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26 अक्टूबर, 1794 को बरेली और पीलीभीत के बीच बिथौरा कलां की लड़ाई हुई, जो अंग्रेजी इतिहास में "दूसरे रोहिल्ला युद्ध" के रूप में प्रसिद्ध है। वर्तमान में बिथौरा कलां, उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के मरोरी ब्लॉक में स्थित एक गाँव है, जोकि बरेली डिवीजन (Bareilly Division) के अंतर्गत आता है। इतिहास में हुई बिथौरा कलां की लड़ाई दूसरे रोहिल्ला युद्ध का अंतिम हिस्सा बनीं, उस दौरान बिथौरा कलां बंगाल प्रेसीडेंसी (Bengal Presidency) का हिस्सा था। उस समय जनरल ऐबरक्रॉम्बी (General Abercrombie) (जो अमेरिका और मैसूर (टिपू सुल्तान) का युद्ध लड़ चुके थे)) 7,500 सैनिकों के साथ कानपुर (Cawnpore) से आगे बढ़े और उनको उम्मीद थी कि लगभग 5,000 सैनिकों की अवध सेना इस युद्ध में उनके साथ शामिल होगी। हालाँकि ऐसा नहीं हुआ और ऐबरक्रॉम्बी अकेले ही रोहिल्ला से लड़ने बिथौरा जा पहुंचे। यहां पहुंचने के बाद कैप्टन रामसे (Captain Ramsay) और कैवेलरी (Cavalry) की दो रेजिमेंटों (Regiments) ने कंपनी (Company) के सिपाहियों की दो बटालियन (Battalion) के माध्यम से बेवजह भगदड़ मचा दी, और इस भ्रम का फायदा रोहिल्ला के 5,000 घुड़सवारों ने उठाया, इस वजह से 2,500 लोग मारे और घायल हो गए। परंतु फिर भी अंततः ब्रिटिशों की जीत हुई। कहा जाता है कि कैप्टन रामसे को दुश्मन की सहायता के लिए रिश्वत दी गई थी। युद्ध के बाद वो कोर्ट मार्शल (Court Martial) से बचने के लिये गोवा (Goa) भाग गये। इस दिन जनरल ऐबरक्रॉम्बी की अगुवाई में छोटी सी अंग्रेजी सेना ने लड़ाई लड़ी और रामपुर के नवाब गुलाम मोहम्मद खान की 25000 मजबूत रोहिल्ला सेना को हराया। माना जाता है कि ऐबरक्रॉम्बी की सेना की रणनीति और तोपों के अलावा रोहिल्ला सेना की हार के प्रमुख कारणों में से एक यह था कि नवाब को रोहिलों की कमलजई जनजाति का समर्थन नहीं था, जिसका नेतृत्व दलेर खान कमलजई ने किया था, जो अवध के नवाब के साथ थे।
1774 में, प्रथम रोहिल्ला युद्ध के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) के समर्थन से फैजुल्ला खान को रामपुर का नवाब चुना गया। 1793 में, फैजुल्ला खान की मृत्यु हो गई जिसके पश्चात उनके बड़े बेटे मोहम्मद अली खान रामपुर के नवाब बने। परंतु वे जल्द ही लोगों की आंखों में खटकने लगे। थोड़े समय बाद उनके छोटे भाई गुलाम मोहम्मद ने सेना के कई प्रमुख अधिकारियों के साथ मिलकर कूटनीति बनाई और मोहम्मद अली की गोली मार कर हत्या करवा दी और राज्य पर कब्ज़ा कर लिया। परंतु ब्रिटिशों ने उनके शासन पर विरोध जाताया और उनके विरूद्ध कार्यवाही करने तथा उन्हें सजा देने के लिये जनरल ऐबरक्रॉम्बी के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना को भेजा गया। यह सुन कर रामपुर के नवाब गुलाम मुहम्मद खान ने सैनिकों की भर्ती का आदेश दिया, जिसके परिणामस्वरूप लगभग हर रोहिल्ला परिवार के सदस्य को सेना में शामिल किया गया। चौथे सप्ताह तक सेना आकार में 25,000 तक बढ़ गई थी। लेकिन उसके सैनिकों में नियमित अपवाद के साथ अनुशासन और प्रशिक्षण में कमी भी थी, इसके अलावा, सेना के एक बड़े भाग में कमलजई अफगानी शामिल थे, जिनमें अभी भी नवाब मुहम्मद अली खान के परिवार के प्रति वफादारी मौजूद थी। कमलजई के प्रमुख दिलेर खान कमलजई वास्तव में, गुप्त रूप से अवध के नवाब के साथ मिल चुके थे, वे चाहते थे कि मोहम्मद अली खान के पुत्र अगले नवाब बनें। इस बात को जानने के बाद गुलाम मोहम्मद खान चाह कर भी दिलेर खान को बंदी नहीं बना पाये क्योंकि उनकी सेना के एक बड़े भाग में कमलजई अफगानी भी शामिल थे। परंतु उन्होंने अपनी परिस्थिति से अवगत होने के बावजूद भी युद्ध की तैयारी जारी रखी।
अंततः 26 अक्टूबर को बिथौरा गाँव में युद्ध हुआ। रोहिल्ला ने ब्रिटिश सेना को हराने के लिये जंगल का इस्तेमाल करते हुये हमला किया। हालांकि, शुरुआत में रोहिल्ला सेना ब्रिटिश सेना पर भारी पड़ रही थी, यहां तक कि नवाब गुलाम मुहम्मद खान ने जीत के ढोल पीटना शुरू कर दिया था। परंतु बाद में जनरल एप्क्रोमब्री ने अपना मैदान संभाला और ब्रिटिशों नें लगभग 25,000 गुलाम मुहम्मद की रोहिलों की सेना को पूरी तरह से हरा दिया। इसके बाद गुलाम मोहम्मद ने जल्द ही आत्मसमर्पण कर दिया।
रोहिलों की इस महत्वपूर्ण हार में कुछ उल्लेखनीय बिंदु हैं, जिन्हें अक्सर भुला दिया जाता है –
• ऐबरक्रॉम्बी कौन थे और उनकी ब्रिटिश सेना में क्या भूमिका थी?
