिंता जताई है। फाइजर शॉट को -70 डिग्री सेल्सियस के अति ठंडे तापमान पर संग्रहीत किया जाना चाहिए और पांच दिनों के भीतर पिघलाना और इंजेक्ट (Inject) किया जाना चाहिए। वहीं मोडेरना ने कहा है कि उनके टीके को एक महीने के लिए फ्रिज (Refrigerator) के तापमान पर स्टोर किया जा सकता है, लेकिन इसे लंबे समय तक फ्रीजर (Freezer) में रखने की आवश्यकता है। जबकि टीके की उपलब्धता भारत के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल (Drugs Controller General of India) द्वारा जारी परीक्षणों और लाइसेंसिंग के परिणामों के अधीन है, यदि सब कुछ सही तरीके से हुआ तो 2021 की पहली तिमाही में टीका उपलब्ध होने की उम्मीद है।
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