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भारतीय कालीन सारे विश्व में अपनी उत्कृष्ट गुणवत्ता और बनावट के लिए मशहूर है। भारत कालीन के विश्व स्तर के कुल निर्यात का 40 प्रतिशत निर्यात करता है। रामपुर के हाथ से बनाए जाने वाले कालीन विश्व विख्यात होने के साथ-साथ दुनिया के बाजार में ‘रामपुर कार्पेट’ नामक विशेष श्रेणी में बिकते हैं। भारत में कालीन उद्योग इस बात का जीता जागता सबूत है कि कैसे 1 घरेलू उद्योग जो पूरी तरह से घर पर बनाया जाता था आज समय के साथ एक पूर्ण विकसित मशीन आधारित उद्योग बन गया है। घरों की चार दीवारों में सुरक्षित रूप से यह कालीन घर- परिवार के सदस्यों द्वारा मिलजुल कर बनाया जाता था। हथकरघा उद्योग का यह बेमिसाल नमूना आज एक विशाल उद्योग बन गया है जो बड़े स्तर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन कर रहा है। कालीन बुनने का व्यवसाय भारत के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है। इसका इतिहास हजारों साल पुराना है। 16वीं शताब्दी में (1580 AD) में मुगल बादशाह अकबर अपने महल में कुछ पर्शियन बुनकर आगरा (उस समय का अकबराबाद) में लेकर आए। इसके बाद आगरा, दिल्ली, लाहौर(जो कि अब पाकिस्तान में है) पर्शियन कालीन के मुख्य उत्पादन और ट्रेनिंग के केंद्र बन गए।
1857 के ग़दर के दौरान यह कालीन बुनकर आगरा से भागकर उत्तर प्रदेश के भदोही और मिर्जापुर के बीच एक गांव में जा बसे जिसका नाम था माधो सिंह और बहुत छोटे स्तर पर यह कारीगर कालीन बुनाई का काम करने लगे। कुछ समय बाद उस समय के बनारस के महाराजा के सहयोग से कालीन बुनाई के क्षेत्र में विकास होने लगा। बहुत ही कम लोग जानते हैं कि ब्रिटिश राज में कैदियों को कालीन बनाना सिखाया जाता था और इसी कारण जेल से छूटे कई कैदियों ने अपना कालीन उद्योग शुरू किया। यह उद्योग न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का प्रमुख साधन रहा है बल्कि भारत की आजादी के वक्त कमजोर अर्थव्यवस्था को इस व्यवसाय ने फॉरेन एक्सचेंज रेवेन्यू (Foreign Exchange Revenue) के रूप में बड़ा योगदान किया। फिर भी विडंबना है कि कालीन बुनाई को एक उद्योग के रूप में नीची नजर से देखा जाता है, जबकि लंबे समय से यह उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में हजारों डॉलर प्रति वर्ष का बड़ा योगदान करता है और साथ ही भारत के इस प्राचीन उद्योग को मानो एक धरोहर की तरह हिफाजत से रखता है। पारंपरिक कालीन निर्माण के प्रमुख इलाके हैं उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर, भदोही और आगरा। राजस्थान के जयपुर और कश्मीर भी इसमें शामिल हैं। इसके अलावा हाल ही में मध्य प्रदेश से ग्वालियर, हरियाणा से पानीपत भी कालीन उत्पादन के क्षेत्र में आगे आए हैं। हर इलाके में बनने वाले कालीन की अलग विशेषता होती है, कश्मीर में जहां हाथ से गांठ बांधकर सिल्क और ऊनी कालीन बनाने की खासियत है, वही आगरा की विशेषता है उच्च कोटि की हाथ से गांठ बांधने की तकनीक वाली पर्शियन और तुर्की शैलियों से प्रेरित कालीन, जिनमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग होता है।
उत्तर प्रदेश की भदोही मिर्जापुर बेल्ट विभिन्न प्रकार के कालीन बनाने का गढ़ है और पूरे देश में सबसे बड़ी तादाद में कालीन उत्पादन यही होता है। भारत से जिन देशों को यह कालीन निर्यात होते हैं उनमें शामिल है- यूएसए, कनाडा, स्पेन, तुर्की, मेक्सिको, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, बेल्जियम,हॉलैंड , न्यूजीलैंड, डेनमार्क और बहुत से यूरोपीय देश। रामपुर जिले के बहुत से ग्रामीण परिवार इस हुनर से अपना घर परिवार चलाते हैं, लेकिन यूएसए-यूके आधारित मशीनें हाथ से किए जाने वाले अधिकतर काम बंद करती जा रही हैं। हालांकि कई देशी-विदेशी ब्रांड इनकी मदद के लिए आगे आए लेकिन कालीन बुनाई का व्यवसाय एक असंगठित क्षेत्र है, इसलिए मूल बुनकर तक इस काम की सही कीमत नहीं पहुंच पाती। ऐसे में आवश्यकता है कि सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं मिलकर इस समस्या का कोई ठोस और कारगर समाधान निकालें जिससे कारीगरों को सम्मान पूर्वक उनका हक मिल सके।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में भदोही कालीन के एक बैच (Batch) का चित्रण है। (Publicdomainpictures)
2. दूसरे चित्र में पर्शियन शैली का भारतीय कालीन कला में मिश्रण प्रस्तुत है। (Wikimedia)
3. तीसरे चित्र में रामपुर कालीन का चित्रण है। (Flickr)
सन्दर्भ:
1. https://www.jacarandacarpets.com/en/about-us/history/
2. https://www.jacarandacarpets.com/en/about-us/how-we-hand-weave/
3. https://crimsonpublishers.com/tteft/fulltext/TTEFT.000563.php
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