जनरल सर रॉबर्ट ऐबरक्रॉम्बी (General Sir Robert Abercrombie) (21 अक्टूबर 1740 - 3 नवंबर 1827), सर राल्फ ऐबरक्रॉम्बी (Sir Ralph Abercrombie) के सबसे छोटे भाई, सेना में एक जनरल थे। इन्होंने 1758 में सेना में प्रवेश किया था, 1763 तक ये अमेरिकी सेना में रहे। इसके बाद ये 1788 में भारत आ गये और 1790–1797 तक ऐबरक्रॉम्बी ने भारत में सेवा की, जहाँ वे बॉम्बे के गवर्नर (Bombay’s Governor) और मेजर जनरल (Major General) थे। मालाबार तट पर संचालन के बाद, उन्होंने 1792 में श्रीरंगपट्टनम (Srirangapatna) में टीपू पर हमला किया और और उनको हराया, जिसके बाद वे लॉर्ड कॉर्नवॉलिस (Lord Cornwallis) के साथ शामिल हो गये, इसके अलावा वे 1793 में सुप्रीम काउंसिल (Supreme Council) के सदस्य भी रहे। 1794 में रोहिल्ला सेना को हराने के बाद वे 1797 में लेफ्टिनेंट जनरल (Lieutenant General) बने।
• अवध साम्राज्य (Awadh Empire) और ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के लिए इस युद्ध के क्या निहितार्थ थे ?
जब 1774 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने रोहिल्लों को हराया तो वे राज्य का अधिकांश हिस्सा हड़प सकते थे। परंतु रोहिल्लों का इलाका अवध में था।
इसलिये ब्रिटिशों द्वारा रामपुर में एक छोटे से संरक्षित रोहिल्ला राज्य की स्थापना की गयी, जिसमें फैजुल्ला खान को नवाब बनाया। 1793 में, फैजुल्ला खान की मृत्यु हो गई जिसके परिणामस्वरूप उनके बेटे रामपुर का नवाब बनने के लिए आपस में लड़ने लग गये। इस कारण, जनरल ऐबरक्रॉम्बी के नेतृत्व में फिर से ब्रिटिशों ने दखल देना शुरु कर दिया। जिसके कारण 1794 में दूसरा रोहिल्ला युद्ध हुआ, जिसमें रोहिल्ला हार गए और करीब 25,000 रोहिल्ला सैनिकों को मार दिया गया।
• ईस्ट इंडिया कंपनी ने रोहिलखंड युद्ध स्मारक का निर्माण युद्ध के बाद करवाया था –
युद्ध के बाद, रोहिल्ला युद्ध स्मारक का निर्माण सेंट जॉन चर्च (St। John's Church), कलकत्ता (Calcutta) के परिसर में रोहिला युद्ध में मारे गए सैनिकों की याद में किया गया था। इसने इस महत्वपूर्ण युद्ध की याद को आज भी जीवित रखा है। यह भारत की ब्रिटिश राजधानी में यानी कलकत्ता के मध्य में बनाया गया था। यह खूबसूरत स्मारक लगभग 45 फीट ऊंची है और इसके आधार के किनारे एक पट्टिका बनी है, जिस पर युद्ध में मारे गए सैन्य अधिकारियों के नाम हैं।
आजादी के बाद रोहिलों की अधिकांश आबादी पाकिस्तान में बस गयी, हालांकि काफी लोग भारत में वापस आ गये थे। जिस क्षेत्र में वे रुके थे उसे रोहिलखंड के नाम से जाना जाता है और वर्तमान में यह हिस्सा उत्तर प्रदेश राज्य में आता है।
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