समयसीमा 234
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 960
मानव व उसके आविष्कार 744
भूगोल 227
जीव - जन्तु 284
पुस्तकालय एक ऐसा स्थान है जहां ऐतिहासिक मूल्य के कई संग्रहों को रखा जा सकता है। रामपुर स्थित रज़ा पुस्तकालय भी ऐतिहासिक मूल्य के अनेक संग्रहों को संरक्षित रखने का कार्य कर रहा है। यह विलक्षण रूप से दुर्लभ लघु चित्रों, पेंटिगों और मंगोल, फ़ारसी, मुग़ल दक्कनी, राजपूत, पहाड़ी, अवध और ब्रिटिश स्कूल ऑफ पेंटिंग्स (British Schools of Paintings) का प्रतिनिधित्व करने वाली सचित्र पांडुलिपियों से समृद्ध है। पुस्तकालय में चित्र और लघुचित्रों के पैंतीस एल्बम (Albums) हैं, जिनमें ऐतिहासिक मूल्य के लगभग पांच हजार चित्र हैं। इन एल्बमों में अकबर के शासनकाल के शुरुआती वर्षों का एक अनूठा एल्बम ‘तिलिस्म’ भी है, जिसमें 157 लघुचित्र शामिल हैं जोकि समाज के विभिन्न तबके के जीवन को चित्रित करते हैं। ज्योतिषीय और जादुई अवधारणाओं के अलावा, शाही बैनर में से एक में कुरान की आयतें हैं और इस प्रतीकात्मक तिमूरिद (Timurid) बैनर को सूरज और शेर के साथ भी चित्रित किया गया है जबकि अन्य में राशि चक्र के संकेत हैं। एल्बम में अवध नवाबों की मुहरें भी हैं जो यह इंगित करता है कि यह वहां उनके अधिग्रहण में था। पुस्तकालय संग्रह में संतों और सूफियों के चित्र वाला एक एल्बम भी है।
मुगल शैली में 17 वीं शताब्दी में विशेष रूप से चित्रित एक बहुत ही मूल्यवान एल्बम ‘रागमाला’ विभिन्न मौसमों, समय और भावों के अलावा, सुंदर परिदृश्य, देवी और देवता, पुरुष और महिला दोनों युवा संगीतकारों के माध्यम से 35 रागों और रागिनियों को चित्रित करता है जोकि अतुलनीय है। कुछ एल्बमों में मंगोल तिमूरिद और रानियों सहित मुगल शासकों के चित्र हैं जिनमें चिंगेज़ हुल्कू, तिमूर, बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगज़ेब, मुहम्मद बहादुर शाह ज़फ़र, गुल, गुल बदन बेगम, नूरजहाँ, बहराम खान, इतिमाद-उद-दौला, आसफ खान, बुरहान-उल-मुल्क, सफदर जंग, शुजा-उद-दौला, आसिफ-उद-दौला, बुरहान निजाम शाह द्वितीय, अबुल हसन तना शाह आदि शामिल हो सकते हैं। संग्रह के अलावा ईरानी राजा और राजकुमारियों जैसे कि इस्माइल सफवी और शाह अब्बास की तस्वीरें शामिल हैं। इनमें एक लघु चित्र मौलाना रम शिराजी का भी है। लघु चित्रों की दुनिया इतिहास, धर्मग्रंथों और युगों से लोगों के जीवन का बहुरूपदर्शक है। लघु कला प्रेम का एक गहन श्रम है जिसे विविध प्रकार की सामग्रियों जैसे- ताड़ के पत्ते, कागज, लकड़ी, संगमरमर, कपड़े आदि की एक श्रृंखला पर चित्रित किया गया है।
उत्तम रंग देने के लिए जैविक और प्राकृतिक खनिजों जैसे पत्थर, वास्तविक सोने चांदी इत्यादि के चूर्ण का उपयोग किया जाता है। यहां तक कि उपयोग किया जाने वाले कागज का प्रकार भी विशेष होता है तथा एक चिकनी तथा अछिद्रयुक्त सतह प्राप्त करने के लिए पत्थर के साथ पॉलिश (Polish) किया जाता है। भारत में सबसे प्राचीन लघु चित्र 7 वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व से प्राप्त किये जा सकते हैं, जब वे बंगाल के पाल वंश के संरक्षण में फले-फूले। बौद्ध ग्रंथों और शास्त्रों को बौद्ध देवताओं की छवियों के साथ 3 इंच चौड़े ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों पर चित्रित किया गया था। पाल कला को अजंता में भित्ति चित्रों के कोमल और धुंधले रंगों और वक्रदार रेखाओं द्वारा परिभाषित किया गया था।
