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रामपुर के जिला अदालत के सामने 7 एकड़ के एक सुंदर बाग में सेंट जोसेफ सेंटर (St. Joseph's Center) है। यह स्थान रामपुर के नवाबों के समय चिड़ियाघर हुआ करता था। 1963 में टस्कनी (Tuscany) के ब्रदर पायस (Br. Pius) ने मेरठ के सूबा नामक स्थान पर एक भूखंड खरीदा, जिस पर एक पुरानी इमारत भी थी। 1965 में सेंट जोसेफ (St. Joseph) ने रामपुर में एक पैरिश (Parish) (ईसाईयों की पारंपरिक इकाई) स्थापित किया। ब्रदर पायस (Br. Pius) और ब्रदर लैनफ्रैंक (Br. Lanfrank) रामपुर जिले के अग्रणी मिशनरी बनें। 1976 में यह भूखंड व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र शुरू करने के लिए केरल प्रांत के उत्तरी कैप्युषीन मिशन क्षेत्र (Northern Capuchin Mission Region) को सौंप दिया गया और ब्रदर पी ए जोसेफ (Br. P A Joseph) को पहले पास्टर (Pastor) के रूप में नियुक्त किया गया।
रामपुर जिले में और उसके आसपास के क्षेत्रों में ईसाई धर्म प्रचारकों के प्रयास के माध्यम से एक जीवंत ईसाई समुदाय का विकास हुआ, जो आज कई अलग-अलग परगनों में संचालित हो रहा है। यहां बने चर्च के आसपास के बगीचे में से कुछ जमीन फ्रांसिस्कन की बहनों (Sisters of Franciscan) को दान की गयी हैं, जो यहां एक नर्सिंग होम (Nursing Home) चलाती हैं, जो मुस्लिम समुदाय के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। यहां पर औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र भी है, जहां युवाओं को नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है। इस क्षेत्र में तीनों समुदाय हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई एक साथ रहते हैं। यहां पर कैथोलिक धर्म का अनुसरण किया जाता है।
कैथोलिक धर्म कैथोलिक चर्चों की परंपराएं और मान्यताएं हैं। यह उनके धर्मशास्त्र, ईसाइयों की प्रार्थना करने की रीति, नैतिकता और आध्यात्मिकता को संदर्भित करता है। यह शब्द मुख्यत: पश्चिमी और पूर्वी दोनों के चर्चों को संदर्भित करता है, जो कि होली सी (Holy See) के साथ समन्वित हैं। 2012 में, दुनिया भर में 1.1 बिलियन से अधिक कैथोलिक थे, जो कि दुनिया की आबादी का 17% से अधिक है।
कैथोलिकवाद शब्द ग्रीक शब्द कैथोलिकिस्मोस (Catholikismos) से आया है। इसका मतलब है "पूर्ण के अनुसार"। शब्द "कैथोलिकवाद" कई बातों को संदर्भित करता है, जिसमें इसकी धार्मिक मान्यताएं ("धर्मशास्त्र" और "सिद्धांत") और इसकी धार्मिक पूजा का रूप (जिसे लिटर्जिस (Liturgies) कहा जाता है) शामिल हैं। यह शब्द नैतिकता (सही और गलत) के बारे में कैथोलिक धर्म के विश्वासों को भी संदर्भित करता है। यह उन तरीकों को बताता है, जिसके अनुसार कैथोलिक धर्म के सदस्य रहते हैं और अपने धर्म का पालन करते हैं। इसके अनुयायी रोम के पोप को अपना धर्माध्यक्ष मानते हैं। कैथोलिक चर्च रोम के वेटिकन (Vatican) नगर में स्थित है। कभी-कभी यह शब्द अन्य ईसाई चर्चों की मान्यताओं को भी संदर्भित करता है, जिसमें पूर्वी रूढ़िवादी चर्च भी शामिल हैं, जिनके कैथोलिक चर्च के समान कई मान्यताएं हैं, लेकिन यह रोम के बिशप को अपना धर्मगुरू नहीं मानते हैं।
कैथोलिक चर्च शब्द का उपयोग सबसे पहले इग्नाटियस (Ignatius) नामक एक व्यक्ति द्वारा किया गया था, यह प्राचीन शहर एंटिओक (Antioch) में रहता था। वर्ष 107 में, इग्नाटियस ने प्राचीन शहर स्मिर्ना (Smyrna) में ईसाई समुदाय को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा था। इस पत्र में, इग्नाटियस ने ईसाई समुदाय को अपने नेता बिशप (Bishop) के प्रति वफादार रहने के लिए प्रोत्साहित किया। इग्नाटियस ने लिखा है:
