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पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बारे में लोगों में जागरूकता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। लोग दूध, दुग्धालय उत्पाद, अंडे और मांस जैसे पशु उत्पादन के लिए व्यवहार्य विकल्पों का चुनाव कर रहे हैं। जैसा कि दुनिया भर में शुद्ध शाकाहारी बनने के लाभ काफी प्रचलित हो गए हैं, ऐसे में वैज्ञानिकों द्वारा कीट के मक्खन को विकसित किया गया है, जो दुग्धालय मक्खन के समान है। बेल्जियम (Belgium) के घेंट विश्वविद्यालय (Ghent University) के वैज्ञानिक वॉफल (Waffle), केक (Cake) और कुकीज़ (Cookies) में दुग्धालय मक्खन के विकल्प के लिए कीटडिंभ के वसा से मक्खन बनाने का प्रयोग कर रहे हैं, उनका कहना है कि कीड़ों में उपलब्ध वसा का उपयोग दुग्धालय उत्पाद की तुलना में अधिक टिकाऊ है।
शोधकर्ताओं ने पानी की कटोरी में काली सैनिक मक्खी के कीटडिंभ को भिगो दिया, जिसके बाद उसे एक चिकना ग्रेयिश (Greyish) उत्पाद बनाने के लिए एक सम्मिश्रक में डाल दिया जाता है और फिर कीट मक्खन को अलग करने के लिए एक रसोई अपकेंद्रित्र का उपयोग किया जाता है। कीट अवयवों का उपयोग करने के कई सकारात्मक पहलू भी मौजूद है। वे अधिक टिकाऊ होते हैं क्योंकि कीड़े मवेशियों की तुलना में कम भूमि का उपयोग करते हैं, उन्हें भोजन में परिवर्तित करने में अधिक प्रभावशाली होते हैं और वे मक्खन का उत्पादन करने के लिए कम पानी का उपयोग करते हैं।
कीट भोजन में उच्च स्तर पर प्रोटीन (Protein), विटामिन (Vitamins), फाइबर (Fibre) और खनिज का स्त्रोत होते हैं और यूरोप में वैज्ञानिक इसे अन्य प्रकार के पशु उत्पादों के लिए पर्यावरण के अधिक अनुकूल और सस्ते विकल्प के रूप में देख रहे हैं। जब शोधकर्ताओं ने उपभोक्ताओं को दुग्धालय मक्खन के साथ एक चौथाई कीटडिंभ वसा का उपयोग करके बनाया गया केक चखाया तो उन्होंने बताया की उन्हें इसमें कोई अंतर नहीं दिखाई दिया। हालांकि, केक को 50% दुग्धालय मक्खन और 50% कीटडिंभ मक्खन का उपयोग करके बनाने पर उपभोक्ताओं ने एक असामान्य स्वाद के बारे में बताया।
अनुमानित कीट प्रजातियों की संख्या का अनुमान विश्व स्तर पर 1,000 से 2,000 तक है। इन प्रजातियों में 235 तितलियाँ और पतंगे, 344 भृंग, 313 चींटियाँ, मधुमक्खियाँ और ततैया, 239 टिड्डे, झींगुर और तिलचट्टा, 39 दीमक और 20 ड्रैगनफलीज़ (Dragonfly) शामिल हैं, साथ ही सिकाडास (Cicadas) भी शामिल हैं। यूरोप (Europe) और उत्तरी अमेरिका (North America) जैसे पश्चिमी बाजारों में उपभोक्ता रुचि बढ़ाने के लिए, कीटों को न पहचानने योग्य रूप (जैसे पाउडर या आटा) में संसाधित किया जाता है। शिक्षाविदों के साथ-साथ बड़े पैमाने पर कीट खाद्य उत्पादक जैसे कि कनाडा (Canada) में एंटोमोफर्म्स (Entomofarms), संयुक्त राज्य अमेरिका (United States) में एस्पायर फूड ग्रुप (Aspire Food Group), नीदरलैंड्स (Netherlands) में प्रोटीफार्म और प्रोटिक्स (Protifarm and Protix) और स्विट्जरलैंड (Switzerland) में बुहलर ग्रुप (Buhler Group) मानव उपभोग के लिए उपयुक्त चार कीट प्रजातियों (मीलवॉरम (Mealworms), लेससर मीलवॉरम (Lesser Mealworms), हाउस क्रिकेट (House Cricket), यूरोपीय प्रवासी टिड्डी) के साथ-साथ औद्योगिक उत्पादन पर ध्यान केंद्रित है।
प्राचीन समय से ही लोगों द्वारा कीड़ों का उपभोग किया जाता था, ऐसा माना जाता है कि दस हजार वर्ष पहले शिकारियों और संग्रहकर्ताओं ने जीवित रहने के लिए कीड़ों का उपभोग किया था, उन्होंने शायद यह जानवरों को देख कर सीखा होगा कि ये खाने योग्य हैं। प्राचीन रोमन (Romans) और यूनानी (Greeks) कीड़े का उपभोग करते थे। पहली सदी के रोमन विद्वान और हिस्टोरिया नेचुरलिस (Historia Naturalis) के लेखक प्लिनी (Pliny) ने लिखा है कि रोमन अभिजात वर्ग के लोग आटे और शराब के साथ भृंग कीटडिंभ खाना पसंद करते थे। पुराने नियम ने ईसाइयों और यहूदियों को टिड्डे, भृंग और झींगुर का उपभोग करने के लिए प्रोत्साहित किया। कहा जाता है कि रेगिस्तान में रहते वक्त पादरी सेंट जॉन (St. John) ने टिड्डियों और शहद का उपभोग करके स्वयं का पेट भरा था। 19वीं शताब्दी के मध्य में, नेवादा (Nevada) में पोनी एक्सप्रेस (Pony Express) के एक अधीक्षक मेजर हॉवर्ड ईगन (Major Howard Egan) ने एक पाइयूत भारतीय शिकार का निरीक्षण किया, जो न तो जंगली भैंसा था और न ही खरगोश, बल्कि पंखहीन मॉर्मन झींगुर (Mormon Cricket) था।
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