जैन धर्म ने लघु चित्रकला की पश्चिमी भारतीय शैली के लघु कलात्मक आंदोलन को प्रेरित किया। यह रूप 12 वीं -16 वीं शताब्दी ईस्वी से राजस्थान, गुजरात और मालवा के क्षेत्रों में प्रचलित था। जैन पांडुलिपियों को अतिरंजित शारीरिक विशेषताओं, उत्तेजक रेखाओं और उज्जवल रंगों का उपयोग करके चित्रित किया गया था। 15 वीं शताब्दी में फारसी प्रभावों के आगमन के साथ, कागज ने ताड़ के पत्तों की जगह ले ली, जबकि शिकार के दृश्य और विभिन्न प्रकार के चेहरे समृद्ध एक्वामरीन ब्लूज़ (Aquamarine blue) और स्वर्ण के उपयोग के साथ दिखाई देना शुरू हुए। भारत में लघु कला वास्तव में मुगलों (16 वीं -18 वीं शताब्दी ईस्वी) के तहत समृद्ध हुई, जोकि भारतीय कला के इतिहास में एक समृद्ध अवधि को परिभाषित करती है। चित्रकला की मुगल शैली धर्म, संस्कृति और परंपरा का सम्मलेन थी। फारसी शैलियों ने स्थानीय भारतीय कला के साथ संयुक्त होकर एक उच्च विस्तृत, समृद्ध कला का निर्माण किया।
सम्राट अकबर के तहत, महल के जीवन और राजसी गौरव की विभिन्न उपलब्धियों का दस्तावेजीकरण एक प्रमुख विशेषता बन गया। उनके बाद सम्राट जहाँगीर के शासनकाल में प्रकृति के कई तत्वों की शुरूआत के साथ-साथ शैली में अधिक परिशोधन और आकर्षण देखा गया। बाद के चरण में इन चित्रों के भीतर यूरोपीय चित्रों की तकनीकें जैसे छायांकन और परिप्रेक्ष्य को भी पेश किया गया। औरंगजेब के शासनकाल में घटे हुए संरक्षण के कारण, मुगल लघु चित्र में पारंगत कई कलाकार दूसरी रियासतों में चले गए। इसके बाद, राजपूत लघु चित्रकला आधुनिक राजस्थान में 17 वीं -18 वीं शताब्दी में विकसित हुई। मुगल लघु कला जिसने शाही जीवन को चित्रित किया, के विपरीत, राजस्थानी लघुचित्र भगवान कृष्ण की प्रेम कहानियों और रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक महाकाव्यों पर केंद्रित हुई जिन्हें पांडुलिपियों और हवेलियों और किलों की दीवारों पर सजावट के रूप में बनाया गया। राजस्थानी लघु कला के कई विशिष्ट विद्यालय स्थापित किए गए, जैसे मालवा, मेवाड़, मारवाड़, बूंदी-कोटा, किशनगढ़ और अंबर के स्कूल।
एक और शैली जो राजपूतों के संरक्षण में विकसित हुई, वह थी जम्मू और हिमाचल प्रदेश के बीच स्थित पर्वतीय क्षेत्रों में पहाड़ी शैली। पहाड़ी स्कूल मुगल लघु कला और वैष्णव कहानियों के एक आत्मसात रूप में विकसित हुआ। पहाड़ी कला के विभिन्न स्कूल हैं - मोनोक्रोम (Monochrome) रंग और बहु-फर्श संरचनाओं के उपयोग के साथ उज्जवल बसोहली कला, उत्कृष्ट कांगड़ा शैली, जिसमें प्रकृतिवाद और ‘श्रृंगार’ का चित्रण है और अन्य स्कूल जैसे गुलेर और कुल्लू-मंडी। दक्कनी शैली लघु कला शैली को संदर्भित करती है, जो 16 वीं -19 वीं शताब्दी से बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुंडा और हैदराबाद में प्रचलित थी। शुरुआत में, इस शैली ने मुगल प्रभावों से स्वतंत्र विकास किया। यूरोपीय, ईरानी और तुर्की प्रभावों को मिलाकर इस कला को इस्लामिक पेंटिंग (Paintings) का रूप दिया गया था। बाद में, अधिक स्वदेशी कला रूपों, रोमांटिक (रोमांटिक) तत्वों और मुगल कला को लघु कला रूप में समाहित किया गया। आज, बहुत सारे संरक्षित लघु चित्र संग्रहालयों और पुराने राजस्थानी किलों में पाए जाते हैं। हालांकि भारत में कुछ क्षेत्रों में कभी-कभी शाही परिवारों के संरक्षण में, कला की इन शैलियों का अभ्यास अभी भी किया जाता है, लेकिन इनका स्तर वह नहीं है जो मूल चित्रों के जैसा था। हालांकि इसके अभ्यास में कमी आयी है, लेकिन लघु कला का इतिहास में एक विशिष्ट स्थान है।
चित्र सन्दर्भ :
ऊपर दिए सभी चित्रों में रज़ा पुस्तकालय में संगृहीत विभिन्न कला धरोहरों को दिखाया गया है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2Y2DcE0
2. http://razalibrary.gov.in/MiniaturePaintings.html
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.