"जहाँ भी बिशप दिखाई दें, वहाँ लोगों को जाने दो; यहाँ तक कि, जहाँ भी यीशु मसीह है, वहाँ कैथोलिक चर्च है।"
ईसाइयों के कई अलग-अलग संप्रदाय (समूह) खुद को "कैथोलिक" कहते हैं। यह संप्रदाय अपने धर्मगुरू पर विश्वास करते हैं, जिन्हें बिशप कहा जाता है। इनका मानना है कि पहले बिशप को स्वयं यीशु ने नियुक्त किया था, बाद में इन बिशप के द्वारा भावी बिशप को नियुक्त किया गया। बिशपों की नियुक्ति को "अपोस्टोलिक उत्तराधिकार" (Apostolic Succession) कहा जाता है।
कैथोलिक धर्म की शुरूआत यीशु (एक यहुदी व्यक्ति जिसे ईश्वर का पुत्र माना जाता है) के बाद हुयी, ईसाइयों के विश्वास को त्रित्व (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) कहा जाता है। कैथोलिक लंबे समय से यीशु को डेविड (David), यहूदी राजा का वंशज मानते हैं। वर्ष 33 ईस्वी में रोमन द्वारा ईसा को सूली पर चढ़ाया गया था। कैथोलिकों का मानना है कि यीशु मृत होने के बाद पुन: जी उठे, और अपने 12 शिष्यों से बात की। वे यह भी मानते हैं कि यीशु स्वर्ग में उठे, और फिर पवित्र आत्मा को अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पेंटेकोस्ट (Pentecost) नामक एक कार्यक्रम में भेजा। उनके अनुयायियों में से एक, संत पीटर (St. Peter) नाम के प्रेषित को यीशु द्वारा नेता नियुक्त किया गया था और बाद में उन्हें पहले पोप या रोम के बिशप के रूप में मान्यता दी गई, इसके तुरंत बाद उन्हें पकड़कर मार दिया गया। कैथोलिक मानते हैं कि संत पीटर को "स्वर्ग के राज्य की कुंजी" दी गई थी, जिसका अर्थ है कि यीशु ने उसे और ईसाई धर्म के प्रचारकों को पापों को क्षमा करने की क्षमता दी थी। सेंट पीटर ने आगे के बिशप को नियुक्त करने की निती बनाई। 325 में, नाइसिया (Nicaea) परिषद ने चर्च को कैसे व्यवस्थित किया जाए, इस पर सहमति व्यक्त की। आगे चलकर धर्मशास्त्र के अलग-अलग मतों के कारण कई समूह कैथोलिक चर्च से अलग होकर भिन्न-भिन्न संप्रदाय हो गए, जिनकी अलग-अलग धारणांए थी।
कैथोलिक और अन्य ईसाइयों के समान पहलू:
• ईसाई धर्म के दस नियम
• यह विश्वास कि ईश्वर सब कुछ जानता है, ईश्वर के पास असीमित शक्ति है, और ईश्वर जो कुछ भी करता है वह अच्छा ही होता है।
• विश्वास है कि यीशु मसीह दुनिया के पापों के लिए मरे, फिर से जीवित हुए, और एक दिन जीवित और मृत लोगों को न्याय दिलाने के लिए फिर से पृथ्वी पर अवतरित होंगे।
• परमेश्वर की प्रार्थना का विशेष महत्व है
• बाइबिल (Bible) की पवित्रता
कैथोलिक और पूर्वी रूढ़िवादी ईसाइयों के मध्य भिन्नता:
• रोम के बिशप की सर्वोच्चता (पोप के रूप में भी जाना जाता है)
• नायसिन पंथ (Nicene creed)
कैथोलिक मुख्यधारा के प्रोटेस्टेंट (Protestants) से अलग क्या है:
• कैथोलिक यूचरिस्ट (Eucharist) में मसीह की वास्तविक उपस्थिति पर विश्वास करते हैं
• रोमन कैथोलिक मानते हैं कि भगवान सुलह (तपस्या) के संस्कार के माध्यम से पापों को क्षमा करते हैं, जो पादरी द्वारा किया जाता है, जबकि अधिकांश प्रोटेस्टेंट (Protestants) संस्कार में विश्वास नहीं करते हैं।
• रोमन कैथोलिकों का मानना है कि पवित्रशास्त्र और परंपरा द्वारा जीना महत्वपूर्ण है, जो चर्च के मैगीस्ट्रियम (Magisterium) (पोप के साथ समन्वित बिशप) की शिक्षा से आते हैं, जबकि अधिकांश प्रोटेस्टेंट सोला स्क्रिप्तूरा (Sola Scriptura) (केवल बाइबिल) में विश्वास करते हैं।
• कैथोलिकों के पास विस्तृत मारियोलॉजी (Mariology) है, जबकि अधिकांश प्रोटेस्टेंट के पास नहीं है।
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